अरे वाह आजकल तो यहां बड़े-बड़े विद्वान और तथ्यपरक बात रखने वालों का भी पदार्पण हो रहा है, अच्छी बात है कि अपनी बात आंकड़ों के आधार पर रखी जा रही है। यह तो आंकड़े थे उत्तराखण्ड सरकार के जहां पर हमेशा इन आंकड़ों का उपयोग जादूगरी और बाजीगरी दिखाने के लिये किया जाता है, जिसमें जो दिखता है वह सच नहीं होता लेकिन जादू देखने वालों का मनोरंजन होता है और जादू दिखाने वाले का पेट भरने का जुगाड़ भी हो जाता है। दरअसल हमारे उत्तराखण्ड को आज तक मंगते मुख्यमंत्री ही मिले हैं, जिनका काम केन्द्र से पैसा मांगना रहा है और ये जब-तब केन्द्र से मांगते रहते हैं। उत्तराखण्ड में यह भी चलन हो गया है कि जो जितना मांग कर लाया वह उतना ही सफल मुख्यमंत्री। पिछले दिनों भी कुछ ऐसा ही हुआ वर्तमान सी०एम सैप भी केन्द्र से भीख मांगकर लाये और उनका ऐसा स्वागत जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर हुआ जैसे कि पानीपत जी जंग जीतकर आये हों, दूसरे दिन सारे अखबार उनकी इस सफलता से पटे पड़े थे। अब तो सी०एम० सैप कहने लगे हैं कि चूंकि गंगा उत्तराखण्ड से निकलती है इसलिये गंगासागर तक होने वाले खनन और चुगान की रायल्टी उत्तराखण्ड को मिलनी चाहिये। लेकिन इन मुख्यमंत्रियों को हर साल टनों के हिसाब से सड़ जाने वाला माल्टा, नारंगी, सेब, आडू, खुबानी, नहीं दिखता, बुरांश नहीं दिखता, चीड़ के पेड़ और खड़िया का अनियोजित दोहन नहीं दिखता है। अपने संसाधन कैसे विकसित हों, इस बात पर न तो कोई विचार करता है, न चिन्तन, मेरी पीड़ा तो यह है कि आखित हम कब तक मांगकर खाते रहेंगे, अपने पैरों पर हम कब आत्मनिर्भर होंगे, अब तो जल,जंगल और जमीन जो तीन चीजें इस पहाड़ की जान थे, उनको तो सरकारों ने पूंजीपतियों के हवाले कर दिया है।
खैर बात आंकड़ों की थी, मैं मुद्दे से हट गया हां भाई जगमोहन आजाद ने जिस विकास दर की बात ने कही है, हमें भी इस विकास दर पर गर्व है, लेकिन छद्म गर्व है, क्योंकि मैं असलियत जानता हूं। दरअसल इस विकास दर में देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जैसे औद्योगिक क्षेत्र वाले जिले भी सम्मिलित हैं। जो पूरे प्रदेश के आंकडो़ को ओवर कवर कर देते हैं। यदि मेरी बात गलत है तो मैं आजाद साहब से अनुरोध करुंगा कि वे प्रत्येक जिले की विकास दर का भी उल्लेख करें।
कुछ आंकड़े मैं भी देना चाहूंगा, अभी जनगणना के नये आंकड़े जारी किये गये हैं, जिसमें यह भी बताया गया कि साक्षरता के मामले में उत्तराखण्ड २०११ में देश में १७ वें स्थान पर है। यह आंकड़ा बहुत गम्भीर है और चौंकाने वाला है, क्योंकि २००१ में हमारा प्रदेश १४ वें स्थान पर था, वैसे यह आंकड़ा ऐसा है, जो किसी भी प्रदेश के भविष्य को तय करता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि दो सरकारों के निरन्तर विकास के दावे और विज्ञापनों के बाद हम ्विकास के मूल तत्व में ही पिछड़ रहे हैं।
अब बात करते हैं जनसंख्या वृद्धि की, जिसमें २०११ में पौड़ी में -१-५१ और अल्मोड़ा में-१.७३ की वॄद्धि दर है, जब कि हरिद्वार में २०४ व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० इन दस सालों में बढ़े हैं, ऐसे ही इन दस सालों में उधम सिंह नगर में १६२, देहरादून में १३५ और नैनीताल में ४६ लोगों की वृद्धि हुई है। अब यही दर हम पहाड़ी जिलों में देखें ति उत्तरकाशी में एक वर्ग कि०मी० में ४०, पिथौरागढ़ में १०० और चमोली में १०३ लोग रह रहे हैं।जैसा मेरे विद्वान मित्र आजाद साहब ने जिक्र किया है कि निरन्तर विकास और विकास दर बढ़ रही है और वह भी राष्ट्रीय प्रतिशत से ज्यादा तो पहाड़ी जिले क्यों पिछड़ और उजड़ रहे हैं?
आशा है जगमोहन भाई मेरे इन प्रश्नों का भी उत्तर देंगे।