Poll

पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन आपके दृष्टि से कैसा है ?

अच्छा है
20 (35.7%)
सही नही है
16 (28.6%)
संस्कृति के खिलाफ
15 (26.8%)
कह नही सकते
5 (8.9%)

Total Members Voted: 56

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: System Of One Day Marriages In Uttarakhand - पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन  (Read 28212 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Himanshu Ji,

This is surprise change in pahad. what i have observed in one day marriage is, everything in hurry. This like 20-20 cricket.

Due to geographical condition, the barat has to mostly walk on foot which takes a lot time and same it has to return back. In this short span of time, several rituals are bypassed.


Yesterday i had a talk with my cousin, he said that these days all marriages are happening in one day. People are 0% interested in 2Day(Night) Marriages.

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
No, this is not true... Even these days 2day marriages are taking place considerably.. Our friend and forum member Nandan Bisht is going to merry in Pithoragarh on 3rd May.. that will be a day-night marriage .. I m going to attend a marriage from haldwani to Ramnagar on 8th May, that too a day-night marriage..

अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..

Yesterday i had a talk with my cousin, he said that these days all marriages are happening in one day. People are 0% interested in 2Day(Night) Marriages.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Hem da,

when asked a few people to one-day marriage, their opinion was they prefer for one day beacuse of cost effective and just to avoid any disturbance created by both side after taking liquor etc.

We have seen in many marriage baraati and ghaarati have fight in 2 day marriages specially in night which everybody wants to avoid for honor for their families.




No, this is not true... Even these days 2day marriages are taking place considerably.. Our friend and forum member Nandan Bisht is going to merry in Pithoragarh on 3rd May.. that will be a day-night marriage .. I m going to attend a marriage from haldwani to Ramnagar on 8th May, that too a day-night marriage..

अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..

Yesterday i had a talk with my cousin, he said that these days all marriages are happening in one day. People are 0% interested in 2Day(Night) Marriages.

मदन मोहन भट्ट

  • Newbie
  • *
  • Posts: 29
  • Karma: +1/-0
मैं समझता हूँ कि इस पोस्ट का नाम ही 'पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन'  न होकर 'पहाड़ मे एक दिवसीय शादी - एक विवशता' होना ठीक था.  पहाडो मे शादी सादगी से की जाती थी.  दूल्हा पीली धोती पहन कर रंगीन छतरी हाथ मे लिए मुकुट पहन कर आता था. बीन बाजा बजता था. शालीनता के साथ सभी बारातियों का स्वागत किया जाता था. और यदि कोई बाराती पीकर आ गया तो लड़की और लड़के वाले बदनाम होते थे कि उनकी बरात मैं एक - दो बाराती शराब पीकर आये थे.  बड़ी शर्म कि बात मानी जाती थी.  तो शर्म से अपना सिर कोई भी नहीं झुकाना चाहता तब तो सवाल ही पैदा नहीं होता था. 

पहले गाँव के बुजुर्ग जहाँ भी मिल जाते थे उन्हें पैर छूकर प्रणाम किया जाता था.  क्या बच्चे, क्या जवान क्या बड़े सब उनकी इज्जत करते थे.  नव युवको ने और वक्त ने सब बदल दिया. अब कौन जानता है यह सब? शर्म नाम कि कोई चीज तो रही नहीं.  मौका मिला बीडी सुलगा ली, मौका लगा शराब के पैग लगा लिए.  किसी पर भी फब्ती कास दी.  कौन किससे शर्म करे, किससे डरे? - ये सब क्या डरने और शर्म करने के लिए किया जाता है? फिर शादी ब्याह का दिन तो इन सब कामों के लिए तो सबसे बेहतर दिन हुआ.  उस दिन तो मौसम, शमा, माहौल, दोस्त और न जाने कौन कौन अपनी आप ही मिल जाते हैं.  फिर किसी कि बेटी की शादी हो, उसकी इज्जत से इन्हें क्या? इसलिए दिन ही दिन मैं शादी करना आम मजबूरी हो गयी है तांकि शराबियों पर नज़र रख कर अपना काम ठीक ठाक दिन ही दिन में कर लिया जाय.

