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आपके अनुसार विकास की दृष्टि से उत्तराखंड ने १०० % मैं से कितना विकास किया है ?

below 25 %
46 (69.7%)
50 %
11 (16.7%)
75 %
5 (7.6%)
100 %
2 (3%)
Can't say
2 (3%)

Total Members Voted: 62

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: 9 November - उत्तराखंड स्थापना दिवस: आएये उत्तराखंड के विकास का भी आकलन करे  (Read 69309 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahi Singh Mehta shared a link.9 hours ago near Noida09 नवम्बर 2012 को उत्तराखंड राज्य 12 साल हो जाएगा! 12 साल राज्य बनने के बाद अभी पहाड़ के वो मुद्दे वही के वही है जिनके समाधान के लिए यह राज्य की परिकल्पना की गयी थी! पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा , पहाड़ का विकास, पर्यटन , स्थाई राजधानी आदि आदि। आपकी क्या राय है उत्तराखंड ने कितना विकास किया है इन 12 सालो में प्रतिशत में ....... ???
 
 http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/9-november/new/#new
9 November - उत्तराखंड स्थापना दिवस: आएये उत्तराखंड के विकास का भी आकलन करेwww.merapahadforum.com9 November - उत्तराखंड स्थापना दिवस: आएये उत्तराखंड के विकास का भी आकलन करेLike ·  · Share
  • Lalit Sati and Kalyan Mehta like this.
  • Swalay Ali yahi koi 15 %9 hours ago · Like
  • Mahi Singh Mehta thanks bhai g. in my opinion it is 10%9 hours ago · Like
  • Swalay Ali ha sayad utna hi ...decide hi nahi kar pa raha tha isliye 15 keh diya ... but netao ka vikas khub hua hai sir ..9 hours ago · Edited · Like
  • Chandrashekhar Chauhan Yaha ke deemako, jonko aur chinchdiyo ka 100% vikas hua hai, sb kameene ese gart me le jane me koi kasar ni chod rahe hain, janta ko dawaii ka chidkaw jald se jald karna hoga !!! juto se v pisne ki jarurat hai tavi jonk aur chinchad kam honge.7 hours ago · Like
  • Chandrashekhar Chauhan Sare mudde wahi ke wahi hain to aankalan kiska kare ?!?2 hours ago · Like
  • Mahi Singh Mehta Both BJP & Congress looted this hilly state..a few seconds ago · Like

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नूतन डिमरी गैरोला added a photo from November 8, 2012 to her timeline.उत्तराखंड स्थापना दिवस पर आज भी याद आती है मुझे अपनों की सहादत .. मैंने उन क्षणों को भी महसूस किया था जब श्रीयंत्र टापू ( श्री नगर) में आंदोलनकारी मजबूर हुए थे नदी में कूदने को .. एक जवान लड़का जिसकी दवाई की दूकान थी , नाम था सूरज, को बहती नदी में  नाव में चढ़ने नहीं दिया गया था, वह मारा गया था और कितने ही जख्मी थे और अलकनंदा को तैर कर पार किया था  ,  कितने ही लोग रामपुर तिराहा में गोलीकांड का शिकार हुए थे ... इसके बाद ही ९ नवम्बर २००० को उत्तराँचल आस्तित्व में आया, २००७ को उत्तराखंड बना|  आप सबको उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ... बस जो जिस क्षेत्र में भी कार्य कर रहा है, उस इकाई में मन लगा कर कार्य  करे तो राज्य और राष्ट्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान होगा .. आओं हम अपने राज्य और राष्ट्र के विकास के लिए ईमानदारीपूर्वक  समर्पित भाव से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे |..... शुभकामना ....
 फोटो नेट से रूपकुंड की

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क्यों बना ये उत्तराखण्ड ?
 
 आज हमारे राज्य उत्तराखण्ड की 12वीं सालगिरह है, पूरा राज्य तो नही, लेकिन हां उत्सव मनाने वाले राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के लोग हर रोज जरुर उत्सव मना रहे हैं, सो आश्चर्य नहीं आज भी मनाएंगे  l ये लोग हर साल हर दिन उत्सव मनाते है, अपनी अमीरी का, अपनी राजनैतिक उपलब्धियों का, इस राज्य के आम आदमी के मान मर्दन का, वे उत्सव मानते है इस राज्य निर्माण के लिये आन्दोलन करने और आन्दोलन के दौरान निस्वार्थ शहीद होने वाले लोगों की बेवकूफियों का l विश्वास ही नही होता कि गरीबो और अति पिछ्डो की इस धरती पर अमीरी का नंगा नाच हर साल होते आ रहा है, फिर भी हम सब चुप है ! क्यों ?
 
