Author Topic: Election 2012 in Uttarakhand Vs Development-उत्तराखंड में चुनाव २०११ बनाम विकास  (Read 42655 times)

हुक्का बू

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 165
  • Karma: +9/-0
अरे वाह आजकल तो यहां बड़े-बड़े विद्वान और तथ्यपरक बात रखने वालों का भी पदार्पण हो रहा है, अच्छी बात है कि अपनी बात आंकड़ों के आधार पर रखी जा रही है। यह तो आंकड़े थे उत्तराखण्ड सरकार के जहां पर हमेशा इन आंकड़ों का उपयोग जादूगरी और बाजीगरी दिखाने के लिये किया जाता है, जिसमें जो दिखता है वह सच नहीं होता लेकिन जादू देखने वालों का मनोरंजन होता है और जादू दिखाने वाले का पेट भरने का जुगाड़ भी हो जाता है। दरअसल हमारे उत्तराखण्ड को आज तक मंगते मुख्यमंत्री ही मिले हैं, जिनका काम केन्द्र से पैसा मांगना रहा है और ये जब-तब केन्द्र से मांगते रहते हैं। उत्तराखण्ड में यह भी चलन हो गया है कि जो जितना मांग कर लाया वह उतना ही सफल मुख्यमंत्री। पिछले दिनों भी कुछ ऐसा ही हुआ वर्तमान सी०एम सैप भी केन्द्र से भीख मांगकर लाये और उनका ऐसा स्वागत जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर हुआ जैसे कि पानीपत जी जंग जीतकर आये हों, दूसरे दिन सारे अखबार उनकी इस सफलता से पटे पड़े थे। अब तो सी०एम० सैप कहने लगे हैं कि चूंकि गंगा उत्तराखण्ड से निकलती है इसलिये गंगासागर तक होने वाले खनन और चुगान की रायल्टी उत्तराखण्ड को मिलनी चाहिये। लेकिन इन मुख्यमंत्रियों को हर साल टनों के हिसाब से सड़ जाने वाला माल्टा, नारंगी, सेब, आडू, खुबानी, नहीं दिखता, बुरांश नहीं दिखता, चीड़ के पेड़ और खड़िया का अनियोजित दोहन नहीं दिखता है। अपने संसाधन कैसे विकसित हों, इस बात पर न तो कोई विचार करता है, न चिन्तन, मेरी पीड़ा तो यह है कि आखित हम कब तक मांगकर खाते रहेंगे, अपने पैरों पर हम कब आत्मनिर्भर होंगे, अब तो जल,जंगल और जमीन जो तीन चीजें इस पहाड़ की जान थे, उनको तो सरकारों ने पूंजीपतियों के हवाले कर दिया है।

खैर बात आंकड़ों की थी, मैं मुद्दे से हट गया  हां भाई जगमोहन आजाद ने जिस विकास दर की बात ने कही है, हमें भी इस विकास दर पर गर्व है, लेकिन छद्म गर्व है, क्योंकि मैं असलियत जानता हूं। दरअसल इस विकास दर में देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जैसे औद्योगिक क्षेत्र वाले जिले भी सम्मिलित हैं। जो पूरे प्रदेश के आंकडो़ को ओवर कवर कर देते हैं। यदि मेरी बात गलत है तो मैं आजाद साहब से अनुरोध करुंगा कि वे प्रत्येक जिले की विकास दर का भी उल्लेख करें।

कुछ आंकड़े मैं भी देना चाहूंगा, अभी जनगणना के नये आंकड़े जारी किये गये हैं, जिसमें यह भी बताया गया कि साक्षरता के मामले में उत्तराखण्ड २०११ में देश में १७ वें स्थान पर है। यह आंकड़ा बहुत गम्भीर है और चौंकाने वाला है, क्योंकि २००१ में हमारा प्रदेश १४ वें स्थान पर था, वैसे यह आंकड़ा ऐसा है, जो किसी भी प्रदेश के भविष्य को तय करता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि दो सरकारों के निरन्तर विकास के दावे और विज्ञापनों के बाद हम ्विकास के मूल तत्व में ही पिछड़ रहे हैं।

अब बात करते हैं जनसंख्या वृद्धि की, जिसमें २०११ में पौड़ी में -१-५१ और अल्मोड़ा में-१.७३ की वॄद्धि दर है, जब कि हरिद्वार में २०४ व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० इन दस सालों में बढ़े हैं, ऐसे ही इन दस सालों में उधम सिंह नगर में १६२, देहरादून में १३५ और नैनीताल में ४६ लोगों की वृद्धि हुई है।  अब यही दर हम पहाड़ी जिलों में देखें ति उत्तरकाशी में एक वर्ग कि०मी० में ४०, पिथौरागढ़ में १०० और चमोली में १०३ लोग रह रहे हैं।जैसा मेरे विद्वान मित्र आजाद साहब ने जिक्र किया है कि निरन्तर विकास और विकास दर बढ़ रही है और वह भी राष्ट्रीय प्रतिशत से ज्यादा तो पहाड़ी जिले क्यों पिछड़ और उजड़ रहे हैं?

