Author Topic: Biggest Cloudburst incident in Kedarnath Uttarakhand-सबसे बड़ी आपदा उत्तराखंड में  (Read 22362 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कभी ना नही कहना
 

 मै बह गया उन राहों में
 ऐसे जाना वंहा सोचा ना था
 कभी याद आये तो चले आना
 खिलूँगा मै उन्ही फिजाओं में
 कभी ना नही कहना ................
 
 था मेरा अंत लिखा था वंही
 मोक्ष मीला मुझे उन धाराओं में
 हुआ सब कुछ मेरे साथ ऐसै
 सकूंन से अब हूँ मै उन किनारों पे
 कभी ना नही कहना ................
 
 मिल गया हूँ तो अग्नी दे दो
 ना मीला तू वंही दफन रहने दो
 ना करो अब मेरे जाने का गम
 इतनी तो अब मुझे खुशी दे दो
 कभी ना नही कहना ................
 
 मिला हूँ उस पावन धरती पे
 इस देवभूमी तुम बदनाम ना करो
 सच्ची तुम्हरी आस्था है तो
 फिर यंहा आने से तुम ना ना करो
 कभी ना नही कहना ................
 
 एक उत्तराखंडी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धारचूला पर ध्यान क्यों नहीं सरकार

पिथौरागढ़ जिले के धारचूला में आई आपदा गढ़वाल की त्रासदी की अपेक्षा भले ही छोटी हो लेकिन इससे निपटने में भी प्रशासनिक कौशल धरा का धरा रह गया। सरकारी तंत्र इस इम्तिहान में फेल हो गया है।

यहां रसोई गैस, केरोसिन, राशन और सब्जियां सब कुछ समाप्त हो गया है। यहां तक की बच्चों के लिए दूध भी नसीब नहीं हो पा रहा है। धारचूला क्षेत्र में 16 जून से सड़क बंद है। प्रशासन न तो सड़क ही खोल पाया और न ही यहां के लोगों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही कर पाया।

लोगों के सामने मुसीबतों का पहाड़ है। यहां न तो रसोई गैस पहुंच पा रही है और न ही केरोसिन ही बचा है। पेट्रोल और डीजल भी खत्म हो चुका है। पेट्रोल यदि है तो सिर्फ वीआईपी कोटे के लिए और कालाबाजारी के लिए। लोग 180 रुपये लीटर तक पेट्रोल खरीद रहे हैं।

बाजार में सामान खत्म
बाजार में चावल, आटा, दालें और चीनी नदारद है। अब सब्जियों की दुकानें भी खाली हो गई हैं।। एक दो दुकानों में कुछ सब्जियां बची भी है तो उनके दाम आसमान छू रहे हैं। प्याज 120, टमाटर 100 और बैगन 60 रुपये किलो बिक रहा है। लोग अब बचीखुची स्थानीय सब्जियों पर आश्रित हो गए हैं। आलू, राई, जंगली फर, काफर आदि स्थानीय सब्जियों के सहारे दिन गुजार रहे हैं।

21 दिन के बाद केएमवीएन के एमडी दीपक रावत को अब याद आ रही है कि रसोई गैस सिलेंडरों को छोटी गाड़ियों के बाद ढुलान के जरिए धारचूला तक पहुंचाया जाएगा। इससे पहले यह सब क्यों नहीं सोचा गया।

पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष अशोक नबियाल और बीडीसी सदस्य हरीश गुंज्याल का कहना है कि सरकारी अमला लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रहा है। और शहर में ही लोगों के सामने दिक्कतें बढ़ गई है।

हेलीकॉप्टर का विकल्प क्यों नहीं?
लोग पूछ रहे हैं कि रोड बंद होने के बाद आखिर क्यों जरूरी सामग्री को धारचूला तक पहुंचाने के लिए कोई रोडमैप नहीं बनाया गया? एडवोकेट राजेंद्र कुटियाल कहते हैं कि जब हेलीकॉप्टर के जरिए निर्माण सामग्री भी भेजी जाती है, तो रसोई गैस सिलेंडर और अन्य जरूरी सामग्री को इस माध्यम से क्यों उपलब्ध नहीं कराए जा रहे।

