यह उत्तराखंड का 'संयोग' कहा जाय या कोई 'चाल'! उत्तराखंड के 7 में से 6 मुख्यमंत्री ब्रह्मण वर्ग से हैं। यदि इसमें कोई चाल है तो यह हमारा दुर्भाग्य है। लेकिन यहाँ पर निम्नांकित बात भी जातिवाद को मजबूत कर रही है।
2007 का विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने श्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में लड़ा और पार्टी की जीत हुई लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आयी तो श्री कोश्यारी को नजरंदाज कर दिया गया। केन्द्रीय नेतृत्व (श्री आडवाणी ) की मंशा से श्री खंडूरी जी को राज्य की कमान सौंपी गयी। उस वक्त लोग चर्चा करते तो वे कहते थे - "अरे यार सब बामणी चाल छू" अर्थात सब ब्रह्मणवाद वाली चाल है और सब लोग श्री आडवाणी को इसका जिम्मेदार मान रहे थे और 2011 के विधानसभा के चुनाव में सबक सिखाने की सोच रहे थे।
2011 के विधानसभा चुनाव में भी यही देखने को आया। उत्तराखंड कांग्रेस के कद्दावर नेता श्री हरीश रावत को भी दरकिनार कर दिया गया और श्री बहुगुणा जी मुख्यमंत्री के रूप में टपक पड़े।
इस प्रकार के निर्णय बार-बार सामने आये तो यह सवाल उठाना स्वाभाविक है। भगवान जाने।