Author Topic: Hindrance In Progress - उत्तराखंड के विकास मे क्या अवरोध है?: क्या पहाड़ मस्त?  (Read 13256 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नहीं चाहिए शराब, हमें चाहिए सही विकासMar 06, 01:35 am

अल्मोड़ा: यहां से 25 किमी दूर बसौली में शराब की दुकान हटाने की मांग को लेकर महिलाएं सड़क पर उतर आयीं। जुलूस निकालकर शराब की दुकान के आगे धरना दिया। धरने के दौरान सांकेतिक चक्काजाम कर विरोध दर्ज किया।

धरने के दौरान वक्ताओं ने कहा कि शराब की दुकान को मुख्य बाजार से हटाकर दूर बनाया जाए। ताकि महिलाओं को आए दिन अपमान व शराबियों की फब्तियों का शिकार न होना पड़े। महिलाओं ने यह भी चेतावनी दी कि यदि शीघ्र शराब विक्रेताओं ने दुकान नहीं हटाई तो महिलाएं उग्र आंदोलन के साथ शराब की दुकान में ताला ठोक देंगे।

वक्ताओं का कहना था कि मुख्य बाजार में शराब की दुकान के कारण एक ओर जहां मजदूर व गरीब परिवारों के चूल्हे प्रभावित हो रहे हैं, वहीं शादी ब्याह में छोटे-छोटे बच्चे भी सहजता से उपलब्ध हो रही शराब का सेवन करते हैं। जो भावी पीढ़ी के लिए अच्छी बात नहीं है। महिलाओं का यह भी कहना था कि शराब पीकर महिलाओं को अपने पतियों की गालियों व उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, इसलिए वह शराब की दुकान को मुख्य बाजार से हटाकर ही दम लेंगी।

Tanuj Joshi

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दारु भले ही विज्ञानं की देन हो पर कई घरों को बर्बाद करने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. अगर इसका सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाये तो यह मजा देती है अन्यथा सजा देती है. यह विशेषतर देखा गया है कि हमारे पहाडों में इसका उपयोग बुरी तरह किया जाता रहा है. सूरज मस्त, पहाड़ी मस्त भी इसकी ही एक मिसाल है.
क्यों पहाडों में इसे सामाजिक तौर पर नहीं बल्कि असामाजिक तौर पर प्रयोग किया जाता है? बचपन से ही लोगों को इसका प्रयोग करके गाली, झगडा, मार पीट करते ही देखा है. क्या हम लोगों में इसे कण्ट्रोल करने कि शक्ति नहीं है या फिर ऐसा करना एक आदत सी बन गयी है? कृपया अपनी राय व्यक्त करें और अगर कोई संस्था इस विषय पर कार्य कर रही (एक जनजागरण कार्यक्रम की तरह ) हो या करना चाहती हो तो कृपया अपना प्लान शेयर करें. पहाड़ की इस बुरी आदत को कम करने से ही पहाडी इंसान को जागरूक किया जा सकता है एक सफल उत्तराखंड के भविष्य के लिए.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Tanuj aapne ek samaysamrak issue uthaya hai. Aaaj daaru ne pahad ko barbaad kar diya hai. Jo bhi sansthaen is vishay main kaam kar rahi hain unhe humein samarthan dena padega.

दारु भले ही विज्ञानं की देन हो पर कई घरों को बर्बाद करने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. अगर इसका सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाये तो यह मजा देती है अन्यथा सजा देती है. यह विशेषतर देखा गया है कि हमारे पहाडों में इसका उपयोग बुरी तरह किया जाता रहा है. सूरज मस्त, पहाड़ी मस्त भी इसकी ही एक मिसाल है.
क्यों पहाडों में इसे सामाजिक तौर पर नहीं बल्कि असामाजिक तौर पर प्रयोग किया जाता है? बचपन से ही लोगों को इसका प्रयोग करके गाली, झगडा, मार पीट करते ही देखा है. क्या हम लोगों में इसे कण्ट्रोल करने कि शक्ति नहीं है या फिर ऐसा करना एक आदत सी बन गयी है? कृपया अपनी राय व्यक्त करें और अगर कोई संस्था इस विषय पर कार्य कर रही (एक जनजागरण कार्यक्रम की तरह ) हो या करना चाहती हो तो कृपया अपना प्लान शेयर करें. पहाड़ की इस बुरी आदत को कम करने से ही पहाडी इंसान को जागरूक किया जा सकता है एक सफल उत्तराखंड के भविष्य के लिए.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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bilkul sahi kah rahe hai joshi ji.