आशा है जगमोहन भाई मेरे इन प्रश्नों का भी उत्तर देंगे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

यह बात सही है, उत्तराखंड अगर आज सरकार आंकड़ो के आधार पर दावे करती है तो वो सिर्फ मैदानी इलाको पर ही लागू होते है !

जैसे की मैंने पहले भी लिखा है उत्तराखंड पर्थक राज्य बनाने के पीछे केवल एक ही उद्देश्य था ही पहाड़ी जिलो का जल्दी विकास हो !

मेरे हिसाब से कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूर्ण तरह से विफल रही है!

राज नेताओ को पार्टी एव व्यक्ति विशेष की राजनीती से उठ कर उत्तराखंड राज्य का विकास करना चाहिए ना की राजनीतिक वोट बटोरना !
---------------------

 

हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
राजनैतिक परिवर्तन तो ठीक है हो महाराज, एक से एक मुख्यमंत्री, मंत्री, दर्जा प्राप्त मंत्री आये और गये, लेकिन ये बिकाश का परिवर्तन कौन जी जगह हुआ है ये जरा बता देना हो.  मुझे तो अपना गांव और अगल बगल के बीस, पच्चीस, पचास गांव वैसे ही दिखाई दे रहे हैं जैसे 20-25 साल पहले थे.  बिमार के इलाज का तब भी कोई इंतजाम था अब भी नहीं है, बिजली तब भी केवल दिन में आती थी आज भी वही हाल ठैरा (दिन में बिजली की पहाड में कोई जरूरत ठैरी हो आम पहाडी को, खाली चक्की चलती है वो भी ज्यादेतर डीजल वाली हैं) हां एक बहुत बडा बदलाव जरूर हुआ है बताऊं ?   इस्कूल बहुत खुल गये हैं जहां देखो पांच तक के इस्कूल लेकिन मास्टर कही एक है तो कहीं एक भी नहीं.  जो इस्कूल पहले से चल रहे हैं मिडिल/इन्टर कालेज उनकी दशा सुधारते तो ठीक था वो तो वैसे ही पडे है और नये इस्कूल खोलो पढने वाले बच्चे कहां हैं?
और ये बिकाश दर, आर्थिक दर क्या हुआ हो महाराज.  मेरे को दो टैम का राशन चाहिये, मुफत में नहीं मेहनत करके.  पानी नहीं है.  पीने के पानी का ही अकाल हो गया है, खेत कहां से कुल्याऊंगा कहां से लगऊंगा रोपाई, कहां से खाऊंगा भात?  कुछ किया इन सरकारों ने.  जो किया होगा देहरादून में किया होगा अरे मैं तो कहता हूं इन को अपने उत्तराखण्ड के  पहाड के बारे में पता भी है कुछ ... बात जो करते हैं. 
और ये ‘आजाद’ साब क्या निशंक के क्या गुण गा रहे हैं हो.  आप कलम की जगह हल चला के दिखाओ मेरी तरह जान जाओगे कितने बिसी सैकडा होते हैं करके.  कोई कुछ नहीं करता मेरे जैसे लोगों के लिये.  बिग्यापन सिग्यापन की बात कर रहे हो किसने कितना लिया, किसने किसको कितना दिया छापो अखबारों के पन्ने रंग बिरंगे कोई पढे न पढे अपनी बला से, अपनी फोटू छपनी चाहिये अखबार चाहे किसी भाषा का हो.  ज्यादा रीस मत दिलाओ हो, आओगे फिर भोट मागने तब बताऊगा.   



क्या ये उत्तराखंड के विकास के मायने है?
[/u]

आज उत्तराखंड हर तरफ विकास की बात की जा रही है। निश्चित तौर पर इस समय उत्तराखंड जिस विकास के धरातल पर चल
रहा है। इस वजह से दुनिया में भी इस नवोदित राज्य को नये क्षितिज पर देखा जा रहा है। दस वर्षों की अपनी छोटी से यात्रा में इस राज्य ने कई परिवर्तन देख लिए है। फिर चाहे वह राजनैतिक स्तर पर या फिर किसी दूसरे स्तर पर,हमने परिवर्तन के तौर पर एक नयी सीमा खुद के लिए तय की है।
 
