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क्या उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में वहां उपलब्ध कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगने चाहिये

हां
33 (86.8%)
नहीं
2 (5.3%)
पता नहीं
3 (7.9%)

Total Members Voted: 38

Author Topic: Industry In Hills - क्या पहाड़ों में भी उद्योग लगने चाहिये?  (Read 14739 times)

Lalit Mohan Pandey

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Ek bar pahad mai ye sab suru ho jaye and udyog lag jaye to sayad ane wali peediyu mai pahad se bahar ja kar job karne ka jo ek trend se banta ja raha hai wo kam Ho. Aaj pahad mai ye ek fashion ban gaya hai ki log Delhi ya fir Mumbai ja kar job kar rahe hai, ha aaj ye ek majboori hi kyu na ho (udyogu ki kami ki wajah se) per kahi na kahi ek trend sa bhi banta ja raha hai.

पहाड़ मै उद्योग लगाने की अपार संभावना है,
१) गै मूत्र से जुड़े उद्योग, दूध से जुड़े उद्योग
२) चीड पे पेड़ से निकलने वाले लीसे से जुड़े उद्योग
३) मत्स्य, मुर्गी, बकरी  पालन से जुड़े उद्योग
४) फल से जुड़े  उद्योग ( जैसे की महर जी ने बताया पहाड़ मै माल्टा, संतरा, नीबू, औला अदि चीज पचुर मात्रा मै होती है)
(एक छोटा सा उदाहरण है आज आवला और बेल से बना मुरब्बा और रस  "राम देव बाबा" की Shops मै पचुर मात्रा मै बिकता है ..  शायद पूरे पहाड़ मै आवला हर जगह होता है)
५) इन फलु से तैयार आचार से जुड़े उद्योग
6) जडी बूटियु से जुड़े उद्योग

इनसे हटके भी बड़े उद्योग हो सकते है.. जैसे खडिया , tarpentile आयल (ये लीसे से बनता है ), ताबे.

हेम पन्त

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पहाङों में पर्यटन व फल-सब्जियों से जुङे उद्योगों पर सरकार वर्तमान में काफी ध्यान दे रही है. ऐसे उद्योग ही पहाङ के लिये उपयुक्त और लाभप्रद हो सकते हैं जिनके लिये कच्चा माल पहाङों में ही उपलब्ध हो और जिनसे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे.

देश के बङे उद्योगघरानों के भरोसे रहकर पहाङ में उद्योगों की स्थापना का सपना देखना बेमानी है. क्योंकि उद्योगपति सिर्फ पहाङों की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करके मुनाफा कमाने की सोच सकते हैं इससे ज्यादा नहीं. उत्तराखण्ड मे बेतहाशा बन रहे बङे बांध इस बात को साबित करते हैं. देश व दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रह रहे उत्तराखण्ड के उद्योगपतियों को, जो अभी भी पहाङ से भावनात्मक रूप से जुङे हैं पहाङों में उद्योग स्थापित करने के बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिये. पहाङ के युवाओं को भी अपनी व्यावसायिक सोच का विकास करना चाहिये और सरकारी योजनाओं की जानकारी लेनी चाहिये.

रोजगारपरक शिक्षा तो पूरे देश की जरूरत है, लेकिन उत्तराखण्ड की सरकार को राज्य की स्थितियों के हिसाब से नवी या दसवीं कक्षाओं से ही छात्र-छात्राओं में स्वरोजगार की भावना जागृत करने का प्रयास करना चाहिये.

हेम पन्त

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While we are discussing about opening of new industries in hills of Uttarakhand, it is also important to discuss the re-opening of some industries which was opened in hills with much fan-fare and they could not survive due to different reasons. Some of these units had to close there operation due to govt. policies or issues with local people.

We have around one dozen Magnasite and Rosin/ Turpentine factories which are closed for several years. Government should resolve the blockage and issues and try to re-open these units.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I fully agree with the views of Hem Da.

While going home, i see en-route there some factories which are closed since long. It is said when ND Tawari was CM of UP, he had started this policy of setting-up small industries in hill areas. The places, Bheemtal, Almora, Kotdwar and some other places. For this initiative, people had given a new name to Tiwari Ji "Vikas Purush".

Since we have got a new state now. Govt must endeveor to re-open the sick companies and allure the enterpreners to set-up small industry in hill areas.

There are a lot of possibilities of setting-up industries in hills but one the same hand the environment may have some risk too. So Govt must find a solution between these issues.


While we are discussing about opening of new industries in hills of Uttarakhand, it is also important to discuss the re-opening of some industries which was opened in hills with much fan-fare and they could not survive due to different reasons. Some of these units had to close there operation due to govt. policies or issues with local people.

