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उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट वरदान या अभिशाप ?

अभिशाप
21 (56.8%)
वरदान
10 (27%)
कह नहीं सकते
6 (16.2%)

Total Members Voted: 37

Voting closes: October 10, 2037, 04:59:09 PM

Author Topic: Hydro Projects In Uttarakhand - उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट  (Read 39180 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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                झील की आपदा से  त्रस्त हुए ग्रामीण
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                                          नई  टिहरी, जागरण कार्यालय: टिहरी बांध प्रभावित ग्रामीणों की दुश्वारियां  बढ़ती ही जा रही है। टीएचडीसी ने उनका सब कुछ तो छीन लिया, लेकिन उनका  वाजिब हक तक उन्हें नहीं दिया गया है। इन्हीं गांव में शामिल है तिवाड़  गांव जहां के ग्रामीण अपने हकों की लड़ाई लड़ते-लड़ते थक चुके हैं, लेकिन  उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। स्थिति यह है कि प्रभावित ग्रामीण नारकीय  जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
तिवाड़ गांव आंशिक डूब क्षेत्र में शामिल होने के बावजूद बांध की झील से  सबसे ज्यादा प्रभावित है। नब्बे परिवार वाले इस गांव के 19 परिवारों को  विस्थापन के नाम पर उन्हें महज कृषि भूमि हासिल हुई है, लेकिन भवन का  मुआवजा नहीं मिल पाया है। वहीं शेष परिवार आज गांव में झील के कारण पैदा  हुई दिक्कतों से जूझ रहे हैं। झील में जलभराव के बाद गांव में लगातार  भूस्खलन बढ़ता जा रहा है, जिससे गांव को खतरा बना हुआ है। विकट  परिस्थितियों में गांव में निवास कर रहे परिवार लगातार गांव के विस्थापन  की मांग करते आ रहे हैं और कई बार आंदोलन भी किया है, लेकिन इस ओर अब तक  कोई कदम नहीं उठाया गया है।
ग्राम प्रधान बालम सिंह ने बताया कि झील का जलस्तर बढ़ने के पर गावं  में भूस्खलन शुरू हो जाता है, जिस कारण गांव को खतरा बना हुआ है। उन्होंने  गांव के शीघ्र गांव के विस्थापन की मांग की है।
   

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6782347.html

       

Devbhoomi,Uttarakhand

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                भूस्खलन से टिहरी बांध पावर हाउस को खतरा
                                                                                   सतीश उनियाल, नई टिहरी
पिछले दिनों भारी वर्षा के बाद टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने  निर्धारित मानकों को ताक पर रखकर टिहरी बांध झील का जलस्तर 832 मीटर तक  बढ़ा दिया। उसके इस लापरवाह फैसले ने जहां जिले के दर्जनों गावों को झील  के पानी में डुबा दिया, वहीं अब खुद बांध के पावर हाउस पर भी खतरा बढ़ गया  है। दरअसल, जलस्तर में बढ़ोतरी के बाद बांध के इर्द-गिर्द पहाड़ों से  भूस्खलन शुरू हो गया है। लगातार गिर रहे मलबे से पावर हाउस को नुकसान की  आशंका जताई जा रही है। यह भी बता दें कि पूर्व में भूवैज्ञानिकों के सर्वे  में इस क्षेत्र को भूगर्भीय हलचलों की दृष्टि से खतरनाक बताया गया था।
उल्लेखनीय है कि करीब दो माह तक लगातार बारिश के बाद टीएचडीसी ने एशिया  के सबसे बड़े टिहरी बांध का जलस्तर 832 मीटर तक बढ़ाने का निर्णय लिया। खास  बात यह रही कि इसके लिए कॉरपोरेशन ने राज्य सरकार की ओर से निर्धारित  मानकों समेत केंद्रीय जल आयोग के नियामकों का भी उल्लंघन किया और बिना  पूर्व अनुमति के बांध में पानी बढ़ा दिया गया। नतीजा, टिहरी समेत  उत्तरकाशी जिले के दर्जनों गांवों पर खतरा बन गया। सैकड़ों घर, संपर्क  मार्ग, खेत झील में डूब गए। पानी बढ़ने से पहले ही भूस्खलन की मार झेल रहे  बांध के इर्द-गिर्द के पहाड़ों पर स्लाइडिंग जोन सक्रिय हो गए। इससे  ग्रामीणों को एक ओर झील तो दूसरी ओर पहाड़ों से गिर रहे मलबे की दोहरी मार  झेलनी पड़ रही है।
हालांकि, सैकड़ों ग्रामीणों को मुसीबत में डालने वाले कॉरपोरेशन को अब  अपनी लापरवाही की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। दरअसल, बांध के ठीक ऊपर  पहाड़ी पर भूस्खलन के कारण भारी मात्रा में मलबा व बोल्डर झील में गिर रहा  है। इससे बांध समेत इससे जुड़े पावर हाउस पर भी खतरा मंडरा रहा है।
यहां बता दें कि वर्ष 1989-90 में सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ  भूवैज्ञानिक डॉ. पीसी नवानी की ओर से बांध क्षेत्र के सर्वे के बाद दी गई  रिपोर्ट के मुताबिक बांध क्षेत्र व उसके आसपास कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां  जमीन बेहद अस्थिर है। इसके अध्ययन व सर्वे की और आवश्यकता है। रिपोर्ट में  पावर हाउस के ऊपर की जमीन को भी जोखिम भरा बताया गया था। हैरत की बात यह  है कि टीएचडीसी ने इस रिपोर्ट को दरकिनार कर न सिर्फ बोरिंग व ब्लास्टिंग  की, बल्कि रॉक परीक्षण भी नहीं किया गया।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6795651.html


