मुझे क्षेत्रवाद में कोई बुराई नही नजर आती है अगर इसे क्षेत्र की उन्नति के लिए प्रयोग किया जाता है। अगर प्रदेश की प्रगति के लिए कुमाऊं और गढ़्वाल में प्रतिस्पर्धा होती है तो इसमें क्या बुराई है। पर अगर राजनेता क्षेत्रवाद के अन्दर एम्स, एन०आई०टी०, आई०आई०एम० सब गढ़्वाल में ही बना दें तो यह गलत है।
मुझसे कोई अगर यहा गढ़वाल में पूछता है तो मैं कहता हूं कि मैं कुमाऊं से हू। दिल्ली में कोई पूछता था तो कहता था कि उत्तराखण्ड से हूं, नेपाल गया था तो बताता था कि भारत से हूं। आखिर मेरी पहचान मेरे क्षेत्र से भी तो है, अगर हमारी कोई पहचान ही नही तो हमारा क्या अस्तित्व है? लेकिन अगर क्षेत्र के नाम पर हम भेदभाव करने लगें किसी को अपने क्षेत्र का ना होने पर उसे किसी सुविधा से दूर करें यह गलत है।
जिसके बारे में मैं कई बार आपके किसी टी०वी० कार्यक्रम में एल०एम०एस० या वोट करने का मैं ने हमेशा इसलिए ही विरोध किया है कि अमुक हमारे क्षेत्र का है तो उस कलाकार को वोट करो। कोई वाद गलत नही है बशर्ते कि उस वाद पर राजनीति ना हो। सब वादों के लिए जनता नही राजनेता जिम्मेदार हैं क्योंकि उनका चरित्र इतना महान नही है कि वह वाद से उठकर जन-जन के नेतृत्व कर सकें। क्या किसी नेता में इतनी हिम्मत है कि वह अपनी जाति, धर्म या क्षेत्र के लोगों के बीच यह कह सके कि वह उनका नही हर किसी धर्म, जाति और क्षेत्र के नेता हैं।