See this topic on this issue.

http://www.merapahad.com/forum/development-issues-!/hindrance-in-progress/

पंकज सिंह महर

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इस समस्या के ऊपर हीरा सिंह राणा जी का गीत

सुरा- शराबैल हाय मेरी मौ , लाल कै दी हो,
छन दबलौं ठन ठन गोपाल कै दी हो,
न पियो, नै पियो, कौ सबुले , कैकी नि मानी ,
साँची लगौनी अक्ला- उम्र दघोडी नि आनी,
अफ्फी मैले अफ्फु हैणी जंजाल कै दी हो,
छन डबलौं ठन ठन
गोपाल कै दी हो

पंकज सिंह महर

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शराब आज पहाड़ में अन्दर तक अपनी पैठ बना चुकी है, इसके लिये सरकारें भी काफी हद तक दोषी हैं, क्योंकि मैने ऎसे भी कई गांव उत्तराखण्ड में देखे हैं, जहां सरकार ने स्कूल नहीं खोले, बैंक-पोस्ट आफिस नहीं खोले, पानी की योजनायें नहीं दी, बिजली नहीं दी, सड़क मार्ग नहीं बनाये, लेकिन वहां पर खोल दी "देशी मदिरा की दुकान"......कारण सरकार का राजस्व बढ़ाने का प्रयास....मतलब बुनियादी अवस्थापना सुविधायें उस गांव को नहीं दी जायेंगी, लेकिन उस गांव की चरमराती अर्थव्यवस्था और टूटते घरों से सरकार के लिये राजस्व का इंतजाम जरुरी है।
     शराब के कारण कितने घर टूटॆ, कितनी जानें गई, कितने बच्चे अनाथ हुई और कितनी महिलायें विधवा हो गई। आज पहाड़ों में सूरज उगने से पहले ही लोग शराब पी लेते हैं, कोई पैदा हो तो शराब, कोई मर जाये तो शराब, किसी की शादी हो तो शराब, छोटी-मोटी खुशी या गम के लिये भी शराब,,,,,,,,,,,पहले जहां इन सब चीजों का जश्न हम चना-गुड खाकर मनाते थे, वहां भी शराब, बच्चे, बूढ़े और जवान, सब शराब में मस्त। अगर आप पहाड़ में कोई भी कार्यक्रम कर रहे हैं और आप शराब का इंतजाम नहीं कर पाते तो आपको कई मुश्किलें आयेंगी, क्योंकि बिना शरब के कोई आपकी मदद के लिये नहीं आयेगा.............हद तो यहां तक हो गई कि पंडित भी शुभ कार्य करने से पहले शराब की डिमांड कर रहे हैं, पूछ करने से पहले पुछ्यारी शराब को फिक्स करवा लेता है, खेत जोतने से पहले हलिया को शराब चाहिये, ढोल बजाने से पहले ढोली को शराब चाहिये, छलिया को नाचने से पहले शराब चाहिये, जागर के लिये लकड़ी लाने से पहले शराब..................???

इन सबको को देखते हुये बड़ी कोफ्त होती है, लगता है कि क्या यह वही क्षेत्र है, जहां पर नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन शुरु हुआ था, जो देश ही नहीं विदेशों के लिये भी एक प्रेरणास्रोत था?  आखिर हम कहां जा रहे हैं? शराबबन्दी भी इसका हल नहीं है, क्योंकि पड़ोसी देश नेपाल से और पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी जब आज इतनी ज्यादा हो रही है, तब तो यह एक उद्योग का रुप ले लेगा...........इसके लिये व्यापक जनजागरण की आवश्यकता है और ठोस कानून की, लेकिन उत्तराखण्ड राज्य के क्या कहने......! पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश की तर्ज पर चलने वाला हमारा राज्य, जिसने वहां के सभी विभागों का यहां गठन किया, लेकिन एक विभाग का गठन आज तक नहीं किया, जिसका नाम मद्य निषेध विभाग है, जो आबकारी विभाग से जुड़ा हुआ विभाग था, यह विभाग उ०प्र० में शराब से होने वाली समस्याओं से जनता को पोस्टर, वृत्त चित्रों, जनजागरुकता, नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जागरुक करता था, लेकिन अफसोस कि जनता के हितों की सच्ची हितैषी होने का दावा करने वाली हमारी सरकारें, आज पहाड़ की सबसे आम और व्यापक समस्या की ओर ध्यान ही नहीं दे पा रही है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sorry to say, we have also seen teachers also mast during the exams which leave a bad impresssion on student.