उधर, आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्या ने कहा कि अगर जरूरी हुआ, तो मौसम ठीक होने पर हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाएगा।

नौ दिन से डंप पड़ा है 40 क्विंटल राशन
प्रशासनिक ढिलाई और बिगड़े मौसम ने आपदाग्रस्त इलाकों में राहत कार्य पर असर डाला है। बचाव और राहत कार्यों को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। मुनस्यारी हेलीपैड में मल्ला जोहार भेजने के लिए यहां रखा गया 40 क्विंटल राशन 28 जून से डंप पड़ा है।

भारी बारिश की वजह से मुनस्यारी को मल्ला जोहार से जोड़ने वाले पुल और पैदल रास्ते क्षतिग्रस्त हो गए थे। इस वजह से इन इलाकों में खाद्यान्न का जबर्दस्त संकट पैदा हो गया है।

प्रशासन ने इन इलाकों को रसद सामग्री पहुंचाने के लिए जरूरी चीजें मुनस्यारी हेलीपैड में जमा तो कर दी है। पर अब इन्हें बंटवाना चुनौती बन गया है। यहां करीब 40 क्विंटल खाद्यान्न सामग्री एकत्र हो गई है।

क्‍या कहतें हैं अ‌धिकारी
मुख्य विकास अधिकारी डा.राघव लंगर का कहना है कि मौसम खराब होने से हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पा रहे हैं। अब मजदूरों के जरिए पिल्थी गाड़, रालम और बुर्फू को राशन भेज दिया गया है। सीडीओ ने बताया कि प्रशासन को अभी तक आपदा से प्रभावित हुए लोगों की सही जानकारी नहीं मिल सकी है। इसी को ध्यान में रखते राजस्व विभाग की टीम भी मल्ला जोहार क्षेत्र को रवाना कर दी गई है।
source (amar ujala).

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखण्ड सरकार द्वारा राज्य में आयी आपदा में लापता हुए व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए मिसिंग सेल बनाई जा चुकी है। इसी कड़ी में फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से भी लापता लोगों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। लापता लोगों के परिजन, मित्र, अन्य संस्थायें एवं नागरिकों द्वारा सुरक्षित और आपदा में लापता व्यक्तियों के सम्बन्ध में जानकारी दी जा सकती है, ताकि इस आपदा दे ग्रसित लोगों को उनके परिवारों तक पहुँचाया जा सके।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फेसबुक पेज :www.facebook.com/missingcellukhand

ट्विटर पेज : www.twitter.com/missingcelluk

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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we have circulated Control Room Numbers of various District in Uttarakhand through merapahad portal. I got many call today morning and people were not able to contact in many of numbers. Govt of Uttarahkand should ensure that Control Room numbers should be serviceable at 24 x7 to help people at crisis hour..

This should be declared as National calamity by Govt of India.

http://www.merapahadforum.com/updates-on-uttarakhand/control-room-numbers-flood-in-uttarakhand-2013/msg101458/?topicseen#msg101458