लेकिन इधर की बात करें तो ऐसा दिखायी नहीं देता है। आज स्थितियों इतर है। जो व्यक्ति विकास की बात कर रहा है। जो व्यक्ति विकास की योजनाओं पर काम कर रहा हैं। उस व्यक्ति को एक तीसरा व्यक्ति घेरने के काम में लगा है। इस परिपेक्ष में यदि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की बात की जाएं तो,उनके विरोधी और उनसे जुड़े हुए उनके ही कुछ अपने लोग इस दिशा में हर संभव प्रयास कर रहे हैं,कि निशंक की उपलब्धियों को किसी भी किमत पर सफलता के मुकाम तक नहीं पहुंचने दिया जाएं। इसके लिए हर तरह से इन दिनों उत्तराखंड में कोशिशे जारी है। यहां सवाल यह उठता हैं कि क्या ऐसे में होगा उत्ताखंड का विकास?
उत्तराखंड आज सुराज की ओर बढ़ रहा है। हमारी  राष्ट्रीय आर्थिक विकास दर 7.2./. हैं। यदि उत्तराखंड की बात की जाएं तो उत्तराखंड की आर्थिक विकास दर 9.4./. है। बी.पी.एल के तह्त गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को प्रतिमाह दो रुपए किलों गेहूं और तीन रुपए किलो चावल देने की घोषणा की गयी। ए.पी.एल के तह्त गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले परिवारों को प्रतिमाह चार रुपए किलो गेहूं तथा छैः रुपए किलो चावल दिए जाने की घोषणा की गयी और दिया भी जा रहा है। लेकिन बीजेपी के विरोधियों ने इस में अपनी टांग अड़ाई और प्रदेश भर में राशन दुकानदारों से मिलकर दुकाने बंद करा दी। डॉ.निशंक ने स्पर्श गंगा  के माध्यम से एक ऐतिहासिक एवं स्वप्निल परियोजना के तहत गंगा के अमृत स्वरुप जल की नैसर्गिकता बनाये रखने को धरातल पर युद्धस्तर पर अभियान चलाया तो लोगों ने इस पर हो-हल्ला मचाया। जिस महाकुंभ ने उत्तराखंड को पूरे विश्व में एक नयी पहचान दिलायी। हमारे कुछ हितैषियों ने उसी पर सवाल खड़े कर दिए। इसी के साथ उत्तराखंड में सरकार द्वार प्रदेश की जनता के लिए चलायी जा रही हर योजना पर सरकार में बैठे कुछ लोग और प्रदेश में कुकुरमुतों की तरह उगे पत्रकारिता के कई कुनवे हर तरह से सरकार की तमाम योजनाओं पर पानी फेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे है।
अब यहां सवाल यह उठता हैं कि प्रदेश का विकास ऐसे में कैसे होगा। डॉ.निशंक जिस तरह प्रदेश की आवाज़ को प्रदेश की जनता की आवाज़ के तौर पर रख रहे है। उस पर भी इन लोग को विश्वास नहीं है। इन्हें हर कदम में निशंक की कार्यप्रणाली पर शक है।
लेकिन मुद्दा ये हैं कि उत्तराखंड में जिन विकास योजनाओं को लेकर काम किया जा रहा है। उन्हें पूरा किए जाने के लिए क्या हम या हम में से कोई एक क्या सरकार की भूमिका के साथ खड़ा हैं। यदि हां तो इस भूमिका पर हम क्यों सवाल खड़े करते है। यदि नहीं तो हम अपने अधिकार के मायने क्या समझते है। इस पर गंभरीता से सोचा जाना चाहिए। क्योंकि यह सिर्फ प्रदेश की भूमिका नहीं बल्कि डॉ.निशंक की भूमिका भी तय करता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि,अभी तक प्रदेश सरकार के खिलाफ और खुद निशंक के खिलाफ जितने भी आलोचनाओं के परिवेश बनाए गये है। उनमें हर  स्तर पर विपक्ष और पक्ष के कुछ चेहरों को मात खानी पड़ी है। सरकार के खिलाफ जितने भी मामले अभी तक कोर्ट में गए है। उनमें अधिकांश मामलों में भी सरकार की जीत हुई है। इससे  साफ हो जाता हैं कि खोट सरकार की नियत पर नहीं,बल्कि उन लोगों की नियत पर हैं। जो सरकार से अपने फायदे के लिए करोड़ो रुपये लूटते हैं,और जब उन्हें फ्यादा नहीं मिलता तब वह सरकार के खिलाफ खड़े हो जाते है।
