Poll

पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन आपके दृष्टि से कैसा है ?

अच्छा है
20 (35.7%)
सही नही है
16 (28.6%)
संस्कृति के खिलाफ
15 (26.8%)
कह नही सकते
5 (8.9%)

Total Members Voted: 56

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: System Of One Day Marriages In Uttarakhand - पहाड़ मे एक दिवसीय शादी का प्रचलन  (Read 28213 times)

Rajen

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बात आपकी बिलकुल सही ठैरी पंकज जी, 'वन डे' मैर्रिज में वो बात नहीं रहती जो पहले शादी-ब्याह में रात की शादी में होती थी.   वन डे में न तो मेहमानों की ठीक से खातिर हो पाती ही और ना ही शादी की रश्में ही पूरी हो पाती हैं.  लेकिन इस को एक बिस्तृत परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत ही और उस पर मंथन भी जरूरी ही.  हमारे सयानों ने जिस भी कारण से द्वि-दिवसीय से 'वन-डे' में स्विच-ओवर किया क्या उन सभी समस्याओं से हम निजात पा गए हैं?  मैंने इस बार छुट्टियैं में इस बिषय पर गाँव के सयाने लोगों से बात की.  जो बात सामने आई वह ये है की जिन वजहों से दो दिन के बजाय 'वन-डे' को अपनाया गया था वो वजहें अब भी मौजूद हैं.  बात थी की रात को शराब पी कर लोग हंगामा करते हैं, लेकिन अब तो दिन में ही हंगामा होता है.  शराब ने बरातियौं/घरातियौं का दामन नहीं छोडा.  पहले बड़े-बूडों की कुछ तो शर्म होती थी की अँधेरे में पी ली और एक और खिसक लिए लेकिन अब तो वो शर्म भी गयी.  
इस परिवर्तन से सिर्फ इतना ही फर्क आया है की पुराने रीति-रिवाजों की पूरे तरह से धज्जियाँ उड़ रही हैं.  नाम मात्र को कुछ-कुछ कर लिया जाता है, आनन फानन में सब कुछ निपटा कर बारात बिदा कर दी जाती है.  इसे कुछ बुजुर्ग लोग ठीक नहीं समझते.  उनका कहना है की शादी की रश्में पूरी तरह से निभाई जानी चाहिए जिस से कि बर-बधू का बैवाहिक जीवन सुखी रहे.  उनका यह भी मानना है की रश्मों को पूरी तरह से न निभाने से इन के जीवन में अनेक प्रक्रार की कठिनाइयां आ सकती हैं. 

खीमसिंह रावत

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टेस्ट मैच = २ दिनी शादी
वन डे मैच= वन डे शादी
२०-२० = मंदिर में शादी या चल भाग चले


 ;D  ;D  ;D

खीमसिंह रावत

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महात्मा गांधी जी ने कहा है कि सुधार अपने आप से शुरू करो / दुसरे कि चिंता मत करो वह करे या न करे यह सोचना हमारा काम नहीं है /

म्यार पहाड़ के माध्यम से काफी जानकारिया मिलती है इस फोरम के करता धरता और टीम के लोगों का आभारी रहेगा उत्तराखंडी samaj /


 :)  :)

Rajen

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आभार तो आपका भी ठैरा हो खीम सिंह जी, महाराज,  उत्तराखंड की संस्कृति की जोत जगाये रखने के लिए आप पूरी निष्ठां से समर्पित जो हैं.   
और आज कल टाइम कम लग रहा है शायद?


म्यार पहाड़ के माध्यम से काफी जानकारिया मिलती है इस फोरम के करता धरता और टीम के लोगों का आभारी रहेगा उत्तराखंडी samaj /


 :)  :)

jagmohan singh jayara

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"दिनमानी कू ब्यौ"

वक़्त बदली मन भी, बदलिगी सब्बि धाणी,
प्यारा पहाड़ मा अब, दिन-दिन बारात जाणी,
सोचा हे सब्बि, किलै यनु ह्वै.......

