Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 38308 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धूं-धूं कर जल रहे हैं बागेश्वर के जंगल

जाका, बागेश्वर : जिले के जंगल आग की चपेट में आ गये हैं। विभिन्न स्थानों पर लगी आग को बुझाने में वन विभाग भी नाकाम है। ऐसे में वन संपदा आग की भेंट चढ़ रही है।
  कलक्ट्रेट के समीप पहाड़ी में दोपहर से आग लगी है, लेकिन वन विभाग हरकत में नहीं आया। इसी तरह छतीना के जंगलों में भी भीषण आग लगी है। गरुड़, कपकोट व कांडा के जंगल भी आग की चपेट में हैं। इधर, विभिन्न संगठनों ने कहा है कि यदि शुरुआत में ही यह हाल है तो जून व जुलाई में जंगलों की बेकाबु आग को वन विभाग कैसे नियंत्रित करेगा।
 बाक्स
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  कुछ स्थानों पर लगी आग को नियंत्रित करने के लिए फायरकर्मी लगे हैं। कलक्ट्रेट के समीप लगी आग को दिन में तेज हवाओं के कारण बुझाया नहीं जा सका। जल्द ही आग पर काबू पा लिया जाएगा। जिले में आग की किसी भी घटना से निबटने के लिए वन विभाग तैयार है।
  -धर्म सिंह मीणा, डीएफओ।
(dainik jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बारूद के ढ़ेर पर चीड़ के जंगल

नई टिहरी: पहाड़ो में सूरज की तपिश बढ़ने लगी है, लेकिन वन महकमा अभी तक होश में नहीं आया है। जिले में वन विभाग ने जंगलों को पिछले वर्ष की तरह इस बार भी जलने के लिए छोड़ा है। ना ही फायर लाइन की सफाई हुई और ना ही पिरुल (तेजी से आग पकड़ने वाली चीड़ की पत्तिया) की सफाई शुरू की गई है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि अगर कहीं भी छोटी सी चिंगारी भड़की तो उस पर काबू करना मुश्किल ही नामुमकिन सी होगी।  पिछले वर्ष फायर सीजन में पूरे गढ़वाल में सबसे ज्यादा नुकसान टिहरी वन प्रभाग में हुआ था। टिहरी में लगभग 579.20 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया था। मुख्यालय की टिहरी रेंज में तो आग बेकाबू हो गई थी। न विभाग ने इससे सबक न लेकर इस बार भी टिहरी रेंज के जंगलों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। अभी तक टिहरी रेंज की 26 किलोमीटर लंबी फायर लाइन की सफाई बस औपचारिकता निभाने के लिए की गई।
 इसी तरह रेंज के जंगलों में पीरुल भी जहां-तहां बिखरा पड़ा है, जबकि पीरुल फायर सीजन में सबसे खतरनाक होता है। इसमें आग तेजी से फैलती है। पिछले वर्ष भी आग लगने का सबसे प्रमुख कारण पीरुल ही था।
 यह हुआ था नुकसान
 टिहरी जिले में पिछले वर्ष पूरे गढ़वाल मंडल में आग से सबसे ज्यादा नुकसान टिहरी वन प्रभाग में हुआ था। टिहरी में आग से 36.52 हेक्टेयर पौधरोपण जलकर राख हुआ। लीसा के पेड़ों में 1200 घाव दर्ज किए गए।
 कलेक्ट्रेट तक में पहुंच गई थी आग
 पिछले वर्ष फायर सीजन में टिहरी रेंज से सटे जिला मुख्यालय में भी आग पहुंच गई थी। आग लगने से जिला मुख्यालय के सभी कर्मचारियों में दहशत फैल गई थी। उसके बाद फायर ब्रिगेड के वाहन ने आग पर काफी मशक्कत के बाद काबू पाया था।
 यहां है खतरा
 जिला मुख्यालय से सटे जंगलों में पीरुल बिखरा है। डाइजर से लेकर सुरसिंगधार और घोनाबागी के बीच स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। यहां बीच में काफी आबादी रहती है। इसी तरह बुडोगी डांडा भी संवेदनशील क्षेत्र है।
 फायर सीजन में सतर्कता बेहद जरूरी है। अगर टिहरी में फायर सीजन को लेकर लापरवाही है तो इस संबंध में वहां के अधिकारियों को निर्देश दिए जाएंगे।
 गंभीर सिंह, मुख्य वन संरक्षक, गढ़वालhttp://www.jagran.com/uttarakhand/tehri-garhwal-

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This is a good initiative.

