Author Topic: सरकार, थोड़ा हमारी भी सुनो !  (Read 6509 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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दोस्तों इस टॉपिक के माध्यम से हम हमारे गाँव, क्षेत्र, जिले एवं राज्य में हो रहे विकास कार्यों की स्थिति के बारे में बताएँगे  कि सरकार जो विकास कार्यों में धन खर्च कर रही है क्या उसका उपयोग सही ढंग से हो रहा है ?  जो ये निर्माण कार्य करवाए जा रहे हैं  इसका लाभ कहाँ तक, किस वर्ग, किस क्षेत्र इत्यादि  तक पहुंचेगा ? जो निर्माण कार्य हो रहे हैं क्या उनकी गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जा रहा है ? आप इस टॉपिक के माध्यम से अपने  गाँव, क्षेत्र, जिले एवं राज्य में हो रहे विकास कार्यों की स्थिति के बारे में अपनी राय दे सकते हैं।

मैं मेरा पहाड़ फोरम के इस टॉपिक के माध्यम से शासन,प्रशासन, बुद्धिजीवियों एवं मीडिया से निवेदन करूँगा कि क्या आप इन बातों पर थोड़ा ध्यान दे सकते हैं कहीं यह सच हो नहीं........?

धन्यवाद
 
विनोद गड़िया

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: थोड़ा मेरी भी सुणों !
« Reply #1 on: February 18, 2011, 03:18:27 PM »
[justify]सर्वप्रथम मैं अपना ही क्षेत्र बागेश्वर जनपद के कपकोट विधानसभा के अंतर्गत आने वाला गाँव पोथिंग के बारे में बताना चाहूँगा। पोथिंग गाँव में इस समय कुछ विकास  कार्य प्रगति पर हैं, कुछ कार्य  पूरे हो गए और कुछ कार्य पूरे हो कर टूट कर ख़त्म भी हो चुके हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि आज का युग सीमेंट का युग है, सीमेंट है तो रेता/बजरी तो चाहिए ही, पर इस गाँव में रेता/बजरी की जगह पहाड़ों/चट्टानों से निकलने वाला सफ़ेद रंग का कंकड़ युक्त मिट्टी, जिसे हम स्थानीय भाषा में कमेट बोलते हैं, का प्रयोग किया जा रहा है।( यह सफ़ेद रंग का पाउडर की तरह होता है, जिसे किसी ज़माने में हमारे दादा-परदादा अपने घर की पुताई के  काम में लाते थे)
इस मिट्टी का प्रयोग आज से नहीं बल्कि १० वर्षों होता चला आ रहा है, इस मिट्टी से सरकार की बहुत सी नहरें, बहुत से पुल, बहुत से रास्ते और स्कूल की छतें बन चुकी हैं साथ ही साथ नहरें फट चुकीं हैं, पुल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, रास्तों का नामोनिशान नहीं और छत बेचारी भी क्या करे वो भी बरसात में आंसू टपकाने लगती है। यहाँ पर मेरा कहने का तात्पर्य है कि क्या रेता-बजरी की जगह इस मिट्टी का प्रयोग किया जाना उचित है ? यदि नहीं तो क्यों नहीं ?
इस मिट्टी में थोड़ा सा भी सीमेंट मिलाने से किया हुआ काम बिलकुल अच्छा दिखता है पर जब एक दिन बाद जब यह सूख जाता है तो इसमें दरारें आने लगती हैं और इन दरारों को सीमेंट के घोल से छिपा दिया जाता है। यह मिट्टी इस गाँव में काफी मात्रा  में है और ठेकेदार लोग भी खूब प्रयोग कर रहे हैं। जहाँ भी कोई निर्माण कार्य होता है पास में ही यह मिट्टी मिल जाती है तो समझ लो ठेकेदार की चांदी ही चांदी पर।  शासन-प्रशासन के आला अफसरों ने तो रिश्वत लेनी है।  मोटी रकम मिल गयी और जो भी निर्माण कार्य हुआ, जैसा भी हुआ-सब पास ।
मैं आप सभी को बताना चाहूँगा कि यह मिट्टी यहाँ धड़ल्ले से काम में लाई जा रही है, देखने वाला कोई नहीं है।  रिश्वत दे के काम पास हो ही जाता है।  और जहाँ तक है गाँव वालों की आवाज़ की बात- गाँव के ही पैसे वाले लोग ठेकेदार हैं क्या करे गरीब लोग । इस गाँव में इस चूने वाले मिट्टी की बड़ी-बड़ी खाने बन चुकी हैं एक माह पूर्व ही इस खान में एक ग्रामीण महिला श्रमिक की दब कर मौत हो गयी जो इस खान से इस चूना मिट्टी खोद कर निकाल रही थी।  जो यह दबकर मौत हुई उसका पता सिर्फ गाँव के लोगों को ही है।
 जगह--जगह इस प्रकार के खनन के कारण बरसात में भू-स्खलन हो गया है।  पर्यावरण प्रभावित हो रहा है।  मेरा  लिखने का तात्पर्य यह है कि क्या कोई इस गाँव में हो रही इस प्रकार के काम पर अंकुश लगा सकता है ? ताकि जो भी कार्य हो रहा है वह अच्छा हो, उसका लाभ सभी को मिले और गाँव को भूस्खलन जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।