 कभी यह नाच कुम्भ के नाम पर भाजपा के सुसंस्कृत होने का दावा करने वाले निशंक जैसे नेता कर लेते तों कभी यह नाच राज्य पर लगभग जबदस्ती थोपे मुख्यमंत्री बहुगुणा और आध्यत्म में डूबे सांसद सतपाल महाराज जैसे लोग करते है तों कभी विनय पाठक जैसे कुलपति तों कभी राज्य के पूरी केबिनेट को पहाड़ में स्थित शहीदों के तीर्थ गैरसैंण के नाम पर हवाई सैर करवाकर वहाँ उत्सव मना लिया जाता है l ये देश का केवल एक मात्र राज्य है जहाँ आपदा आने पर मुख्यमंत्री पीड़ीतों को त्वरित सहायता पहुँचाने के बजाय जिन्दा रहने के लिये भजन करने की सलाह देते है l तों यहाँ हरक सिंह रावत जैसे विधायक भी है जिन्हें जनता तों दूर तथाकथित देवी-देवताओं का भी डर नहीं है, जिस मन्त्री पद को जूते की नौक पर रखने का दावा वे कर रहे थे, उसी मन्त्री पद को पाने की लिये देवी देवताओं की कसमों तक का सौदा कर डालते है l कुछ मन्त्री विधायक यहाँ ऐसे भी है, जिनके कर्म उन्हें आम इंसान तों कतई प्रमाणित नहीं करते, जब राज्य का लगभग पूरा पर्वतीय क्षेत्र आपदा में डूबा था,तब उन्हें उनके बीच मौजूद होना चाहिए था, लेकिन इन्होने लंदन सपाटे को ज्यादा तरजीह दी ! उनका अपने राज्य के आपदा से घिरे लोगो के बीच मौजूद होने के बजाय लंदन ओलम्पिक में मौजूद होना जरूरी था, भले ही राज्य में खेल संघों का आधारभूत ढांचा ही ना हो !
 
 इसमे कोई शक़ नही कि राज्य बनने के बाद से ही उत्तराखण्ड ने विकास के साथ साथ घोटालों के भी कुछ नये रेकॉर्ड स्थापित किये, चाहे वह काँग्रेस हो या भाजपा राज्य रूपी निरीह बकरी को अच्छे से निचोड़ कर दुहा है, इसके बावजूद भी जितना विकास यहाँ हुआ है, वह विकास की स्वाभाविक दौड है और उसके लिये जनता की आवश्यकता कम खुद नेताओं की नाजुकता का परिणाम है, हाँ यह अलग बात है कि यह विकास की आँधी पिछले 12 सालो में राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के बजाय नेताओं के रहने के लिये सुगम तलहटी शहरों तक ही सीमीत रहा l इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य में सरकार भले ही किसी भी दल की रहे इतना विकास तो होना तय था l
 
 सवाल इस बात का उठता है कि क्या इन 12 सालों में इससे ज्यादा विकास नही हो सकता था ? क्या राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में अस्पताल नहीं खुल सकते थे, उनमें डॉक्टर एवं सहायक स्टाफ तैनात नहीं किये जा सकते थे ? क्या राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में तकनीकि शिक्षण संस्थान नहीं खुल सकते थे, उनमें शिक्षक तैनात नहीं किये जा सकते थे ? राज्य के खस्ताहाल शिक्षा विभाग (स्कूली एवं उच्च ) को नहीं सुधरा जा सकता था ? राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में कृषि को बढ़ावा देने के लिये भूमि प्रबंधन में चकबंदी जैसे उपाय नहीं किये जा सकते थे ? राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार औद्योगिक नीति नहीं बनाई जा सकती थी ? राज्य की  बर्बाद होती बागवानी को नहीं बचाया जा सकता था ? दिनों दिन कम होती कृषि भूमि को बचाने के लिये कोई कठोर कानून नहीं बनाए जा सकते थे ?
 
