Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

How Much Migration From Uttarakhand- कितना पलायन हुआ उत्तराखण्ड से

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सत्यदेव सिंह नेगी:

राजेश जोशी/rajesh.joshee:
मैं पलायन को कोई मुद्दा नही समझता यह प्राकृतिक है कि जिसे जहां सुविधा लगे वहां रहे, पहाड़ में भी लोग उस समय की परिस्थितियों के अनुसार बसे थे।  जहां तक बुनियादी सुविधाओं की बात है तो बिजली पानी और सड़क जैसी सुविधाऎं कई प्रदेशों से तुलना करने पर उत्तराखण्ड में काफ़ी अच्छी है।  फ़िर पहाड़ की दुर्गमता के देखते हुये यह एक मुशकिल काम भी है।  बिजली पानी की सुविधा आज महानगरों यहां तक कि राजधानी में भी कितनी अच्छी हैं रहने वाले जानते ही हैं। 

हां रोजगार जरुर मुख्य मुद्दा है जो पलायन को रोक सकता है, यहां भी मुख्य कारण वही है देश की आर्थिक और सामाजिक विषमता एक मुख्य कारण है।  आज उत्तराखण्ड के मैदानी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर तो काफ़ी हैं पर फ़िर एक समस्या आ रही है जिस ओर ध्यान देना है।  इन औद्योगिक आस्थानों में उत्तराखण्ड के नौजवानों को उचित अवसर नही मिल पा रहे हैं।  इस बारे में इन आस्थानों के प्रबन्धको का कहना है कि उत्तराखण्ड में उनकी आवश्यकता के अनुरूप तक्नीकी रूप से प्रशिक्षित और कुशल लोग नही मिल पा रहे हैं।  यह एक कारण है कि हमारे यहां डिग्रीधारी तो लाखों है पर तकनीकी प्रशिक्षित बहुत कम हैं पर मैं इससे पूर्ण रूप से सहमत नही हूं।

मुझे जो दो मुख्य कारण नजर आते हैं उनमें एक तो यह है कि इनके प्रबन्धक स्थानीय प्रशासन के साथ सांठ गाठ करके कर्मियों को काफ़ी कम वेतन देते हैं जो यहां के नौजवानों के लिए स्वीकार्य नही होता।  पर आर्थिक विषमता के कारण उसी वेतन पर अन्य प्रदेशों के लोग कार्य करने को तैयार हो जाते हैं इस कारण प्रदेश से बाहर के लोग हमारे औद्योगिक आस्थानो में अधिक संख्या में हैं।  दूसरा कारण राज्नैतिक दबाव का भी है, प्रबन्धकों को यह डर रहता है कि अगर स्थानीय लोग अधिक संख्या में होंगे तो वह अपनी मांगों के लिए उन पर दबाव बनाने में सफ़ल होंगे जिससे उनका मुनाफ़ा घट जायेगा।

मुझे तो पलायान के लिए मुख्य कारण बेरोजगारी और देश की आर्थिक विशमता नजर आता है और यह उत्तराखण्ड राज्य मात्र की समस्या नही राष्ट्रीय समस्या है। रोजगार के लिए हमें पहाड़ों की परिस्थ्तियो के हिसाब से रोजगार के अवसर तथा स्थानीय रूप से कुछ ऎसे कुटीर उद्योगों को बढावा देना होगा जो रोजगार क विकल्प तो नही हैं पर परिवार की आय में वृद्धि कर सकें।  ऎसे कार्यों के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है जिससे वह आर्थिक रूप परिवार में योगदान कर सकें।

हम केवल यह देख रहे हैं कि कितने परिवार हमारे प्रदेश से गये पर अगर आप यह देखें कि कितने परिवार उत्तराखण्ड में आकर बस गये (चाहे वह मुख्य नगरों या मैदानी क्षेत्रो तक ही हो) तो आंकड़ा कुछ और ही होगा।  हमें पलायन रोकने के लिए दोनो तरफ़ देखना होगा।

Prem Sundriyal:
 
लगभग सभी गाव की हालत एक जेसी है मेरा गाव पौड़ी जिले के पोखड़ा ब्लाक में आता है मेरे गाव का नाम मजगाव है पहले यहाँ २५० परिवार रहते थे आज सिर्फ ५० परिवार है इनमे भी १० परिवारों के नाम पर सिर्फ एक बुजुर्ग महिला रहती है | पलायन का मुख्य कारन रोजगार है राज्य बनने के बाद मेरे गाव के एक भी नोजवान को राज्य  में रोजगार नहीं मिला पलायन के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं है| सरकार के पास पहाड़ के विकाश की कोई योजना ही नहीं है विकाश के नाम पर पहाड़ को बेचना ही सरकार का काम रह गया है| 

प्रेम सुन्द्रियाल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Migration has just become double in Uttarakhand. If i take example of my village, it is definitly in increasing trend.

