Author Topic: Rajula Malushahi Immortal Love Story - राजुला मालूशाही: अमर प्रेम गाथा  (Read 79296 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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पंकज सिंह महर

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गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।.......

पंकज सिंह महर

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तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने।  रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।...........

पंकज सिंह महर

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मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।......

पंकज सिंह महर

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तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा म्रूत्यु सिंह को सिदुवा-विदुवा रमौल के साथ हून देश भेजा।

पंकज सिंह महर

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सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
           इति........।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Wah Mahar ji pahli premkatha ka happy end dekha.

Risky Pathak

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Rajula-Malusahi ki katha ka naam to bahot baar suna tha...
Shuruwat ki thodi kahaani pata bhi thi.. Par aaj Pankaj Daa Ki Kirpa Se Puri Complete Story Pta Chal Gyi.. Jai Ho Pankaj Daa Tumhari....

हेम पन्त

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बहुत सुन्दर कहानी है... मैं आधी-अधूरी कहानी जानता था. बहुत-२ धन्यवाद पंकज दा...

हलिया

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जै हो महाराज महर ज्यूँ तुमरि.  भौते बढ़िया कथा सूनुना लिजी धन्यवाद और द्वि कर्मा ले कै. 

 

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