पिरुल से बने कोयले से जलेगी अलाव
Rudraprayag | 13 मई 2013 5:30 AM

रुद्रप्रयाग। बदरी-केदार मंदिर समिति धाम में अलाव की व्यवस्था नियमित बनाए रखने के लिए इस बार पिरुल से बने कोयलाें का प्रयोग करेगी। इसके लिए समिति ने वन विकास निगम को डिमांड भी दे दी है। यात्राकाल के दौरान मंदिर समिति धाम में अलाव की व्यवस्था तो करती है लेकिन समय से लकड़ी न मिलने से अव्यवस्था पैदा हो जाती हैं। इसी को देखते हुए इस बार मंदिर समिति ने धाम में अलाव की व्यवस्था के लिए पिरुल से बने कोयले का प्रयोग करने का निर्णय लिया है। बदरी-केदार मंदिर समिति के कार्याधिकारी अनिल शर्मा ने बताया कि समिति को हर यात्राकाल के दौरान अलाव की उचित व्यवस्था न होने की शिकायत मिलती है। इसी को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व धाम में पिरुल के कोयलाें का स्टोर कर दिया जाएगा। एक फर्म को 20 कुंतल कोयले की डिमांड भी दे दी गई है। वहीं पिरुल से बने कोयलों का प्रयोग होने से एक तरफ लोगों को ठंड से राहत मिलेगी तो दूसरी ओर वनाग्नि की घटनाआें पर भी अंकुश लग सकेगा।
(amar ujala)

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पीरुल बना रोजगार का जरिया

रानीखेत : पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में बहुतायात मात्रा में बेकार पड़ा रहने वाला पीरुल अब यहां के लोगों के लिए आय का जरिया बन रहा है। वन विभाग द्वारा पीरुल से कोयला बनाए जाने की योजना का लाभ पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को मिल रहा है।

जंगलों में बेकार पड़ा रहने वाले पीरुल अब यहां के लोगों के लिए रोजगार का मुख्य जरिया बनने लगा है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पीरूल को एकत्र कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रही हैं। वन विभाग द्वारा कोयला बनाने की योजना से जहां जंगलों में होने वाली दावाग्नि को रोकने में मदद मिल रही है वहीं रोजगार मिलने के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग इस इस योजना से जुड़कर लाभ अर्जित करने में लगे हैं। पीरुल को एकत्र कर ब्लाक बनाने वाली मशीन के आपरेटर रमेश बिष्ट ने बताया कि इन दिनों मजखाली, द्वारसौं, कफलकोट, शीतलाखेत, चिनौना, सौनी सहित कई क्षेत्रों में लगभग 200 महिलाएं पीरुल एकत्र करने में लगी हैं। जिसके उन्हें प्रति किलो हिसाब से भुगतान किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मशीन द्वारा एक घंटे में लगभग 20 से 22 कुंतल ब्लाक तैयार कर दिया जाता है। उधर पीरुल एकत्र कर रही महिलाओं का कहना है कि जंगलों में बहुतायात मात्रा में पड़ा पीरुल को एकत्र करने में अधिक समय नहीं लगता है। उन्होंने बताया कि वह प्रतिदिन लगभग 130 से 150 रुपए की आमदनी अर्जित कर लेती हैं। वन क्षेत्राधिकारी डीआर आर्या का कहना है कि पीरुल से कोयला बनाने की योजना कारगर सिद्ध हो रही है। इससे जहां वनों में आग फैलने का खतरा कम हो गया है वहीं महिलाओं को अतिरिक्त आमदनी हो रही है। उन्होंने बताया कि गैरगांव व सौनी वन पंचायतों में कोयला उत्पादन आरंभ हो गया है तथा द्वारसौं में शीघ्र ही इसकी शुरूआत की जाएगी।

(dainik jagran).

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दावाग्नि से धधके कई जंगल
बुधवार, 30 अप्रैल 2014
Pithoragarh
Updated @ 5:31 AM IST
अस्कोट। गर्मी बढ़ने के साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी तेज होने लगी है। क्षेत्र के थाम, गर्ब्या, गचौरा समेत कई जंगलों में पिछले दो दिन से आग धधक रही है। वन विभाग ने आग बुझाने और वनों को आग से बचाने के लिए कोई तैयारी नहीं की है।
अस्कोट क्षेत्र के आसपास के जंगलों में शनिवार की शाम से आग धधक रही है। थाम, गर्ब्या, गचौरा, खोलियागांव, भागीचौरा के जंगलों में फैली आग को बुझाने के लिए वन विभाग ने अभी तक कोई तैयारी नहीं की है। वन रेंजर केआर टम्टा मौके पर वन कर्मियों की टीम मौजूद होने की बात कह रहे हैं।
फोटो 29 पीटीएच 7 पी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Govt of Uttarakhand should take pro-active decision to safe forest in UK.

 

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