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We are sharing some exclusive information about various work, cultural and ritual tradition of uttarakhand in this topic. Some of the tradition is at the verge of disappearing. However, in some parts of uttarakhand, some tradition are still alive. Go go through the detail.
कत्यूर घाटी में आज भी जीवंत है पल्ट प्रथा
पहाड़ों में आज भी महिलाएं पल्ट प्रथा से काम कर रही हैं। पल्ट की रस्म को महिलाएं बखूबी निभाती हैं। इसके तहत एक-दूसरे के खेती से संबंधित कामों में हाथ बंटाती हैं। यह प्रथा गांवों की एकता, आपसी, मेलजोल व स्नेह की अद्भुत बानगी है।
यूं तो वर्ष भर गांवों में पल्ट प्रथा का चयन रहता है, लेकिन कृषि कार्य के समय यह प्रथा जोर पकड़ लेती है। गेहूं की कटाई, धान की मढाई, रोपाई, गुड़ाई, निराई और घास आदि कटान के लिए यह प्रथा नजर आती है, लेकिन गांवों के खेतों में मोव सराई (गोबर की खाद) के समय इस प्रथा का काफी महत्व है। पल्ट प्रथा में प्रतिदिन महिलाएं किसी एक परिवार का सहयोग करती हैं। बारी-बारी से गांव की महिलाओं द्वारा प्रत्येक परिवार के यहां कार्य करने का क्रम चलता रहता है। केवल कृषि कार्य के लिए ही नहीं बल्कि शादी बरातों के समय सामान लाने, मकान निर्माण के समय, बाजार से सामान लाने में भी पल्ट प्रथा नजर आती है। कत्यूरी राजाओं की स्मृद्धिशाली राजधानी कत्यूर घाटी में इन दिनों काश्तकारों द्वारा गेहूं बुआई की तैयारी की जा रही है। साल भर से घरों में जमा गोबर की खाद को महिलाएं डलियों में भरकर खेतों में डाल रही हैं। सिर में गोबर की खाद से भरी डलिया पंक्तिबद्ध तरीके से खेतों में पहुंचाई जा रही है। कहना गलत न होगा कि महिलाएं ही पल्ट प्रथा की धुरी हैं। (Source amar ujala)
M S Mehta