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 उत्तराखंड त्रासदी के क्या हैं सबक़!    सुनीता नारायण
महानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट
  सोमवार, 8 जुलाई, 2013 को 02:33 IST तक के समाचार     उत्तराखंड height=351  उत्तराखंड में भारी बारिश और भू-स्खलन के कारण हुई जान और माल की बर्बादी का हम सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकते हैं. जो होना था वो तो हो गया लेकिन मेरा मानना है कि हम इस त्रासदी से भविष्य के लिए सीख ले सकते हैं.
क्लिक करें  कैमरा लेकर माँ की तलाश में बेबस बेटा
  संबंधित समाचार    जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सभी हिम प्रदेशों की सरकारों के दिमाग़ में इस वक़्त एक ही सवाल होना चाहिए. सवाल ये कि उत्तराखंड से क्या वो कुछ सीख सकते हैं? साथ ही उन्हें ये भी सोचना होगा कि ऐसी आपदाओं से होने वाले नुक़सान को कैसे कम किया जा सकता है.
मेरे हिसाब से इस त्रासदी के पीछे दो कारण हैं, एक तो ग्लोबल वॉर्मिंग और दूसरा विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन.
मौसम में बदलाव सिर्फ़ उत्तराखंड में ही नहीं हो रहा है बल्कि पूरे हिमालय में हो रहा है. आने वाले समय में भारी और बेमौसम वर्षा होगी. यही समय है जब हम सही क़दम उठा सकते हैं.
 एक जैसी नीति  सुनीता नारायण height=171सुनीता दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट  की अध्यक्ष हैं.
   अगर पर्यावरण के प्रति हम ये असंवेदनशील रवैया बनाए रखेंगे तो ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी. अभी तो ज़्यादातर जगहों का हाल ये है कि जैसे दिल्ली या फिर गुड़गांव में निर्माण कार्य होता है ठीक उसी तरह उत्तराखंड में भी हुआ. लोगों ने ये भी नहीं सोचा कि ये कितना घातक साबित हो सकता है.
मेरी राय में तो सभी हिम प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को साथ आना चाहिए. उन्हें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि उनके यहाँ विकास की प्रणाली कैसी हो? सभी हिम प्रदेशों को एक जैसी नीति बनानी चाहिए.
क्लिक करें  सुनिए सुनीता नारायण से खास बातचीत
इन सभी प्रदेशों को बस ये सोचना चाहिए कि विकास तो हो लेकिन विनाश न हो. पहाड़ों के जंगल भी बचे रहें और स्थानीय लोगों को भी फ़ायदा हो. और हां अगर हो सके तो पर्यटन से संबंधित भी कोई नीति बनाई जानी चाहिए
 'पर्यटन पर नियंत्रण'     <blockquote> "हिम प्रदेशों को बस ये सोचना होगा कि विकास तो हो लेकिन विनाश न हो. पहाड़ों के जंगल भी बचे रहें और स्थानीय लोगों का फायदा भी हो."
 </blockquote>   सुनीता नारायण, पर्यावरणविद
       पर्यटन पर नियंत्रण होना बहुत ही ज़रूरी है. मुझे पता है कि कई लोग इसका ये कहकर विरोध करेंगे कि आप पर्यटन को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं. कुछ लोग इस बात पर आपत्ति जताएंगे कि धार्मिक जगहों पर जाने पर कैसे कोई रोक हो सकती है? लेकिन मुझे लगता है कि हम सबको मिलकर इस बात का समर्थन करना चाहिए.
अगर सरकार वन्य अभयारण्य के लिए कायदे कानून बना सकती है तो पहाड़ों में होने वाले पर्यटन के लिए क्यों नहीं?
 (सुनीता नारायण दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट की अध्यक्ष हैं.

http://www.bbc.co.uk/h

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुट्ठीभर दाने खत्म और अब

केदार दत्त, रुद्रप्रयाग

सरकार ने तो हमें भूखों मरने के लिए ही छोड़ दिया था। लंबे इंतजार के बाद छह दिन पहले आपदा राहत के नाम पर प्रति परिवार पांच-पांच, सात-सात किलो राशन तो उपलब्ध कराई, लेकिन आधी-अधूरी और अब वह भी खत्म हो चुकी है। शुक्र है, गुप्तकाशी में राहत लेकर आ रही स्वयंसेवी संस्थाओं का, जिनके माध्यम से थोड़ी मदद मिल रही है। गांव के लोग जैसे-तैसे जोखिम उठा मीलों का सफर पैदल तय कर गुप्तकाशी पहुंच वहां से दो-वक्त का राशन ले जाने को विवश हैं। हालांकि, सरकार ने पूर्व में भरोसा दिलाया था कि दोबारा राशन भेजेंगे, लेकिन यह कहां है किसी को नहीं मालूम।

यह है कालीमठ घाटी के 75 परिवारों वाली ग्राम पंचायत जाल तल्ला के ग्रामीणों की कहानी, जो सरकार के आपदा राहत के दावों की कलई खोलने को काफी है। 16-17 जून को जलप्रलय ने जाल तल्ला की लाइफलाइन यानी गुप्तकाशी को जोड़ने वाली सड़क ध्वस्त कर डाली और पैदल रास्ते भी। यानी लोग, गांव-घर में कैद। लेकिन, सरकारी तंत्र को ग्रामीणों की परवाह कहां। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि ग्रामीणों तक दो जुलाई को सरकारी राहत तो पहुंची, मगर वह भी मुंह चिढ़ाने वाली।

