शराब पीना बुरी बात नहीं है, कभी-कभार मैं भी पीता हूं, लेकिन शराब को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेना गलत है। मैने व्यवहार में देखा है कि पहाड़ में जिस आदमी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है, वह मजदूरी करके जो पैसे कमाता है, दिहाड़ी मिलते ही शराब पी लेता है और उसकी बीबी दूसरों के खेत में काम करके अपने और अपने बच्चों का पेट पालती है। उसमें भी इस आदमी की शाम को तड़ी होती है कि मुझे शराब पीने के लिये पैसे दे, क्योंकि इसे मालूम है कि फलां के खेत में काम करके इसे आज पैसे मिले हैं।
शराब का इतनी व्यापक पकड़ मैने उत्तराखण्डियों के अलावा कहीं नहीं देखी। मेरे क्षेत्र देवलथल जिसकी आबादी ५-६ हजार के आस-पास है, वहां पर एक दिन में कम से कम २५० लीटर शराब की खपत है, लगभग हर दुकान में शराब बिकती है, लेकिन प्रशासन को यह अपराध पता नहीं क्यों नजर नहीं आता? मैने यह भी देखा कि जो दुकानदार शराब बेचता था या है, वह आज करोड़पति होकर मारुति जेन में घूम रहा है और जो बेचारा ईमानदारी से दुकानदारी कर रहा था, वह मक्खी मार रहा है।
शराब से आज भी कई घरों में क्लेश है, लेकिन इस व्यापक और आम समस्या के निदान के लिये सरकार या कोई भी एन०जी०ओ० कुछ काम नहीं कर रहा, पूरा पहाड़ शराब में जकड़ गया है.........पता नहीं इसका अंत क्या होगा???