        

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pahad is already suffering from natual calamities. There are many such dams which are in-pipe line.
 
Govt must keep the public life in to consideration before approvaing such high projects dams.
 
 
                भूस्खलन से टिहरी बांध पावर हाउस को खतरा
                                                                                   सतीश उनियाल, नई टिहरी
पिछले दिनों भारी वर्षा के बाद टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने  निर्धारित मानकों को ताक पर रखकर टिहरी बांध झील का जलस्तर 832 मीटर तक  बढ़ा दिया। उसके इस लापरवाह फैसले ने जहां जिले के दर्जनों गावों को झील  के पानी में डुबा दिया, वहीं अब खुद बांध के पावर हाउस पर भी खतरा बढ़ गया  है। दरअसल, जलस्तर में बढ़ोतरी के बाद बांध के इर्द-गिर्द पहाड़ों से  भूस्खलन शुरू हो गया है। लगातार गिर रहे मलबे से पावर हाउस को नुकसान की  आशंका जताई जा रही है। यह भी बता दें कि पूर्व में भूवैज्ञानिकों के सर्वे  में इस क्षेत्र को भूगर्भीय हलचलों की दृष्टि से खतरनाक बताया गया था।
उल्लेखनीय है कि करीब दो माह तक लगातार बारिश के बाद टीएचडीसी ने एशिया  के सबसे बड़े टिहरी बांध का जलस्तर 832 मीटर तक बढ़ाने का निर्णय लिया। खास  बात यह रही कि इसके लिए कॉरपोरेशन ने राज्य सरकार की ओर से निर्धारित  मानकों समेत केंद्रीय जल आयोग के नियामकों का भी उल्लंघन किया और बिना  पूर्व अनुमति के बांध में पानी बढ़ा दिया गया। नतीजा, टिहरी समेत  उत्तरकाशी जिले के दर्जनों गांवों पर खतरा बन गया। सैकड़ों घर, संपर्क  मार्ग, खेत झील में डूब गए। पानी बढ़ने से पहले ही भूस्खलन की मार झेल रहे  बांध के इर्द-गिर्द के पहाड़ों पर स्लाइडिंग जोन सक्रिय हो गए। इससे  ग्रामीणों को एक ओर झील तो दूसरी ओर पहाड़ों से गिर रहे मलबे की दोहरी मार  झेलनी पड़ रही है।
हालांकि, सैकड़ों ग्रामीणों को मुसीबत में डालने वाले कॉरपोरेशन को अब  अपनी लापरवाही की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। दरअसल, बांध के ठीक ऊपर  पहाड़ी पर भूस्खलन के कारण भारी मात्रा में मलबा व बोल्डर झील में गिर रहा  है। इससे बांध समेत इससे जुड़े पावर हाउस पर भी खतरा मंडरा रहा है।
यहां बता दें कि वर्ष 1989-90 में सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ  भूवैज्ञानिक डॉ. पीसी नवानी की ओर से बांध क्षेत्र के सर्वे के बाद दी गई  रिपोर्ट के मुताबिक बांध क्षेत्र व उसके आसपास कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां  जमीन बेहद अस्थिर है। इसके अध्ययन व सर्वे की और आवश्यकता है। रिपोर्ट में  पावर हाउस के ऊपर की जमीन को भी जोखिम भरा बताया गया था। हैरत की बात यह  है कि टीएचडीसी ने इस रिपोर्ट को दरकिनार कर न सिर्फ बोरिंग व ब्लास्टिंग  की, बल्कि रॉक परीक्षण भी नहीं किया गया।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6795651.html


