Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति

Lokoktiyon main Uttarakhand ka Atit,लोकोक्तियों में उत्तराखंड का अतीत

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Rajen:
इस बेहतरीन काम के लिए धन्यबाद सहित +१ करमा "देवभूमि" जी को.

Devbhoomi,Uttarakhand:
५-"एक सिंह रण,बण,एक सिंह गाय का ,
एक सिंह माधोसिंह,और सिंह काय का "

टिहरी राजवंस के पंवार वंशीय शासक महिपतिशाह(१६२५-१६३३)के वीर प्राकर्मी सेना नायक माधोसिंह की वीरता के सम्बन्ध मैं यह लोकोक्ति प्रशिध है !

अर्थात एक सिंह रणभूमि मैं लड़ता है !जबकि दूसरा सिंह जंगल का राजा होता है तीसरा (सींग) गाय का होता है !और चोथा सिंह (शेर _माधोसिंह है !इनके अतिरिक्त और कोई सिंह नहीं है !

Devbhoomi,Uttarakhand:
६-"श्याम से कुलैँ सामी ता,बांगी ता बांगी "

पंवार नरेशों मैं श्यामशाह (१९११-१९२४)मोहम्मद तुगलक के समान सनकी था वह अपनी हठधर्मिता के कारण पर्शिध था उसके समय यह लोकोक्ति प्रचलित थी !

अर्थात यदि -वह किसी छेड़ के विर्क्ष को सीधा ता टेढा  जो भी कहा देता सबको उसकी हाँ मैं हाँ मिलानी पड़ती थी !

Devbhoomi,Uttarakhand:
७-"भैर गौर्ला,भीतर गौर्ला,अर्ज विनती कै मूं कर्ला"



एक समय कुमाऊँ मैं गोरिला जाति का शासन था राज्य की प्रमुख रानी तथा उसके सभी दरबारी तथा अधिकारी गोरिला ही थे !
ऐसी स्तिथि मैं प्रजा को न्याय मिलना कठिन हो जाता था विनती करें तो किसे करें !

Devbhoomi,Uttarakhand:
८-"गढ़वाल कटक ता कुमौं सटक,कुमौं कटक ता गढ़वाल सटक "

कुमाऊँ गढ़वाल के राजाओं के समय दोनों ओर की प्रजा उनके युद्धों से रिश्त थी उन दिनों यह लोकोक्ति प्रचालन मैं थीं !

(अर्थात गढ़वाल मैं युद्घ होने पर कुमाऊं की ओर तथा कुमाऊँ मैं युद्घ होने पर स्थायी प्रजाजन गढ़वाल की ओर पलायन कर जाते थे !

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