धन्यवाद

विनोद सिंह गढ़िया

Re: थोड़ा मेरी भी सुणों !
« Reply #2 on: February 19, 2011, 01:21:54 AM »

The condition of developments work is almost the same in the entire Uttarakhand. It sad that development is not visisble even after 10 yrs of Uttarakhand formation.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: थोड़ा मेरी भी सुणों !
« Reply #3 on: February 19, 2011, 04:52:13 AM »
Gariya Ji..

I also hail from the same district. I hope the condition is almost the same in other district of UK. In fact development is not really visible what were expecting. 10 yrs is not a short period for any state for development.

There are many reasons for our State legging behind.  I think corruption is the main the reason due to which development is not visible there. I quote an example of a “Panchayat Bhawan” which was constructed in my village which was made in 2-3 yrs back. What I have observed 2-3 feet of the roof is missing which generally come out of the main wall.

In addition to this, there are many other corruption cases. People is just sleeping and no body raises his voice agaist the corruption.

विनोद सिंह गढ़िया

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देहरादून। स्कूलों में फिजिकल टीचर ही योग का भी पाठक्रम पढ़ाएंगे। इसके लिए उन्हें अलग से प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।राज्य के स्कूलों में योग एवं जड़ी-बूटी पाठक्रम शुरू करने का फैसला हुआ है। यह पाठक्रम नए शिक्षण सत्र से आरंभ कर दिया जाएगा। पाठक्रम लगभग तैयार है। लेकिन, पढ़ाने वालों की व्यवस्था नहीं है। राज्य सरकार इस पाठक्रम को शारीरिक शिक्षकों द्वारा ही पढ़ाने की व्यवस्था बना रही है। सरकार करीब 200 बीपीएड डिग्रीधारी और योग प्रशिक्षुओं का आउटसोर्स करेगी। आधे पद बीपीएड डिग्रीधारियों का और आधे योग प्रशिक्षुओं का होगा। इनकी तैनाती 200 छात्र संख्या वाले लगभग सभी जूनियर हाईस्कूलों में की जाएगी।शिक्षा मंत्री गोविंद बिष्ट का कहना है कि रेग्यूलर पद नहीं है। इसके चलते आउटसोर्स वाली एजेंसियों से लोग लिए जाएंगे। 5000 रुपये मानदेय पर इन शिक्षकों की नियुक्ति होगी।उन्होंने बताया कि 1221 जूनियर हाईस्कूल हैं। इसमें से 407 ही हैं, जो 200 छात्र संख्या वाले मानक में आ रहे हैं।सचिव विद्यालयी शिक्षा मनीषा पवार का कहना है कि कोर्स में बेसिक योग को शामिल किया गया है। इसके लिए सामान्य ट्रेनिंग ही पर्याप्त है। हाल में कराई गई एलटी परीक्षा में भी पीटीआई की भर्ती हो रही है। बाकी कुछ आउटसोर्सिंग के जरिए लिए जाएंगे।

