Author Topic: Kumaoni Khadi Holi Exclusive Collection-कुमाऊंनी खड़ी होली संग्रह, अल्मोड़ा से  (Read 50380 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुमाऊँनी खड़ी होली -

रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग । रंग में होली कैसे,,,,
अबीर उड़ता , गुलाल उड़ता , उड़ते सातों रंग ,
भर पिचकारी सन्मुख मारी , अँगिया हो गई तंग ।
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।
तबला बाजे , सरंगी बाजे और बाजे मृदंग ,
कान्हा जी की बांसुरी बाजे राधा जी के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।
कोरे - कोरे कलस मंगाए तापर घोला रंग ,
भर पिचकारी सन्मुख मारी , अँगिया हो गई तंग ।
खसम तुम्हारे बड़े निखट्टू , चलो हमारे संग ,
रंग में होली कैसे खेलूँगी मैं , सांवरिया के संग ।

विनोद सिंह गढ़िया

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ओ हो होई आ गै
हों प्यारी दिल  कैसे भरुंगी,

हों प्यारी दिल कैसे भरूंगी,
पिया हमारो विदेश चलो है,
संय्या हमारो निठूर हो,
आवो बामना बैठो अंगना,
लाख लगन करि लाए हो, दिल कैसे भरूंगी,
बामना आए चौका पुराए,
संग पुरोहित लाए हो, दिल कैसे भरूंगी,
बारा बरस पिया घर आए,
कैसे पिया संग जाऊं हो, दिल कैसे भरूंगी।

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]कुमाऊं के होलीगीतों में भगवान राम में पराक्रम और वीरता से संबंधित कई वर्णन हैं। भगवान राम ने खुद कई कष्ट झेले थे लेकिन उन्होंने मर्यादा को बनाए रखने के लिए कई काम किए। लंका पर लड़ाई का वर्णन एक होलीगीत में बेहद सुंदर ढंग से किया गया है।

धनुष वाण प्रभुजी के हाथ, चौकस लछिमन भाई, लंका की तैयारी,
वन, वन के सब बानर आए, फौज भई अति भारी
बालि, सुग्रीव लड़े दोनों भाई, युद्ध भयो अति भारी,
भाई विभीषण भगत मिलो है, समुंदर सेतु बधाई,
वीर हनुमंत आगे चलो है, सीता बात सुनाई,
सारी लंका आग लगाई, समुंदर पूंछ बुझाई।

Pawan Pathak

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ओ हो होई आ गै
होरी हम देखन जाऊं...
पिथौरागढ़। कुमाऊं के कुछ होलीगीतों में ऐसा भाव प्रकट होता है कि राधा और कृष्ण जैसे लोगों के बीच आकर होली खेल रहे हों। इसमें भक्ति भी होती है और मस्ती का आलम भी होता है। होली गाते समय कृष्ण और राधा के रूप का वर्णन किया जाता है। ऐसा आभास कराया जाता है कि कृष्ण और राधा लोगों के बीच में आ गए हैं।
चल होरी हम देखन जावैं, श्याम घना रंग लाल भयो है,
मधुवन कुंज में धूम मची है, श्याम घना रंग लाल भयो है,
चल हो राधा साथ चली है,
घुंघट बहुपट नाचत सोहै,
पांवन वाके घुंगरू बाजै, सिर में वाके मुकुट बिराजै,
पलक पर झालर छाजै, कंचन थाल में दीपक जागै,
श्याम घना रंग लाल भयो है।
Source - http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150218a_003115004&ileft=204&itop=263&zoomRatio=139&AN=20150218a_003115004

Pawan Pathak

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ओ हो होई आ गै
गौर बरन तन जाके..
पिथौरागढ़। कुमाऊं के होलीगीतों में जितना वर्णन भगवान कृष्ण का होता है, उतना ही भगवान राम का भी होता है। दोनों को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। दोनों ने लोगों को धर्म और मर्यादा की राह दिखाई थी। भगवान राम के बारे में प्रचलित होलीगीतों में उनके परिवार का भी वर्णन मिलता है।

