..... मकर संक्रान्ति ( उत्त्रैनी त्यौहार ) का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य (भगवान) अपने पुत्र शनि
से मिलने उनके घर जाते हैं। अब ज्योतिष के हिसाब से शनिदेव हैं मकर राशि के
स्वामी, इसलिये इस दिन को जाना जाता है मकर संक्रांति के नाम से। सर्वविदित है
कि महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर
संक्रांति का ही दिन चुना। यही नही, कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही
गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली
थी। यही नही इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं, उत्तर दिशा
में देवताओं का वास भी माना जाता है। इसलिए इस दिन जप- तप, दान-स्नान,
श्राद्ध-तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी भी मान्यता है
कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।
मकर संक्रान्ति के दिन से ही माघ महीने की शुरूआत भी होती है। मकर संक्रान्ति
का त्यौहार पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन देश के अलग
अलग हिस्सों में ये त्यौहार अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है। और इस
त्यौहार को उत्तराखण्ड में “उत्तरायणी” के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं
क्षेत्र में यह घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे खिचड़ी
संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इस अवसर में घर घर में आटे के घुघुत बनाये
जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को दिये जाते हैं (ऐसी मान्यता है कि कौवा उस
दिन जो भी खाता है वो हमारे पितरों (पूर्वजों) तक पहुँचता है), उसके बाद बच्चे
घुघुत की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं – काले कौव्वा काले, मेरी घुघुती
खाले।
कुमाँऊ के गाँव-घरों में घुघुतिया त्यार (त्यौहार) से सम्बधित एक कथा प्रचलित
है। ऐसा कहा जाता है कि किसी एक एक राजा का घुघुतिया नाम का कोई मंत्री राजा
को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था लेकिन एक कौव्वे को ये पता
चल गया और उसने राजा को इस बारे में सब बता दिया। राजा ने फिर मंत्री घुघुतिया
को मृत्युदंड दिया और राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन
राज्यवासी कौव्वों को पकवान बना कर खिलाएंगे, तभी से इस अनोखे त्यौहार को
मनाने की प्रथा शुरू हुई।
यही नही मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी के इस अवसर पर उत्तराखंड में नदियों के
किनारे जहाँ-तहाँ मेले लगते हैं।
इनमें दो प्रमुख मेले हैं – बागेश्वर का
उत्तरायणी मेला (कुमाँऊ क्षेत्र में) और उत्तरकाशी में माघ मेला (गढ़वाल
क्षेत्र में)