Author Topic: Speciality of Various Fairs in Uttarakhand-उत्तराखंड के कुछ मेलो की खास विशेषता  (Read 11518 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Somnth Mela - Chaukhutiya

चौखुटिया, जाका: मासी बाजार में प्रतिवर्ष लगने वाला ऐतिहासिक सोमनाथ मेला आज 6 मई से शुरू हो रहा है। मेले का विधिवत शुभारंभ सोमनाथ मेला स्थल पर विभिन्न रंगारंग-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आगाज के साथ होगा। इसी दिन रात को सल्टिया मेला लगेगा। सोमनाथ मेला पूरे सात दिनों तक चलेगा। मुख्य मेला 7 मई को संपन्न होगा। इस दिन दो अलग-अलग आल क्रमश: कनौणी व मासीवाल द्वारा नदी में पत्थर फेंक कर ओड़ा भेंटने की रस्म       निभाई जायेगी।
मासी में रात को लगने वाले सल्टिया मेले में प्राचीन काल से ही विभिन्न गांवों से नगाड़े-निशानों के साथ ग्रामीणों की पहुंचने की परंपरा रही है। हालांकि बीते कुछ वर्षो से रात मे लगने वाले इस मेले का स्वरूप अब सिमट गया है तथा मेलार्थियों की भागीदारी नगण्य हो गई है। फिर भी इस मेले में पारंपरिक लोक संस्कृति के रंग देखने को मिलते हैं। आज भी कई बुजुर्ग कलाकार मेले में भगनौल, छपेली व झोड़ा गायन की परंपरा को जीवंत बनाये हैं। तय कार्यक्रम के अनुसार इस बार सोमनाथ का मुख्य मेला 7 मई को संपन्न होगा। मेले में कनौणी आल के ग्रामीण रामगंगा नदी में पहले पत्थर फैंक कर मेले की रस्म निभायेंगे। इसके बाद मासीवाल आल के लोग पत्थर फेंकेंगे। मेले का समापन 12 मई को पुरस्कार वितरण के साथ होगा।
(Source Dainik - Jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From Deepak Benjwal श्रीआदिबदरी धाम में नौठा कौथिग आज
 
 आदिबदरी। श्रीआदिबदरी धाम में आयोजित होने वाला नौठा कौथिग जनपद चमोली के प्राचीन मेलों में से एक है। हर वर्ष बैशाख के पांचवें सोमवार को मनाया जाना वाला यह मेला आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखे हुए है। मान्यता है कि जितना पुराना आदिबदरी धाम है। उतना ही पुराना नौठा कौथिग भी है।
 क्षेत्र के डांडा, मज्याड़ी, पंडाव, पिंडवाली, बडेथ, प्यूंरा, पज्यांणा, खेती, मालसी, रंडोली आदि दर्जनों गांवों के लोग पूर्व में बसंत पंचमी से ही नौठा नृत्य की तैयारियों में जुट जाते थे। गेहूं की फसल तैयार होने के पश्चात नई रोटी, नया गेहूं चढ़ाने और मंदिर में पूजा करने के लिए गाजे-बाजे के साथ श्रीआदिबदरी धाम में पहुंचते। बैशाख माह के पांचवें सोमवार को जो सबसे पहले मंदिर की खली (आंगन) में प्रवेश करता और अपनी पूजा श्रीआदिबदरी धाम को अर्पित करता, उसकी बड़ी प्रतिष्ठा होती थी लेकिन धीरे-धीरे प्रथम पूजा की प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए इन गांवों के बीच खूनी संघर्ष होने लगा। इन गांवों के लोग डोल-दमाऊं, तुरही, पत्थर और लाठी-डंड़ों के साथ मंदिर में पहुंचते और प्रथम पूजा के लिए मंदिर प्रांगण में खूनी संघर्ष होने लगता। जो गांव अपने प्रतिद्धंद्धी को खदेड़ कर बाहर करता वही मंदिर में पूजा का अधिकार प्राप्त कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता। चार दशक पूर्व तक यह खूनी संघर्ष की परंपरा यहां कायम थी लेकिन शिक्षा एवं सामाजिक विकास के बाद लोगों का नजरिया बदल गया। आज इस परंपरा के निर्वहन के लिए बैशाख माह के पांचवे सोमवार को खेती और रंडोली के ग्रामीण ढोल-दमाऊं और लाठी-डंडों के साथ श्रीआदिबदरी धाम में पहुंचते हैं और प्रतीकात्मक रूप से लाठी-डंडों से युद्ध करते हैं।
 
