गोबर गैस: नो लाइन, नो टेंशन
===============================
यह कहानी सिर्फ टीकाराम की नहीं, बल्कि उन जैसे कई ऐसे पशुपालकों की है, जिन्हें रसोई गैस सिलेंडरों की बढ़ती हुई कीमतों से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। यही नहीं उन्हें गैस के सिलेंडर के लिए न तो लाइन लगानी पड़ती है और न ही सिलेंडर में गैस खत्म होने की समस्या से जूझना पड़ता है।
फर्क पड़े भी तो क्यों, आखिर उनके घर में गैस चूल्हा गोबर गैस प्लांट से जो जलता है। आपको शायद यकीं न हो, लेकिन यह सच है कि रसोई गैस सिलेंडरों की लगातार बढ़ती कीमतों ने पर्वतीय क्षेत्र में गोबर गैस प्लांटों में नई जान डाल दी है। एक समय था जब पर्वतीय क्षेत्रों में गोबर गैस प्लांट को लेकर ग्रामीणों में काफी क्रेज था, लेकिन जैसे-जैसे रसोई गैस सिलेंडर पहाड़ों में चढ़ते गए, गोबर गैस प्लांट बंद होते चले गए।
गोबर गैस प्लांट बंद होने के साथ ही ग्रामीण पशुपालन से भी विमुख होते चले गए व एक स्थिति ऐसी भी आ गई कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग दूध-दही खरीदने लगे। लेकिन, रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के चलते अब गांव की पगडंडियों पर मवेशियों की तादाद बढ़ने लगी है। ग्रामीण रसोई गैस सिलेंडरों की निर्भरता छोड़ अपने गोबर गैस प्लांटों को पुनर्जीवित करने लगे हैं।