ये जमाना मा ब्योलि कू बुबाजी,
डरदु छ मन मा भारी,
दिनमानी की बारात ल्ह्यावा,
समधी जी कृपा होलि तुमारी,
किलैकी अज्ग्याल का बाराती,
अनुशासनहीन होन्दा छन....

एक जगा गै थै, ब्याखुनी की बारात,
दरोळा रंगमता पौणौन, मचाई उत्पात,
फिर त क्या थौ,
खूब मचि मारपीट,
चलिन धुन्गा डौळा,
अर् कूड़ै की पठाळि,
ब्यौली का बुबान,
झट्ट उठाई थमाळि,
काटी द्यौलु आज सब्ब्यौं
बणिगी विकराल,
घराती बारातियों का ह्वैन,
बुरा हाल.

घ्याळु मचि, रोवा पिट्टी,
सब्बि बब्रैन,
चक्क्ड़ीत बराती, फट्ट भागिगैन,
बुढया खाड्या शरीफ पौणौ की,
लोळि फूटिगैन,
हराम ह्वैगि पौणख,
सब्बि भूका रैन,
वे दिन बिटि प्रसिद्ध ह्वै ,
"दिनमानी कू ब्यौ",

(अपने पहाड़ के श्री परासर गौड़ साहिब जी ने भी एक बारात में मारपीट का अनुभव अपनी रचना में व्यक्त किया है)

जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
स्वरचित(११.९.२००९)
(सर्वाधिकार सुरक्षित, प्रकाश हेतु अनुमति लेना अनिवार्य है)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Wah Jagmohan ji +1 karma is kavita ke liye.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Very True Sir..

Now marriages are also taking place in temple also (one day only).

"दिनमानी कू ब्यौ"

वक़्त बदली मन भी, बदलिगी सब्बि धाणी,
प्यारा पहाड़ मा अब, दिन-दिन बारात जाणी,
सोचा हे सब्बि, किलै यनु ह्वै.......

ये जमाना मा ब्योलि कू बुबाजी,
डरदु छ मन मा भारी,
दिनमानी की बारात ल्ह्यावा,
समधी जी कृपा होलि तुमारी,
किलैकी अज्ग्याल का बाराती,
अनुशासनहीन होन्दा छन....

एक जगा गै थै, ब्याखुनी की बारात,
दरोळा रंगमता पौणौन, मचाई उत्पात,
फिर त क्या थौ,
खूब मचि मारपीट,
चलिन धुन्गा डौळा,
अर् कूड़ै की पठाळि,
ब्यौली का बुबान,
झट्ट उठाई थमाळि,
काटी द्यौलु आज सब्ब्यौं
बणिगी विकराल,
घराती बारातियों का ह्वैन,
बुरा हाल.

घ्याळु मचि, रोवा पिट्टी,
सब्बि बब्रैन,
चक्क्ड़ीत बराती, फट्ट भागिगैन,
बुढया खाड्या शरीफ पौणौ की,
लोळि फूटिगैन,
हराम ह्वैगि पौणख,
सब्बि भूका रैन,
वे दिन बिटि प्रसिद्ध ह्वै ,
"दिनमानी कू ब्यौ",

(अपने पहाड़ के श्री परासर गौड़ साहिब जी ने भी एक बारात में मारपीट का अनुभव अपनी रचना में व्यक्त किया है)

जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
स्वरचित(११.९.२००९)
(सर्वाधिकार सुरक्षित, प्रकाश हेतु अनुमति लेना अनिवार्य है)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
 


Risky Pathak

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Apart from one day marriages, temple marriages are also increasing these days.

Earlier this type of marriages is d0ne by p00r families who were unable to arrange feast for wh0le village. Bt n0w a days capable people are also doin temple marriages.

हेम पन्त

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मंगसीर (मार्गशीष) का महीना अब ज्यादा दूर नहीं है. फिर से शादियों का मौसम शुरु हो जायेगा, लेकिन अभी तक जितनी शादियों की खबरें मिली हैं उनके बारे में सुन कर लग रहा है कि 2 दिवसीय (रात की) शादियों की तरफ़ लोगों का रुझान पुन: बढने लगा है.   