 यह भी मान्यता है
 तिब्बत का राजा कुमामेर प्राचीन समय में ग्रीष्मकाल में अक्सर आदिबदरी घाटी में आता और अपनी सेना के साथ यहां जमकर लूटपाट करता। कुमामेर की इस हरकत से चांदपुर गढ़ी का राजा पेरशान रहता। कुमामेर राजा के प्रति विरोध का स्वर आज भी मेले में उभरता है। नौठा कौथिग कुमामेर, जो नौठा कौथिग मेला का सबसे प्रचलित गीत है आज भी महिलाओं की गायक मंडली के द्वारा इसे सुरीले स्वरों में गाया जाता है। कौथिग में पंडवाणी गायन, झुमेलो, चांछरी, जागर गायन की प्रस्तुतियां भी क्षेत्रीय ग्रामीणों के द्वारा की जाती है।

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मोष्टामाणू का मेला - जनपद पिथौरागढ़
 
 पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय के चतुर्दिक फैले ग्रामीण क्षेत्रों में तीन प्रसिद्ध मेलों का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है । भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को ध्वज नामक पहाड़ की चोटी पर देवी मेला लगता है । इसके दूसरे दिन हरियाली तृतीया को किरात वेश में रहने वाले भूमि के स्वामी केदार नाम से पूजित शिव के मंदिर स्थल केदार में मेला लगता है । थल केदार जनपद मुख्यालय से ११ कि.मी. दक्षिण पूर्व में नौ हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित है । तीसरे दिन ॠषि पंचमी को पिथौरागढ़ से ६ कि.मी. की दूरी पर लगभग छ: हजार फुट की ऊँचाई पर इस जिले का प्रसिद्ध और दर्शनीय मेला सम्पन्न होता है । यह मेला मौष्टामाणू का मेला कहलाता है ।
 
 मोष्टामाणू का मंदिर पिथौरागढ़ नगर के पास पश्चिम-उत्तर दिशा में एक ऊँची चोटी पर स्थित है । मोष्टामाणू शब्द का अर्थ है - मोष्टादेवता का मंडप । लोक जगत में विश्वास है कि मोष्टादेवता जल वृष्टि करते हैं । वे इन्द्र के पुत्र हैं । मोष्टा की माता का नाम कालिका है । वे भूलोक में मोष्टा देवता के ही साथ निवास करती हैं । इन्द्र ने पृथ्वी लोक में उसे भोग प्राप्त करने हेतु अपना उत्तराधिकारी बनाया । दंत कथाओं में कहा जाता है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर, आठ सहस्र मशान रहते हैं । 'भुँटनी बयाल' नामक आँधी तूफान उसके बस में हैं । मोष्टा देवता के रुष्ट हो जाने पर वे सर्वनाश कर देते हैं । वह बाइस प्रकार के वज्रों से सज्जित है । माता कालिका और भाई असुर देवता के सहयोग से वह नाना प्रकार से असंभव कार्यों को सम्पादित करता है । मोष्टा और असुर दोनों के सामने बलिदान नहीं होता परन्तु उनके सेवकों के लिए भैंसे और बकरे का बलिदान किया जाता है ।
 
 मोष्टा को नागदेवता माना जाता है । उनकी आकृति मोष्टा या निंगाल की चटाई की तरह मानी गयी है । उन्हें विषों से युक्त नाग माना जाता है । इसलिए जो लोग नागपंचमी को नागदेवता की पूजा नहीं कर पाते वे मेले के दिन यहाँ आकर उनका पूजन सम्पन्न कर लेते हैं ।
 
 मेले के अवसर पर मोष्टा देवता का रथ निकलता है । इसे जमान कहते हैं । लोग इसके दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं ।
 
 इस मेले का व्यापारिक स्वरुप भी है । स्थानीय फल फूल के अतिरिक्त किंरगाल की टोकरियाँ, चटाइयाँ, कृषियंत्रों काष्ठ बर्तनों तथा तरह-तरह की वस्तुओं की खरीद फरोख्त होती है ।
 
 मेले के अवसर पर लोक गायक ओर नर्तक भी पहुँचते हैं । हुड़के की थाप पर नृत्यों की महफिलें सजती हैं, गायन होता है । शाम होते-होते मेले का समापन होता है । वर्तमान में सरकारी विभाग भी अपने-अपने कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार के लिए मेले का उपयोग करते है ।

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  हर्षोल्लास के साथ मना बाबा बौखनाग मेला
   जागरण प्रतिनिधि, बड़कोट : उत्तरकाशी जिले की यमुना और गंगा घाटी के बीच स्थित राड़ी घाटी के निकट बौख नाग मंदिर में आयोजित बाबा बौखनाग मेला हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। सुख समृद्धि, खुशहाली के साथ ही संतानोत्पति की मनोकामना का बाबा बौखनाग से आशीर्वाद प्राप्त करने को श्रद्धालुओं का जमावड़ा यहां लगा।
सोमवार को बड़कोट के राड़ीघाटी के निकट बौखा टिब्बा में बाबा बौखनाग मेले में सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था। दोपहर तक मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने बाबा बौखनाग का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद बौखनाग की डोली के साथ लोगों ने यहां पारंपरिक नृत्य किया और दूर-दराज से आये मेलार्थियों ने इस पौराणिक मेले का आनंद लिया

