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How To Promote Tourism - उत्तराखंड मे पर्यटन को कैसे बढाया जा सकता है?
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
May be good step.
उत्तराखंड में ट्रैकिंग फ्री
ओमप्रकाश भट्ट ॥ गोपेश्वर
उत्तराखंड में पर्वतारोहियों को अब भारी भरकम माउंटेनियरिंग चार्ज नहीं देना पड़ेगा। यह बात मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने राज्य सरकार के पर्यटन विभाग के कार्यों की हालिया समीक्षा बैठक में कही। इतना ही नहीं राज्य में संचालित सरकारी डाक बंगले अब पर्यटकों के लिए भी खोल दिए जाएंगे। इन डाक बंगलों में बेहतर आवासीय सुविधा बहाल करने के लिए इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत संचालित किया जाएगा। इसमें लोक निर्माण विभाग से लेेकर सिंचाई विभाग के निरीक्षण भवनों को भी शामिल किया जाएगा। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इस बाबत प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया।
गढ़वाल और कुमाऊं मंडल होंगे एक
साथ ही उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊं मंडल विकास निगम को एक निकाय के अंतर्गत लाने के लिए प्रस्ताव बनाने का निर्देश भी दिया। उन्होंने कहा कि इससे राज्य में पर्यटन की गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जा सकेगा। साथ ही इससे राज्य के पर्यटन को गढ़वाल या कुमाऊं की बजाय उत्तराखंड पर्यटन के नाम से पहचान मिलेगी। मुख्यमंत्री ने गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल के गेस्ट हाउसों की दशा को चिंताजनक बताया और इन्हें कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखते हुए पीपीपी मोड में संचालित किए जाने की संभावना की स्टडी करने को कहा। उन्होंने इस बात कैबिनेट में एक प्रस्ताव लाने का निर्देश दिया।
पर्यटन में निवेश पर विचार
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में पर्यटन की असीमित संभावनाएं हैं। पर्यटन के क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रक्रियाओं को सरल किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने निवेश के प्रस्तावों पर कार्रवाई के लिए समय सीमा निश्चित करने का निर्देश दिया। पीडब्ल्यूडी, सिंचाई और अन्य सरकारी विभागों के दगेस्ट हाउसों के बेहतर उपयोग और इनका विकास आय के स्रोत के रूप में करने के लिए इन्हें भी पीपीपी मोड में संचालित किए जाने पर बल दिया। मुख्यमंत्री ने राफ्टिंग सहित साहसिक पर्यटन पर लगाए गए विभिन्न करों की वसूली एक ही बिंदु पर करने और 'बीच कैम्पिंग नीति' कैबिनेट में लाने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित इको टूरिज्म बोर्ड को पर्यटन विभाग के अंतर्गत रखने पर विचार किया जाएगा। साथ ही उन्होंने पर्यटक गाइडों के लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
तीर्थ स्थलों की राह में सुविधाएं
इसके अलावा मुख्यमंत्री ने राज्य के पर्यटन स्थलों का व्यापक प्रचार - प्रसार किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने नई दिल्ली में पर्यटन मॉर्ट आयोजित कर देश के प्रमुख ट्रेवल एजेंटों को आमंत्रित करने का निर्देश दिया। साथ ही मुख्यमंत्री ने चारधाम , हेमकुंड साहिब , पिरान कलियर सहित प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों की बेहतर सफाई व्यवस्था सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। इस दौरान सीएम ने बताया कि केदारनाथ मार्ग पर जल्द बायोडिग्रेडेबल टॉयलेट बनाए जाएंगे। चारधाम मार्ग पर इस तरह के टॉयलेट के निर्माण के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया है , जिसके तहत हर 10 या 15 किमी की दूरी पर बेहतर सुविधा संपन्न टॉयलेट बनाए जाएंगे। इन पर 24 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावि त है।
Source - Navbharat times.