उत्तराखंड में जनता के लिए चालयी जा रही तमाम योजनाओं में मीडिया से लेकर छोटी-मोटी पत्र-पत्रिकाओं ने अपने स्तर पर जितना हो सकता हैं,उताना फ्यादा सरकरा से उठाया और विज्ञापन हो या अन्य कोई माध्यम हर तरह से खुद के लिए नयी ज़मीन तय की,लेकिन जैसे ही। इनके खजाने खाली होते हैं,वैसे यह कुछ तत्व फिर से सरकार के खिलाफ खड़े हो जाते है। कौन नहीं जानता हैं कि कुंभ,सैफ गैम और सरकार द्वार उत्तराखंड में चलायी जा रही तमाम योजनाओं के माध्यम से मीडिया और पत्रकारिता जगत के एक बड़े कुनवे ने खुद के लिए नयी विरासत तय की और अपनी पीढ़ियों तक के लिए नये रास्ते भी बनाये।
क्या उस समय इन्हें सरकार की योजनाओं में कोई खामी नज़र नहीं आयी थी? क्या उस समय इन्हें घोटालों की बू नहीं आ रही थी? क्या उस समय इनमें सरकार के खिलाफ लेखने की हिम्मत नहीं थी? लेकिन ऐसा नहीं हैं,उसे समय इन्हें सरकार की भूमिका बहुत बेहतर नज़र आ रही थी. उस वक्त इन्हें उत्तराखंड का विकास साफ नज़र आ रहा था। हमें सरकार एक नये रुप में दिख रही थी।
लेकिन आज स्थिति ऐसी नहीं है। आज इन लोगों को डॉ.निशंक सबसे भष्ट्र नज़र आ रहे है। आज इन्हें वह व्यक्ति घोटालों का जला बुनता नज़र आ रहा हैं। जिसने उत्तराखंड के विकास में एक नयी भूमिका निभायी। जिसने उत्तराखंड को रोजगार,विकास और विकास के मायने समझाने के लिए दिन-रात एक कर दिए।
मैंने स्वयं उन को सरकार की योजनाओं के लिए खुद के विकास को तय करते हुए,दिन-रात देहरादून सचिवालय में सरकारी नुमाइंदों के दफ्तर में घंटो-घंटो बैठे देखा है। अपने हित साधने के लिए सरकार के तलवे चाटते देखा हैं,और जैसे ही इनका काम निकला वैसे ही सचिवालय के बहार सरकार को गाली देते मैने इन्हें कई बार देखा है।
इसमें कोई दो राय नहीं की आज के समय में राजनीति में किसी का दामन साफ नहीं है। लेकिन जहां तक हमारे खुद के मायने हैं,तो हमें भी अपने दामन पर एक बार अवश्य झांकना चाहिए। हमें खुद पर सवाल खड़े करने चाहिए कि हमारी अंतिम भूमिका क्या हैं,सरकारी तौर पर और विकास के तौर पर भी।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की डॉ.निशंक खुद हमारी ज़मीन से जुडे़ है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि डॉ.निशंक के पास जब भी उनकी ज़मीन से जुड़ा कोई भी व्यक्ति गया है। उन्होंने कभी उसे निराश नहीं किया है। आम जनता की बात करें तो,इसका जबाब हम तय नहीं कर सकते है। क्योंकि हम में से अधिकांश लोग,मैदान में रहकर पहाड़ के विकास के बारे में बातें करते है। जबकि हम खुद उन पर्यटकों में शामिल हैं। जो कभी-कभार पहाड़ पिकनिक मनाने जाते है। हम मैदान में रहते हुए विकास की बात करते,क्या यह हमारे विकास के मायने हैं। इस पर आज गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।
हो सकता हैं,हम आम आदमी की ओर देखते हुए। पहाड़ के मायने तलाशते हों। लेकिन किसी की आलोचना करने से पहले हमें खुद के लिए आलोचना के द्वार भी खोलने होगें। तभी हम किसी पर उंगली उठा सकते है।
क्योंकि आज हम में से अधिकांश लोग उत्तराखंड के  विकास के मायने तलाश रहा हैं, और ये मायने तलाशने वाले अधिकांश वह लोग हैं,जो हमेशा सरकार के साथ खड़े रहते है। अपने फ्यादे के लिए,लेकिन जैसे ही सरकार से इनको कोई फ्यादा होता नहीं दिखायी देता। वैसे ही इन्हें सरकार में तमाम खामिया नज़र आने लगती है।  लेकिन एक दिन किसी भी तरह अगर इन सरकार के खिलाफ खड़े पक्ष और विपक्ष के चेहरों के खुद के मायने तलाशें जाएं तो मैं समझता हूं कि इनकी ज़मीन खीसक जाएगी। यह खुद के लिए रास्ते तलाशने की कोशिश में भी हार जाएगें।
इसलिए कोशिश यह की जानी चाहिए की जो व्यक्ति प्रदेश के विकास में खड़ा हैं। यदि आप उसके साथ खड़े नहीं हो सकते तो,कम से कम उसे काम करने दें। क्योंकि इससे नुकसान हमारा हो रहा है,हमारी जनता का हो रहा है। हम पिछड़ रहे है। विकास हमसे दूर भाग रहा है। इसलिए विकास के साथ खडे़ हो…।
जगमोहन ‘आज़ाद’
 