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
Hem Daa.. Pithoragarh City, Nainital City, Haldwani City, Almora City. Ja par baraat ghar hai ya saari suvidha desho jaisi hai wha par log 2day marriages me interested hai. Par Munsyaari, Berinaag jaise Pure pahaadi ilaake me log one day marriages me hi interested Hai.

Ha ye baat sahi hai.. If ladka ad jaaye to.. shaadi 2day hi hogi :)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Very right Bhatt Ji,

This is exactly the problem due to which people have to go for one day marraige.

पहले गाँव के बुजुर्ग जहाँ भी मिल जाते थे उन्हें पैर छूकर प्रणाम किया जाता था.  क्या बच्चे, क्या जवान क्या बड़े सब उनकी इज्जत करते थे.  नव युवको ने और वक्त ने सब बदल दिया. अब कौन जानता है यह सब? शर्म नाम कि कोई चीज तो रही नहीं.  मौका मिला बीडी सुलगा ली, मौका लगा शराब के पैग लगा लिए.  किसी पर भी फब्ती कास दी.  कौन किससे शर्म करे, किससे डरे? - ये सब क्या डरने और शर्म करने के लिए किया जाता है? फिर शादी ब्याह का दिन तो इन सब कामों के लिए तो सबसे बेहतर दिन हुआ.  उस दिन तो मौसम, शमा, माहौल, दोस्त और न जाने कौन कौन अपनी आप ही मिल जाते हैं.  फिर किसी कि बेटी की शादी हो, उसकी इज्जत से इन्हें क्या? इसलिए दिन ही दिन मैं शादी करना आम मजबूरी हो गयी है तांकि शराबियों पर नज़र रख कर अपना काम ठीक ठाक दिन ही दिन में कर लिया जाय.


हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
"दैनिक जागरण" में प्रकाशित एक दिवसीय शादियों से सम्बन्धित एक खबर

अब मंदिरों में भी बढ़ने लगा है विवाहों का चलन

जैंती (अल्मोड़ा)। समूचे क्षेत्र में आजकल शादी-बारातों की धूम मची हुई है। लेकिन कुछ समय पूर्व ही जहां दो दिवसीय बारातें प्रचलन में थी, वहीं आजकल वन-डे बारातों की धूम है। इसके अलावा मंदिरों में शादी कराने का प्रचलन भी जोरों में है।

विवाह समारोह में बढ़ते शराब के प्रचलन से लोगों ने रात्रि विवाह की प्रथा लगभग बंद कर दी है। इससे रात्रि में होने वाली कई रस्में प्रतीक मात्र रह गयी है। बारात के दुल्हन के आंगन में आते ही धूलिअ‌र्घ्य किया जाता था। जिसका अर्थ सायंकालीन गायों के खुरों से उड़ने वाले गोधूलि से था। इसी तरह धु्रव तारे के दर्शन कराकर वर-वधू के विवाह बंधन को धु्रव तारे की तरह अटल रहने का वरदान मांगा जाता था।

रात्रिभर चलने वाले विवाह समारोह में गोठ की शादी का विशेष महत्व था। जिसमें वर-वधू का हाथ पकड़कर आजीवन साथ निभाने की कसमें खाता था। इसी तरह भोर के समय यज्ञ कराकर देवी देवताओं का आह्वान कराया जाता था। साथ ही अग्नि के साथ फेरे लेकर सात जन्मों तक वायदा निभाने की भगवान से प्रार्थना की जाती थी।