 

विनोद सिंह गढ़िया

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पहाड़ की त्रासदी
« Reply #103 on: October 23, 2010, 12:57:01 PM »
     
पहाड़ की त्रासदी
 
मध्य हिमालय में नदियों पर बनने वाले बांध बेतहाशा बारिश की धार पर अनेक सवाल खड़े कर गए। विकास और विध्वंस की इस बेसुरी जुगलबंदी ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या भूकंपीय क्षेत्र में आने वाले इन पहाड़ों पर इतने बड़े बांध बनाना उचित है? भारी बारिश ने सैकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। सड़कें टूट गईं। दरारों ने गांवों को बांट दिया। यह सब छेड़छाड़ से नाराज प्रकृति के गुस्से का नतीजा है। इस प्राकृतिक अतिवृष्टि से टिहरी झील का जलस्तर अपनी क्षमता से अधिक 830 मीटर तक हो गया। इससे आसपास के दर्जनों गांव काल के गाल में समा गए। कोटी कॉलोनी से चिल्याणीसौण तक जलमग्न हो गए थे।

400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना की सुरंग लामबगड़ से लेकर चाई गांव तक लगभग 12 किलोमीटर लंबी है। चाई गांव के नीचे से इसकी 4 सुरंगें पावर हाउस तक जाती हैं। सितंबर-अक्टूबर 2007 में इस गांव में भूस्खलन होने लगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके गांव के नीचे से गुजर रही पानी की सुरंगों से जल रिसाव हुआ, जिसके कारण ढलवा पहाड़ी पर बसा चाई गांव अलकनंदा तट पर बने विष्णुप्रयाग जलविद्युत बिजलीघर की ओर खिसकने लगा। छोटे राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट की खुली छूट दिखाई दे रही है। उत्तराखंड में प्रस्तावित बांधों की संख्या 220 से बढ़कर 558 तक पहुंच गई। पांच हजार गांव उन सुरंगों के ऊपर होंगे जो लाखों लोगों को बेघर कर सकती हैं और उन्हें मौत की नींद सुला सकती हैं। पर्यावरण संगठनों एवं मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है।

परियोजना विकास के लिए है या लोभ के लिए? अगर यह विकास पहाड़वासियों को मिलता है तो ठीक है वरना नदियों को सुरंगों में डालकर इलाके को जोखिम में डालना कहां की समझदारी है। आज सिर्फ लोहारीनागपाला का सवाल नहीं है। पूरे देश में विकास के नाम पर ऐसी परियोजनाएं थोपी जा रही हैं, जो पर्यावरण से खिलवाड़ करते हुए विकास के बजाय विनाश का कारण बन सकती हैं। लोहारी नागपाला एक प्रतीक के रूप में इस बहस का केंद्र है। इससे पहले टिहरी बांध बहस के केंद्र में था। पूरा शहर विस्थापित कर दिया। पानी छोड़ा गया। नदियां खतरे के निशान से ऊपर आईं। उस समय भी कोई अनशन पर बैठा था, इस बार भी बैठा। उस समय भी समर्थन और विरोध में आवाज उठ रही थी, अब भी ऐसी ही मिली-जुली आवाजें सुनने में आ रही हैं। उत्तराखंड में पांच सौ से ऊपर जलविद्युत परियोजनाएं स्वीकृत हैं। इनके कारण चमोली में गांव धंस रहे हैं, कोसी नदी गायब हो रही है। गढ़वाल के श्रीनगर में आस्था का केंद्र धारीदेवी भी चपेट में हैं।