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पौराणिक सोमनाथ का मुख्य मेला - Maasi, Almora (Uttarakhand)
ओड़ा भेंटने की रस्म निभाने उमड़े सैकड़ों

चौखुटिया: मासी का ऐतिहासिक व पौराणिक सोमनाथ का मुख्य मेला सोमवार को उमंग भरे वातावरण के बीच हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया। सोमनाथ का यह मेला सात दिनों तक
 चलता है, समापन 18 मई को होगा। आज का खास आकर्षण रामगंगा नंदी में पत्थर
 फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म रहा। अपनी तय बारी के अनुसार मासीवाल आल के
 ग्रामीणों ने पहले ओड़ा भेंटा।
 मेले में कौतिक्यारों की भारी भीड़ रही तथा   सामान की जमकर खरीददारी की। दोपहर बाद रामगंगा नदी के आरपार बसे दो आल क्रमश: कनौणी व मासीवाल के ग्रामीण
 गाजे-बाजे व नागाड़-निशानों के साथ गाते नाचते व जोश-खरोश से मेला स्थल की ओर पहुंचे। इस दौरान पारंपरिक ढ़ाल- तलवार नृत्य व झोड़ा गायन की खूब धूम रही। इस वर्ष मेले में उत्साह व उमंग का खासा संगम देखने को मिला।
 मेले की परंपरा के अनुसार सायं 3 बजे दोनों आलों के ग्रामीणों ने निर्धारित समय पर ओड़ा भेंटने की रस्म पूर्ण की। अपनी तय बारी पर मासीवाल आल के लोगों ने 4 जोडे़ नगाड़े-निशानों के साथ पहले दौड़ लगाकर नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की परंपरा निभाई। इसके बाद कनौणी आल के ग्रामीणों ने ओड़ा भेंटा।
 आज के मुख्य मेले में मासी, कनरै,
 ऊंचावाहन, कनौणी, डांग, कोटयूड़ा-मासी, आदिग्राम फुलोरिया व झुडंगा समेत आसपास के गांवों के लोग नागाड़े-निशानों के साथ समूह में पहुंचे। मेला शाम सात बजे त चलता रहा। पूर्व से ही सोमनाथ व्यवसायिक मेला रहा है, जो पूरे सात दिनों तक चलता है।(source dainik jagran)

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हरियाली पूड़ा मेला - कर्णप्रयाग

 मेले का धार्मिक महत्व

प्राचीन परंपरा के अनुसार वसंत के आगमन पर चैत्रमास की संक्रांति के दिन नौटी गांव के हर घर में हरियाली (जौ बोए जाते हैं) डाली जाती है। नवें दिन गांव की सुहागिन महिलाएं हरियाली को रिंगाल की टोकरी में पूजा सामग्री सहित नंदादेवी मंदिर में भेंट चढ़ाती हैं। क्षेत्र के लोग नंदा देवी को बहिन मानते हैं व चैत्रमास में उसे आलू-कलेऊ (प्रसाद) देने की परंपरा निभातें हैं। महिलाएं गाजे-बाजे के साथ हरियाली की टोकरी, फूल सहित मंदिर पहुंचती हैं व पूजा-अर्चना कर देवी से मनौती मांगती हैं।

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12 May 2014

Somnath Fair, Chaukhutia, Almora (Uttarakhand)

रामगंगा नदी में पत्थर फेंकने की रस्म के साथ मासी में सोमनाथ का मुख्य मेला संपन्न हो गया है। 

बैशाख के आखिरी सोमवार को होने वाले सोमनाथ के मुख्य मेले को बड़ा सोमनाथ भी कहा जाता है। प्राचीन परंपरा के अनुसार मेले में दो दलों के लोग प्रति वर्ष अपनी बारी के अनुसार रामगंगा में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म अदा करते हैं। हफ्तेभर तक चलने वाले मेले में सोमवार को पहले कनौणियां आल (पार्टी) में शामिल गावों के ग्रामीणों ने नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटा। इसके बाद मासी आल में शामिल ग्रामीणों ने यह रस्म निभाई।

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Jhanda Fair
झंडे जी के आरोहण के बाद महंत देवेंद्र दास ने कहा कि यह मेला 350 सालों से ऐसे ही आयोजित होता आ रहा है।

 

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