Anil Arya / अनिल आर्य:
भूमिया, ऐड़ी, गोलज्यू, कोटगाड़ी ने भी किया पलायन


विडम्बना तराई और भाबर में स्थापित हो गए पहाड़ के देवी-देवता
गणेश पाठक/एसएनबी, हल्द्वानी। अरबों खरबों खर्च करने के बाद भी पहाड़ से पलायन की रफ्तार थम नहीं पा रही है। इस पलायन में केवल मनुष्य की शामिल नहीं है, बल्कि देवी-देवता भी पहाड़ छोड़कर तराई में बस गये हैं। पहाड़ों के तमाम छोटे-बड़े मंदिर और मकान खंडहरों में तब्दील हो गये हैं, जबकि तराई और भाबर में भूमिया, ऐड़ी, गोलज्यू, कोटगाड़ी समेत कई देवताओं के मंदिर बन गये हैं। पलायन करके तराई में आए लोग पहले देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने के लिए साल भर में एक बार घर जाते थे, लेकिन अब इस पर भी विराम लग गया है। राज्य गठन के बाद पलायन की रफ्तार तेज हुई है। पिथौरागढ़ से लेकर चंपावत तक नेपाल-तिब्बत (चीन) से जुड़ी सरहद मानव विहीन होने की स्थिति में पहुंच गई है और यह इलाका एक बार फिर इतिहास दोहराने की स्थिति में आ गया है। कई सौ साल पहले मुगल और दूसरे राजाओं के उत्पीड़न से नेपाल समेत भारत के विभिन्न हिस्सों से लोगों ने कुमाऊं और गढ़वाल की शांत वादियों में बसेरा बनाया था। धीरे-धीरे कुमाऊं और गढ़वाल में हिमालय की तलहटी तक के इलाके आवाद हो गये थे, लेकिन आजादी के बाद सरकारें इन गांवों तक बुनियादी सुविधाएं देने में नाकाम रहीं और पलायन ने गति पकड़ी। इससे पहाड़ खाली हो गये। सरकारी रिकाडरे में खाली हो चुके गांवों की संख्या महज 1065 है, जबकि वास्तविकता यह है कि अकेले कुमाऊं में पांच हजार से अधिक गांव वीरान हो गये हैं। खासतौर पर नेपाल और तिब्बत सीमा से लगे गांवों से अधिक पलायन हुआ है। लगातार पलायन से पहाड़ों की हजारों एकड़ भूमि बंजर हो गई है। पलायन की इस रफ्तार से देवी-देवताओं पर भी असर पड़ा है। शुरूआत में लोग साल दो साल या कुछ समय बाद घर जाते और देवी देवताओं की पूजा करते थे। इससे नई पीढ़ी का पहाड़ के प्रति भावनात्मक लगाव बना रहता था, लेकिन अब यह लगाव भी टूटने लगा है। इसकी वजह से हजारों की संख्या में देवी देवताओं का पहाड़ से पलायन हो गया है। अकेले तराई और भावर में तीन से चार हजार तक विभिन्न नामों के देवी देवताओं के मंदिर बन गये हैं। किसी दौर में पहाड़ों में ये मंदिर तीन-चार पत्थरों से बने होते थे, लेकिन अब तराई और भावर में इनका आकार बदल गया है। यहां स्थापित किये गए देवी देवताओं में भूमिया, छुरमल, ऐड़ी, अजिटियां, नारायण, गोलज्यू के साथ ही न्याय की देवी के रूप में विख्यात कोटगाड़ी देवी के नाम शामिल हैं। इन देवी-देवताओं के पलायन का कारण लोगों को साल दो साल में अपने मूल गांव जाने में होने वाली कंिठनाई है। दरअसल राज्य गठन के बाद पलायन को रोकने के लिए खास नीति न बनने से पिछले दस साल में पलायन का स्तर काफी बढ़ गया है। हल्द्वानी में कपकोट के मल्ला दानपुर क्षेत्र से लेकर पिथौरागढ़ के कुटी, गुंजी जैसे सरहदी गांवों के लोगों ने अपने गांव छोड़ दिये हैं। पहाड़ छोड़कर तराई एवं भावर या दूसरे इलाकों में बसने वाले लोगों में फौजी, शिक्षक, व्यापारी, वकील, बैंककर्मी, आईएएस समेत विभिन्न कैडरों के लोग शामिल हैं। पलायन के कारण खाली हुए गांवों में हजारों एकड़ कृषि भूमि बंजर पड़ गई है। इसी तरह से विकास के नाम पर खर्च हुए अरबों रुपये का यहां कोई नामोनिशान नहीं है। नहरें बंद हैं। पेयजल लाइनों के पाइप उखड़ चुके हैं और सड़कों की स्थिति भी बदहाल है। किसी गांव में दो-चार परिवार हैं तो किसी में कोई नहीं रहता। किसी दौर में इन गांवों में हजारों लोग रहा करते थे। स्कूल और कालेजों की स्थिति भी दयनीय बन गई है। कई प्राथमिक स्कूलों में एक बच्चा भी नहीं है तो किसी इंटर कालेज में दस छात्र भी नहीं पढ़ रहे हैं।
[/size]प्रस्तुतकर्ता नवीन जोशी Ji[/size] - [/font]http://uttarakhandsamachaar.blogspot.com/2011/04/blog-post_25.html

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