उत्तराखंड का बड़ा भाग भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। बहुत पहले कई संगठनों ने लोक जलनीति का मसौदा तैयार किया था, लेकिन उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। भौगोगिक दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के लिए अलग से विकास और ऊर्जा नीति बननी चाहिए। यहां सोच-समझ कर योजनाएं शुरू की जानी चाहिए न कि शुरू करने के बाद उन पर सोच-विचार हो। पहले योजनाएं बनती हैं, फिर उन पर प्रतिबंध लगता है। उत्तराखंड में बहुत से उदाहरण हैं जब लोगों ने ऊर्जा के क्षेत्र में छोटे-छोटे रचनात्मक कदम उठाए हैं। उनका लाभ उठाना चाहिए।

एचपीएसएस की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में निर्मित जल विद्युत परियोजनाओं ने नदी तटों पर बसे लोगों को प्रभावित किया है। उत्तराखंड में भारी वर्षा और बादल फटने के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत गंगा के सभी मैदानी भागों में जबरदस्त बाढ़ आई। उत्तराखंड में देवलिंग, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर आदि स्थलों पर निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं से जल रिसाव हुआ तथा सुरंग निर्माण में दरारें पड़ीं। भूस्खलन से अगर सबक नहीं लिया गया तो बड़े भवनों के निर्माण पर निरस्त की गई लोहारी नागपाला जैसी परियोजनाओं की तरह विचार करना होगा। पहाड़ की यह त्रासदी हमारे लिए एक चेतावनी है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो पहाड़ की छाती दरकने से होने वाले विनाश को रोकना संभव नहीं रह जाएगा।
[डॉ. अतुल शर्मा: लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]
साभार : http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_6840082.html
 

पंकज सिंह महर

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Closure of Ganga projects unfortunate, says UKD
« Reply #104 on: November 04, 2010, 10:50:12 AM »
  Pitthoragarh, November 2
Citing closure of three hydro power projects on the Ganga as unfortunate for the future of the state, senior Uttarakhand Karanti Dal leader Kashi Singh Airy said today that with the closure of Pala Maneri, Bhairo Ghati and Lohari Nagpala projects, the state has not only lost 1,500 MW of electricity but also thousands of jobs which the state youth needed.   “These projects do not need big reservoirs like the Tehri Dam and simply manage generation through a tunnel, causing minimum damage to the environment,” said Airy.   The Uttarakhand Karanti Dal leader said the real utilisation of water available in the rivers of Uttarakhand is to generate electricity for the state otherwise this water flows towards the plains and used in multiple category to generate prosperity there. “We, the producer and protector of this water, are being deprived of using this for our prosperity under some conspiracy of which the governments are being part of,” he alleged.   The UKD leader dared the Uttarakhand government to show the scientific study on the impact of these three projects on the Ganga. “If there is no base of scientific study for this, it is only whims of some white clothed intellectuals before whom the Uttarakhand government and the Centre have submitted the interests of the youth of Uttarakhand, who would be getting jobs in big numbers at these projects,” said Airy.   According to the Uttarakhand Karanti Dal leader, his party is against big dams in the state because these cause problem of rehabilitation but the small and run-of-the-river projects do not cause the problem of rehabilitation but can lead the state towards being a electricity state as well as help in creating more jobs.

सत्यदेव सिंह नेगी

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असमंजस स्थिति है जब बदल फटते हैं भूस्खलन होता है लोगों के जान और माल की हानि होती है तब हम हाहाकार मचाते हैं परियोजनाओं का विरोध करते हैं अब किस मुह से कहें कुछ समझ नहीं आ रहा है जोक साहब ने भी क्या खूब लिखा है
क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले
उनका बन्दा हूँ जो बन्दे हैं मुहब्बत वाले

