Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

Can UKD Perform Better? - क्या यु0 के0 डी0 उत्तराखंड मे बेहतर विकास कर सकती है?

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

दोस्तों,

जैसा की आपको ज्ञात है उत्तराखंड राज्य को बनाने में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) का बहुत बड़ा रोल रहा है ! उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़े हुए बहुत से कार्यकर्ताओं ने राज्य के विकास माग को पूरा करने के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दी थी ! अभी (UKD) ही मातृ क्षेत्रीय पार्टी है उत्तराखंड में !

लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद इस पार्टी को सरकार बनाने के बहुमत नही मिला ! अब तक के आठ सालो में उत्तराखंड में कांग्रेस एव भारतीय जनता पार्टी दोनों अपनी -२ सरकारे चला चुकी है लेकिन उत्तराखंड के विकास वही का वही है !

क्या UKD उत्तराखंड में यदि मौका मिले तो अच्छा विकास कर सकती है ?

आईये इस विषय पर चर्चा करे !

एस एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


 I believe regional parties can always perform better in any state. Like in Uttarkhand, people have seen the govt of both BJP and Congress but they are yet to get desired level of development there.

UKD can definitely perform better there. Unfortunately, the party has not got a chance as yet. Since UKD has a lot of emotional issues are also connected and this is the party which has played a great role in formation of the state. The dream state of Uttarakhand martyr is yet to come.

The govt of national parties is any state basically commanded from their HQ where as the regional party has good knowledge even the minor issues.

UK’s people have to see the Govt of UK in coming time.   

पंकज सिंह महर:
शायद हां,
          शायद शब्द इसलिये जोडना पड़ा, क्योंकि उत्तराखण्ड बनने के बाद जैसा हमने देखा है कि विधायकगण राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिये हमेशा आपसी खींचतान में ही रहते हैं। कहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल भी सत्ता में आने पर इसी का शिकार न बन जाये।
       जहां तक उक्रांद के सरकार बनने पर प्रदेश का विकास होने की बात है तो इससे मैं पूर्णतः सहमत हूं कि १००% विकास होगा। कारण यह है कि इनका हाईकमान प्रादेशिक हित की ही बात करेगा, किसी और राज्य में चुनाव में अपनी सीटें जिताने के लिये यह बिजली-पानी के लिये कोई समझौता नहीं करेगा। इस पार्टी का भविष्य इसी प्रदेश तक ही सीमित होगा, इनकी रीति-नीति, विचार आदि सभी उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होंगी। इनके नेताओं का राजनैतिक भविष्य इसी जनता पर आधारित होगा।
        मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जैसे बड़े और राष्ट्रीय दल ही विकास और राज कर सकते हैं, उसी प्रकार राज्य का विकास क्षेत्रीय दल ही कर सकता है। क्योंकि क्षेत्रीयता में ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, हाईकमान वाली पार्टियां जिनका रिमोट कंट्रोल दिल्ली और कई अन्य धार्मिक संगठनों के मुख्यालय पर होता है और उन्हीं के इशारे पर काम करती हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों के सामने ऎसी कोई बाध्यता नहीं होती। जैसे आपने अभी हाल में ही देखा होगा कि परिसीमन से हमारी काफी सीटें पहाड़ से कम हो गई हैं, स्थानीय नेता उसका विरोध करना चाहते थे, लेकिन राष्ट्रीय दलों का नेशनल और अन्य स्टेट लेबल पर परिसीमन कराने का स्टैंड था, तो वे विरोध नहीं कर पाये। लेकिन उक्रांद के साथ ऎसा नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

This is in hand of people of Uttarakhand in time to come.



--- Quote from: पंकज सिंह महर on November 12, 2008, 11:02:50 AM ---शायद हां,
          शायद शब्द इसलिये जोडना पड़ा, क्योंकि उत्तराखण्ड बनने के बाद जैसा हमने देखा है कि विधायकगण राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिये हमेशा आपसी खींचतान में ही रहते हैं। कहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल भी सत्ता में आने पर इसी का शिकार न बन जाये।
       जहां तक उक्रांद के सरकार बनने पर प्रदेश का विकास होने की बात है तो इससे मैं पूर्णतः सहमत हूं कि १००% विकास होगा। कारण यह है कि इनका हाईकमान प्रादेशिक हित की ही बात करेगा, किसी और राज्य में चुनाव में अपनी सीटें जिताने के लिये यह बिजली-पानी के लिये कोई समझौता नहीं करेगा। इस पार्टी का भविष्य इसी प्रदेश तक ही सीमित होगा, इनकी रीति-नीति, विचार आदि सभी उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होंगी। इनके नेताओं का राजनैतिक भविष्य इसी जनता पर आधारित होगा।
        मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जैसे बड़े और राष्ट्रीय दल ही विकास और राज कर सकते हैं, उसी प्रकार राज्य का विकास क्षेत्रीय दल ही कर सकता है। क्योंकि क्षेत्रीयता में ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, हाईकमान वाली पार्टियां जिनका रिमोट कंट्रोल दिल्ली और कई अन्य धार्मिक संगठनों के मुख्यालय पर होता है और उन्हीं के इशारे पर काम करती हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों के सामने ऎसी कोई बाध्यता नहीं होती। जैसे आपने अभी हाल में ही देखा होगा कि परिसीमन से हमारी काफी सीटें पहाड़ से कम हो गई हैं, स्थानीय नेता उसका विरोध करना चाहते थे, लेकिन राष्ट्रीय दलों का नेशनल और अन्य स्टेट लेबल पर परिसीमन कराने का स्टैंड था, तो वे विरोध नहीं कर पाये। लेकिन उक्रांद के साथ ऎसा नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होगा।

--- End quote ---

खीमसिंह रावत:
नही
क्योंकि करनी और कथनी में अन्तर होता है / उत्तराखंड की मांग यु के डी ने की और उसी की बदौलत
राज्य बना है/ क्या कारण है कि उत्तराखंड में ही यु के डी सरकार बनाने लायक सीट भी नही जीत पाती /
यु के डी जनाधार बनाने में असफल रही है/ हमारे सामने कितने उदाहरण है/ असम गण परिसद, तेलगु देशम, क्षेत्रीय पार्टियाँ शासन में आई / दुबारा जनता ने ठुकरा दिया /

 कांग्रेस व बी जे पी के लोग भी तो pahadi ही है यु  के डी के आने से ये jarur हो सकता है कि विकास कि गति थोडी ठीक हो जाय,

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