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How To Change Tough Agriculture Methodology - पहाडो की कठिन खेती

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
बैलों की जोड़ी की जगह चल पडे़ हैं ट्रैक्टर

Almora | अंतिम अपडेट 16 मई 2013 5:31 

  चौखुटिया। गेवाड़ घाटी के एक बडे़ भू भाग में पिछले कुछ सालों में खेती का तरीका पूरी तरह बदल गया है। बैलों की जोड़ी की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। क्षेत्र के अधिकांश समतल वाले क्षेत्रों में अपने पुराने हलियों की अब कोई पूछ नहीं रह गई है। जबकि ऊंचाई वाले भागों में उनकी मांग आज भी है।
दस साल पहले तक चौखुटिया घाटी में खेतों की जुताई बैलों से होती थी। कृषि कार्य करने वाले हर परिवार में दुधारू पशुओं के अलावा एक जोड़ी बैल भी अनिवार्य रूप से रहता था। अधिकांश काश्तकारों के पास बैलों की जोड़ी के साथ ही हलिए भी होते थे। एक हलिया कई काश्तकारों के खेतों की जुताई करता था। इसी से उसके परिवार का खर्च चलता था। उसे नकद धनराशि के अलावा कार्य दिवसों के दौरान भोजन आदि भी दिया जाता था। जबकि कम खेती वाले गरीब परिवारों के काश्तकार अपने खेतों की जुताई खुद ही किया करते थे।
इधर पिछले सोलह सालों से क्षेत्र के समतल भागों में खेती का पूरा ढर्रा ही बदल गया है। खेतों की जुताई से लेकर मंडाई का कार्य ट्रैक्टर से ही हो रहा है। जबकि क्षेत्र के ऊंचाई वाले उन भागों में जहां ट्रैक्टर का पहुंचना असंभव है अभी भी बैलों के माध्यम से ही जुताई आदि के कार्य होते हैं। ऐसे गावों में भी अब पहले की अपेक्षा न तो बैल उपलब्ध हैं और न ही हलिए। जो हैं भी उनके सहारे खेती करने में लागत काफी महंगी हो रही है। फिर खेती भी पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है। इसीलिए ऊंचाई वाले भागों के काश्तकार या तो खेती छोड़ रहे हैं या फिर परंपरागत खेती के बजाए उद्यानीकरण आदि पर ध्यान दे रहे हैं। जबकि कुछ क्षेत्रों में बंदरों और सुअरों के आतंक के चलते भी लोग खेती से दूर भाग रहे हैं।

http://www.amarujala.com/news/states/uttarakhand/almora/Almora-55517-113/
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पहाड़ पर कृषि क्रांति का अग्रदूत माने जाने वाले मलेथा गांव में स्टोन क्रशरों की मंजूरी के खिलाफ किसानों का आंदोलन आखिरकार रंग लाया। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि मलेथा गांव में स्टोन क्रशर नहीं लगेगा। अगर लगना भी होगा तो गांव के आसपास जगह तलाश की जाएगी।

रविवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि जिलाधिकारी युगलकिशोर पंत को इस मामले की समीक्षा के आदेश जारी कर दिए गए हैं।

आंदोलनकारी से मिले सीएम
शनिवार को हुई बस दुर्घटना के घायलों को देखने बेस अस्पताल पहुंचे मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात कहने के लिए मलेथावासी जुट गए थे। डेढ़ घंटे इंतजार के बाद भी मंत्री प्रसाद नैथानी के आग्रह और आंदोलनकारियों के रोष को देखते हुए आखिर एक आंदोलनकारी देब सिंह को सीएम से मिलने की अनुमति मिली।

देब सिंह ने मलेथा में किसी भी हालत में क्रशर नहीं लगने देने की मुख्यमंत्री से गुजारिश की और मांग न माने जाने पर आत्मदाह की चेतावनी दी। मुख्यमंत्री ने उन्हें क्रशर न लगाए जाने को लेकर आश्वस्त किया।