गए जन्नत में अगर सोज़े महब्बत वाले
तो ये जानो रहे दोज़ख़ ही में जन्नत वाले

न सितम का कभी शिकवा न करम की ख़्वाहिश
देख तो हम भी हैं क्या सब्र-ओ-क़नाअ़त वाले

नाज़ है गुल को नज़ाक़त पै चमन में ऐ ‘ज़ौक़’
इसने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाक़त वाले 
  Pitthoragarh, November 2
Citing closure of three hydro power projects on the Ganga as unfortunate for the future of the state, senior Uttarakhand Karanti Dal leader Kashi Singh Airy said today that with the closure of Pala Maneri, Bhairo Ghati and Lohari Nagpala projects, the state has not only lost 1,500 MW of electricity but also thousands of jobs which the state youth needed.   “These projects do not need big reservoirs like the Tehri Dam and simply manage generation through a tunnel, causing minimum damage to the environment,” said Airy.   The Uttarakhand Karanti Dal leader said the real utilisation of water available in the rivers of Uttarakhand is to generate electricity for the state otherwise this water flows towards the plains and used in multiple category to generate prosperity there. “We, the producer and protector of this water, are being deprived of using this for our prosperity under some conspiracy of which the governments are being part of,” he alleged.   The UKD leader dared the Uttarakhand government to show the scientific study on the impact of these three projects on the Ganga. “If there is no base of scientific study for this, it is only whims of some white clothed intellectuals before whom the Uttarakhand government and the Centre have submitted the interests of the youth of Uttarakhand, who would be getting jobs in big numbers at these projects,” said Airy.   According to the Uttarakhand Karanti Dal leader, his party is against big dams in the state because these cause problem of rehabilitation but the small and run-of-the-river projects do not cause the problem of rehabilitation but can lead the state towards being a electricity state as well as help in creating more jobs.


Devbhoomi,Uttarakhand

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अलकनंदा में खनन किया तो खैर नहीं
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जिला मुख्यालय में अलकनंदा व मंदाकिनी में हो रहे खनन को प्रशासन ने गंभीरता से लेते हुए छापामार अभियान चलाया है। फिलहाल नदी किनारे पूरी तरह खनन पर प्रतिबंध लग गया है। तहसीलदार पूरी टीम के साथ जिला मुख्यालय से जुड़े नदी के संभावित खनन क्षेत्रों में सुबह शाम गश्त लगा रहे हैं।

कुछ दिन पहले सैकड़ों मजदूर अलकनंदा व मंदाकिनी नदी में अवैध तरीके से खनन में जुटे हुए थे। लेकिन, अब प्रशासन के सख्त रवैये के चलते यहां खनन पर फिलहाल रोक लग गई है। इसके लिए डीएम के निर्देश पर तहसीलदार देवेन्द्र सिंह नेगी ने सुबह व शाम लगातार पूरी टीम के साथ गश्त कर रहे हैं। खनन से जुडे़ मजदूरों को यहां रेत व बजरी नहीं उठाने दे रहे हैं।

पिछले एक महीने से सैकड़ों मजदूर यहां अवैध रुप से रेत व बजरी ले जा रहे थे। ऐसे में डीएम एसए मुरुगेशन ने इसे गंभीरता से लेते हुए अपने अधीनस्त अधिकारियों को रोकने के निर्देश दिए।

वहीं तहसीलदार देवेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि अवैध रुप से खनन किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए पूरी राजस्व टीम संभावित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गश्त अभियान चलाया हुआ है। आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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गंगा के बाद अब टौंस की बारी
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गंगा भागीरथी पर तीन अहम जल विद्युत परियोजनाएं रद्द होने के बाद अब विद्युत उत्पादन के लिए टौंस नदी पर नजर है। रूपिन और सूपिन नदियों से मिलकर बनने वाली टौंस नदी अपने प्रबल प्रवाह व पानी की पर्याप्त उपलब्धता के चलते इसके लिए एकदम मुफीद मानी जा रही है। परियोजनाओं के निर्माण से क्षेत्र के 42 गांवों का विकास होने की भी उम्मीद है।

