नए जमाने की नई शादियां
जमाने के बदलते मिजाज के साथ ही शादी विवाह के रंग और ढंग भी बदल गए है। नगाड़े निशाणों की जगह बैंड और ढोल, तो लाउडस्पीकर की जगह डीजे का हुड़दंग है। शादी के मुख्य आयोजन के साथ ही सगाई समारोह, प्रीति भोज, महिला संगीत और अब मेहंदी की शाम जैसे आयोजनों से शादी के संदर्भ तो बदल ही गए हैं इन आयोजनों ने शादी को बहुत अधिक खर्चीला भी बना दिया है। यह सब देखकर पुरानी पीढ़ी हैरान है। पुराने लोग तिमली के पात में हलुवा-पूरी हरगिज नहीं भुला पाएंगे।
बहुत ज्यादा समय नहीं बीता है जब शादी समारोह के दौरान शादी वाले घर में ही नही बल्कि पूरे गांव में उत्साह जैसा माहौल रहता था। लाल रंग के कपडे़ (लाल टूल) में रुई से स्वागतम् लिखा जाता था। केले के पेड़ों को दोनों तरफ से खड़ा कर गेट (मुख्य द्वारा) बनाया जाता था। बच्चे रंग बिरंगी पतंगी कागज चिपकाने में व्यस्त रहते थे। स्वागत की रश्म के बाद दुल्हन पक्ष के लोग बारातियों को तिमली (अंजीरा) अथवा केले के पत्ते में खाना खिलाते थे। उस दौर में लोग अमचूर का मीठा अचार और हलुवा पूरी बडे़ चाव से खाते थे। सड़कों का आभाव था बारातों का आवागमन पैदल ज्यादा होता था। इसीलिए बाराती पूरी रात बिताने के बाद ही लौटते थे परंतु चंद समय में ही सबकुछ बदल गया है। टेंट, पंडाल और बारात घरों में ही शादियां होने लगी हैं।
मुख्य रश्म के साथ ही प्रीति भोज, मेहंदी की शाम, सगाई और महिला संगीत ने शादियों को मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए एक बड़ी चुनौती बना दिया है। रही सही कसर हाय-फाय ब्यूटी पार्लरों ने पूरी कर दी है। महिला संगीत में पहले सिर्फ महिलाएं ही जाती थी परंतु अब पुरुष भी जाने लगे हैं। ढोलक की थाप के बजाए डीजे के शोर में महिलाएं नाचती हैं और पुरुष दर्शक बना देखता रहता है। पुरुष और महिलाओं का साथ-साथ नाचना आम बात हो गई है। नई दुल्हन मायके से विदाई के गम में डूबी घुंघट निकाल बैठी रहती थी। परंतु अब तो कई बार वह भी अन्य महिलाओं के साथ नाचती दिखाई देती है। लाउडस्पी