Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

Existence of Crow & other birds at stake in Pahad- पक्षियों का अस्तितव खतरे में

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पंकज सिंह महर:
पक्षी और पहाड़ी लोगों का पौराणिक काल से ही एक पारस्परिक समबन्ध रहा है। हमारे लोकगीतों और लोककथाओं में विशेष रुप से पक्षियों का उल्लेख रहा है, बच्चे की लोरी में भी पहली बार उसे पक्षी (घूघुती) से ही परिचित कराया जाता है, किसी विरहण को जब परदेश में गये पति की याद आये या अपने मायके की, तो वह भी अपनी उदासी को दूर करने के लिये पक्षियों से ही अनुरोध करती है कि मेरा सन्देशा उन तक पहुंचा दे। गौरेया तो पक्षी न होकर घर की एक छोटी सदस्य ही होती थी, बचपन में गौरेया फुदक-फुदक कर किचन तक भी चली जाती थी, किसी को उससे परेशानी नहीं थी, गौंतड़ा का घोंसला बनाना घर के लिये शुभ माना जाता था, कौवे की कांव-कांव घर में किसी मेहमान के आने का सन्देश देती थी।

तब हमारे वास्तुशाष्त्र में भी इन पक्षियों के घोंसले बनाने का स्थान तय हुआ करता था, छत और दीवार के बीच में लकड़ी के मोखले बनाये जाते थे, लेकिन समय बदला सीमेन्टेड मकान में रहने की परम्परा आ जन्मी, उन मकानों में पक्षियों ने अपना ठिकाना ढूढा, लेकिन उन्हें स्थान नहीं मिला, फिर घर के आस-पास पेड़ और झाड़ी लगाना भी बन्द हो गया, शहर का प्रतिरुप बनने की होड़ में गांव, गांव भी नही रह पाया और शहर भी नहीं बन पाया। इसके बाद विकास गांव-गांव पहुचने लगा, सबसे पहले आई बिजली की लाईनें, इनसे भी पक्षी असहज हुये। फिर गांव-गांव तक सड़क और जीपों की गुराट और उसके धुंये ने भी इनको हमसे दूर किया। उसके बाद घर-घर में डिश टी०वी० की छतरियों ने रेडियेशन शुरु किया और पक्षी गांव से दूर हुये। फिर आया दूरसंचार क्रान्ति का जमाना, जिसमें पहाड़ों में हाई फ्रीक्वेंसी के मोबाइल टावर लगे। शहरों में तो इनकी फिक्स फ्रीक्वेंसी होती है। लेकिन पहाड़ों में २०-३० गांवों के लिये एक ही मोबाइल टावर लगाया जा रहा है, इससे सबसे ज्यादा छोटे पक्षियों पर पड़ा, इसीलिये आज पहाड़ों में गौरेया, सिन्टोले, कलचुड़ि, सुवा (तोते), घुघुती जैसे पक्षी कम होते जा रहे हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है कि हमारे विकास ने ही इनका विनाश किया है, तो अतिश्योक्ति न होगी।

हेम पन्त:
मेहता जी आपने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है... हम लोग इस तरफ ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन यह बात सही है कि पिछले लगभग बीस साल में पहाड़ों से पक्षियों की संख्या में चिंताजनक कमी आयी है...

मुझे याद है जब हम छोटे थे तो किसी मवेशी की लाश को गाँव से बाहर फेक दिया जाता था, जल्द ही उस पर गिद्ध टूट पड़ते थे, एक दो दिन में ही हड्डियों का ढेर बचा रह जाता था... अब गाँवों में गिद्ध भी नहीं दिखायी देते.. ये हमारे पारिस्थितिकी चक्र के गडबडाने का संकेत है... 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

मैंने अपने सभी सहयोगियों की बातो से सहमत हूँ!

पक्षियों के साथ -२ कुछ जानवर भी वहां से विलुप्त के कगार पर है! जैसे लोमड़ी जिसे स्थानीय भाषा में स्यार  भी कहते है !

क्या global worming उसका मुख्य कारण है! ?

क्या पहाडो के जलवायु पक्षियों एव जानवरों के लिए उपयुक्त नहीं रहा ?

विनोद सिंह गढ़िया:
एक विशालकाय चील को कौओं ने घायल कर दिया.........? क्या ये हो सकता है ...........? जरा गौर कीजिये निम्नांकित समाचार पर । यदि चीलों की संख्या अधिक होती तो क्या कौवे इस चील पर हमला करते .........?
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जागरण कार्यालय,बागेश्वर:
                              लुप्त हो रही चील को आज नगर के कुछ समाजसेवी लोगों ने बचा लिया। चील को कौवों ने घायल किया था। पशु विभाग के कर्मचारियों द्वारा चील का इलाज किया जा रहा है।गत दिवस कुछ कौवों ने एक चील पर हमला कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया जिससे वह नाले में गिर गई। पास से गुजर रहे समाजसेवी सुरेश खेतवाल ने उसे नाले से निकालकर उसका उपचार किया व इसकी सूचना सभासद राजू उपाध्याय ने पशु विभाग के फार्मेसिस्ट चंद्रशेखर पाठक को दी जिस पर श्री पाठक ने चील का इलाज कराया श्री पाठक ने बताया कि चील को दो तीन दिन और इलाज की आवश्यकता है जिसे स्वस्थ होने के बाद छोड़ दिया जाएगा। चील वर्तमान में समाजसेवी सुरेश खेतवाल ने अपने घर में रखा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7965407.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मेरे हिसाब से चील कौवों पर आक्रमण नहीं करते! इसका कुछ और कारण हो सकता है !


--- Quote from: विनोद गड़िया on July 05, 2011, 04:26:45 AM ---एक विशालकाय चील को कौओं ने घायल कर दिया.........? क्या ये हो सकता है ...........? जरा गौर कीजिये निम्नांकित समाचार पर । यदि चीलों की संख्या अधिक होती तो क्या कौवे इस चील पर हमला करते .........?
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जागरण कार्यालय,बागेश्वर:
                              लुप्त हो रही चील को आज नगर के कुछ समाजसेवी लोगों ने बचा लिया। चील को कौवों ने घायल किया था। पशु विभाग के कर्मचारियों द्वारा चील का इलाज किया जा रहा है।गत दिवस कुछ कौवों ने एक चील पर हमला कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया जिससे वह नाले में गिर गई। पास से गुजर रहे समाजसेवी सुरेश खेतवाल ने उसे नाले से निकालकर उसका उपचार किया व इसकी सूचना सभासद राजू उपाध्याय ने पशु विभाग के फार्मेसिस्ट चंद्रशेखर पाठक को दी जिस पर श्री पाठक ने चील का इलाज कराया श्री पाठक ने बताया कि चील को दो तीन दिन और इलाज की आवश्यकता है जिसे स्वस्थ होने के बाद छोड़ दिया जाएगा। चील वर्तमान में समाजसेवी सुरेश खेतवाल ने अपने घर में रखा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7965407.html



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