Rajen

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पंकज जी सच कहा है आपने.  यह एक ऐसी सच्चाई है जो हमें अक्सर शर्मशार कर देती है.  माना कि शराब हर जगह हर बर्ग के लोगों के द्वारा पी जाती है, लेकिन पहाड़ का हाल सचमुच बहुत बुरा है. 

आज पहाड़ों में सूरज उगने से पहले ही लोग शराब पी लेते हैं, कोई पैदा हो तो शराब, कोई मर जाये तो शराब, किसी की शादी हो तो शराब, छोटी-मोटी खुशी या गम के लिये भी शराब,,,,,,,,,,,पहले जहां इन सब चीजों का जश्न हम चना-गुड खाकर मनाते थे, वहां भी शराब, बच्चे, बूढ़े और जवान, सब शराब में मस्त। अगर आप पहाड़ में कोई भी कार्यक्रम कर रहे हैं और आप शराब का इंतजाम नहीं कर पाते तो आपको कई मुश्किलें आयेंगी, क्योंकि बिना शरब के कोई आपकी मदद के लिये नहीं आयेगा.............हद तो यहां तक हो गई कि पंडित भी शुभ कार्य करने से पहले शराब की डिमांड कर रहे हैं, पूछ करने से पहले पुछ्यारी शराब को फिक्स करवा लेता है, खेत जोतने से पहले हलिया को शराब चाहिये, ढोल बजाने से पहले ढोली को शराब चाहिये, छलिया को नाचने से पहले शराब चाहिये, जागर के लिये लकड़ी लाने से पहले शराब..................???
 

Pratap Mehta

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पिछ्ले साल मै अपने गाव एक विवाह समारोह मे गया था वहा मैने एक १२ साल के बच्चे को शराब पीकर उद्द्म्म मचाते देखा एक यह बहुत दुख की बात है कि दारु आज पहार के नवयूवको को गलत राह पर ले जा रही है कभी हमारे पहार मै कितना भाईचारा था एक दुसरे के सुख दुख मै शामिल होते थे पर अब बिना दारु के कोई किसी का काम नही करता

umeshbani

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पकंज दा ने सही लिखा की खुसी में शराब गम में शराब ............... मैं अपने गाँव में देखता हूँ तो १२ साल की उम्र  से ७० वरस के बुडे तक लगभग सभी शराब पीते अगर लोगों (१२ वर्ष से ऊपर मर्द ) की संख्या ३० है तो उसमे से २५ लोग शराब पीते है ...
हालत इतनी बुरी है कि बाप और बेटा एक साथ ही पी रहे है ........  चलो यहाँ तक भी हो तो कोई बात नहीं पी कर गालियों का और गंदे पर्वचनो का जो दोंर चालू होता है वो तभी बंद होता है जब या तो कोई एक दो हाथ रख दे या शराब का नशा उतर जाय ....
एक  गाँव का विकास निर्भर करता है वहां के निवासियों पर जब हम ही नशे में डुबे रहेंगे तो विकास कि किसे खबर ..... और सामने वाला जब ये जानता है तो वह  वोट मांगने से पहले शराब पिला देता है और फिर हम ये कही नहीं सकते कि तुने हमारे गों के लिये क्या किया .............
मुझे सबसे ज्यादा दुःख होता है जब हमारी पीढी या हमसे काफी छोटे जिन्हें हम बच्चे कहते है नशे में धुत होते है चाहे शराब के नसे में या दम के नशे में .............
कल के  बच्चे जब हम घर जाते है तो बोलते है आये ज कर दा .................? मतलब पैसा दो दावत यानि शराब के लीय ... उनको तो शर्म नहीं है मगर मुझे बहुत शर्म और अफ़सोस होता है कि दुनिया कहाँ पहुँच गयी है मेरे गाँव के बच्चे शराब के ठेके तक ही पहुँच पाते है .......... पुरानी  पीढी  तो चलो गो हो गया  है  हो गया है और कितने साल है उनके २०-२५ साल  मगर नयी पीढी भी उसी और जा रही है ................
सरकार को कुछ करना चाहिय नहीं तो आने वाली पीढी को नशा बिलकुल बर्बाद कर देगा ....... किसी से गाँव में बोलो तो बोलता है अरे माहोल ही एसा है ..............

 

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