Author Topic: Lokoktiyon main Uttarakhand ka Atit,लोकोक्तियों में उत्तराखंड का अतीत  (Read 17505 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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  दोस्तों यहाँ पर हम उत्तराखंड के अतीत के बारे मैं जानने कि कोशिस कर अह हैं और वो गढ़वाली और कुमौउनी लोकोक्तियों मैं,अगर आप मैं से किसी के पास कोई जानकारी हो तो यहं पर पोस्ट करें

उत्तराखंड के सामान्य जन-जीवन से जुडी लोकोक्तियों के अतिरिक्त अतीत से ह्जुदी अनेक लोकोक्तियाँ देश और काल के विश्त्रित छेत्र को प्रतिबिम्बित करती है !जिस मैं से कुछ निम्नवत है !

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१-महाभारतकाल (पांडवों का उत्तराखंड प्रवास )

"भ्यूं (भीम)से लडाई और सर्ग से लात,कख छई"


अर्थात भीम से युद्घ जीतना उतना ही असंभव है,जितना आकास को लात मारना महाभारत की कथा के अनुसार पांडव तीन बार इस छेत्र मैं आये थे !तथा यहीं से उन्होंने स्वर्गारोहण किया था !

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२-ईसा की ८ वीं -९ वीं सताब्दी

"तोपवाल की तोपताप,चौंङयाल कु राज "

अर्थात चांदपुर गढ़ के राजा तोपवाल जब चौंङयालों को पराजित करने की सोच रहे थे कि-चौंङयालों ने पह्के ही चाँदपुर गढ़ पर आधिपत्य कर किया और वहां अपना राज स्थापित कर लिया था !

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३-आधो असवाल आधो गढ़वाल

गढ़वाल के आधे भाग पर असवाल जाति के सदारों का अधिकार होने पर ये कहवत प्रचलित थी !

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४-"जू खाओ पनै की कुंडली वो दयो लोहागढ़ मुडली"

कुमाऊँ -गढ़वाल के चाँद  तथा पंवार राजवशों के निरंतर युधों मैं जो वीर ,लोहाघाट (कुमाऊँ ) की रक्षा करते हए वीरगति को प्राप्त हो जाते थे !
उनके परिजनों को पैनौ,छेत्र की सिंचित भूमि (सेरा) पुरस्कार स्वरूप दी जाती थी इस तथ्य की पुष्टि इस लोकोक्ति से होती है !

Rajen

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इस बेहतरीन काम के लिए धन्यबाद सहित +१ करमा "देवभूमि" जी को.

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५-"एक सिंह रण,बण,एक सिंह गाय का ,
एक सिंह माधोसिंह,और सिंह काय का "


टिहरी राजवंस के पंवार वंशीय शासक महिपतिशाह(१६२५-१६३३)के वीर प्राकर्मी सेना नायक माधोसिंह की वीरता के सम्बन्ध मैं यह लोकोक्ति प्रशिध है !

अर्थात एक सिंह रणभूमि मैं लड़ता है !जबकि दूसरा सिंह जंगल का राजा होता है तीसरा (सींग) गाय का होता है !और चोथा सिंह (शेर _माधोसिंह है !इनके अतिरिक्त और कोई सिंह नहीं है !

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६-"श्याम से कुलैँ सामी ता,बांगी ता बांगी "

पंवार नरेशों मैं श्यामशाह (१९११-१९२४)मोहम्मद तुगलक के समान सनकी था वह अपनी हठधर्मिता के कारण पर्शिध था उसके समय यह लोकोक्ति प्रचलित थी !

अर्थात यदि -वह किसी छेड़ के विर्क्ष को सीधा ता टेढा  जो भी कहा देता सबको उसकी हाँ मैं हाँ मिलानी पड़ती थी !

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७-"भैर गौर्ला,भीतर गौर्ला,अर्ज विनती कै मूं कर्ला"



एक समय कुमाऊँ मैं गोरिला जाति का शासन था राज्य की प्रमुख रानी तथा उसके सभी दरबारी तथा अधिकारी गोरिला ही थे !
ऐसी स्तिथि मैं प्रजा को न्याय मिलना कठिन हो जाता था विनती करें तो किसे करें !

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८-"गढ़वाल कटक ता कुमौं सटक,कुमौं कटक ता गढ़वाल सटक "

कुमाऊँ गढ़वाल के राजाओं के समय दोनों ओर की प्रजा उनके युद्धों से रिश्त थी उन दिनों यह लोकोक्ति प्रचालन मैं थीं !

(अर्थात गढ़वाल मैं युद्घ होने पर कुमाऊं की ओर तथा कुमाऊँ मैं युद्घ होने पर स्थायी प्रजाजन गढ़वाल की ओर पलायन कर जाते थे !

 

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