अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..
मैं भी अड़ा था और अड़ा ही रहा, तभी दो दिवसीय शादी हो पाई, मेरे पिताजी, रिश्तेदार और सौरास वालों का आखिरी तक यही जोर था कि वनडे कर लो, सबको आराम हो जायेगा। लेकिन मैं नहीं माना, खामियाजा यह हुआ कि जब बारात पहुंची तो महिलाओं में इस अडियल दूल्हे को जिद्दी, कहना ना मानने वाला और पता नहीं क्या-क्या बना दिया था गीतों में।
वैसे एक दिवसीय शादी करना विवशता तो नहीं मानी जा सकती, हां यह जरुर है कि समाज में फैली शराब नाम की कुरीति से बचने का एक शार्टकट है यह। दिन में शराब की खपत कम होती है और लोग हुड़दंग कम करते हैं। काम-काज तो मुझे लगता है वनडे मैरिज में ज्यादा होता है, हर आदमी सुबह तीन बजे से उठकर तैयारी करता है। मेरा एक ऐसी ही शादी का एक्सपीयरेंस है, मेरे एक मित्र का वनडे ब्याह था, हम लोग तो ५ बजे तक उठे लेकिन उसके परिवार वाले तो शायद सोये भी ना थे। सुबह-सुबह सभी को नहाना था, जाड़े के दिन एक बड़े भगोने में पानी गर्म किया गया, सब नहाने निकले दूल्हे राजा बाथरुम में घुसे ही थे कि आवाज आई पंडित जी आ गये हैं,फटाफ्ट आओ, गणेश पूजा करनी है। आधा नहाया दूल्हा बाहर आया और गणेश पूजा में बैठा दूल्हे के चाचा ने पंडित जी को समझाया कि बरात बेरीनाग जानी है, फटाफट करो.....आप विश्वास नहीं मानेंगे १५-२० मिनट में पूजा कर दूल्हे को हल्दी लगाकर सेहरा तक पहना दिया गया, नाश्ता करो, गाड़ी आई, सामान रखो...क्या कर रहे हो....फोटोग्राफर कहां है, तैयार हो.......ऐसी न जाने कितनी खीज भरी बातें गूंज रही थी, फिर किसी ने ध्यान दिलाया कि सगुन आखर तो गाये ही नहीं, पता चला गीतार अभी आई नहीं तो सीडी प्लेयर बजाकर इतिश्री कर ली........फटाफट तुफानी गति से नाश्ता करने के बाद चले ११ बजे बेरीनाग पहुंचे तो वहां भी भागमभाग, व्यग्रता.....तारी थी.....खाने-पीने के बाद ४-५ बजे फेरे हुये....पंडित जी पता नहीं कितने मंत्र गोल किये जा रहे थे, अब वापसी के लिये भागमभाग और बैचेनी मचनी शुरु हुई...बारात घर आई तो फिर वही भागमभाग, जल्दबाजी......खाना खाओ..ये कहां है< उसका शगुन कहां गया......................मतलब कि इस शादी में दूल्हे से लेकर दुल्हन और रिश्तेदारों का सपरिवार और हमारा एकल फजीता हुआ। इन सब की व्यग्रता से ऐसा लग रहा था कि जंग छिड़ी हुई है।
तो भाई आराम से दो दिनी ब्या करो, सब सिस्टमेटिकली हो जायेगा। पुराने दिनों में जब ओढने-बिछाने से लेकर बर्तनों की भी शार्टेज थी, तब भी गांव में १००-१५० की बारातें एडजस्ट हो जाती थी। आज तो गांव-गांव बारातघर हैं, टेन्ट हाउस हैं.....फिर क्यों इतनी भागमभाग