सरकार पीटीआई को विषय की ट्रेनिंग दिलाएगी
इसके लिए आउट सोर्स किए जाएंगे पीटीआई
200 छात्र संख्या वाले स्कूलों में होगी तैनाती
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आपने उपरोक्त समाचार तो पढ़ ही लिया होगा। उत्तराखंड सरकार ने यहाँ के विद्यालयों में योग एवं जड़ी-बूटी पाठक्रम  तो शुरू कर लिया परन्तु यहाँ देखने वाली बात यह है कि अभी सिर्फ उन विद्यालयों में जहाँ 200  से अधिक विद्यार्थी पढ़ते हैं, जहाँ इससे कम विद्यार्थी हैं वहां का क्या होगा ?

दूसरी बात- वर्तमान में उत्तराखंड में यहाँ के विश्वविद्यालयों द्वारा योग में डिग्री और डिप्लोमा कोर्स करवाए जा रहे हैं। अभी तक यहाँ से सैकड़ों बेरोजगार रोजगार की आश से योग का कोर्स कर चुके हैं, जिसमें 120  डिप्लोमा धारक बागेश्वर जनपद से हैं, परन्तु आज जब उनको रोजगार देने का समय आया तो मालूम चल रहा है कि 'स्कूलों में फिजिकल टीचर ही योग का भी पाठक्रम पढ़ाएंगे।  पाठक्रम लगभग तैयार है। लेकिन, पढ़ाने वालों की व्यवस्था नहीं है।' पढ़ाने वालों की व्यवस्था कैसे नहीं है ?  क्या इन डिप्लोमा धारकों को यह पद नहीं दिया जा सकता है ? राज्य में इस समय 1221 जूनियर हाईस्कूल हैं। इसमें से 407 ही हैं, जो 200 छात्र संख्या वाले मानक में आ रहे हैं। सरकार सिर्फ  200 बीपीएड डिग्रीधारी और योग प्रशिक्षुओं का आउटसोर्स करेगी। मानक में तो 407  विद्यालय आ रहे हैं बाकि विद्यालयों का क्या होगा ?

तीसरी बात-आधे पद बीपीएड डिग्रीधारियों को  और आधे योग प्रशिक्षुओं में क्यों बांटा जा रहा है ? क्या योग एवं जड़ी-बूटी पाठक्रम  सिर्फ योग प्रशिक्षुओं को ही पढ़ाने को दिया जा सकता है और जो ये पद दिए जा रहे है वे रेग्यूलर पद क्यों नहीं है ? और आउटसोर्स वाली एजेंसियों से लोग क्यों लिए जाएंगे ?

उत्तराखंड सरकार थोड़ा चिन्तन करो ? कोई बेरोजगार इंतजार कर रहा है एक स्थाई रोजगार के लिए।

मोहन जोशी

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मैं गंगोलीहाट खिर्मंडे रोड के बार मैं फोरम मैं request डालना चाहता हु वो कब पूरी होगी न जाने कितने साल गुजर गए मगर रोड का मिलान दसई थल और सेराघाट के बीच कब होगा . जीप वालो की चादी हो रही है दसई थल खिर्मंडे के बीच डामर वाला रोड होने के बाद भी केवल २०-२२ किलोमीटर का वो लोग ३५-४० रुपे किराया ले रहे है न तो केमू न रोडवेज कोइ भी कोए भी बस सेवा यहाँ लगाने को तैयार नहीं है जबकि खिर्मदे तक PWD ने रोड पास की हवी है

कब जुडेगे ये रोड सेरघाट   से पता नहीं हमें खिर्मंडे पहुचने केलिए सेरघाट के आस पास सूबे ८ बजे होने पर भी घूमकर २-३ बजे पहुजना होता है किया करे यदि मोटर मार्ग सुलभ होता तो हम सेरघाट होते हुए खिर्मंडे ९ बजे तक पहुच जाते


 

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