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पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन आपके दृष्टि से कैसा है ?

अच्छा है
20 (35.7%)
सही नही है
16 (28.6%)
संस्कृति के खिलाफ
15 (26.8%)
कह नही सकते
5 (8.9%)

Total Members Voted: 56

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: System Of One Day Marriages In Uttarakhand - पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन  (Read 28089 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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No doubt on this... ha ha.. he hee

अब तो रात की शादियां बडी मुश्किल से ही देखने को मिलती हैं.. आप लोग कुछ भी कहो... शादी का जो मजा है वो तो रात की शादी में ही है. वन-डे शादी तो formality है.
अब तो 20-20 क्रिकेट मशहूर हो गया है, क्या पता शादियों का रिवाज भी फिर से बदल जाये.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

Marriages are taking place on 20/20 cricket style. In 20/20 matches there is full enjoyment but in one day marriage there is less enjoyment as both the sides are in hurry. 

In one day marriage, we are somewhere bypassing the cultural norms.

सही कहा हेम दा.....।
२०-२० स्टाइल में फटाफट होने वाली शादी की कल्पना करके मुझे हंसी आ रही है।
      वैसे वन-डे शादी करना उत्तराखण्डियों की मजबूरी भी है, इसमें एक तो समय की बचत है, पैसे की बचत है और सबसे बडी बचत यह कि शराब पीकर लड़ाई-झगड़े होने की संभावना एकदम शीर्ण। पहाडो़ में विगत वर्षों में सामाजिक माहौल में जो शर्मनाक परिवर्तन हुआ है, उसके दुष्प्रभाव की ही यह परिणिति है। कुछ चीजें हमारे पहाड़ में ऎसी हैं, जिनको हम दूर रहने और कभी-कभी घर जाने वाले लोगों की दृष्टि में कहा जाता है कि सामाजिक संस्कारों को पहाड़ भूल रहा है। लेकिन सच्चाई तो उसे मालूम है जो पहाड़ में रह रहा है, जिसे शादी के दिन ही नहीं शादी के बाद की भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जैसे किसी की शादी में मार पीट हो गई, बाराती पिट गये, हम लोग मामला सुलटा कर चल दिये नौकरी पर लेकिन वहां रहने वाले आदमी की जन्म भर की दुश्मनी हो जाती है, उस आदमी का उस गांव जाना मुश्किल हो जाता है।
     तो इस प्रकार की भी परेशानियां हैं जो हमें अपने सामाजिक रीतियों से भी समझौता करने के लिये मजबूर करती हैं।


पंकज सिंह महर

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Mahar Ji,

Marriages are taking place on 20/20 cricket style. In 20/20 matches there is full enjoyment but in one day marriage there is less enjoyment as both the sides are in hurry. 

In one day marriage, we are somewhere bypassing the cultural norms.

सही कहा हेम दा.....।
२०-२० स्टाइल में फटाफट होने वाली शादी की कल्पना करके मुझे हंसी आ रही है।
      वैसे वन-डे शादी करना उत्तराखण्डियों की मजबूरी भी है, इसमें एक तो समय की बचत है, पैसे की बचत है और सबसे बडी बचत यह कि शराब पीकर लड़ाई-झगड़े होने की संभावना एकदम शीर्ण। पहाडो़ में विगत वर्षों में सामाजिक माहौल में जो शर्मनाक परिवर्तन हुआ है, उसके दुष्प्रभाव की ही यह परिणिति है। कुछ चीजें हमारे पहाड़ में ऎसी हैं, जिनको हम दूर रहने और कभी-कभी घर जाने वाले लोगों की दृष्टि में कहा जाता है कि सामाजिक संस्कारों को पहाड़ भूल रहा है। लेकिन सच्चाई तो उसे मालूम है जो पहाड़ में रह रहा है, जिसे शादी के दिन ही नहीं शादी के बाद की भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जैसे किसी की शादी में मार पीट हो गई, बाराती पिट गये, हम लोग मामला सुलटा कर चल दिये नौकरी पर लेकिन वहां रहने वाले आदमी की जन्म भर की दुश्मनी हो जाती है, उस आदमी का उस गांव जाना मुश्किल हो जाता है।
     तो इस प्रकार की भी परेशानियां हैं जो हमें अपने सामाजिक रीतियों से भी समझौता करने के लिये मजबूर करती हैं।


मेहता जी,
         संभवतः आपने इस विषय पर मेरे विचार पढ़े नहीं, सामाजिक रीतियों से समझौता आदमी शौक से नहीं करता, उसकी कुछ मजबूरी भी होती है। कोई भी परिवर्तन शौकिया नहीं, मजबूरी और ठोस कारण से होता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

Marriages are taking place on 20/20 cricket style. In 20/20 matches there is full enjoyment but in one day marriage there is less enjoyment as both the sides are in hurry. 

In one day marriage, we are somewhere bypassing the cultural norms.

