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Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति
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खीमसिंह रावत
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Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Topic: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज (Read 99295 times)
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #110 on:
September 30, 2011, 02:45:45 PM »
Chareu - Mangal Shootra.
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indubisht85
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #111 on:
October 01, 2011, 08:37:25 AM »
मुझे तो ये याद है की जब विदाई होती थी और ये गीत बजता था -
बटी गे बारात चेली भैट डोली मा
ईजू की लाडिली पोथा भैठ डोली मा
बटा घटा मैं भली के जाये मेरी लाडिली तू झन्न रोये, मेरी धरिये लाजा पोथा भेट डोली मा...
तब तो जो नहीं रोता था वो भी रोना शुरू हो जाता था ....
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पंकज सिंह महर
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #112 on:
October 12, 2011, 01:51:33 AM »
शादी के बाद एक साथ लौर (पंगत) में बैठकर खाने का मजा ही कुछ और है।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #113 on:
November 30, 2011, 02:14:42 PM »
Photo by :
Pahadi Classes (facebook)
ब्योलि और वर ज्यू मुकुट - कुमाँऊनी परंपरा
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विनोद सिंह गढ़िया
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'रं' समाज में दहेज की परंपरा नहीं
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Reply #114 on:
January 16, 2012, 02:25:11 AM »
'रं' समाज में दहेज की परंपरा नहीं
विभिन्न भारतीय समाजों में जहां दहेज को लेकर महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती रहती हैं, उनको जलाकर मार दिया जाता है, वहीं रं समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन के रूप में स्वीकार किया जाता है। रं समाज में विवाह के समय कोई कर्मकांड नहीं होता। दूल्हा और दुल्हन फेरे नहीं लगाते। सिर्फ अपने पितरों और ईष्ट देवता की पूजा केबाद शादी की रस्म पूरी कर ली जाती है। यही वह समाज है, जहां आज भी महिलाओं का बहुत सम्मान होता। रं समाज केयुवक चाहे दुनिया केकिसी कोने में काम कर रहे हों, लेकिन विवाह को अपने समाज के बीच ही आकर संपन्न कराते हैं। रं समाज में विवाह के समय दहेज के लिए कोई स्थान नहीं होता।
माघ का महीना शुरू हो गया है। रं समाज के लोग शुक्ल पक्ष यानि कि लोल्ला में ही विवाह करेंगे। रं समाज में सगाई (फोची) की भी विचित्र परंपरा है। सगाई केसमय शराब जरूर जाती है। विवाह केदिन बाराती परंपरागत वेशभूषा रंगा में सजकर जाते हैं। हर व्यक्ति सिर पर पगड़ी लगाता है। घर में तैयार किए गए परंपरागत कपड़ों को पहनकर ही बारात में जाते हैं। यह परंपरा अतीतकाल से इसी तरह चली आ रही है। दुल्हन के घर बारात के पहुंचते ही सबसे पहले पितरों और ईष्ट देवता की पूजा होती है। उसकेबाद भोजन तथा दावत का कार्यक्रम होता है। विदाई के समय दुल्हन के साथ गांव की पांच या सात लड़कियां ससुराल तक छोड़ने आती हैं। दुल्हन के ससुराल पहुंचते ही सबसे पहले गांव के बुजुर्गों की मौजदूगी में दूल्हा और दुल्हन का परिचय कराया जाता है। दुल्हन अपने हाथ से तैयार किया गया प्रसाद (दलंग) लोगों में वितरित करती है।
रं समाज के विवाह के समय बड़ी सादगी का माहौल रहता है। कोई भी पिता अपनी बेटी को दहेज के नाम पर एक भी पैसे का सामान नहीं देता। यह परंपरा युगों से उसी रूप में चली आ रही है और आज भी उसका स्वरूप नहीं बदला है।
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Devbhoomi,Uttarakhand
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #115 on:
January 20, 2012, 10:10:04 PM »
समय के साथ हर चीज़ बदली। शादियों का स्वरूप भी बदला। नई पीढ़ी है कि जानती ही नहीं कि शादियों की परंपराएँ क्या हैं। बस तैयार हो कर किसी हाल या होटल तक जाना, खाना खा कर वापस आना और सो जाना।
शादियों में डुग्गर का चलन हुआ करता था। लेकिन अब वह भी लगभग लुप्त होने को है। किसी ज़माने में चार से सात दिन तक चलने वाली शादी तेज़ रफ़्तार जीवन में केवल औपचारिकताओं तक सीमित रह गई है। ऐसे में कई रिवाज़ पीछे छूटते गये। ऐसा ही एक रिवाज़ छूटा जागरणा का। डुग्गर की नाट शैली में शामिल जागरणा आज केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों या लोक उत्सवों में ही होता है।
हालाँकि दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाकों में इसकी परंपरा कुछ हद तक जीवत है। अपने नाम के अनुसार ही जागरणा रात को होता था। पहले जब यातायात के साधन नहीं होते थे तो बारात दो तीन दिनों या उससे ज़्यादा समय के बाद दुल्हन लेकर लौटती थी।
ऐसे में रात को मनोरंजन का साधन होता था जागरणा। इसमें केवल और केवल महिलाएँ ही हिस्सा ले सकती थीं। सख्ती इतनी ज़्यादा होती थी कि पुरुष इसमें हिस्सा लेना तो दूर इसको देख तक नहीं सकते थे। इसमें महिलाएँ ही कई पुरुषों के पात्र निभाती थीं।
इसमें नाटक के लिए ज़रूरी सभी तत्व शामिल होते थे और यही कारण है कि यह डुग्गर की नाट शैली है। पुरुषों की भागेदारी नहीं होने के कारण कई बार ऐसा भी होता था कि इस प्रस्तुति जो गाने या बोल इस्तेमाल किए जाते हैं वह दो अर्थी होते थे।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #116 on:
April 25, 2012, 11:46:19 PM »
बेटी/बहिन की डोली से विदाई जो उतराखंड की शादियों की एक परम्परा है
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मोहन जोशी
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #117 on:
April 26, 2012, 07:32:55 AM »
पहाड़ के बारातो मैं दोपहर का डेलो वाला ( कुनो मैं पकाया गया भात) भात और चने उरद की दाल, गोल्डी का आचार, काकडी का रायता, सूखे आमो की गुड वाली खटाई कभी भूले नहीं भलती चाहे कितने बड़े होटल मैं मैं खाना खाने चला जाता हु मगर वो सवाद को कभी नहीं पता हु
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #118 on:
April 28, 2012, 03:37:42 PM »
This is also a customs of kumoani marriage where umbrella is required for bride.
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720
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Re: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज
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Reply #119 on:
April 29, 2012, 02:04:38 AM »
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