 लेकिन राज्य बनने के बाद इन 12 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जो आम आदमी को सुविधाओं के अभाव में तिल-तिल कर मरने से बचा सके l इस राज्य में आज भी जीवन यापन और जीवन बचाने, दोनों के लिए लोगों को पलायन ही करना पड़ता है l ये वही राज्य है जहाँ पहाड़ के एक जिला मुख्यालय के एक अस्पताल में फिजिसियन और सर्जन  डॉक्टर तैनात करवाने के लिये विधायक को आमरण अनशन करना पड़ता है ! पर इस तरह का कदम हर विधायक नहीं उठा सकता, पार्टी व्हीप के आगे जनता के हित नगण्य है ! राज्य की दुर्दशा को बयान करने को ये बानगी भर  है, इस प्रदेश को पर्दे के पीछे से चला रहे नौकर जो खुद को नौकर के बजाय किसी शाह से कम नही समझते है, उनके आंकडो की बाज़ीगरी इस गरीब राज्य को अमीर लोगों के लिये स्वर्ग साबित कर रही है ! यानी राज्य बनने के बाद से अमीर और अमीर हो रहा है और गरीब और ज्यादा गरीब l पता नही कब इस अमीर धरती पर रहने वाले मूल गरीब लोगों के दिन फिरेंगे l  राजनेताओं के पोस्टरों और प्रचार के होर्डिंगस से अटे पड़े इस प्रदेश में कैसे यह धरती लोगों को देवभूमि नजर आती है इस पर शोध किया जाना अभी बाकी है !
 
 इस राज्य में दिन तो फिलहाल उन लोगों के फिरे हुये हैं, जिन्होने राज्य स्थापना के समय यहाँ आने की इच्छा तक़ नही ज़ाहिर की थी, या जिन्होंने राज्य बनाए जाने का विरोध किया था, या जिन्होने उत्तरप्रदेश को अपनी प्राथमिकता बताया था और मज़बूरी में यहाँ आये थे l हद तो यहाँ तक़ है कि वे लोग अब यहाँ से वापस भी नही जा रहे है l  राज्य उनके लिये वृद्धाश्रम साबित हो रहा है l वे रिटायर होकर भी मलाई खा रहे है और इस राज्य के लिये दशको तक लड़ाई लड़ने वाले हरिया, रमुवा, कलुवा, दीपुली, रामुली, भागुली, भागीरथी, जाने कौन-कौन फाके की जिंदगी जीने को मजबूर है l पता नही ऎसे में कैसे उत्सव मनाया जा सकता है, जब हम गरीब परिवारो के मामले में रिकार्ड बना रहे है ? टिहरी जैसे ऐतिहासिक शहर को बिजली के लिए झील में डुबोने के बावजूद राज्य के ग्रामीण इलाको में आज भी बिजली नहीं पहुंचा पायें है !  बिजली के दाम भी कम नही है और उसके बाद भी गर्व से कहो कि ये उर्जा प्रदेश है ?  कमाल है ! उत्सव पर उत्सव !
 
 मै तो हैरान हूं आम आदमी की तरह सिर्फ उत्सव के नाम पर होने वाले अमीरी और फिज़ूलखर्ची की तमाशें की चकाचौंध में कराहती गरीबों की बद्दुआ सुनता हूं, अगले साल फिर एक और सरकारी उत्सव के इंतज़ार में उम्र का एक साल बरबाद कर देता हूं ! पता नही कब तक़ राज्य के पिछड़े और दूरदराज के क्षेत्र में अमीरों का यह नंगा नाच  होता रहेगा ? राज्य के दयनीय हालातो को देखते हुए कविवर दुष्यंत की एक कविता याद आती है..
 
 हालाते जिस्म सूरते जां , और भी ख़राब ,
 चारों तरफ ख़राब , यहाँ और भी ख़राब |
 
 नजरों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे ,
 होंठों में आ रही है जुबाँ और भी ख़राब |
 
 पाबंद हो रही है रवायत से रोशनी ,
 चिमनी में घुट रहा है धुंआ और भी ख़राब |
 
 मूरत संवारने में बिगडती चली गई ,
 पहले से हो गया जहाँ और भी ख़राब |
 
 रोशन हुए चिराग तो आँखें नहीं रहीं ,
 अंधों को रोशनी का गुमां और भी ख़राब |
 
 आगे निकल गए हैं घिसटते हुए कदम ,
 राहों में रह गए हैं निशां और भी ख़राब |
 
 सोचा था उनके देश में महंगी है जिन्दगी ,
 पर जिन्दगी का भाव वहां और भी ख़राब |
 
 अब तों लगने लगा है क्यों बना होगा ये निगोड़ा उत्तराखण्ड ?
 