ThethUttarakhandi

  • Newbie
  • *
  • Posts: 5
  • Karma: +1/-0
मेहता जी बहुत बहुत धन्यवाद मैं Face Book से यहाँ आ गया. आपकी पोस्ट पढ़ के. यहाँ तो सब बड़े बड़े  लोग है . सभी लोग सही कह रहे हैं चाहे हमारे हुक्का बू हों या हालिया भाई . पहाड़ी योद्धा भी सही कह रहे हैं. लेकिन पहाड़ी योद्धा भाई को सलाह भी दी जा रही है जुबान को लेकर. अब बात करते है हमारे पढ़े लिखे समझदार भाई आज़ाद जी की . समझदार भाई आज़ाद समझदारी की ही बात कर रहें हैं. पढ़े लिखे जो ठहरे. अब सरकार के खिलाफ बोलकर कौन बुराई मोल लेगा.  सब लोग अपनी जगह ठीक हैं हुक्का बू हो या हालिया भाई पहाड़ से हैं पहाड़ की बात जानते हैं और पहाड़ का विकास भी, पहाड़ी योद्धा भाई भी पहाड़ आते हैं तो पहाड़ देखकर जाते हैं जैसा की उन्होंने बताया. ये सब लोग पहाड़ का विकास बता रहे हैं. अब बात करते हैं हम अपने सबसे समझदार भाई आज़ाद जी की, ये ठहरे पढ़े लिखे और सहर मे कलम चलाने वाले. AC कमरे मे TV देखने वाले इन्हें तो वही दिखेगा जो निशंक दिखायेंगे 4 lane की चमचमाती रोड और आधुनिक विकास.     आज़ाद जी क्या आपने कभी सोचा है की पहाड़ की रोड जैसी टीवी मे दिखती है वैसी ही हैं, अगर वैसी ही हैं तो आपके प्यारे चहेते निशंक जी रोड से यात्रा क्यों नहीं करते,  पिथोरागढ़ जैसे सीमांत जिले मे लोग महीनो से अनसन मे बैठे हैं सिर्फ रोड सही करने के लिए, लेकिन उनकी कोई सुनने को तैयार है नहीं. ये हाल सिर्फ पिथोरागढ़ का ही नहीं पुरे उत्तराखंड का है.  हल्द्वानी अल्मोरा रोड अभी भी सही नहीं हुई है जबकि यह रोड पुरे कुमाओं को प्रभावित करती है. गढ़वाल का भी यही हाल है कही भी जाओ आपको पता चलेगा पहाड़ ने १० सालो मई कितना विकास किया है .  आज़ाद भाई अगर पहाड़ का विकास देखना है तो देहरादून का १६ करोड़ से बना बंगला मत देखो, देखो उन लोगो को जो आपदा से प्रभावित होकर तंत मे रह रहे हैं . आज़ाद भाई aap पहाड़ ghumne के लिए भी आज़ाद हैं agli bar उत्तराखंड के विकास के bare मे likhane से pahle ek bar jarur पहाड़ ghoom lo sayed tab likhne मे jyada सही lagega