दूसरे दिन गोदान आदि कराकर भोजन कराकर बारात विदा होती थी। चौबीस घंटे चलने वाली विवाह की रस्में आजकल दो घंटे में निबट जा रही है। पहले शुभ मुहूर्त कुल पुरोहित द्वारा नियत किया जाता था। जबकि एक दिवसीय शादियों में समय का निर्धारण टैट एवं बैंड बाजे वाले तय कर रहे है। इसी तरह कुमाऊं का प्रसिद्ध छोलिया नृत्य एवं ढोल नगाड़ों का स्थान बैंड बाजे एवं डिस्को डांस ने ले लिया है।

मंदिरों में होने वाली शादियां तो और भी सीमित हो गयी है। यहां केवल दूल्हा-दुल्हन जाकर पुजारी से आशीर्वाद लेकर हनीमून मनाने चल देते है। इस तरह से अतीत की एक परंपरा क्षेत्र से लगभग गायब हो चुकी है। लोगों का मानना है कि संगठित परिवारों के टूटने एवं गांवों में शराब आदि के प्रचलन से जन्म जन्मांतर का साथ निभाने की विवाह परंपरा पर पश्चिमी संस्कृति पूरी तरह से हावी हो गयी है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

This is very much true. I have seen many marriage in temples at Almora, Nainital and other places. I presume some people are going for this, may for cost cutting.

These marriages are held during the day only.

"दैनिक जागरण" में प्रकाशित एक दिवसीय शादियों से सम्बन्धित एक खबर

अब मंदिरों में भी बढ़ने लगा है विवाहों का चलन

जैंती (अल्मोड़ा)। समूचे क्षेत्र में आजकल शादी-बारातों की धूम मची हुई है। लेकिन कुछ समय पूर्व ही जहां दो दिवसीय बारातें प्रचलन में थी, वहीं आजकल वन-डे बारातों की धूम है। इसके अलावा मंदिरों में शादी कराने का प्रचलन भी जोरों में है।

विवाह समारोह में बढ़ते शराब के प्रचलन से लोगों ने रात्रि विवाह की प्रथा लगभग बंद कर दी है। इससे रात्रि में होने वाली कई रस्में प्रतीक मात्र रह गयी है। बारात के दुल्हन के आंगन में आते ही धूलिअ‌र्घ्य किया जाता था। जिसका अर्थ सायंकालीन गायों के खुरों से उड़ने वाले गोधूलि से था। इसी तरह धु्रव तारे के दर्शन कराकर वर-वधू के विवाह बंधन को धु्रव तारे की तरह अटल रहने का वरदान मांगा जाता था।

रात्रिभर चलने वाले विवाह समारोह में गोठ की शादी का विशेष महत्व था। जिसमें वर-वधू का हाथ पकड़कर आजीवन साथ निभाने की कसमें खाता था। इसी तरह भोर के समय यज्ञ कराकर देवी देवताओं का आह्वान कराया जाता था। साथ ही अग्नि के साथ फेरे लेकर सात जन्मों तक वायदा निभाने की भगवान से प्रार्थना की जाती थी।

दूसरे दिन गोदान आदि कराकर भोजन कराकर बारात विदा होती थी। चौबीस घंटे चलने वाली विवाह की रस्में आजकल दो घंटे में निबट जा रही है। पहले शुभ मुहूर्त कुल पुरोहित द्वारा नियत किया जाता था। जबकि एक दिवसीय शादियों में समय का निर्धारण टैट एवं बैंड बाजे वाले तय कर रहे है। इसी तरह कुमाऊं का प्रसिद्ध छोलिया नृत्य एवं ढोल नगाड़ों का स्थान बैंड बाजे एवं डिस्को डांस ने ले लिया है।

मंदिरों में होने वाली शादियां तो और भी सीमित हो गयी है। यहां केवल दूल्हा-दुल्हन जाकर पुजारी से आशीर्वाद लेकर हनीमून मनाने चल देते है। इस तरह से अतीत की एक परंपरा क्षेत्र से लगभग गायब हो चुकी है। लोगों का मानना है कि संगठित परिवारों के टूटने एवं गांवों में शराब आदि के प्रचलन से जन्म जन्मांतर का साथ निभाने की विवाह परंपरा पर पश्चिमी संस्कृति पूरी तरह से हावी हो गयी है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..