 (विचार आभार : संजय महापात्र, रायपुर, छत्तीसगढ़ के एक मित्र)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 विशेष दर्जे का फायदा लेने में चूका उत्तराखंड         रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून
राज्य बनने के बाद आम आदमी के  खुशहाल होने की उम्मीदें तंत्र की नाकामी लील रही है। सियासी लाभ के लिए फिजूलखर्ची में कोर-कसर नहीं छोड़ने वाली सरकारें माली हालत खराब होने का रोना रोती रही हैं, लेकिन उत्तराखंड को विशेष राज्य के दर्जे का लाभ दिलाने में पिटती रही हैं। विशेष दर्जे में केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं में केंद्र की ज्यादा हिस्सेदारी के रूप में मिलने वाला लाभ राज्य उठा नहीं सका है। दो पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में बजट परिव्यय से काफी कम स्वीकृत राशि में भी 9600 करोड़ गंवा दिए गए। अब चालू साल में अब तक 8200 करोड़ के बजट परिव्यय में महज 38 फीसद धन खर्च किया जा सका है। इस मामले में पिछली भाजपा सरकार को आड़े हाथ लेने वाली कांग्रेस अब खुद सत्ता संभालने के बाद पुरानी लीक पीट रही है।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों और पर्यावरण के कड़े प्रतिबंधों में घिरे उत्तराखंड को केंद्र सरकार ने बुनियादी सुविधाओं के विकास को विशेष राज्य का दर्जा दिया। इसके तहत केंद्रपोषित फ्लैगशिप कार्यक्रमों के साथ बाह्य सहायतित योजनाओं में केंद्रीय सहायता की 90 फीसद की हिस्सेदारी है। इनमें राज्य को महज दस फीसद खर्च करना है। इन दोनों ही योजनाओं में अब तक 50 फीसद धनराशि का इस्तेमाल नहीं हुआ। हालत यह है कि मौजूदा कांग्रेस सरकार भी पिछली भाजपा की तर्ज पर ही कदम बढ़ाती नजर आ रही है। वर्ष 2012-13 का बजट इसकी बानगी है। कुल 8212 करोड़ के सालाना बजट परिव्यय में महज 3128.92 करोड़ यानी महज 44.39 फीसद राशि को मंजूरी मिली। इसमें भी पहली छमाही में सिर्फ 1386.04 करोड़ यानी 38 फीसद राशि खर्च की गई।
केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं में खर्च का बुरा हाल है। केंद्रपोषित योजनाओं के लिए 1591.24 करोड़ बजट परिव्यय में अब 51 फीसद राशि स्वीकृत हुई, लेकिन इस राशि में भी खर्च सिर्फ 50 फीसद हो सका। बाह्य सहायतित के लिए 1354.31 करोड़ बजट परिव्यय में सिर्फ 231.87 करोड़ यानी 18 फीसद राशि विभिन्न योजनाओं में मंजूर की गई। इसमें से भी खर्च सिर्फ 79.82 करोड़ यानी 34.43 फीसद हुआ। राज्य सेक्टर और जिला सेक्टर में भी बजट स्वीकृति और खर्च की हालत अच्छी नहीं रही। राज्य सेक्टर में 4517 करोड़ बजट परिव्यय में सिर्फ 42 फीसदी और जिला सेक्टर में 750 करोड़ परिव्यय में 74 करोड़ ही खर्च हुआ। दो दशक और चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही गुजरने के बाद कुल 55648.30 करोड़ बजट प्रावधान में सिर्फ 33450.66 करोड़ खर्च किए गए। 22197 करोड़ अब तक खर्च नहीं किए जा सके। 12 साल की अवधि में नीति नियंताओं ने इन चुनौतियों को नजरअंदाज ही किया। सरकारों ने अब तक सामाजिक-आर्थिक एजेंडे पर सियासी एजेंडे को तरजीह दी।

(Source - Dainik Jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
उत्तराखंड के बारह साल ! उपलब्धियां ....................?|