We have around one dozen Magnasite and Rosin/ Turpentine factories which are closed for several years. Government should resolve the blockage and issues and try to re-open these units.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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ललित जी,
आपका विचार अति उत्तम है, पहाड़ पर वही उद्योग लगने चाहिऎ जिनके लिए कम जमीन की जरुरत हो।  कच्चा माल उपलब्ध हो तथा खपत भी स्थानीय स्तर पर हो जाये।  इससे उद्योग के साथ स्थानीय व्यापारियो और बेरोजगारों को रोजगार भी उप्लब्ध होगा।  मेरे विचार से अगर मूलभूत सुविधाऎं मिलें तो हल्के ईलेक्ट्रानिक सामान भी पहाड़ी शहरों में बनाये जा सकते हैं।
Ek bar pahad mai ye sab suru ho jaye and udyog lag jaye to sayad ane wali peediyu mai pahad se bahar ja kar job karne ka jo ek trend se banta ja raha hai wo kam Ho. Aaj pahad mai ye ek fashion ban gaya hai ki log Delhi ya fir Mumbai ja kar job kar rahe hai, ha aaj ye ek majboori hi kyu na ho (udyogu ki kami ki wajah se) per kahi na kahi ek trend sa bhi banta ja raha hai.

पहाड़ मै उद्योग लगाने की अपार संभावना है,
१) गै मूत्र से जुड़े उद्योग, दूध से जुड़े उद्योग
२) चीड पे पेड़ से निकलने वाले लीसे से जुड़े उद्योग
३) मत्स्य, मुर्गी, बकरी  पालन से जुड़े उद्योग
४) फल से जुड़े  उद्योग ( जैसे की महर जी ने बताया पहाड़ मै माल्टा, संतरा, नीबू, औला अदि चीज पचुर मात्रा मै होती है)
(एक छोटा सा उदाहरण है आज आवला और बेल से बना मुरब्बा और रस  "राम देव बाबा" की Shops मै पचुर मात्रा मै बिकता है ..  शायद पूरे पहाड़ मै आवला हर जगह होता है)
५) इन फलु से तैयार आचार से जुड़े उद्योग
6) जडी बूटियु से जुड़े उद्योग

इनसे हटके भी बड़े उद्योग हो सकते है.. जैसे खडिया , tarpentile आयल (ये लीसे से बनता है ), ताबे.

पंकज सिंह महर

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ललित जी,
आपका विचार अति उत्तम है, पहाड़ पर वही उद्योग लगने चाहिऎ जिनके लिए कम जमीन की जरुरत हो।  कच्चा माल उपलब्ध हो तथा खपत भी स्थानीय स्तर पर हो जाये।  इससे उद्योग के साथ स्थानीय व्यापारियो और बेरोजगारों को रोजगार भी उप्लब्ध होगा।  मेरे विचार से अगर मूलभूत सुविधाऎं मिलें तो हल्के ईलेक्ट्रानिक सामान भी पहाड़ी शहरों में बनाये जा सकते हैं।

इसी को साकार करने के लिये १९८५ में तत्कालीन उ०प्र० सरकार ने HILTRON हिल इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की, लेकिन यह सफल नहीं हो पाया। आज भी कई ऎसे उद्योग है, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक्स तथा साफ्टवेयर आदि के जिनका उत्पादन पहाड़ी जनपदों में किया जा सकता है।
  इसके लिये किसी प्रोत्साहन नीति की भी आवश्यकता नहीं है, स्थानीय बेरोजगारों की लम्बी फौज को सब्सिडी पर उद्योग शुरु करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है। इसके लिये दिखावे या घोषणा के बजाय सच्चे मन से कार्य योजना बनानी होगी, जिसमें सबसे पहले यह ध्यान में रखना होगा कि "एक बेरोजगार की क्या हैसियत हो सकती है" क्योंकि बैंक या सरकारी विभाग स्वरोजगार के लिये ऋण लेने वाले युवकों से हैसियत प्रमाण पत्र, बैंक में एफ०डी०, जमानत आदि मांगते हैं, तो वह इसके लिये क्या दे पायेगा।