हेम पन्त

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एक दिवसीय शादी का सही वर्णन किया है पंकज दा आपने.... मेरी तो सभी कुंवारों को सलाह है कि शादी दो दिवसीय ही करना भाई...

अगर लङका अङ जाये कि मैं सिर्फ २डे शादी ही करुंगा, तो फिर सबको मानना ही पङता है..

मैं भी अड़ा था और अड़ा ही रहा, तभी दो दिवसीय शादी हो पाई, मेरे पिताजी, रिश्तेदार और सौरास वालों का आखिरी तक यही जोर था कि वनडे कर लो, सबको आराम हो जायेगा। लेकिन मैं नहीं माना, खामियाजा यह हुआ कि जब बारात पहुंची तो महिलाओं में इस अडियल दूल्हे को जिद्दी, कहना ना मानने वाला और पता नहीं क्या-क्या बना दिया था गीतों में। :D ;D

        वैसे एक दिवसीय शादी करना विवशता तो नहीं मानी जा सकती, हां यह जरुर है कि समाज में फैली शराब नाम की कुरीति से बचने का एक शार्टकट है यह। दिन में शराब की खपत कम होती है और लोग हुड़दंग कम करते हैं। काम-काज तो मुझे लगता है वनडे मैरिज में ज्यादा होता है, हर आदमी सुबह तीन बजे से उठकर तैयारी करता है। मेरा एक ऐसी ही शादी का एक्सपीयरेंस है, मेरे एक मित्र का वनडे ब्याह था, हम लोग तो ५ बजे तक उठे लेकिन उसके परिवार वाले तो शायद सोये भी ना थे। सुबह-सुबह सभी को नहाना था, जाड़े के दिन एक बड़े भगोने में पानी गर्म किया गया, सब नहाने निकले दूल्हे राजा बाथरुम में घुसे ही थे कि आवाज आई पंडित जी आ गये हैं,फटाफ्ट आओ, गणेश पूजा करनी है। आधा नहाया दूल्हा बाहर आया और गणेश पूजा में बैठा दूल्हे के चाचा ने पंडित जी को समझाया कि बरात बेरीनाग जानी है, फटाफट करो.....आप विश्वास नहीं मानेंगे १५-२० मिनट में पूजा कर दूल्हे को हल्दी लगाकर सेहरा तक पहना दिया गया, नाश्ता करो, गाड़ी आई, सामान रखो...क्या कर रहे हो....फोटोग्राफर कहां है, तैयार हो.......ऐसी न जाने कितनी खीज भरी बातें गूंज रही थी, फिर किसी ने ध्यान दिलाया कि सगुन आखर तो गाये ही नहीं, पता चला गीतार अभी आई नहीं तो सीडी प्लेयर बजाकर इतिश्री कर ली........फटाफट तुफानी गति से नाश्ता करने के बाद चले ११ बजे बेरीनाग पहुंचे तो वहां भी भागमभाग, व्यग्रता.....तारी थी.....खाने-पीने के बाद ४-५ बजे फेरे हुये....पंडित जी पता नहीं कितने मंत्र गोल किये जा रहे थे,  अब वापसी के लिये भागमभाग और बैचेनी मचनी शुरु हुई...बारात घर आई तो फिर वही भागमभाग, जल्दबाजी......खाना खाओ..ये कहां है< उसका शगुन कहां गया......................मतलब कि इस शादी में दूल्हे से लेकर दुल्हन और रिश्तेदारों का सपरिवार और हमारा एकल फजीता हुआ। इन सब की व्यग्रता से ऐसा लग रहा था कि जंग छिड़ी हुई है।
     तो भाई आराम से दो दिनी ब्या करो, सब सिस्टमेटिकली हो जायेगा। पुराने दिनों में जब ओढने-बिछाने से लेकर बर्तनों की भी शार्टेज थी, तब भी गांव में १००-१५० की बारातें एडजस्ट हो जाती थी। आज तो गांव-गांव बारातघर हैं, टेन्ट हाउस हैं.....फिर क्यों इतनी भागमभाग ???

 

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