अलग उत्तराखंड राज्य बने आज बारह बरस हो गए हैं | करीब पांच दशकों के लम्बे जनांदोलन और ४५ लोगों की शहादत के बाद ९ नवम्बर २००० को अलग उत्तराखंड राज्य तो बन गया |लेकिन यहाँ के नेताओं की सत्ता लोलुप सियासत ने अलग राज्य गठन के औचित्य पर ही प्रश्नचिंह लगा दिया है |पहाड़ के लोगों ने अगल उत्तराखंड राज्य इसलिए मागा था कि उत्तर प्रदेश में जो नियम - कायदे और कानून बनते हैं या विकास योजनाएं बनाई जाती हैं , उनके केंद्र में पहाड़ नहीं , मैदान होता है | चूँकि पहाड़ और मैदानी इलाके की भौगोलिक हालत जुदा हैं |मैदान को केंद्र में रख कर बनाई गई योजनाएं पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों से मेल नहीं खातीं | लिहाजा अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ के लोग पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप नियम - कानून और योजनायें बनाकर पहाड़ का विकास कर सकें | लेकिन इस अलग राज्य के बनने के बारह सालों के बाद यहाँ उत्तर प्रदेश की जगह उत्तराखंड हो जाने के अलावा और कुछ भी नहीं बदला |
आज पहाड़ के गावों की स्थिति सोचनीय है | पलायन के चलते ज्यादातर गाँव युवा विहीन होते जा रहे हैं |पलायन के कारण ज्यादातर गाँव बंजर होने की स्थिति में पहुँच गए हैं | अधिकांश गावों में अब सिर्फ बुजुर्ग , बच्चे और महिलाऐं ही रह गई हैं |यह सिलसिला दिन प्रति दिन तेज हो रहा है |यह स्थिति निश्चित ही दुःख दायी है |
अब तक इस राज्य की स्थाई राजधानी का मुद्दा ठंडे बस्ते में है |उत्तर प्रदेश के साथ परिसम्पतियों के बटवारे के मामले नहीं निपटे हैं |राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की दिशा और दशा में कोई बदलाव नहीं आया है |नए राज्य में मूलभूत बुनियादी सुविधाएँ बढ़ने के बजाय घट गई हैं |बेरोजगारी और पलायन बढ़ा है |जल ,जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों में पहाड़ के लोगों की हिस्सेदारी घटी है |पहाड़ में कृषि भूमि की बिक्री का सिलसिला तेज हुआ है |हाँ , नये राज्य में नेताओं और अफसरों की फौज जरुर बढ़ गई है |मानो यह राज्य बना ही नेता और अफसरों के लिए है |राज्य बनने से पहले यहाँ २२ विधायक थे | अब ७०+१ =७१ हो गए हैं |तब एक -दो मंत्री या उप मंत्री बनते थे | अब मुख्यमंत्री समेत पूरा मंत्री मंडल है |भा.ज.पा. के राज में दायित्वधारी और कांग्रेस के राज में सैकड़ों दर्जा मंत्री जमकर सत्ता का लुत्फ़ उठा रहे हैं | छोटे बाबू बड़े सहाब बन गए है | अलग राज्य के मुद्दे दफन हो गए हैं | सबका एक ही लक्ष्य है -सत्ता की मलाई और पैसा |यह राज्य भा,ज.पा.और कांग्रेस के लिए सियासी प्रयोगशाला और उनके नेताओं के लिए खुला चारागाह बन कर रह गया है |
अस्सी फीसदी पहाडी इलाके के विकास के निमित्त मांगे गए इस राज्य की सियासत के केंद्र में न पहाड़ हैं और न यहाँ रहने वाले लोग |यह राज्य मुख्यमंत्री की कुर्सी के जंग का मैदान बन कर रह गया है |नेताओं और अफसरों की जुगलबंदी जमकर लुत्फ़ उठा रही है |अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ के भीतर जमीनों के बिकने की प्रक्रिया और तेज हो गई | जमीनों के दलाल रातों - रात मालामाल होते चले गए और हो रहे हैं |इस राज्य में आज लोकतंत्र के सभी स्तंभों में इन जमीन दलालों की सबसे मजबूत पैंठ है | इन्हें सियासी दलों के बड़े नेताओं का संरक्षण हासिल है | जमीन लाबी पूरे राज्य की सियासत को संचालित कर रही है | जमीनों के बिकने का सिलसिला दिन प्रति दिन तेज होता जा रहा है | नतीजन आज पहाड़ का समूचा सामाजिक , सांस्कृतिक वातावरण विकृत हो गया है |पहाड़ और यहाँ के निवासियों की अस्मिता खतरे में है | पहाड़ में सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं | प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट हो रही है |पहाड़ के स्थापत्य और कलात्मक एतिहासिक वस्तुवों और वन्य उपज की जमकर तस्करी हो रही है | लेकिन सवाल यह है कि ऐसे हालातों का जनक कौन लोग हैं |जाहिर है -पहाड़ के सियासी हालत इस सबके लिए जिम्मेदार हैं |सियासत नहीं चाहती कि पहाड़ में ऐसे हालत बनें कि यहाँ के लोगों को पलायन के लिए मजबूर नहीं होना पड़े |पहाड़ में बेहतर जीवन यापन की क्षीण होती सम्भावनाओं के मद्देनजर लोग अलाभकारी कृषि भूमि को बेचने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं |जमीन के दलालों की बन आई है |साथ में उनके आका नेता और अफसरों की भी |

