देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूं-
रामी बौराणी, केवल एक महिला का नाम भर नहीं है, बल्कि रामी बौराणी उत्तराखण्ड के परिवेश के अनुसार वहां की महिलाओं की स्थिति को बयां करती पात्र भी है। वह उत्तराखण्डी महिला के त्याग, समर्पण, स्त्रीत्व और सतीत्व को परिभाषित करती महिला है। अर्थात रामी बौराणी में हर उत्तराखण्डी महिला को देखा और समझा जा सकता है। यह पात्र हमारे उत्तराखण्ड की महिलाओं की दृढ़ता, त्याग, समर्पण, स्त्रीत्व और सतीत्व की प्रतीक है।
और इस हेतु हमें किसी के सर्टिफिकेट की आवश्यकता तो कतई भी नहीं है। जहां तक कुकरेती जी की बात है, हमने तो उनके बारे में अच्छा-अच्छा ही सुना था, लेकिन अब उनके विचारों को जानकर ऎसा लगता है कि उन्हें उत्तराखण्ड की वास्तविक समझ नहीं है, उन्होंने उत्तराखण्ड को करीब से नहीं जाना है, अगर वे पहाड़ में रह रही अकेली महिला, जिसके सिर पर खेती-बाड़ी, बाल-बच्चों से लेकर बूढ़े सास-ससुर की सेवा का भी भार है, यदि उसके बारे में कुकरेती जी जरा भी जानते तो शायद ऎसा नहीं लिखते।
जहां तक शारीरिक आवश्यकओं को पूर्ति की बात है, प्रेक्टिकली अभी हमारे समाज में इसका महत्व संतानोत्त्पत्ति तक ही सीमित है, ग्रामीण पति-पत्नी एक साथ रहने पर भी शारीरिक आवश्यकताओ से ज्यादा घर की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर ज्यादा फोकस रखते हैं, क्योंकि इन्हीं दो महीने में उस पुरुष ने पूरे घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ नातेदारी-रिश्तेदारी, बच्चों के भविष्य, खेतों की देखभाल आदि दायित्वों का निर्वहन करना होता है। अकेली महिला के शेडयूल को कुकरेती जी जरुर देखें और समझॆं, उस महिला का कार्य सुबह ४ बजे गोठ से जानवरों का गोबर निकालने से शुरु होता है, उस गोबर को खेत तक पहुंचाना वापस आते समय घास और फिर जानवरों को बाहर निकालकर चारा देना........इसके बाद वह चाय-दूध लेकर सास-ससुर और बच्चों को उठाती है दिन भर खेतों पर काम करना खाना बनाना, लकड़ी लाना, पानी लाना............सब मिलाकर वह रात १० बजे तक सोने जा पाती है और उसके बाद वह ऎसे बेसुध होकर सोती है कि उसे दीन-दुनिया का होश नहीं रहता......अपने इष्ट देव का स्मरण कर वह महिला दिन भर की थकान से चूर होकर सोने चली जाती है। ऎसे में उसे क्या सूझता होगा? कुकरेती जी कभी गांव जाकर देखिये, कैसा जीवन जीते हैं हमारे लोग और हमारी महिलायें, फिर कुछ लिखियेगा। बम्बई के वातानुकूलित कमरे से उत्तराखण्ड के गांव को सिर्फ जाना जा सकता है समझा नहीं।