मैं भी अड़ा था और अड़ा ही रहा, तभी दो दिवसीय शादी हो पाई, मेरे पिताजी, रिश्तेदार और सौरास वालों का आखिरी तक यही जोर था कि वनडे कर लो, सबको आराम हो जायेगा। लेकिन मैं नहीं माना, खामियाजा यह हुआ कि जब बारात पहुंची तो महिलाओं में इस अडियल दूल्हे को जिद्दी, कहना ना मानने वाला और पता नहीं क्या-क्या बना दिया था गीतों में। :D ;D

        वैसे एक दिवसीय शादी करना विवशता तो नहीं मानी जा सकती, हां यह जरुर है कि समाज में फैली शराब नाम की कुरीति से बचने का एक शार्टकट है यह। दिन में शराब की खपत कम होती है और लोग हुड़दंग कम करते हैं। काम-काज तो मुझे लगता है वनडे मैरिज में ज्यादा होता है, हर आदमी सुबह तीन बजे से उठकर तैयारी करता है। मेरा एक ऐसी ही शादी का एक्सपीयरेंस है, मेरे एक मित्र का वनडे ब्याह था, हम लोग तो ५ बजे तक उठे लेकिन उसके परिवार वाले तो शायद सोये भी ना थे। सुबह-सुबह सभी को नहाना था, जाड़े के दिन एक बड़े भगोने में पानी गर्म किया गया, सब नहाने निकले दूल्हे राजा बाथरुम में घुसे ही थे कि आवाज आई पंडित जी आ गये हैं,फटाफ्ट आओ, गणेश पूजा करनी है। आधा नहाया दूल्हा बाहर आया और गणेश पूजा में बैठा दूल्हे के चाचा ने पंडित जी को समझाया कि बरात बेरीनाग जानी है, फटाफट करो.....आप विश्वास नहीं मानेंगे १५-२० मिनट में पूजा कर दूल्हे को हल्दी लगाकर सेहरा तक पहना दिया गया, नाश्ता करो, गाड़ी आई, सामान रखो...क्या कर रहे हो....फोटोग्राफर कहां है, तैयार हो.......ऐसी न जाने कितनी खीज भरी बातें गूंज रही थी, फिर किसी ने ध्यान दिलाया कि सगुन आखर तो गाये ही नहीं, पता चला गीतार अभी आई नहीं तो सीडी प्लेयर बजाकर इतिश्री कर ली........फटाफट तुफानी गति से नाश्ता करने के बाद चले ११ बजे बेरीनाग पहुंचे तो वहां भी भागमभाग, व्यग्रता.....तारी थी.....खाने-पीने के बाद ४-५ बजे फेरे हुये....पंडित जी पता नहीं कितने मंत्र गोल किये जा रहे थे,  अब वापसी के लिये भागमभाग और बैचेनी मचनी शुरु हुई...बारात घर आई तो फिर वही भागमभाग, जल्दबाजी......खाना खाओ..ये कहां है< उसका शगुन कहां गया......................मतलब कि इस शादी में दूल्हे से लेकर दुल्हन और रिश्तेदारों का सपरिवार और हमारा एकल फजीता हुआ। इन सब की व्यग्रता से ऐसा लग रहा था कि जंग छिड़ी हुई है।
     तो भाई आराम से दो दिनी ब्या करो, सब सिस्टमेटिकली हो जायेगा। पुराने दिनों में जब ओढने-बिछाने से लेकर बर्तनों की भी शार्टेज थी, तब भी गांव में १००-१५० की बारातें एडजस्ट हो जाती थी। आज तो गांव-गांव बारातघर हैं, टेन्ट हाउस हैं.....फिर क्यों इतनी भागमभाग ???