पहाड़ की दुर्दशा को लेकर कई दशकों से दुबले हुए जा रहे हैं कतिपय प्रगतिशील विचारधारा के झंडावरदारों की जुवान इन मुद्दों पर खामोश है ?| जल , जंगल और जमीन के बहाने अपनी सियासी रोटियां सकने वालों से पूछा जाना चाहिए कि आज पहाड़ की इन तीनों प्राकृतिक संसाधनों की असली हालत क्या है ?| इसके वावजूद --"-तदुक नि लगा उदेख , घुनन मुनई नि टेक ,जेंता एक दिन तो आलो , उ दिन य दुनी में ..............................".|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 As Uttarakhand completed 12 years of its existence today after its separation from Uttar Pradesh, Chief Minister Vijay Bahuguna announced a slew of measures aimed at the welfare of those who fought for statehood to the region.
   Addressing a simple function here to mark the occasion, the Chief Minister said equitable development of the backward areas of the state, especially those located in remote hilly terrain, is the primary goal of his government.
   "We have taken a series of measures and many more are on the anvil which underline the government's commitment to give a boost to development of the backward hill areas of the state which lag behind in terms of basic infrastructure, including roads, drinking water amenities and power," Bahuguna said.
 
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         He said the recent cabinet meeting at Gairsain in Chamoli district which decided to build a Vidhan Bhawan there and hold at least one session of the House there every year carries only one message that the government stands by the backward areas of the state.    Announcing a series of welfare measures, Bahuguna said families of agitationists, who went missing during Uttarakhand statehood movement, will be treated at par with the kin of those who laid down their lives at the peak of the agitation and given compensation.
   The Chief Minister said the amount given as pension to Uttarakhand agitationists has also been revised from Rs 3,000 to Rs 5,000.
   Unemployed youth of the state will start getting a special unemployment allowance from today, he announced.
   However, efforts are being made on a war footing to attract investors to the state so that employment opportunities are created for the jobless youth, he said.
   He said 12 places are being identified in the hill areas where the state government's industrial development programme SIIDCUL is to be further expanded.
   "A boost to industrialisation means more jobs for the youth. We shall continue to woo investors to the state with that objective in mind," he said.
   The tourism sector will also be given a boost to generate more employment opportunities for the youth, he said. MORE
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Bhishma Kukreti

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                                                  मि तैं त पूरी आस च ऐतवार  च !