गढ़वाल विवि छात्र संघ ने भी दिया समर्थन
श्रीनगर संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष अनिल स्वामी, मलेथा के ग्राम प्रधान शूरवीर सिंह बिष्ट, महिला अध्यक्ष विमला देवी, पूर्व ग्राम प्रधान रघुवीर सिंह समेत करीब 10 आंदोलनकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से वार्ता की कोशिश की, लेकिन मुख्यमंत्री मुस्कुराकर चल दिए।

मलेथा में क्रशर के विरोध में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने के लिए रविवार को गढ़वाल विवि छात्र संघ के पदाधिकारी भी पहुंचे। इस मौके पर छात्र नेताओं ने भी क्रशर को मलेथा से हटाए जाने की मांग की।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत अब अपनी जमीन पर जंगल लगाकर धन कमाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों ने नई पीढ़ी को स्वस्थ पर्यावरण देने की खातिर बिना स्वार्थ यह काम किया है।

ऐसे ही लोगों में उत्तराखंड जिले के एक शिक्षक हैं। उन्होंने बर्नीगाड़ इंटर कॉलेज की 12 बीघा पथरीली बंजर जमीन पर 118 प्रजाति के पेड़-पौधों का मिश्रित जंगल तैयार कर डाला। उनका यह काम सरकार और सिस्टम के साथ ही पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन के झंडेबरदारों को भी आईना दिखाने वाला है।

जुनून की हद तक पेड़-पौधों से लगाव रखने वाले इसी कालेज के अध्यापक सोवेंद्र सिंह की 17 साल की मेहनत के बूते पनपे इस जंगल में मैदानी तथा पहाड़ी फल प्रजाति के साथ ही जंगली पेड़-पौधों की भरमार है।

अब पर्यावरण संरक्षण में लगे गुरुजी की कोशिश कॉलेज से जुड़े 25 गांवों में स्थानीय लोगों एवं छात्रों के साथ मिलकर इसी तरह का मिश्रित वन तैयार करने की है।



जखोल से 17 वर्ष पूर्व बर्नीगाड इंटर कालेज में स्थानांतरित होकर आए सोवेंद्र सिंह ने 72.5 नाली जमीन में करीब 47 गांवों से दान में मिली पथरीली जमीन को हराभरा करने का संकल्प लिया। उन्होंने इसके लिए छात्र-छात्राओं की मदद ली।

ढलाव जमीन पर सीढ़ीदार खेत तैयार कर इससे आम, अमरूद, लीची, अनार, आडू, पुलम, खुमानी, बादाम, नाशपाती, कीनू, केला, अखरोट, नीबू, पपीता, कपास, च्यूरा, इमली, जामुन, आंवला, हरड़, तेजपत्ता, नीम, पीपल, बरगद, बांज, देवदार आदि 118 प्रजाति के पेड़-पौधे पनपाए।

पर्यावरण संरक्षण की रचनात्मक पहल की बदौलत बर्नीगाड इंटर कॉलेज प्रदेश में ईको क्लब में शामिल है तथा वर्ष 2011 में अजमेर राजस्थान में आयोजित में प्रकृति मेले में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर प्रथम स्थान प्राप्त किया।

गरीब बच्चों को लिया गोद
शिक्षक सोवेंद्र सिंह न केवल पर्यावरण संरक्षण में जुटे हैं, बल्कि गरीब बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का काम भी कर रहे हैं। सोवेंद्र अपने वेतन से विद्यालय में अध्ययनरत 15 गरीब निराश्रित बच्चों की किताब एवं फीस का खर्चा उठाने के साथ ही हाईस्कूल एवं इंटर में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत करते हैं। पढाई आदि सभी खर्चो के लिए बिजोली गांव की गरीब बालिका एवं सिंगुणी गांव के बालक को गोद लिया है।

http://www.dehradun.amarujala.com/feature/city-hulchul-dun/school-teacher-sovendra-singh-is-roll-model-hindi-news/?page=1

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

--- Quote from: एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720 on October 15, 2007, 03:44:51 PM ---
Few more....  ....



--- End quote ---

Small size Tractors are required to be introduced in Uttarakhand..

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