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Lokoktiyon main Uttarakhand ka Atit,लोकोक्तियों में उत्तराखंड का अतीत

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Devbhoomi,Uttarakhand:
  दोस्तों यहाँ पर हम उत्तराखंड के अतीत के बारे मैं जानने कि कोशिस कर अह हैं और वो गढ़वाली और कुमौउनी लोकोक्तियों मैं,अगर आप मैं से किसी के पास कोई जानकारी हो तो यहं पर पोस्ट करें

उत्तराखंड के सामान्य जन-जीवन से जुडी लोकोक्तियों के अतिरिक्त अतीत से ह्जुदी अनेक लोकोक्तियाँ देश और काल के विश्त्रित छेत्र को प्रतिबिम्बित करती है !जिस मैं से कुछ निम्नवत है !

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१-महाभारतकाल (पांडवों का उत्तराखंड प्रवास )

"भ्यूं (भीम)से लडाई और सर्ग से लात,कख छई"

अर्थात भीम से युद्घ जीतना उतना ही असंभव है,जितना आकास को लात मारना महाभारत की कथा के अनुसार पांडव तीन बार इस छेत्र मैं आये थे !तथा यहीं से उन्होंने स्वर्गारोहण किया था !

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२-ईसा की ८ वीं -९ वीं सताब्दी

"तोपवाल की तोपताप,चौंङयाल कु राज "

अर्थात चांदपुर गढ़ के राजा तोपवाल जब चौंङयालों को पराजित करने की सोच रहे थे कि-चौंङयालों ने पह्के ही चाँदपुर गढ़ पर आधिपत्य कर किया और वहां अपना राज स्थापित कर लिया था !

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३-आधो असवाल आधो गढ़वाल

गढ़वाल के आधे भाग पर असवाल जाति के सदारों का अधिकार होने पर ये कहवत प्रचलित थी !

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४-"जू खाओ पनै की कुंडली वो दयो लोहागढ़ मुडली"

कुमाऊँ -गढ़वाल के चाँद  तथा पंवार राजवशों के निरंतर युधों मैं जो वीर ,लोहाघाट (कुमाऊँ ) की रक्षा करते हए वीरगति को प्राप्त हो जाते थे !
उनके परिजनों को पैनौ,छेत्र की सिंचित भूमि (सेरा) पुरस्कार स्वरूप दी जाती थी इस तथ्य की पुष्टि इस लोकोक्ति से होती है !

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