भारत के माहालेखाकार ने कुम्भ मेले में ४३ करोड़ रुपये का व्यय गलत ढंग से होने की बात अपनी रिपोर्ट (कैग) में कही है, यह तो मोटा अनुमान ठैरा, अभी यह कयास लगाये जा रहे हैं कि लगभग १००-२०० करोड़ रुपये का गड़बड़झाला हुआ है करके। इसी के लिये सी०एम० सैप नोबल पुरस्कार मांग रहे थे, यह दिया भी जाना चाहिये, क्योंकि संसार के सबसे बड़े आस्था के समागम में जो घोटाला कर दे और भगवान के काम में भी कमीशन खाये, उसके लिये तो नोबल से भी बड़ा पुरस्कार दिया जाना चाहिये।
रही बात १०८ की, जिसके बारे में चिल्ला-चिल्ला कर यह कहा जाता है कि यह संजीवनी के समान है, इसमें ६७ हजार महिलाओं ने प्रसव किया है। तो यह बात गर्व की नहीं शर्म की है और घोर शर्म की है कि आजादी के इतने सालों के बाद और उत्तराखण्ड बनने के १० साल बाद भी हमारी सरकारें आज प्रत्येक गांव में यह सुविधा नहीं दे पायी कि हम महिलाओं का सुरक्षित प्रसव करा सकें। यह दुर्भाग्य है कि उत्तराखण्ड की महिलाओं को प्रसव भी एम्बुलेंस में कराना पड़ रहा है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य विभाग पूर्ण रुप से असफल है, जिस प्रसव को पहले गांव की दाईयां सरलता से करा देती थीं, उसके लिये आज एम्बुलेंस बुलानी पड़ती है, हां हमारे राज्य को पुरस्कार दिया जाना चाहिये क्योंकि हमारे यहां प्रसव कराने के लिये भी एम्बुलेंस बुलानी पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग इतने सालों बाद आज ग्राम स्तर पर एक ए०एन०एम० की नियुक्ति करने में असमर्थ है, आशा कार्यकत्री की नियुक्ति नहीं कर पा रही है, इसलिये हमें एम्बुलेंस बुलाकर डिलीवरी करनी पड़ती है।
हमारी सरकारों को कुछ बोलने से पहले उसका निगेटिव-पाजीटिव भी देख लेना चाहिये। सी०एम० सैप तो आज तक जिन भी चीजों पर सभाओं में गर्व महसूस कराते हैं, मुझे तो उन सब पर लगभग शर्म ही आती है। परसों ही उनका एक और बयान था कि चूंकि गंगा उत्तराखण्ड से निकलती है इसलिये गंगासागर तक के खनन-चुगान में से हमें हिस्सा मिलना चाहिये। अगर यही बात बिहार, उ०प्र० और प० बंगाल वाले भी कह दें कि उत्तराखण्ड से आने वाली गंगा से हमारे यहां बाढ़ आती है और भू-कटाव होता है, इसकी क्षतिपूर्ति उत्तराखण्ड करे तो ?
खैर भगवान इनको सदबुद्धि दे।----------------------