सांवलि सूरत मोहनि मूरत,
गौर वरन तन जाके, दोनों बालक कां के,
कौन नगर में जनम लियो है,
काहा नाम पिता के दोनों बालक कां के,
अयोध्या नगर में जनम लियो है,
दशरथ नाम पिता के दोनों बालक कां के,
राम लछिमन नाम हैं उनके,
मातु कौशल्या के जाए दोनों बालक कां के,
जनकपुरी में यज्ञ भयो है,
कठिन धनुष तोड़ाई दोनों बालक कां के।

Source - http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150226a_003115003&ileft=227&itop=810&zoomRatio=561&AN=20150226a_003115003

Pawan Pathak

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ओ हो होई आ गै
                                                                                होली कुंज गलिन में खेलत..
पिथौरागढ़। कुमाऊं के होली गीतों का यदि वर्गीकरण किया जाए तो उनमें कुछ गीत ऐसे होते हैं जिनको पुरुष बैठकी होली के समय गाते हैं लेकिन महिलाएं भी इन गीतों को अपने समाज में गाया करती हैं। इनमें लय में थोड़ा अंतर आ जाता है। एक गीत ऐसा ही यहां पर दिया जा रहा है। जिसे महिलाएं और पुरुष समान रूप से गाते हैं।
होली कुंज गलिन में खेलत नंद कुमारी,
मोर मुकुट सिर ऊपर सोहे गले फूलन की हारी,
पीतांबर कटि बीच विराजै पग नुपुर झनकारी,
ग्वाल बाल सब मिलकर खेलें खेलें व्रज की नारी,
भर भर रंग परस्पर छोड़ें पिचकारिन की धारी री,
अबीर गुलाल उड़ावे केशर रंग की छूटत फुहारी री,
भूषण बसन वदन सब भीजे चाल चलत पिचकारी।

Source - epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150228a_003115006&ileft=805&itop=75&zoomRatio=568&AN=20150228a_003115006

Pawan Pathak

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ओ हो होई आ गै

रंग ख्याल बनायो कान्हैया...
पिथौरागढ़। कृष्ण और राधा के प्रेम पर आधारित कई होलीगीत कुमाऊं में प्रचलित हैं। कई गीतों में भगवान कृष्ण की लीलाओं का बेहद सलीके से वर्णन किया गया है। भगवान कृष्ण लीला रचने में माहिर थे। होली के समय उनकी लीलाओं को याद किया जाता है। भगवान कृष्ण बांसुरी बजाते थे।
ऐसो ख्याल बनायो कान्हैया,
रंग ख्याल बनायो कान्हैया,
कौन बजावै बांसुरी सुन कान्हैया,
कौन बजावै मोचंख,
कृष्ण बजावै बांसुरी सुन कान्हैया,
राधे बजावै मोचंख,
कै मोल की तेरी बांसुरी सुन कान्हैया,
कै मोल को तेरो मोचंख,
लाख टका की बांसुरी सुन कान्हैया,
बहुमोल को यो मोचंख ऐसो ख्याल बनायो कान्हैया।

Soruce -http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150302a_005115008&ileft=457&itop=1133&zoomRatio=561&AN=20150302a_005115008

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
 

गावैं , खेलें , देवैं असीस , हो हो हो लख रे ।
बरस दिवाली बरसै फ़ाग , हो हो हो लख रे ।
जो नर जीवैं , गावैं फ़ाग , हो हो हो लख रे ।
आई वसंत कृष्ण महराज का घरा , हो हो हो लख रे ।
श्री कृष्ण जीरौं, लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
यो गौ को भुमिया जीरौं , लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
यो घर की घरिणी जीरौं , लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
गोठ की घस्यारी जीरौं, लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
पानै की रस्यारी जीरौं ,लाख बरीस , हो हो हो लख रे ।
गावैं , खेलें , देवैं असीस , हो हो हो लख रे ।

 

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