Author Topic: Traditional Dress Of Uttarakhand - उत्तराखंड की परम्परागत पोशाक  (Read 141462 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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दूनत  तथा  पूनत  :

उत्तरकाशी, चमोली तथा देरहादून की बूढ़ी स्त्रियाँ दूनत तथा पूनत - अनुकरणात्मक शब्द जो कि औरतों द्वारा पहने जाने वाले परंपरागत आभूषणों की खनकती आवाज़ का वर्णन करते हैं - कि बात करते हुए भावुक तथा बहुत विरही महसूस करती हैं।

 चमोली में धामसली गांव की हीरा उन भारी आभूषणों को स्मरण करती हैं जो वह तथा दूसरी स्त्रियाँ पहना करती थीं। "हम कलाई पर चाँदी की पहुंची बाँधा करती थीं। घगूला (चाँदी की चूड़ी), बुलक (बड़ी नथनी), कानों में बालियाँ, चाँदी की हँसुली (गले का हार) तथा चाँदी के सिक्कों का बना चंद्रहार।"



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इन सब  गहनों  से  लदी  स्त्रियाँ  बहुत  धीरे  ही  चल  पाती  थीं।  हीरा  यह  कर  हँसती  हैं  कि  "टोकरी  भर  सामान  पीठ  पर  लाद  कर, कई  बार  सामान  पर  बच्चा  भी  बैठा  होता  था, जब  चलती  थीं  तो  आभूषण  खनकते  थे।" अक्सर  नव-विवाहिता  युवतियों  को  इतने  भारी  आभूषण  सम्भालने  से  परेशानी  होती  थी।

 अगर  कोई  बुलक  अथवा  बुँदा  कोई  कोई  बच्चा  खींच  देता  था  या  किसी  कपड़े  में  फँस  जाता  था  तो  बहुत  दर्द  होता  था।  "हम  यदा  कदा  रूक  कर  उस  दर्द  से  आये  आँसू  पोंछती  थीं।  खो  जाने  के  डर  के  कारण  आभूषण  उतारना  संभव  नहीं  था।  सभी  कुछ  पहने  रखना  ही  सुरक्षित  था।" वह  कहती  हैं।




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उपरी  देहरादून  के  विसोई  गांव  में  'असुजी' औरतों  द्वारा  पहनी  जाने  वाली  कंगूठी  (चाँदी  की  भारी  पजेव) तथा  उतारयया  (ऊपरी  कान  का  आभूषण) जो  कि  मर्द  पहनते  थे, याद  करता  है।

आजकल बेशक भारी आभूषणों को त्याग दिया गया है। हालांकि अभी भी गांव में बूढ़ी औरतें पांव में पाजेबें, गले में हार, कानों में बालियां तथा नथनियां पहने दिखाई देती हैं परंतु वे सब परंपरागत आभूषणों से काफी हल्के होते हैं। जहां तक युवा औरतों का प्रश्न है तो वे परंपरागत आभूषण कम से कम पहनती हैं तथा वे केवल विवाह समारोहों अथवा विशेष त्यौहारों तक ही सीमित है।



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उत्तराखंड में महिलाएं अधिकतर घाघरा, आंगड़ी तथा पूरूष चूड़ीदार पजामा व कुर्ता पहनते थे। अब इनक स्थान पेटीकोट, ब्जाउज व साड़ी ने ले लिया है। जाड़ों में ऊनी कपड़ों का प्रयोग होता है। विवाह आदि शुभ कार्यो के अवसर पर कई क्षेत्रों में अभी भी सनील का घाघरा पहनने की परम्परा है।
 गले में गलोबन्द, चर्‌यो, जै माला, नाक में नथ, कानों में कर्णफूल, कुण्डल पहनने की परम्परा है। सिर में शीषफूल, हाथों में सोने या चॉंदी के पौंजी तथा पैरों में बिछुए, पायजब, पौंटा पहने जाते हैं। घर परिवार के समारोहों में ही आभूषण पहनने की परम्परा है। विवाहित औरत की पहचान गले में चरेऊ पहनने से होती है।




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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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