मेरा ये मानना है कि टेलीविजन पर विज्ञापन देने से कुछ भी भला नहीं होने वाला है क्योंकि आज भी भारत के उन राज्यों में बिजली, पानी, सड़क और संचार का अभाव है जहा पर बाघ सबसे ज्यादा पाए जाते है और अमानवीय व्यवहारों की वजह से मारे भी जाते है जिसका घातक परिणाम ये है की आज बाघों को संरक्षण करने की जरुरत पड़ रही है, लोग धोनी के द्वारा दिए गए सन्देश को केवल टेलीविजन में ही देखा और सुन पाएंगे जिनके पास ये सुविधा भी नहीं होगी उन्हें कैसे पता होगा कि बाघ और धोनी ये क्या बला है........इनका आपसी सम्बन्ध क्या है धोनी अगर कोई सन्देश टेलीविजन के माध्यम से दे रहा है तो वह किसके लिए भविष्य में उससे हमें क्या फायदा होगा ? आम इन्सान यही सब सोचता है ........इससे अच्छा तो ये होता कि जितना पैसा एक विज्ञापन फिल्म पर खर्च किया जा रहा है उतना पैसा अगर किसी स्वयं सेवी संस्था जैसे- क्रियेटिव उत्तराखंड, जैसी संस्था के दानकोश में डाल दिया जाता जो पहाड़ कि हर उस बिरासत को सहेजने के लिए तत्पर जी तोड़, निस्वार्थ भाव से रात और दिन एक कर मेहनत कर रही है, ये संस्था द्रुतगति से समाज में खासकर उन स्थानों पर जहा आज तक धोनी जैसा कोई व्यक्ति भी किसी भी कार्य के लिए जाना पसंद नहीं करेगा, लोगो के दिलों में विश्वाश कायम करने में सफल हुयी है, ये संस्था अपने कार्य जनजागरण के माध्यम से लोगो में इतना विश्वाश और ऐसी सोच पैदा करने में समर्थ होगी कि लोग निस्वार्थ भाव से इस सेवा कार्य यानि बाघों के संरक्षण में किये जाने वाले कार्य को अपनी ओर से अपना सभी तरह का सहयोग देकर मंजिल तक पंहुचा देंगे ये मेरा विश्वाश है.