उत्तराखंड में शादी के रीति रिवाज- चतुर्थ भाग (By Subhash Kandpal)
मंगल स्नान के बाद यदि लड़के की शादी है तो बरात और गाँव वालों के लिए भात-दाल का प्रबंधन किया जाता है. एक चोक या खेत में कुछ चूल्हे लगाए जाते है जिसे रसोडा कहा जाता है. २-३ आदमियों को भोजन बनाने के लिए परिवार वाले सदस्य निवेदन करते है. पहाडों में भात को झूठा माना जाता है इसलिए उस रसोडे के आस पास अन्य किसी को आने नही दिया जाता है.भात दाल बनने के बाद सबसे पहले बारातियों को खाना खिलाया जाता है और फ़िर गाँव वालों को. खाना खाने के उपरांत समयानुसार बाराती लोग बरात में जाने के लिए तयारी करते है और बरात का प्रस्थान तिलक लगाकर किया जाता है. अगर शादी वाला परिवार आर्थिक रूप से सक्षम है तो दूल्हे के साथ साथ, मामा जी और पंडित के लिए भी घोडे कि ब्यवस्था की जाती है. घर से बरात ढोल दमु (आजकल बैंड बाजा) के साथ प्रस्थान करती है.
यदि लड़की की शादी हो तो दिन के भोजन के बाद सभी लोग रात में मेहमानों के स्वागत की तयारी में जुट जाते है. भोजन ब्यवस्था ठीक उसी प्रकार की जाती है जैसे कि मैंने आप लोगों को पहले बताया, लेकिन इसमे कुछ पकवानों में बिरिधि की जाती जो कि विशेष रूप से केवल बाहर से आने वाले मेहमानों (बाराती) की मेहमान नवाजी करने के लिए पकाए जातें है.
शाम को बरात के स्वागत के लिए गैस, पेट्रोमैक्स के मरम्मत का काम शुरू हो जाता है जो कि ज्यादातर नव युवकों के द्वारा ही किया जाता है.
मेहमानों की शयन ब्याव्स्था के लिए १ ब्यक्ति को नियुक्त किया जाता है. वह ब्यक्ति अपने पास १ कलम और कॉपी लेकर पूरे गाँव में घूमता है और घर घर जाकर लोगों को बताता है कि आपके यहा इतने मेहमान सोने के लिए आयेंगे और आप अपनी ब्याव्स्था कर लेना. वे परिवार उसी हिसाब से अपने यहा मेहमानों की सोने की ब्यवस्था के लिए रजाई-गद्दों की ब्यवस्था करते है.
शाम को बरात को लेने के लिए ४-५ लड़कों को नियुक किया जाता है. उनके पास गैस और पेट्रोमैक्स दिया जाता है ताकि बारातियों को अंधेरे में कुछ परेशानी न हो, अगर पैदल का रास्ता है तो. जब हम बहुत छोटे थे उस समय हम नारे-बाजी के साथ बारातियों का स्वागत करते थे जैसे कि "आए हुए मेहमानों का स्वागत करो, वर वधु की जोड़ी अमर रहे" और बारातियों से इसके लिए कुछ पैसे मांगते थे जो कि हम लोग अपने गाँव के स्वागत फंड में जमा करते थे जिससे कि अन्य सामग्री खरीदी जाती थी जैसे लोटे, गिलास, थाली, कोटोरे. ये सारे बर्तन सार्वजनिक होते हैं और प्रत्येक गाँव वाले के कार्य में प्रयोग में लाये जाते है. लेकिन अब स्वागत करने का ये तरीका लगभग लुप्त हो गया है. अब न कोई नारे बाजी करता है और न इसके एवज में पैसे मांगता है.
जैसे ही बरात चोक में आती है तो बारातियों का भव्य स्वागत किया जाता है. चोक में दन, दरी,चटाई बिछायी जाती है. बीच में एक बक्सा रखा जाता है और उसमे प्रकाश करने के लिए गैस और सजावट के लिए दोनों ओर गमले रखे जाते है. जब बरात चोक में बैठ जाती है तो वही पर भगवान् गणेश का पूजन किया जाता है और साथ ही में गाँव के ब्याक्तियों द्वारा स्वस्ति वाचन का पाठ किया जाता है. इसके साथ साथ बारातियों और अन्य लोगों को ठंडे पानी जैसे जूस,रसना के साथ चाय भी वितरित की जाती है. चाय वितरण का काम भी गाँव के नोजवान युवकों द्वारा ही किया जाता है.
गणेश पूजन समाप्त होने के बाद बारातियों का तिलक किया जाता है और उनको गंदाक्छ (लिफाफे पर पैसे देना ) से सुशोभित किया जाता है. बारातियों के साथ साथ गाँव की जो भी धियानी (औरतें ) होती है उनको भी गंदाक्छ दिया जाता है.
गंदाक्छ देने के बाद वधु पक्ष (हमारे गाँव की ओर )से कोई बुजुर्ग या सम्मानीय ब्यक्ति बारातियों के स्वागात १०-१५ मिनट का छोटा सा भासण देते है और साथ ही में वर पक्ष से छमा याचना करते है की यदि उनके स्वागत और मेहमान नवाजी में कुछ कमी रह जायेगी तो वो उसको हिरदय में स्थान नही देंगे.
इसके बाद भोजन का समय आता है. सारे बारातियों को चोक में बिठा दिया जाता है, उनको हाथ मुह धोने के लिए पानी दिया जाता है. फ़िर पत्तल पुरखे बाटें जाते है. फ़िर गाँव के नोजवान एक एक कर खाना बांटते है लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाता है कि खाना बांटते समय कोई भी जूता चप्पल न पहने हुआ हो? जूता चप्पल में किसी को खाना बाँटने नही दिया जाता है.
खाना खाने के उपरांत शयन ब्याव्स्था वाला ब्यक्ति अपने साथ कुछ और लोगों को लेकर सब बारातियों को अलग अलग घरों में सोने के लिए भेज देते है.