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Mangal Chaupaiyan From Ramcharit Manas - मंगल चौपाइयां (श्री रामचरित मानस से)

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हलिया:
मंगल चौपाइयां
बचपन में, गांव में, हम श्री रामचरित मानस का खूब सस्वर पाठ करते थे।  कुछ चौपाइयां रह रह कर जुबान में आ जाती हैं।  कुछ प्रचलित चौपाइयौं को यहां लिखने का प्रयास करता हूं।  उम्मीद है आप सज्जन भी इसमें भाग अवश्य भागीदारी करेंगे।


मंगल भवन अमंगल हारी ।  द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥


मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथ राजू ॥


हरि अनंत हरि कथा अनंता ।  कहहि सुनहि बहु बिधि संता ॥


रामहि केवल प्रेम पियारा ।  जानि लेहु जो जाननि हारा ॥

हलिया:
मंगल चौपाइयां



कोमल चित अति दीनदयाला ।  कारन बिनु रघुनाथ कॄपाला ॥



अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ॥



दीन दयाल बिरिदु संभारी ।  हरहु नाथ मम संकट भारी ॥



प्रभु की कॄपा भयहु सब काजू ।  जन्म हमार सुफ़ल भा आजू ॥

पंकज सिंह महर:
शिवजी की महिमा का वर्णन किया श्री राम ने

आशुतोष तुम औढ़रदानी, आरती हरहुं दीनु जनु जानी।

पंकज सिंह महर:
कीन्हि प्रसन्न जेहि भाँति भवानी, जेहि बिधि शंकर कहा बखानी।

hem:
बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ||   (बाल कांड)

सीय राममय सब जग जानी |  करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी ||  (बाल कांड)

मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी ||  (बाल कांड)

महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)

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