टोंस व रूपिन नदियों पर 598 मेगावाट की सात प्रस्तावित परियोजनाओं का सर्वे लगभग पूरा हो गया है। अभी तक प्रस्तावित परियोजनाओं में टौंस नदी पर त्यूणी-पलासु 42 मेगावाट, त्यूणी-हनोल 60 मेगावाट, मोरी- हनोल 63 मेगावाट व आराकोट त्यूणी 70 मेगावाट पर सर्वेक्षण व टेस्टिंग का कार्य पूरा कर लिया गया है। जबकि टौंस नदी पर नैटवाड़ मोरी 33 मेगावाट, जखोल सांकरी 140 मेगवाट तथा सुपिन नदी पर 39 मेगावाट की विद्युत परियोजनाओं का सर्वेक्षण व टेस्टिंग कार्य कर परियोजना निर्माण का प्रस्ताव केंद्रीय वन मंत्रालय को भेजा जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक प्रस्तावों को हरी झंडी मिलते ही परियोजना का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा। उम्मीद है कि इससे टौंस घाटी के विकास की नई राह खुलेगी। लंबे समय से इस क्षेत्र के 42 गांवों में बिजली नहीं पहुंच सकी है। परियोजना निर्माण से इन गांवों के रोशन होने की भी उम्मीद है। परियोजना निर्माण की तैयारी कर रही सतलुज निर्माण निगम के कार्मिक अधिकारी केएन झा के मुताबिक परियोजना निर्माण में स्थानीय लोगों की पूरी मदद ली जाएगी। क्षेत्र में निर्माण कार्यो के लिए जुटाई जाने वाली सुविधाओं का लाभ भी स्थानीय लोगों को मिलेगा।

विरोध की सुगबुगाहट भी तेज

गंगा भागीरथी की तर्ज पर टौंस घाटी में भी परियोजनाओं के विरोध की सुगबुगाहट शुरू होने लगी है। इसके लिए बाकायदा बैठक कर आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। वहीं गंगा भागीरथी पर बांधों के विरोध में शामिल कुछ लोग भी इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7046558.html

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कोटेश्वर में दो लोगों की मौत


उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित कोटेश्वर बांध में शनिवार को दो अलग अलग हादसों में दो व्यक्तियों की मौत हो गयी, जबकि एक महिला घायल हो गयी.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बांध में कार्यरत एक मजदूर काम करते समय कोटेश्वर के पास झील में गिर गया, जिससे उसकी डूबकर मौत हो गयी. एक अन्य घटना में बांध की सुरक्षा में तैनात उपनिरीक्षक की ट्रक से कुचलकर मौत हो गयी.
 
 आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राजस्थान का रहने वाला मजदूर कमलेश कोटेश्वर बांध पर काम कर रहा था. तभी एकाएक उसका पैर फिसल गया और वह नीचे झील में गिरकर डूब गया, जिससे उसकी मौत हो गयी. उसके शव को बेहद ठंड होने के बावजूद बडी मशक्कत से निकाल कर पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया गया.
 
 सूत्रों ने बताया कि एक अन्य घटना में कोटेश्वर बांध पर कार्य कर रहे एक ट्रक का ब्रेक फेल हो जाने से उसकी चपेट में एक केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल का उप निरीक्षक प्रेम दास और एक महिला कांस्टेबल टूटूमणी दास चपेट में आ गये.

http://www.samaylive.com/regional-news-in-hindi/uttarakhand-news-in-hind

Devbhoomi,Uttarakhand

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प्रशासन व पुलिस को बैरंग लौटाया ग्रामीणों ने
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घनसाली : बाल गंगा नदी पर निर्मित गुनसोला लघु जल विद्युत परियोजना के विरोध में चानी के ग्रामीणों का क्रमिक अनशन तीसरे दिन भी जारी रहा। ग्रामीणों के बीच समझौता कराने गए प्रशासन व पुलिस को भी ग्रामीणों ने बैरंग वापस लौटा दिया। प्रभावितों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं की जाती है तब तक वह क्रमिक अनशन पर बैठे रहेंगे।

युवक मंगल दल के अध्यक्ष जयवीर सिंह रावत ने बताया कि प्रशासन की तरफ से शनिवार को अनशन स्थल पर पहुंचे पुलिस के कुछ जवानों को भी प्रभावितों ने लौटा दिया। उनका कहना है कि प्रशासन के द्वारा उन्हें वार्ता के लिए जिला मुख्यालय बुलाया जा रहा है जिस पर ग्रामीणों ने वहां जाने पर साफ इनकार कर दिया है। अनशन पर बैठने वालों में अंगूरा देवी, फूलमाला देवी, अशरूपी देवी, संगीता देवी, चन्दरी देवी, कुसुम देवी, जमुना देवी, उर्मिला देवी सहित कई ग्रामीण बैठे हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7082627.html

 

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