     नीति बनाने वाले को अ आ से कार्य योजना बनानी चाहिये ना कि essay या prose से।

पंकज सिंह महर

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राज्य के पहाड़ी जिलों में उद्योग स्थापित करने का नारा जिस तरह बुलंद किया गया, उस गति से धरातल पर काम नहीं हुआ है। राज्य गठन से लेकर अब तक जो भी सरकार आई, उसने यही नारा हवा में उछाला कि पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगाकर वहां से हो रहे पलायन पर अंकुश लगाया जाएगा। इसके बावजूद पर्वतीय जिलों की तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आया है। केंद्र से मिले औद्योगिक पैकेज का मामूली लाभ भी पहाड़ी जिलों को नहीं मिल पाया। हालांकि मौजूदा भाजपा सरकार ने सत्तारूढ़ होते ही पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग औद्योगिक नीति बनाई, लेकिन इसका भी अधिक असर नहीं पड़ा। पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 350 करोड़ के निवेश के प्रस्ताव तो मिले पर उन पर आगे कोई पहल नहीं हो पाई है। अब औद्योगिक पैकेज की अवधि खत्म होने की दहलीज पर है और इसके बढ़ने के आसार भी कम ही नजर आ रहे हैं। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों के मामले में शून्यता ही बनी रहने की संभावना नजर आ रही है। सरकार लगातार उद्यमियों के साथ बैठक कर पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने की चिंता जताने का अभ्यास जारी रखे हुए है। दरअसल आठ वर्ष में पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों से रोजगार सृजन के मामले में कुछ भी नहीं हुआ है और हालात यह है कि सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में यह मुद्दा शीर्ष पर है। राजनीतिक संकल्प शक्ति के अभाव में पहाड़ पर उद्योग नहीं चढ़ पाए हैं। इस मामले में उत्तराखंड को पड़ोसी राज्य हिमाचल से सबक लेना चाहिए। हिमाचल ने कृषि, उद्योग व रोजगार के बीच समन्वय बनाते हुए मैदानी व पहाड़ी जिलों को विकास से जोड़ा है। ऐसा उत्तराखंड में भी हो सकता है, लेकिन राज्य में नीतियां ही विरोधाभासी बन रही हैं। इस तरह के वातावरण में पहाड़ों को संवारने की मुहिम को झटका लगना स्वाभाविक है। जाहिर है कि सरकार को पहाड़ को लेकर अपनी प्राथमिकताएं नये सिरे से तय करनी होंगी। केवल नारा देने से विकास नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए धरातल पर ठोस पहल करने की जरूरत है।

साभार- दैनिक जागरण

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: पहाड़ी जिलों में औद्योगिक विकास को उठाए गए कदमों का कोई खास असर नहीं दिखाई दिया है। पिछले वित्तीय वर्ष में पर्वतीय क्षेत्र में महज बीस लाख रुपये का ही निवेश हो पाया, जबकि विभाग को प्रस्ताव करीब 350 करोड़ के मिले थे। तमाम रियायतों के बावजूद उद्यमी पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं हैं। अब सरकार इस मामले में फिर नई पहल पर विचार कर रही है। केंद्र से मिले औद्योगिक पैकेज का लाभ राज्य को आधा-अधूरा ही मिल पाया है। मैदानी जिलों में स्थापित उद्योगों में से अनेक पलायन करने की तैयारी में हैं, जबकि पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक घराने निवेश करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। पहाड़ी जिलों में औद्योगिक विकास को गति देने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने विशेष औद्योगिक नीति लागू की थी। इस नीति का भी अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2008-09 में महज बीस लाख रुपये का ही निवेश हो सका है। हालांकि शुरू में इस नीति के अंतर्गत निवेशकों ने करीब 350 करोड़ के प्रस्ताव भेजे पर बाद में अधिकतर निवेशक पीछे हट गए। सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने पर अवस्थापना विकास, उद्यमिता, कौशल विकास, विशेष ब्याज योजना, परिवहन छूट तथा आईएसआई प्रमाणीकरण समेत अनेक मामलों में विशेष छूट का प्रावधान किया। इतना ही नहीं, बल्कि चिन्हित उद्योगों को विद्युत बिलों में छूट देने की व्यवस्था भी की गई। सीमांत पर्वतीय जनपदों व अन्य पर्वतीय क्षेत्र को अलग-अलग श्रेणी में विभाजित करते हुए सुविधाओं को भी बढ़ाया। ए श्रेणी में शामिल जिले पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, चंपावत व रुद्रप्रयाग में उद्यम स्थापित करने वालों को अपेक्षाकृत कुछ विशेष सुविधाएं भी देने का प्रावधान किया गया। बी श्रेणी के जिलों पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर तथा देहरादून व नैनीताल के पर्वतीय विकासखंडों के लिए अलग व्यवस्था की गई। पर्वतीय जनपदों में औद्योगिक विकास की संभावनाओं, स्थापित होने वाले संभावित उद्योगों, विक्रय तथा मानव संसाधन की उपलब्धता पर भी विभाग ने होमवर्क किया। इसके बाद भी पर्वतीय जनपदों में औद्योगिक विकास को गति नहीं मिल पाई। अब सरकार फिर नई पहल करने जा रही है। इसके तहत निवेशकों को अधिक छूट देने की तैयारी है। पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक विकास को भी सरकार ने शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल किया है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think hill areas are still neglected in subject. There is need to set-up some kinds of small industries which can generate some kinds of employment there. I don’t know whether it is true or not but we report that the J P Group is planning to set-up a Cement factory in Pithoragarh Distt. 

This is a good idea to set-up the small industries there but at the same time, we must keep the environment in kind.

Devbhoomi,Uttarakhand

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जब पहाडों उद्योग लगेंगें तभी उत्तराखंड का विकास संभव है , और अगर कुछ उद्योग पहाडों लग भी गए तो क्या हो जाएगा पहाड़ का विकास ये बात भी बिलकुल सही है लेकिन अगर पहाडों मैं उद्योग नहीं लगे तो वहन जीवन भी और बेकार हो जायेगा , और पहाडों मैं मनुष्य शक्ति है वो बहुत ही मजबूत है पड़ी लोग तो मशीनों की तरह काम करते हैं और सायद करते रहेंगें अगर उत्तराखंड की सरकार ने पहाड़ के विकास के बारें नहीं सोचा तो !

 

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