विनोद सिंह गढ़िया:
अनदेखी का शिकार हैं पर्यटन स्थल
चंपावत जिले में पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं के बावजूद कई स्थल पर्यटकों की नजरों से ओझल हैं। यहां चंद एवं कत्यूरी राजवंशों के अलावा आजादी के दौर के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों की भरमार होने के बाद भी पर्यटकों की आमद बेहद सीमित है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मत्स्य आखेट एवं रिवर राफ़्ंटग प्रतियोगिताओं के आयोजन से विश्व पर्यटन मानचित्र में स्थान बनाने वाले पंचेश्वर जैसे महत्वपूर्ण स्थल भी पर्यटकों की आमद बढ़ाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। बताते चलें कि जिले में पर्यटन स्थलों के नाम पर स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों की ओर से स्थापित अद्वैत आश्रम मायावती, मां पूर्णागिरि धाम, गुरुद्वारा श्रीरीठासाहिब, अंग्रेजों का बसाया एबटमाउंट और पाषाण युद्ध के लिए प्रसिद्ध देवीधुरा की बग्वाल की ही कुछ हद तक पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है।
दरअसल खस्ताहाल सड़कों एवं बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण जिले के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थलों में पर्यटकों के कदम कम ही पड़ते हैं। जिसके लिए यह उदाहरण ही काफी होगा कि चंद राजाओं की राजधानी रहे चंपावत में ही इंसाफ के देवता के रूप में प्रसिद्ध गोलू देवता का मूल मंदिर है। लेकिन चंपावत के मूल मंदिर से ज्यादा पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आवाजाही गोलू मंदिर की अल्मोड़ा जिले के चितई एवं नैनीताल जिले की घोड़ाखाल शाखाओं में उमड़ती है। इसके अतिरिक्त खेतीखान में आजादी के दौर में 1934 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री समेत कई दिग्गज सेनानी रहे थे, मगर इस स्थान को भी पर्यटन मानचित्र पर लाने के प्रयास नहीं किए गए। जानकारी के अभाव में कुमाऊं में रेलवे स्टेशन से सबसे कम दूरी वाला श्यामलाताल सरोवर भी पर्यटकों की नजरों से ओझल है। पर्यटन विभाग के मुताबिक जिले में रीठासाहिब और मायावती आश्रम में आने वाले तीर्थयात्रियों को मिलाकर हर वर्ष औसतन 47 से 50 हजार तक सैलानी आते हैं। जिला पर्यटन अधिकारी एसएस यादव का कहना है कि टनकपुर-पिथौरागढ़ एनएच के पूरी तरह दुरुस्त हुए बगैर यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जाना बेहद कठिन है।
साभार : अमर उजाला
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Uttarakhand has huge of tourism but Govt has failed to promote the tourism at national and international so far.
प्रकृति मेहरबान, 'नाराज' मेहमान
गौरव नौड़ियाल, पौड़ी: जहा तक नजर दौड़े, वहां तक हिमालय की तकरीबन 17 अलग-अलग चमकती चोटियां, दूर पहाड़ियों पर छितराए धूमिल से दिखते छोटे-छोटे पहाड़ी गांव और घने देवदार और बांझ के जंगलों की चादर के नीचे बसी पर्यटन नगरी अपने अप्रितम प्राकृतिक सौंदर्य के बावजूद भी पर्यटकों को रिझाने में कामयाब नहीं हो पा रही है।
पिछले छह वर्षो में पौड़ी पहुंचे अकेले विदेशी पर्यटकों के आगमन पर नजर दौड़ाएं तो बेहद निराशाजनक आंकड़ा सामने आता है। पिछले छह वर्षो में महज 728 विदेशी पर्यटक ही पौड़ी का दीदार करने आए। जबकि इस वर्ष 48 विदेशी सैलानियों ने ही पौड़ी का दीदार किया। भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य के बावजूद पर्यटन नगरी से मुंह मोड़ रहे पर्यटकों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पर्यटक किस कदर पर्यटन नगरी में मौजूद सुविधाओं से आहत हैं।