सही कहा हेम दा.....।
२०-२० स्टाइल में फटाफट होने वाली शादी की कल्पना करके मुझे हंसी आ रही है।
      वैसे वन-डे शादी करना उत्तराखण्डियों की मजबूरी भी है, इसमें एक तो समय की बचत है, पैसे की बचत है और सबसे बडी बचत यह कि शराब पीकर लड़ाई-झगड़े होने की संभावना एकदम शीर्ण। पहाडो़ में विगत वर्षों में सामाजिक माहौल में जो शर्मनाक परिवर्तन हुआ है, उसके दुष्प्रभाव की ही यह परिणिति है। कुछ चीजें हमारे पहाड़ में ऎसी हैं, जिनको हम दूर रहने और कभी-कभी घर जाने वाले लोगों की दृष्टि में कहा जाता है कि सामाजिक संस्कारों को पहाड़ भूल रहा है। लेकिन सच्चाई तो उसे मालूम है जो पहाड़ में रह रहा है, जिसे शादी के दिन ही नहीं शादी के बाद की भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जैसे किसी की शादी में मार पीट हो गई, बाराती पिट गये, हम लोग मामला सुलटा कर चल दिये नौकरी पर लेकिन वहां रहने वाले आदमी की जन्म भर की दुश्मनी हो जाती है, उस आदमी का उस गांव जाना मुश्किल हो जाता है।
     तो इस प्रकार की भी परेशानियां हैं जो हमें अपने सामाजिक रीतियों से भी समझौता करने के लिये मजबूर करती हैं।


मेहता जी,
         संभवतः आपने इस विषय पर मेरे विचार पढ़े नहीं, सामाजिक रीतियों से समझौता आदमी शौक से नहीं करता, उसकी कुछ मजबूरी भी होती है। कोई भी परिवर्तन शौकिया नहीं, मजबूरी और ठोस कारण से होता है।


Mahar Ji,

I asked many people in village area that they are prefering for one day marriage. In most cases, i was told that they prefer one day marriage in order to avoid unpleant incidents caused by the baratis on marraige after having drunk. This was the first cause of one day marriage. In other case, somewhere financial aspect is also there.

However, two days marriages were the old tradition which has now likely to be changed over in one day fully.

Risky Pathak

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Aajkal Shaadio ka season chal rha hai...

People are prefering One day Marriages over two day marriage...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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In coming years, two day marriage will be hardly seen. This is now going to be permanment system in our culture.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इस गाने की लाइन को पढिये..

आल गोभी का साग मटर मे मिला दे
ओन डे की बारात छो, जल्दी बटिया दे


क्या कहना है आपका का

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हमारे नए सदस्य अपना विचार इस विषय मे दे सकते है !

अरुण भंडारी / Arun Bhandari

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एक दिन की शादी कभी भी मुझे रास नही आई और मुझे लगता है की ओरो को भी नही आती वेसे भी जो लोग दिन में शादी करते है उनकी कोई न कोई मज़बूरी रहती है वरना कोई भी दिन में शादी नही करना चाहता

में अभी तक दिन की केवल एक ही शादी में शामिल हुआ हु हमारे गांवो में अब दिन में शादी का परचन चल रहा है लेकिन गांवो में शादी रात में ही आछी लगती है गांवो का माहोल काफी हद तक दिन में शादी का जिमेवार है 

शादी का जो मज़ा रात में है वो दिन में कभी भी नही आ सकता

Veer Vijay Singh Butola

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Dear Friends,
प्रस्तुत हास्य  कविता मैंने उत्तरांचल में आज कल प्रचलित एक दिवसीय विवाह के होने  के बारे में लिखी है |


एक बार दगडियो
मैके भी दिन दिन की बारात माँ जाणा कु मौका मिली
चल  दगडियो का संग मन प्रसन्न मुखुडी को रंग तब खिली


झटपट हवे गे वरनारायण तैयार
पैरी वें सूट बूट आर टांगी  कमर माँ तलवार


सड़की माँ गाड़ी थाई खड़ी मारनी छाई होरण 
ढोल दमौं मसकबिन संग बाजणा था रणसिंघा-तोरण


बारात पहुची सड़की माँ सबुन अपनी सीट खुजाई
वरनारायण कु मामा आर दही की परोठी घर छुटी गाई


चली बारात डांडी-कंठियो माँ होण च गाड़ी कु सुन्स्याट
सभी पौणा बन्या चन दारू माँ रंग मस्त करना चन खिक्लीयाट 


बारात ज़रा  रुकी बीच बाजार
दरौल्या पहुची ठेका माँ रुपया लेकी हजार


चल पड़ी गाड़ी कुई छुटी गे होटल माँ कुई छुटी धार पोर
दरोलिया दिदो कु त छोऊ बस बोतली पर शोर


बारात पहुची चौक माँ होण लगी गे स्वागत
कुई बैठी कुर्शी माँ कुई बैठी दरी माँ अर कुई बैठी छत


जवान छोरा खोजना छन, गलेर नौनी कुजणी कख हर्ची गे
बोलना छन की अब नि राये वू रंगत जू पैली छै


बैठी पौणा पंगत माँ खाई उन काचू भात 
दाल माँ लोण भिन्डी ह्व्वे गे अब बोन क्या बात


कखी नि मिली पानी कही नि मिली सौंफ-मिश्री
हे हिमाला की हव्वे यु हम सब संस्कार बिसरी


बामण दीदा न पढ़ी सटासट अपना मंत्र
ब्यौला का कंदुड़ माँ वैन बोली तब यन्त्र


फेरा फेरी सरासर ब्यौली च रेस लगाणी
ब्यौला दीदा पिछने रेगे, ब्यौली णी छौंपी जाणी


पैटी बारात ब्यौली अब नी जयादा रोंदी दिखेंदी
डोला माँ बैठी जे ब्यौली बव्वे बुबा सबी मनौंदी


यन राइ दिदो मेरु एक दिनी की बारात कु हाल
सब कुछ सरासर हौंदु यख यनु  बणी  गे कुमोउन गढ़वाल 



रचियेता:
विजय सिंह बुटोला
दिनांक 16-10-2008

 

 

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