[justify]रंगोली पिछौड़ा कुमाऊंनी संस्कृति की पहचान बन गया है। यह सुहाग, शुभ और संस्कृति का प्रतीक है। पिछौड़ा पहनने का मतलब ही खास है। यह बताता है कि जिस परिवार में समारोह है आप उस परिवार से हैं। सारे परिधानों में पिछौड़ा सर्वोच्च है तभी तो तीज त्योहार और शुभ कार्य में देवी को भी चढ़ाया जाता है। शुभ काम में पिछौड़ा गणेश पूजा के दिन से पहना जाता है। इसका मतलब इस दिन पीले रंग से रंगे जाने वाले कपड़ों से है। कुछ साल पहले तक गणेश पूजा के दिन पिछौड़ा घर पर ही बनाया जाता था।
कहते हैं कि दुल्हन तो रंगोली पिछौड़े में निखरती है। तभी तो किसी युवती को शादी के दिन ही पहली बार पिछौड़ा पहनाया जाता है। जानकार बताते हैं कि अतीत में पिछौड़ा दुल्हन को ही पहनाया जाता था। ताकि वह सबसे अलग दिखे। अब शादी से लेकर कोई भी शुभ काम में परिवार की सभी महिलाएं इसे पहनती हैं। समय के साथ-साथ पिछौड़े में भी बदलाव आया है। अब हाथ के बजाय बाजार के प्रिंटेड पिछौड़े ही ज्यादा चलते हैं। मगर कुछ शाह और वर्मा परिवार की महिलाएं हाथ से बना पिछौड़ा ही पहनती है। पिछौड़ा सनील और मदीन के घाघरे के ऊपर ही जमता है। अब साड़ियों में भी इसे पहना जाने लगा है। पिछले कुछ सालों में कुमाऊंनी पिछौड़े ने देश और दुनिया में भी खास जगह बनाई है।
अल्मोड़ा कैंपस में समाजशास्त्र की प्रो. इला शाह बताती हैं कि पिछौड़ा उतना ही पुराना है जितना कि विवाह की परंपरा है। इसमें प्रयोग होने वाली हर चीज का मतलब होता है। यह सफेद कपड़े से बनाया जाता है, सफेद का मतलब शांति और पवित्रता से है। पीले रंग से प्रसन्नता और ज्ञान जुड़ा है जबकि लाल रंग श्रृंगार और वीरता से। खोड़ी में बनने वाले सूर्य से ऊर्जा, फूल से सुगंध और शंख और घंटी से देवताओं का आह्वान किया जाता है। रंगों में प्रयोग होने वाला बतासा कुमाऊं की मिठास घोलता है।
साहित्यकार नवीन बिष्ट कहते हैं कि पिछौड़ा शब्द से ही परम्परा और लोक पक्ष जुड़ा है। इसमें सुहाग और शुभ से संबंधित चीजें उकेरी होती हैं। पिछौड़ा पहनने और इसे बनाने का लिखित तौर पर कुछ नहीं है। यह ऐसी परंपरा है जो हमें विरासत में मिली है। बुजुर्ग महिलाओं के सानिध्य में नई पीढ़ी इस कला को सीखती थी। हाथ से पिछौड़ा बनाना कोई आसान काम नहीं है।
चौक बाजार अल्मोड़ा में सूरज लाल शाह की दुकान में हाथ के बने पिछौड़े मिलते हैं। उनका परिवार भी कई पीढ़ियों से पिछौड़े बना रहा है। शाह पूरे कुमाऊं में हाथ से बने पिछौड़े सप्लाई करते हैं। बताते हैं कि अल्मोड़ा के पिछौड़े ही सबसे अच्छे माने जाते हैं। सहालग में पिछौड़ों की मांग बढ़ जाती है। भले ही बाजार में प्रिटेंड पिछौड़े खूब बिकते हैं पर कुमाऊंनी संस्कृति से लगाव रखने वाले लोग हाथ से बना पिछौड़ा ही पसंद करते हैं।
साभार : अमर उजाला