पर्यटकों की पहली पसंद जनपद का कोटद्वार जोन है, जबकि दूसरा श्रीनगर। पौड़ी पर्यटकों की आखिरी पंसद है। इसके पीछे यात्रा पड़ाव के तर्क को भी जोड़ा जाए तब भी प्रतिवर्ष पौड़ी पहुंचने वाले पर्यटकों की आमद में लगातार गिरावट आ रही है।
जनपद पंहुचे पर्यटक:
वर्ष जोन भारतीय विदेशी
2007 पौड़ी 82,780 60
- कोटद्वार 2,32,632 15,869
- श्रीनगर 2,22, 475 186
2008 पौड़ी 85,447 53
- कोटद्वार 2,86,824 16,237
- श्रीनगर 20,2486 306
2009 पौड़ी 90,960 32
- कोटद्वार 32,1936 21,168
- श्रीनगर 2,47,974 339
2010 पौड़ी 37, 616 131
- कोटद्वार 3,45,000 23,719
- श्रीनगर 1,44,613 2,178
2011 पौड़ी 48,714 404
- कोटद्वार 3,14000 18,406
- श्रीनगर 2,91000 4735
सितंबर 2012 तक
- पौड़ी 56,900 48
- कोटद्वार 2,37,300 6766
- श्रीनगर 2,49,800 2302
नोट- आंकड़े पर्यटक विभाग से लिए गए हैं
पौड़ी में प्राकृतिक सुंदरता के बावजूद पर्यटकों की कमी के पीछे मुख्य वजह मूलभूत सुविधाओं की कमी है। पौड़ी में पर्यटकों को बेहत्तर सुविधाएं देने के लिए पर्यटन विभाग के द्वारा रांसी में गेस्ट हाउस सहित हट भी प्रस्तावित हैं।
पीके गौतम, जिला पर्यटन अधिकारी
(Dainik Jagran)
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
संरक्षण के अभाव में खंडहर हो रही एतिहासिक धरोहर Updated on: Sun, 02 Dec 2012 10:19 PM (IST) संरक्षण के अभाव में खंडहर हो रही एतिहासिक धरोहर
जाका, चम्पावत : जिले में ऐतिहासिक धरोहरें संरक्षण के अभाव में जीर्णशीर्ण हो रही हैं। लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी पुरात्वात्विक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण इमारतें, किलों और देवालयों को मूल स्वरूप में नहीं लाया जा सका है। मुख्यालय के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का सुधलेवा कोई नहीं है। यहां कई स्थल और किले तो पुरातत्व विभाग के संरक्षण में नहीं है। जिसके कारण इन ऐतिहासिक स्थलों को दुरुस्त करना तो दूर सहेजना तक मुश्किल है। मालूम हो कि कुमाऊं की उत्पत्ति का नगर चम्पावत माना जाता है। कला, संस्कृति, रहन-सहन और विभिन्न सरोकार यहां पुष्पित व पल्लवित हुए। सातवीं सदी के आसपास इलाहाबाद से आए चंद वंशीय राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया। यहां से पूरे कुमाऊं गढ़वाल समेत तराई भावर तक अपना साम्राज्य फैलाया। इस दौरान नगर के शीर्ष भाग में राजबुंगा किला का निर्माण कर पूरे उत्तराखंड की हुकूमत चलाई। बालेश्वर मंदिर समूह के अलावा रानी चौपड़, विभिन्न नौलों धारों धर्मशालाओं का निर्माण हुआ। तमाम ऐतिहासिक धरोहरें जिला मुख्यालय में हैं। जूप, चैकुनी, तल्ली मादली में ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थापित है। खेतीखान का सूर्य मंदिर लोहाघाट का वाणासुर किला, झालीमाली, ब्यानधुरा, घटोत्कच्छ मंदिर, हिडंबा की स्थली जनपद की पुरात्वात्विक श्रेणी को मजबूती देते हैं। परंतु इनके संरक्षण की पहल को ठोस रूप नहीं मिल पा रहा है। दूनकोट किले के अब मात्र अवशेष शेष हैं। जनपद में केवल आधा दर्जन देव स्थलों को ही पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लिया है। चंद राजाओं का राजबुंगा किला संरक्षण की श्रेणी में नहीं है। बालेश्वर मंदिर समूह में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उसका संरक्षण अधूरा छोड़ दिया गया है। 2005 के आसपास कार्य शुरू हुआ। लेकिन, उसे मूल स्वरुप में वापस नहीं लाया जा सका है। मंदिरों के शिलाखंड बिखरे हैं, जीर्णोद्धार का कार्य बजट के अभाव में ठप है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी कहते हैं कि स्वीकृत बजट का उपयोग कर अगले बजट के लिए डिमांड रखी गई है।