jai bharat jai Uttarakhand

Jagmohan Azad

  • Newbie
  • *
  • Posts: 20
  • Karma: +2/-0
मित्रों विकास के मायने हम ज़मीन से जुड़कर अपने स्तर पर देखें तो मैं समझता हूं। यह बेहतर होगा.....।
मैं यहां आप लोगों से एक और विकास की बात करना चाहता हूं...क्योंकि उत्तराखंड में विकास के मायने पर आप लोगों मेरी बात से सहमत नहीं देखे...कुछ को क्रोध भी आया...आना भी चाहिए...कुछ लोगों ने मुझे निशंक का दलाल तक कहने में परेज नहीं किया...कहना भी चाहिए।
क्योंकि ये वक्त ऐसा हैं कि आप अगर किसी राजनेता के साथ खुले तौर पर खड़ा आता हैं तो निश्चित तौर पर पत्थर उस व्यक्ति पर भी फेंकें जाते हैं,और फेंके भी जाने चाहिए। डॉ.निशंक के पक्ष में मेरा मत विकास के मायने के माध्यम से उत्तराखंड के विकास से नहीं बल्कि....उन लोगों के विकास से था...जो लोग खुलेआम सरकार को गालियां दे रहे है...सरकार की बुराईयां कर रहे है...लेकिन पिछे के दरवाजे से यह सब लोक सरकार के साथ खड़े है...सरकार के लिए काम कर रहे है...सरकार के चमचों को हाथ जोड़ रहे है...और बहार आकर जब यह लोक विकास के मायने तलाशते है...वह भी उस सरकार से जिसके बर्तन धोकर अभी-अभी ये सब लौटे है...तो फिर यह लोक सरकार को किस तरह विकास के पैमाने से तोल सकते है....सवाल यह था...।
बहराल.....।
एक और विकास की बात आप लोगों से करना चाहता हूं...क्योंकि आप लोग मुझे इसके मायने बता सकते है। यहां यह भी कहना चाहूंगा की...निशंक को आये तो अभी कुछ ही साल हुए है....थोड़ा पिछे की बात करते है।
मैं पिछले दस सालों से उत्तराखंड के लोक कलाकारों को लेकर एक गंभीर काम कर रहा था। जो अब पूरा हो चुका हैं...और जल्द ही आपके समक्ष होगा...।
इस पुस्तक के सिलसिले में,मैं मुंबई से लेकर उत्तराखंड के दूरदराज गांवों तक घूमा...उन लोक गायकों,लोक वादकों और संस्कृतिकर्मियों से मिला...इनसे मैने बातचीत की...यह हमारी वह थाती हैं...जिन्होंने वास्तव में हमारी लोक भाषाओं और बोलियों को जीवत रखा हैं। यह वह थाती है...जिन्होंने हमारे लोक वाद्यों,हमारे लोक गीतों को जीवित रखने में अह्म भूमिका निभायी हैं,और निभा भी रहे है....।
लेकिन दुःख इस बात हैं कि आज इनके पास खाने को दो जून की रोटि नहीं है...सर ढकने को एक छत नहीं है। यह भुखे पेट हमारी लोक संस्कृति को विश्व के तमाम मंचों पर लेकर जा रहे है....और भाषा के बोली के आंदोलन करने वाले लोग,भाषा-बोली और लोक साहित्य के संरक्षण के नाम पर सरकार से करोड़ रुपये डकार चुके है.....मैने अपनी इस लोक यात्रा में अपनी आंखों से देखा है...कई लोक हितैषियों को जिन्होंने संस्कृति के संरक्षण के नाम पर कई संस्थाओं को गठन किया हुआ हैं,और वह खुद के जीवन के नये आयाम रच रहे है। लोक संस्कृति के नाम पर छोटे-छोटे बच्चों को नचा रहे है....लोक संस्कृति के नाम में अश्लीलता परोस रहे हैं...और हम सब नाच रहे चिल्ला रहे..मजा यैगी भैजी...मजा येगी...।
दूसरी तरफ उत्तराखंड की पहली लोक गायिका कबूतरी देवी,सरस्वती देवी और उत्तराखंडी फिल्मों की पहली अभिनेत्री कुसुम बिष्ट अपने जीवन को पल-पल मरते हुए देख रहे है।
मित्रों मुझे नहीं मालूम कि आपको हैरानी होगी कि नहीं लेकिन जब में कबूतरी देवी जी से मिलने उनके गांव क्वीतड़ गया था तो इनके पास सिर्फ एक वक्त खाने को था...दूसरे दिन वह क्या खाती उन्हें नहीं पता था। वह तो भला हो स्कूल के मास्टर जी और शेखर पाठक जी का जिन्होंने हमारी इस लोक धरोहर को आज तक जीवित रखा है.....पिछले दिनों कबूतरी जी बीमार हुई..कई लोग मेरा पहाड़ के माध्यम से भी आगे है...कुछ लोग नैनीताल,अल्मोड़ा से जुड़े....और सरकार ने भी सहयोग किया...यह भी सब जानते हैं कैसे किया....।
बेड़ा परंपरा की एक मात्र गायिका सरस्वती देवी भी चली गयी...गिर्दा चले गए...झूसिया दमाई चले गए....हमारी कई ऐसी धरोहर थी...जो हम से हमेशा के लिए बिछड़ गयी...यह वह धरोहर थी....जिन्होंने जीवन भर हमारी लोक भाषा-बोली के लिए काम किया...धरातल पर काम किया...।
क्या हम में से किसी एक ने भी कभी इनके साथ खडे होने की कोशिश की....? इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए...सरकारें जितनी दोषी हैं...हमारी विकास यात्रा को भ्रमित करने के लिए उनसे ज्यादा हम भी दोषी है....यह हमें सोचना चाहिए...सिर्फ कागज़ काले करने और भाषण देने से काम नहीं चलने वाला...।
मैने भी बहुत कागज काले किया...सरकार के साथ-साथ खुद के लोक का हितैषी बताने वाले..तमाम संगठनों से मैंने अपील की...कोई तो इस लोक को बजाने के लिए आगे आओ...एक भी हाथ खड़ा नहीं हुआ...कुछ ने कहां...क्या इन लोक कलाकारों की बात करते हो....छूत की बीमारी है...दूर रहो...अपना समय बर्बाद मत करो...।
मेरे पास आस भी सरकार और कई संगठनों के जबाबी पत्र मेरी आलमारी में संभले है...कई बार पढ़ता हूं तो रोता हुं..क्रोध भी आता है...लोक संस्कृतिक की बात करने वाले ठेकेदार..सिर्फ और सिर्फ खुद की रोटियां सेक रहे है...इन्हें इससे कोई मतलब नहीं की हमारी लोक थाती क्यों मर रही है.....।
यह भी उत्तराखंड की विकास यात्रा हैं मित्रों....क्या इस बारे में बात नहीं की जानी चाहिए....।

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 353
  • Karma: +2/-0
भेजी लोग .... आप सब के विचार पड़के अच्छा लगा.

यह लडाई ना तो निशक..जी , ना जगमोहन जी से और ना हरक सिंह रावत. काशी सिह ऐरी अड्डी से ! यह एक आम  जनता की आवाज है !