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Ab aap to ad gaye baakion ka kya ho Maharaj. Waise sharab ki kuruti ki vajah se mujhe lagta hai Day marriage hi sahi option hai. Raat ki marriage main light ka bhi bharosa nahi hai.

अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..

मैं भी अड़ा था और अड़ा ही रहा, तभी दो दिवसीय शादी हो पाई, मेरे पिताजी, रिश्तेदार और सौरास वालों का आखिरी तक यही जोर था कि वनडे कर लो, सबको आराम हो जायेगा। लेकिन मैं नहीं माना, खामियाजा यह हुआ कि जब बारात पहुंची तो महिलाओं में इस अडियल दूल्हे को जिद्दी, कहना ना मानने वाला और पता नहीं क्या-क्या बना दिया था गीतों में। :D ;D

        वैसे एक दिवसीय शादी करना विवशता तो नहीं मानी जा सकती, हां यह जरुर है कि समाज में फैली शराब नाम की कुरीति से बचने का एक शार्टकट है यह। दिन में शराब की खपत कम होती है और लोग हुड़दंग कम करते हैं। काम-काज तो मुझे लगता है वनडे मैरिज में ज्यादा होता है, हर आदमी सुबह तीन बजे से उठकर तैयारी करता है। मेरा एक ऐसी ही शादी का एक्सपीयरेंस है, मेरे एक मित्र का वनडे ब्याह था, हम लोग तो ५ बजे तक उठे लेकिन उसके परिवार वाले तो शायद सोये भी ना थे। सुबह-सुबह सभी को नहाना था, जाड़े के दिन एक बड़े भगोने में पानी गर्म किया गया, सब नहाने निकले दूल्हे राजा बाथरुम में घुसे ही थे कि आवाज आई पंडित जी आ गये हैं,फटाफ्ट आओ, गणेश पूजा करनी है। आधा नहाया दूल्हा बाहर आया और गणेश पूजा में बैठा दूल्हे के चाचा ने पंडित जी को समझाया कि बरात बेरीनाग जानी है, फटाफट करो.....आप विश्वास नहीं मानेंगे १५-२० मिनट में पूजा कर दूल्हे को हल्दी लगाकर सेहरा तक पहना दिया गया, नाश्ता करो, गाड़ी आई, सामान रखो...क्या कर रहे हो....फोटोग्राफर कहां है, तैयार हो.......ऐसी न जाने कितनी खीज भरी बातें गूंज रही थी, फिर किसी ने ध्यान दिलाया कि सगुन आखर तो गाये ही नहीं, पता चला गीतार अभी आई नहीं तो सीडी प्लेयर बजाकर इतिश्री कर ली........फटाफट तुफानी गति से नाश्ता करने के बाद चले ११ बजे बेरीनाग पहुंचे तो वहां भी भागमभाग, व्यग्रता.....तारी थी.....खाने-पीने के बाद ४-५ बजे फेरे हुये....पंडित जी पता नहीं कितने मंत्र गोल किये जा रहे थे,  अब वापसी के लिये भागमभाग और बैचेनी मचनी शुरु हुई...बारात घर आई तो फिर वही भागमभाग, जल्दबाजी......खाना खाओ..ये कहां है< उसका शगुन कहां गया......................मतलब कि इस शादी में दूल्हे से लेकर दुल्हन और रिश्तेदारों का सपरिवार और हमारा एकल फजीता हुआ। इन सब की व्यग्रता से ऐसा लग रहा था कि जंग छिड़ी हुई है।
     तो भाई आराम से दो दिनी ब्या करो, सब सिस्टमेटिकली हो जायेगा। पुराने दिनों में जब ओढने-बिछाने से लेकर बर्तनों की भी शार्टेज थी, तब भी गांव में १००-१५० की बारातें एडजस्ट हो जाती थी। आज तो गांव-गांव बारातघर हैं, टेन्ट हाउस हैं.....फिर क्यों इतनी भागमभाग ???

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22