(Source - Dainik Jagran)
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कब होगा गुफाओं की घाटी का विकास Updated on: Sun, 02 Dec 2012 10:19 PM (IST) कब होगा गुफाओं की घाटी का विकास
जाका, गंगोलीहाट : पाताल भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर और कोटेश्वर सहित 21 शिवस्थल वाले गुफाओं की घाटी का घोषणा के बाद भी विकास नहीं हो सका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर, कोटेश्वर जैसी गुफाएं अभी भी गुमनाम हैं।
स्कंध पुराण के मानस खंड में दारुका वन क्षेत्र में 21 शिवस्थलों का वर्णन किया गया है। जिसमें अभी तक सभी शिव स्थलों का पता नहीं चल सका है। पुराणों में उल्लखित दारुका वन पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट, बेरीनाग सहित सरयू नदी के दूसरी तरफ अल्मोड़ा जनपद का जागेश्वर क्षेत्र है। जिसमें जागेश्वर धाम समेत गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर अपनी विशिष्टताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन दोनों स्थानों को छोड़ दिया जाए तो अभी तक सभी 21 शिव स्थलों का पता नहीं चल सका है।
गंगोलीहाट क्षेत्र में पाताल भुवनेश्वर गुफा अपनी विशेषताओं के लिए जानी जाती है। इसे शिव स्थल के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अतीत में ही अस्तित्व में आइ मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर, कोटेश्वर गुफाएं अभी भी विकास की बाट जोह रही हैं। स्थानीय लोगों की आस्था की केंद्र ये गुफाएं पयर्टन का माध्यम नहीं बन सकी हैं। हालांकि पाताल भुवनेश्वर गुफा इन सबमें सबसे बड़ी और विशेषताओं वाली है। लेकिन, अन्य गुफाएं भी पौराणिक महत्व की हैं।
हाल के वर्षो में इस क्षेत्र में तीन अन्य गुफाएं प्रकाश में आइ। जिसमें टिम्टा नामक स्थान पर महेश्वर गुफा, भूलीगांव में भोलेश्वर गुफा और भंडारीगांव में तामेश्वर गुफा शामिल है। हाल ही में प्रकाश में आयी तीनों गुफाएं गुमनामी में हैं। स्थानीय जानकारों का मानना है कि इस क्षेत्र में अभी कई गुफाएं हैं जो प्रकाश में नहीं आ सकी हैं। क्षेत्र में आठ गुफाओं के प्रकाश में आने के बाद इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं बताई गयी। जिसे देखते हुए वर्ष 1998 में क्षेत्र को गुफाओं की घाटी के रुप में विकसित करने की जनप्रतिनिधियों द्वारा घोषणा भी हुई। उस समय इस दिशा में पहल होने की संभावना भी नजर आ रही थी। इस बीच उत्तराखंड राज्य बनने तथा प्रदेश को पर्यटन प्रदेश बनाने के दावे हुए। जिससे गुफाओं का विकास तथा वहां तक पर्यटकों के पहुंचने की आस जगी थी। राज्य गठन के बारह वर्ष हो चुके हैं। लेकिन, गुफाओं की घाटी जस की तस है। पर्यटन में अभी तक पाताल भुवनेश्वर को छोड़ कर अन्य गुफाओं का कहीं भी जिक्र नहीं होता है। ऐसे में पर्यटन प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे खोखले नजर आ रहे हैं।
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महाकाली मंदिर और पाताल भुवनेश्वर गुफा स्थित होने से गंगोलीहाट व बेरीनाग का विशेष महत्व है। यहां पर कई स्थल ऐसे हैं जो प्रकाश में नहीं आए हैं। इन स्थलों को पर्यटन मानचित्र में लाने के प्रयास किए जाएंगे। इससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा।
नारायण राम आर्य, विधायक
(dainik jagran).
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