मेरे दोस्त जगमोहन भेजी ... मेरे लिए विकास के मायने ये है :
   
     -     उत्तराखंड से पलायन रुके... और गाव-२ का विकास हो - जो अभी हो नहीं सका..
     -     पहाड़ में रोजगार से साधन जुटे -  जो अभी हो ना सका
     -     पहाड़ की राजधानी पहाड़ में हो -  जो अभी हो ना सका
     -     पहाड़ में पर्यटन का विकास हो  -  जो अभी हो ना सका
     -     हर गाव तक सड़क मार्ग हो    -  जो अभी हो ना सका
     -     हर गाव गाव एक बिजली पानी हो -  जो अभी हो ना सका
     -     हर जिले में बड़ा अस्पताल हो -  जो अभी हो ना सका
     -     पर्यटन से लोगो का रोजगार जुड़े - जो अभी हो ना सका
     -     पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी पहाड़ में रुके - ये भी नही हो सका
     -     उत्तराखंड भारत का नंबर १ राज्य बने -  यब भी नहीं हो सका !
     -     पहाडो के लिए अलग औधियोगिक नीति हो - यह भी नहीं हो सका
     -     पिछले साल के आपदा के बाद लोगो के पास क्यों अभी तक घर नहीं बन पाए!
     -     पहाड़ में कही भी जाओ क्यों नहीं विकास के कार्य नजर आते है !

फिर अभी तक हुवा क्या -   पांच मुख्यमंत्री पैदा हुए..... सबसे ज्यादे घोटाले निशक साब के मुख्यमंत्री के दौरान हो रहे है फिर भी आप उनकी तारीफ पर तारीफ किये जा रहे हो ! यह बात से स्पष्ट होता है आप मुख्यमंत्री जी का पक्ष ले रहे है!

 -  क्यों निशक साब - उत्तराखंड के राजधानी मुद्दे पर नहीं बोलते ?
 -  क्यों एक एक कर इतने बड़े घोटाले सामने आ रहे है!
 -  क्यों शिक्षित युवक बेरोजगार घूम रहे है. हर गाव शहर -२ पर आन्दोलन हो रहे है !
 -  क्यों विस्थापित उत्तराखंडी पहाड़ से नही जुड़ पा रहे है !
 -  क्या उत्तराखंड के लिए मैदानी भाग के विकास कर हक़दार है . हरिद्वार, रुद्रपुर... उधम सिंह नगर..
  -  उत्तराखंड के पहाड़ी जिलो का विकास दर क्यों गिर गया है !
  -  क्यों शिलानाश के बाद सडको का निर्माण बंद हो जाता है ?
  -  हमारे राज्य के परिवहन विभाग को देखिये.. सड़ी बसे.. ?
  -  क्यों लोग पहाड़ वापस नहीं जाना चाहते है !

हजारो मुद्दे है.. आप इन सवालो का जवाब दे जानाब.

ठीक है मै आपके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यो की सराहना करता हूँ. ! but dear don't respect u as far as supporting of corrupt people.

Almoraboy_reborn

  • Jr. Member
  • **
  • Posts: 85
  • Karma: +3/-0
is there any way non resident uk guys can vote?
is there any political party which will ban alcohol in the state (except chhang / chhakti, which are traditional drinks)?
is there any party which can make it easy for ppl to find jobs in the state, besides the defence sector (if everyone is in the army, then who will be a doctor)?

No No No :-((((

that is why i do not have any expectations from these buggers.

anyways, let us look on the practical side. these guys (politicos) are humans - and all humans are greedy. these guys r no exceptions. most of them are not saints, so they will try to make as much money as possible. that is why in the 5 years they will make as much moolah as possible.

the best way to control them is via education. it is harder to take educated people for a ride. also, social media, active journalism will keep them under a bit of leash.


Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 353
  • Karma: +2/-0

Public knows what are the standards of developments. How happy is public with the development.

Mr Jagmoan, see the below about hte visit of CM Pithorgarh.No body is happy-
---------

निराशाजनक रहा मुख्यमंत्री का मुनस्यारी दौरा
May 16, 08:02 pm
बताएं

पिथौरागढ़: भाकपा माले ने मुख्यमंत्री के मुनस्यारी दौरे को सीमांत की जनता के लिए निराशाजनक बताया है। पार्टी ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने सीमांत की जनता की मांगों पर कोई अमल नहीं किया। पार्टी के जिला कमेटी सदस्य जगत मर्तोलिया व सुरेन्द्र बृजवाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने जिन योजनाओं का शिलान्यास किया है वे हर वक्त के बजट में बनने वाली सामान्य योजनाएं हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री छोटे-छोटे कार्यो का लोकार्पण व शिलान्यास कर कोरी वाहवाही बटोर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षो में प्रदेश की भाजपा सरकार ने सीमांत के लिए कोई भी ऐसी योजना नहीं बनाई जिसे सरकार की उपलब्धि कहा जा सकता है। उन्होंने कहा है कि सीमांत की जनता आपदा प्रभावितों की समस्या का समाधान होने, सड़क, संचार, विद्युत व स्वास्थ्य की सुविधा मिलने की उम्मीद में थी। परंतु जनता को निराशा का सामना करना पड़ा है। साथ ही उन्होंने भाजपा के कार्यक्रम को फ्लाप करार दिया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7733168.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Daju Thank for your views on this crucial debate.