जालतल्ला के प्रधान रामचंद्र सिंह के मुताबिक हेलीकॉप्टर से राहत सामग्री जालमल्ला पहुंची, जहां से जालतल्ला के लोग अपने हिस्से का राशन लाए। इस राहत के नाम पर ग्रामीणों को एक-एक कंबल और पांच-पांच, सात-सात किलो चावल, आटा, आधा किलो दाल, ढाई सौ ग्राम चीनी ही मिल पाई। श्री सिंह सवाल करते हैं-आप ही बताइये इतनी कम राशन में क्या किसी का गुजारा हो सकता है। हालांकि, तब कहा गया था कि जल्द ही राशन की दूसरी खेप पहुंच जाएगी, जो अभी तक नहीं आई है।

वह कहते हैं कि यदि सरकार के ही भरोसे रहते तो भूखों मरने की नौबत आ जाती। वह तो शुक्र है कि गुप्तकाशी में तमाम संस्थाएं प्रभावितों के लिए राशन लेकर पहुंच रही हैं, जिनसे मदद मिल रही है। गांव के लोग कई किमी की दूरी पैदल तय कर गुप्तकाशी से इन संस्थाओं के माध्यम से दो वक्त का राशन सिर पर ढोकर जैसे-तैसे ले जा रहे हैं। यदि ये संस्थाएं नहीं होती तो..। सरकार ने तो हमें अपने हाल पर ही छोड़ दिया था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इनका कौन भगवान ?
 
 अब कोइ क्यों नहीं आता भगवान के द्वार ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेतीabout an hour ago
आपदा में लोग बहे, मवेशी बहे जिनकी चीखे सभी को सुनाई दी ! जिनके अपने गए या माल का नुक्सान हुआ उनके घर मातम आज भी पसरा है !
 
 लेकिन इस आपदा पर बहुतों ने जश्न भी मनाया जिनके घोटाले इस आपदा में बहे ? अब खोदो कहाँ से निकालोगे इनकी कमियां

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उत्तराखंड: ट्रकों में सड़ रही है राहत सामग्री, कोई नहीं है सुध लेने वाला उत्तराखंड के राहत अभियान में सरकारी लापरवाही भी सामने आ रही है. आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लिए दूर-दराज से आई रसद गोदामों में बंद पड़ी हैं. 12 तारीख को देहरादून से रसद सामग्री लेकर ट्रक जोशीमठ पहुंचे पर किसी ने इन ट्रकों की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा. बीते सोमवार को जोशीमठ पहुंचे ट्रक ड्राइवरों ने बताया कि सुबह दस बजे से उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. राहत सामग्री खुले ट्रकों में पूरी रात भीगती रही.
राहत सामग्री से पानी तक टपक रहा है. कुछ रसद सड़कों पर बिखरी भी दिखाई दी. वहीं प्रसासन का कहना है कि एक्सपायर होने की वजह से राहत के सामान को नष्ट किया गया है.
एक ट्रक ड्राइवर ने बताया, 'हमने उनसे कहा कि रस्सी और तिरपाल दे दो. पर जवाब मिला कि माल तुम्हारा नहीं, हमारा भीगेगा. तुमने सिर्फ माल पहुंचाया है, हम यहां भूखे-प्यासे रहकर खतरों के बीच राहत काम में लगे हुए हैं.'
नायब तहसील दार जगदीश रावत ने बताया कि यह सामग्री पांडुकेश्वर, लामबगड़, गोविंदघाट, खीरों और बेनाकुली में बांटी जानी है. अभी सामान यहां इकट्ठा किया जा रहा है. सड़क मार्ग खुलने पर इसे रवाना कर दिया जाएगा. ये रसद देहरादून आपदा सेंटर से आई है. एक्सपायर और भीग कर खराब हो चुके सामान को हम नष्ट कर रहे हैं.


और भी... http://aajtak.intoday.in


 

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