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 क्या क्षेत्रवाद उत्तराखंड के विकास मे अवरोध है ?

Yes
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No
1 (2.8%)
Can't Say
1 (2.8%)
Not At all
1 (2.8%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Is Regionalism Hurdle? - क्या क्षेत्रवाद उत्तराखंड के विकास मे अवरोध है?  (Read 22011 times)

पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
अमरकोश पढ़ी, इतिहास पन्ना पलटीं, खतड़सिंग न मिली, गैड़ नि मिल।
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन, गणत करै, जागर लगै,
बैसि भैट्य़ुं, रमौल सुणों, भारत सुणों, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल,
स्याल्दे-बिखौती गयूं, देविधुरै बग्वाल गयूं, जागसर गयूं, बागसर गयूं,
अल्मोड़े की नन्दादेवी गयूं, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल।

Risky Pathak

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Pankaj Daa.. Muje bhi yaad hai jab shayad me3-4 varsh ka thaa "Khatru" Ko Jlaane ka Scene mene bhi dekha hai... Ye shayad Dusshere ke aaspaas hota hai..

"Khatru" Garhwaal ka raja thaa.... So Uski haar pe ye Jalaaya jata hai....

But Ye Kshetrwaad se judaa thaa....Mujhe pta nahi thaa....

Risky Pathak

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Awesome Pankaj Daa

मेहता जी,
अमरकोश पढ़ी, इतिहास पन्ना पलटीं, खतड़सिंग न मिली, गैड़ नि मिल।
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन, गणत करै, जागर लगै,
बैसि भैट्य़ुं, रमौल सुणों, भारत सुणों, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल,
स्याल्दे-बिखौती गयूं, देविधुरै बग्वाल गयूं, जागसर गयूं, बागसर गयूं,
अल्मोड़े की नन्दादेवी गयूं, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल।


हेम पन्त

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'खतडुवा' पर्व के साथ जुडी यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है.

दरअसल यह त्यौहार खेती-बाडी और पशुपालन से संबन्धित है. इस त्यौहार के दिन गाय-भैंस के गोठ (गाय-भैंसों को रखने का कमरा)की सफाई की जाती है. घास की एक 'बूढी' बनायी जाती है जो गोठ की गन्दगी और पशुओं की बीमारी की प्रतीक है. फिर इस 'बूढी' को गांव वालों द्वारा एक सार्वजनिक स्थान पर जला दिया जाता है और दुधारू जानवरों की सकुशलता की कामना की जाती है. इसके पश्चात ककडी को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.

Risky Pathak

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Haa.. Hem Daa Ye sahi khaa aapne..... Dusshera- Harela ke aaspas hi ye parv mnaaya jata hai... Par jo khatru naam aaya hai... wo kahi na kahi garhwaal ke raja se samband rakhta hai

'खतडुवा' पर्व के साथ जुडी यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है.

दरअसल यह त्यौहार खेती-बाडी और पशुपालन से संबन्धित है. इस त्यौहार के दिन गाय-भैंस के गोठ (गाय-भैंसों को रखने का कमरा)की सफाई की जाती है. घास की एक 'बूढी' बनायी जाती है जो गोठ की गन्दगी और पशुओं की बीमारी की प्रतीक है. फिर इस 'बूढी' को गांव वालों द्वारा एक सार्वजनिक स्थान पर जला दिया जाता है और दुधारू जानवरों की सकुशलता की कामना की जाती है. इसके पश्चात ककडी को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.


हेम पन्त

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यह बात सत्य है कि गढवाल और कुमाऊँ के राजाओं के बीच संघर्ष का इतिहास रहा है. राजशाही के दौर में राजाओं के बीच सीमा विस्तार के लिये संघर्ष पूरे देश ही नहीं विश्व में सभी जगह होता था.
लेकिन गढवाल और कुमाऊँ में लोगों के बीच आपसी सौहार्द में कभी कोई कमी नहीं रही.
राजुला-मालूशाही और रामी-बौराणी की कथाएं पूरे उत्तराखण्ड में समान रूप से प्रसिद्ध हैं. 'बेडू पाको बारामास' गीत क्या पूरे उत्तराखण्ड की पहचान नहीं है??? इस तरह के कई कारण गिनाये जा सकते हैं जो पूरे उत्तराखण्ड को एक सूत्र में पिरोते हैं.


हेम पन्त

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मेरे विचार से उत्तराखण्ड स्वयं में ही एक छोटा सा राज्य है. इसमें भी 2 भागों में बांटकर बातें करना एक मूर्खता भरा काम है. हाँ प्रशासनिक तौर पर यह 2 मंडल हैं, और इन के बीच अगर विकास के लिये एक स्वच्छ प्रतिस्पर्धा हो तो इसका स्वागत होना चाहिये.

पंकज सिंह महर

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'खतडुवा' पर्व के साथ जुडी यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है.

दरअसल यह त्यौहार खेती-बाडी और पशुपालन से संबन्धित है. इस त्यौहार के दिन गाय-भैंस के गोठ (गाय-भैंसों को रखने का कमरा)की सफाई की जाती है. घास की एक 'बूढी' बनायी जाती है जो गोठ की गन्दगी और पशुओं की बीमारी की प्रतीक है. फिर इस 'बूढी' को गांव वालों द्वारा एक सार्वजनिक स्थान पर जला दिया जाता है और दुधारू जानवरों की सकुशलता की कामना की जाती है. इसके पश्चात ककडी को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.



धन्यवाद हेम दा,
        इस वास्तविक और धरातलीय परम्परा से हमें परिचित कराने के लिये।

Risky Pathak

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पंकज सिंह महर

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मेरे मत में इस विवाद का हल यह है कि कमिश्न्नरी का भी पुनः परिसीमन करना चाहिये। जैसे चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ अल्मोड़ा को एक मण्डल में, नैनीताल, उधमसिंह नगर, पौड़ी और टिहरी को एक मण्डल तथा देहरादून और हरिद्वार  को एक मण्डल में जोड़ना चाहिये।

 

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