                                                         आस करदारो : भीष्म कुकरेती
                       

अचकाल भौत सालुं से कै भारतियौ कुण ब्वालो बल "गुड इंडिपेंडेन्स डे " तो वै भारतीयू जबाब हूंद बल "व्हट इज दियर तो बि  गुड ".
बुलणो  मतबल या च बल अजकाल भारतीयों कु  निरासण्या  चश्मा से ऊं तैं निरासा को अगास इ  दिखेंद I
इनि उत्तरखंड्युं हाल छन जौन निरासा ब्रैंड को गौग्ल्स  पैर्यां छन अर हर जगाम निरासा को बद्दळ दिख्यांद।
बिचारा उत्तराखंडी ! जब घौर बिटेन नौकरी की आस  मा भैर आंदो तो दगड़म निरस्यांद बि च बल यीं धरती से अब म्यरो नाता सद्यानो टूटी गे.
पण मि आशावान छौं बल ये पन्दरा अगस्त का बाद कौंग्रेस अर भाजापा आयातित मुख्यमंत्री उत्तराखंड तैं नि द्याला ।
अजकाल पहाड़ी जु नौकरी खोज मा भैर जांदो ओ भैर जोग ह्वे जान्ड़ो। मि तैं आस च कि जल्दी ही दिन बदल्याल अर हरेक प्रवासी रिटायरमेंटो उपरान्त गाँ मा बसण चालो किलैकि जवा सुविधा वै तै शहरो मा दिख्यांदी वो गाँ मा बि मिलण जालि।
उत्तराखंडी चिंतित छन क्या निरास छन बल उत्तराखंड का पहाड़ों मा कृषि उद्यम मा आमूल -चूल बदलौ नी होणु च।स्वतन्त्रता दिवसौ दिन मि आसा करदो कि उत्तराखंडौ पाख -पख्यड़ो खेती मा आमूल -चूल रदोबद्दल होलु कि प्रवास्युं बि तक अपण खेती से कमायां रुप्यों पर राली। मि तै सोळ आनो भरवस च बल निकट भविष्य मा पहाड़ी क्षेत्रुं माँ कृषि क्रान्ति होलि अर बरकती  खुशहाली बर्खली ।
चकबंदी पर बि मि तैं विश्वास  च बल एक दिन हम चकबंदी की जरूरत समझी जौंला ।
मि आश्वस्त  छौं बल शीघ्र ही उत्तराखंड मा फारेस्ट रिफौर्म होलु जांसे उत्तराखंड वासी अर प्रवासी जंगळु रक्षा बि कारल अर दगड़म  जंगळु से आर्थिक अर पर्यावरण्या लाभ भि ल्याला ।
मि तैं बरोबर भरवस च बल भूमिहीनों तैं भूमि मीलल अर क्वी बि उत्तराखंड मा बगैर अपण मकान को नि रालो ।
मी आशावान छौं बल गावों मा मूल भूत  सुविधा जन कि पाणि , पाखाना अदि की सबि सुविधा शीघ्र ही उपलब्ध ह्वे जाली ।
म्यरो पक्को विश्वास च बल गाँव गाँव मा शिक्षा मा इन क्रान्ति आलि कि उत्तम  शिक्षा बान बच्चों तैं शहर आणै जरोरात कतै नि रालि किलैकि सबि जगा इकसनी शिक्षा की आस छैं च।
लोग ग्रामीण चिकित्सा का मामला मा नाउम्मीद हुयां छन जब कि मि तैं पूरी उम्मीद च बल भौत जल्दी सरकार ,  डाक्टर अर समाज मीलिक ग्रामीण चिकित्सा मा जरुरता मुताबिक़ बदलाव लाला अर ग्रामीण चिकित्सा सुल्भ्य्ता मा अर शहरी चिकत्सा सुविधौं मा रती भरो फरक -भेद नि रालो ।
जख लोग औरतों पर अत्याचार -भेदभाव का मामला मा  नाउम्मीदी की कुर्सी मा बैठि रूणा छन किन्तु  मि आसरा मा छौं कि हमर इख शीघ्र ही औरत तैं पूरो हक - अधिकार -सम्मान मीलल ।
 आम लोग डरणा छन कि उत्तराखंड मा बि पुलिस केवल शाशन को स्वार्थपूरक   सिद्ध होणि च जब कि मि तैं पूरा यकीन च बल हमारी पुलिस समाज सुधारक ही सिद्ध होलि ना कि अपराध हूणों बाद की डंडा बाज पुलिस ।
सबि परेशान छन बल स्वतन्त्रता का छसठ साल बाद बि  भेद भाव ख़तम नि कौर सकवां पण मि तैं ऐतवार च बल कि समाज मा वर्ग -भेद -भाव खतम जल्दी ही होलु ।
आज आपदा बाद सबि घबरायां छन कि पर्यटन को क्या होलु मि विश्वस्त छौं कि उत्तराखंड पर्यटन मा भरी वृद्धि होलि अर पर्यावरण -पर्यटन उद्यम मा एक सामजस्य होलु ।
मी तैं पूरो यकीन च बल अब हमारा प्रशासन अर राजनीतिज्ञोंन आपदा प्रबन्धन की अहमियत समझी याल होलि अर आण वळ दिनों मा उत्तराखंड आपदा प्रबन्धन की प्रशंसा अवश्य होली ।
मेरो पुरो विश्वास च कि उत्तराखंड मा वैज्ञानिक अनुसन्धान अर वूं वैज्ञानिक अनुसन्धानो तैं व्यवहारिक बणाणम क्रान्ति आलि अर एक नई तरां की औद्योगिक क्रान्ति आलि ।
म्यरो विश्वास च बल हमर प्रदेस  प्रोडक्टिविटी /उत्पादनशीलता तैं सबसे जादा अहमियत द्यालो।
एक सही सुपिन छौ कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेस बौणो मी तैं पक्को उम्मीद च, यकीन च बल  हमारो उत्तराखंड शीघ्र ही ऊर्जा प्रदेस बौणल ।
मी तैं आस च , विश्वास च , यकीन च , ऐतवार च , भरवस च बल आप बि स्वतन्त्रता दिवस प़र आशावान होल्या, हमेशा ही आस की जोत जळैऴया अर सदा ही आपक इख आशा  का द्यू -बती जगीं राली !
 

Copyright@ Bhishma Kukreti 15/8/2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आप बताओ क्या विकास हुआ उत्तराखंड का ???

