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Janye Punyu: Raksha Bandhan - जन्ये पुन्यु (श्रावणी उपाकर्म): रक्षा बंधन

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Risky Pathak:

श्रावण पूर्णिमा के दिन जन्यो-पुन्यु का त्यौहार मनाया जाता है| इस दिन द्विज श्रेष्ठ अपने पुराने यज्ञोपवीत को उतारकर नया यज्ञोपवीत धारण करते है|

गांवो में ये त्यौहार सामूहिक तरीके से मनाया जाता है| किसी बड़े पानी के ताल(जन्ये-पुन्यु ताल) में सुबह सभी लोग स्नान करते है|  उसके बाद तर्पण देते है| पंडितो द्वारा यजमान के घर पर पूर्वांग किया जाता है| उसके बाद पुरोहित द्बारा  रक्षा धागा(रौली) पहनाई जाती है|  और अंत में जनेऊ(यज्ञोपवीत धारण) किया जाता है|

Risky Pathak:
शास्त्रों में १६ संस्कार कहे गये है, जिनमे उपनयन संस्कार का अपना महत्त्व है| उपनयन संस्कार के दिन द्विजो को यज्ञोपवीत(जनेऊ) पहनाया जाता है| ऐसा माना जाता है की इस दिन से व्यक्ति का दूसरा जन्म होता है, इसलिए उसे द्विज कहा जाता है| जनेऊ(यज्ञोपवीत) द्विज ज़ाति का १ अभिन्न अंग है|

उपनयन संस्कार के बाद व्यक्ति विभिन्न कर्मकांडो में भाग ले सकता है| विवाह संस्कार से पहले व्यक्ति का उपनयन संस्कार होना  आवश्यक है, इसलिए आजकल लोग विवाह से १-२ दिन पहले ही दुल्हे को यज्ञोपवीत धारण करवा देते है|

Risky Pathak:

रक्षा बंधन मंत्र

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो  महाबलः
तेन त्वामभिबध्नामि, रक्षे माचल माचल

पंकज सिंह महर:
इस बार द्विजों को रक्षाबंधन से दस दिन पहले ही जनेऊ बदलने होंगे। अबकि बार वार्षिक श्रावणी उपाकर्म रक्षाबंधन को नहीं हो सकेगा क्योंकि इस दिन योग ठीक नहीं हैं।
गायत्री मण्डल के संरक्षक वयोवृद्ध ज्योतिर्विद पं. महादेव शुक्ल ने बताया कि इस वर्ष रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा १६ अगस्त को दिन में दो बजे तक भद्रा है जबकि चन्द्रग्रहण होने से शाम ४ बजे से इसका सूतक लग जाएगा। इनके साथ ही संक्रान्ति आदि होने से पूर्णिमा के दिन श्रावणी उपाकर्म (जनेऊ बदलने का वार्षिक अनुष्ठान) वर्जित है। लेकिन रक्षाबंधन हो सकता है।
इसे देखते हुए पुरातन ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार श्रावणी उपाकर्म हस्तनक्षत्र युक्त श्रावण शुक्ल पंचमी ६ अगस्त बुधवार को किया जाएगा। इस प्रकार की स्थितियां पहले भी बनी हैं और तब भी शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर दस दिन पहले श्रावण शुक्ल पंचमी को जनेऊ बदलने का वार्षिक अनुष्ठान श्रावणी उपाकर्म हुआ है।
पं. शुक्ल ने बताया कि श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन दिन में दो बजे तक भद्रा है। इसी दिन सिंह संक्रान्ति प्रवेश है। चन्द्रग्रहण होने की वजह से इसका सूतक शाम चार बजे लग जाएगा। इन सारी स्थितियों में श्रावणी उपाकर्म राखी के दिन किया जाना शास्त्र सम्मत नहीं है।
उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं यह शंका व्यक्त की जा रही है कि रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन भद्रा के उतरने और ग्रहण सूतक लगने के बीच के दो घण्टे में जनेऊ बदला जा सकता है। लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि श्रावणी उपाकर्म पांच से सात घण्टे का पूरा अनुष्ठान है जिसमें विधि-विधान के साथ जनेऊ बदलना जरूरी होता है। जिसके लिए कम से कम ५-७ घण्टे जरूरी

पंकज सिंह महर:
रक्षाबंधन और श्रावण पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व हैं जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है। और एक ही दिन मनाए जाते हैं। पुरातन व महाभारत युग के धर्म ग्रंथों में इन पर्वों का उल्लेख पाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि देवासुर संग्राम के युग में देवताओं की विजय से रक्षाबंधन का त्योहार शुरू हुआ।

इसी संबंध में एक और किंवदंती प्रसिद्ध है कि देवताओं और असुरों के युद्ध में देवताओं की विजय को लेकर कुछ संदेह होने लगा। तब देवराज इंद्र ने इस युद्ध में प्रमुखता से भाग लिया था। देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी श्रावण पूर्णिमा के दिन गुरु बृहस्पति के पास गई थी तब उन्होंने विजय के लिए रक्षाबंधन बाँधने का सुझाव दिया था। जब देवराज इंद्र राक्षसों से युद्ध करने चले तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने इंद्र के हाथ में रक्षाबंधन बाँधा था, जिससे इंद्र विजयी हुए थे।

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