I think most of your query has NO answer. The Govt has no vision to develop state. All the vital sectors are still un-touched as far as development is concerned.

If we analyze the 10 yrs development of Uttarakhand, i can say Uttarakhand has already done 10 % development.

There is a lot to do.

is there any way non resident uk guys can vote?
is there any political party which will ban alcohol in the state (except chhang / chhakti, which are traditional drinks)?
is there any party which can make it easy for ppl to find jobs in the state, besides the defence sector (if everyone is in the army, then who will be a doctor)?

No No No :-((((

that is why i do not have any expectations from these buggers.

anyways, let us look on the practical side. these guys (politicos) are humans - and all humans are greedy. these guys r no exceptions. most of them are not saints, so they will try to make as much money as possible. that is why in the 5 years they will make as much moolah as possible.

the best way to control them is via education. it is harder to take educated people for a ride. also, social media, active journalism will keep them under a bit of leash.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
From : Dev Singh Rawat (Editor Paraya Uttaranchal).
 
उत्तराखण्ड के हितों से खिलवाड़ करने से बाज आये आडवाणी, गडकरी व संघ    उत्तराखण्ड के हितों से खिलवाड़ करने से बाज आये आडवाणी, गडकरी व संघ
 -उत्तराखण्ड के हितों से खिलवाड़ करने वालों को ले डूबता है देवभूमि का अभिशाप

 लगता है जनविरोधी कुशासन को तमिलनाडू व बंगाल में जनता द्वारा उखाड़ फेंकने के बाबजूद भी सत्तामद में चूर भाजपा व संघ नेतृत्व की कुम्भकर्णी नींद नहीं जागृत हो रही है। आज सुबह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गड़करी ने उत्तराखण्ड में पूरी तरह बेनकाब हो चूके भाजपा मुख्यमंत्री निशंक को शर्मनाक संरक्षण देने के लिए प्रदेश के वरिष्ठ जननेता व पूर्व मुख्यमंत्रियों भगतसिंह कोश्यारी व भुवनचंद खंडूडी के साथ मुख्यमंत्री निशंक की उपस्थिति में बैठक की। इस प्रकरण से भाजपा का आम कार्यकत्र्ता ही नहीं प्रदेश की जागरूक जनता जानना चाहती है कि भाजपा आला कमान लालकृष्ण आडवाणी व राष्ट्रीय अध्यक्ष गड़करी को प्रदेश के कोश्यारी, फोनिया, ले. जनरल तेजपाल सिंह रावत  व मोहनसिंह ग्रामवासी जैसे ईमानदार नेतृत्व को दर किनारे करके निशंक को बनाये रख कर प्रदेश व भाजपा की जड़ों में मट्ठा क्यों डालने को उतारू है। इसके साथ जनता को इस बात की भी हैरानी है कि भारतीय संस्कृति, सुशासन व रामराज्य की बात करने वाले भाजपा की मातृ संगठन संघ प्रदेश में राष्ट्रवाद व सुशासन के बजाय जातिवाद, क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार को मूक सहमति देने के लिए क्यों विवश है। एक बात भाजपा व संघ के मठाधीशों को स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि उत्तराखण्ड न केवल देवभूमि है अपितु यहां के लोग अपने स्वाभिमान व राष्ट्रभक्ति के लिए सदियों से विख्यात है। इस लिए अगर अभी भाजपा नेतृत्व ने अपनी संकीर्णता को त्याग करके उत्तराखण्ड के हितों के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आये तो आने वाले विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव की तरह उत्तराखण्ड की स्वाभिमानी जनता प्रदेश से भाजपा का पूरी तरह से सफाया कर देगी। उत्तराखण्डी जनता जब देश की रक्षा के लिए सदियों से शहादतें देते आये। उत्तराखण्ड की जनता ने न केवल आततायी मुगलों, फिरंगियों, इंदिरा गांधी की तानाशाही, मुलायम व राव के दमनकारी कुशासन का मुंहतोड़ जवाब दिया । इसलिए भारतीय संस्कृति की पावन गंगोत्री उत्तराखण्ड को अपनी अंधी सत्तालोलुपता व संकीर्णता का खिलोना बनाने से बाज आयें। उत्तराखण्ड की पावन धरती से खिलवाड़ करने वालों का हस्र राव, मुलायम व तिवारी की तरह ही होता है। खंडूडी जी ने इन्हीं की राह में चल कर उत्तराखण्डी हितों को रोंदने व निशंक को सत्तासीन करके उत्तराखण्ड के साथ छल किया, उनको भी अपने किये का दण्ड प्रकृति दे रही है। अभी भी समय है भाजपा नेतृत्व को प्रायश्चित करने का।
http://www.rawatdevsingh.blogspot.com/

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22