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 उत्तराखंड का 13 वां स्थापना दिवस



 उत्तराखंड का 13 वां स्थापना दिवस

 [Updated on Nov  8 2013  7:33PM]
 
 
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 देहरादून (एसएनएन): उत्तराखंड के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने राज्य स्थापना दिवस के 13 साल पूरे होने पर उत्तराखंड के नागरिकों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं. यूपी से पृथक उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को किया गया था और इस तरह ये भारतीय गणराज्य का 27वां राज्य बना.
 राज्य स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में राज्यपाल ने कहा कि पृथक राज्य गठन के लिए समर्पित, शहीद आन्दोलनकारियों और जनसामान्य के सपनों का राज्य विकसित करने के प्रयास निरन्तर जारी हैं. हमें याद रखना होगा कि वास्तविक विकास वही है जो समाज के सभी वर्गों को बिना किसी भेदभाव के एक साथ आगे बढ़ने का समान अवसर प्रदान करे.
 उन्होंने कहा कि हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इस साल हमारा राज्य प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त रहा. इस आपदा में कई लोगों की मृत्यु हुई, कई घायल हुए, किसी के मकान टूटे और किसी के खेत बह गए. विकास की कई योजनाएं पूरी तरह नष्ट हुई तो कई बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है. ये अवसर प्रभावित परिवारों को राहत पहुचांने और उन्हें पुनर्वासित करने का है. (shahara samay)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hamane yah to nahi manga tha.

अब दो राजधानियों का प्रदेश होगा उत्तराखंड!

राज्य स्थापना के 13 साल बाद अब उत्तराखंड दो राजधानियों का प्रदेश बनने जा रहा है। स्थापना दिवस पर प्रदेश सरकार गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास करने जा रही है।

रायपुर में होगा शिलान्यास
19 नंवबर को देहरादून में रायपुर में प्रदेश सरकार विधान भवन का भी शिलान्यास होगा। यह तब है जबकि प्रदेश में स्थायी राजधानी के चयन के लिए बाकायदा एक आयोग का गठन किया गया था और इस आयोग ने पूरे आठ साल के इंतजार के बाद सरकार को अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी। हालांकि आयोग की रिपोर्ट भी स्थायी राजधानी के मुद्दे को और उलझाने वाली ही साबित हुई।


गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने की मांग राज्य गठन के तुरंत बाद से ही उठनी शुरू हो गई थी। हाल यह था कि पहली अंतरिम सरकार को ही इस मसले पर आयोग का गठन करना पड़ा था। इस आयोग की रिपोर्ट हालांकि कई साल केबाद ही सरकार को मिल पाई।

राजधानी चयन आयोग ने जनभावना को देखते हुए गैरसैंण को राजधानी मानना स्वीकार किया था पर अन्य मानकों में देहरादून को आगे रखा। साथ ही आयोग ने यह भी कहा कि राजधानी का मसला बहुत कुछ जनभावनाओं पर निर्भर करता है। साफ है कि आयोग की रिपोर्ट ने स्थायी राजधानी के मसले को सुलझाने की बजाय और उलझा दिया।

स्थायी राजधानी के मुद्दे पर चुप्पी
दून की सुविधा और जनभावनाओं की इस टकराहट का ही नतीजा रहा कि पिछले 12 सालों तक राजनीतिक दलों ने स्थायी राजधानी के मुद्दे पर चुप्पी साध कर रखी। कवर्तमान कांग्रेस सरकार ने हिम्मत दिखाई और गैरसैंण में बाकायदा विधानभवन बनाने की घोषणा की।

पढ़ें, केदारनाथ-बदरीनाथ में बर्फबारी, दून वासियों पर भारी

यहां तक भी मामला ठीक ही था पर इसकेतुरंत बाद ही सरकार ने देहरादून में नया विधानभवन बनाने का ऐलान कर दिया।

तर्क यह दिया गया कि देहरादून में विधानभवन की जरूरत है और इसके लिए 13वें वित्त आयोग से 80 करोड़ रुपए भी मिल चुके हैं। इस पैसे का उपयोग करने के लिए देहरादून में विधानभवन बनाया जा रहा है। दो विधानसभाएं बनने से साफ है कि प्रदेश को फिलहाल स्थायी राजधानी नहीं मिल पाएगी।

सरकार हालांकि अगले सत्र से एक विधानसभा सत्र गैरसैंण में आयोजित करने का इरादा जाहिर कर रही है पर यह भी उत्तराखंड को जम्मू कश्मीर की तरह ही प्रदेश को दो राजधानियों की ओर ले जा रहा है।

 

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