Poll

Do you think that UK can be self reliance State ?

Yes
15 (78.9%)
No
1 (5.3%)
Can't say
3 (15.8%)

Total Members Voted: 19

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Is Uttarakhand Self Reliance State - क्या उत्तराखंड आत्मनिर्भर राज्य बन सकता है?  (Read 8721 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Uttarakhand become a self reliance state in coming future
« Reply #10 on: January 05, 2008, 01:29:16 PM »
Namashker,

Nothing will be change if we did not plan properly. We need least 10 to 20 years plan ahead to be self reliance state.

What we need is to improve small storage of waters across the Uttrakhand; develop more Energy sector, Tourism, Education, RND centers, High-tech Medical Centers, Yoga center is well known we need some more marketing.

Road Infrastructure need to improve, Airport facility, Rope way system across the Uttrakhand need to develop.

We have to keep the Crime rate remain low to win the confidence of the Local & Global tourist.

I am confident Uttarakhand become a self reliance state in coming future.

Harish C Pant
Singapore



Pant Ji,

First of all welcome on Merapahd forum.

I do agree with your views. We have personally witnessed several things. 

It seems that it will take several years to UK to come on the track of development. Though, we have several natural resources but these have not been properly utilized.

It is also said that Uttarahand is Power State but there several villages in UK where electricity has been provided so far.

Pant Ji, we will most your post on below topic as a same topic has already been opened on the subject.

thanx once again.





http://www.merapahad.com/forum/index.php/topic,144.0.html

हेम पन्त

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Re: Uttarakhand become a self reliance state in coming future
« Reply #11 on: January 05, 2008, 01:31:49 PM »
Harish ji u've touched most of the areas where we need to focus. I think Employment Oriented Educationis one more important issue which govt. has to take care............ Thanx for sharing ur valuable thoughts here.....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऊर्जा प्रदेश में बिजली के लालेFeb 05, 02:05 am

कीर्तिनगर (टिहरी गढ़वाल)। विकासखंड के अंतर्गत डागर व ढुंडसिर कड़ाकोट पट्टी के गांवों में दो वर्ष बीतने के बावजूद निगम अभी तक विद्युतीकरण का काम पूरा नहीं कर पाया है। इससे क्षेत्र के ग्रामीणों में खासा रोष व्याप्त है। ग्रामीणों ने उक्त कार्य शीघ्र न कराने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।

उल्लेखनीय है कि डागर व ढुंडसिर कड़ाकोट पट्टी में विद्युतीकरण के लिए वर्ष 2005 में कार्य शुरू कराया गया था। निगम ने जिन कंपनियों को यह कार्य सौंपा, वे इसे आधा-अधूरा छोड़कर चलते बने। इस रवैये को लेकर ग्रामीणों में निगम के प्रति भारी रोष पनपता जा रहा है। युवक कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष तेजपाल सिंह नेगी ने बताया कि डागर पट्टी में बिजली के पोल व लाइनें मात्र शोपीस बनकर रह गई है। उन्होंने कहा कि यदि एक माह के भीतर क्षेत्र में अधूरे काम पूरा न कराया गया तो क्षेत्र की समस्त जनता ब्लाक मुख्यालय पर आंदोलन शुरू करेगी। रुद्रप्रयाग जिले में आए दिन विद्युत की अनियमित आपूर्ति को लेकर उपभोक्ताओं में खासा आक्रोश है। घंटों विद्युत के गुल रहने का सिलसिला जारी है। इससे कई आवश्यक कार्य बाधित हो रहे है। आम उपभोक्ता के साथ ही छात्र-छात्राओं व व्यापारियों को भी मुसीबत से दो-चार होना पड़ रहा है। मानवाधिकार प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत सेमवाल का कहना है कि विद्युत की आपूर्ति को ठीक करने के लिए निगम को आवश्यक प्रयास करने चाहिए। लगातार समस्या के निस्तारण की मांग करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होना चिंताजनक है। बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन भी प्रभावित हो गया है।


पंकज सिंह महर

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अच्छी पहल उत्तराखंड की आय के जो साधन हैं, उनमें पर्यटन प्रमुख है। पर्यटन भी यहां दो तरह का है। एक वर्ग वह है जो यहां सिर्फ भ्रमण के मकसद से आता है और दूसरा वर्ग वह है जो यहां धार्मिक स्थलों के भ्रमण के उद्देश्य से आता है। अक्सर होता यह है कि जो धार्मिक स्थान घूमने का उद्देश्य लेकर आते हैं, वे देवभूमि के रमणीक स्थलों के भ्रमण करने का मोह संवरण करने से बच नहीं पाते। दोनों में कुछ ऐसा तारतम्य है कि इनके बीच किसी स्थायी सीमा रेखा से विभाजन नहीं किया जा सकता। अगर राज्य की आय बढ़ानी है तो यहां के पर्यटन स्थलों को मजबूत करना ही होगा। यूं तो यहां बड़ी संख्या में मनोरम स्थल हैं, झीलें भी उनमें एक हैं लेकिन पर्वतों के बीच मनमोहक झीलें होते हुए भी अभी तक अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर मात्र नैनी झील (नैनीताल) का ही उल्लेख आता है। राज्य सरकार अब इस ओर ध्यान दे रही है। आईआईटी रुड़की झीलों की दशा सुधारने के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर रही है। राज्य सरकार रिपोर्ट मिलते ही इसी वित्तीय वर्ष में इस रिपोर्ट को क्रियान्वित करने का काम शुरू कर देगी। यह सही है कि किसी बड़े प्रोजेक्ट को पूरा होने में समय लगता है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के बीच बड़ी संख्या में रमणीक झीलें हैं। शुरुआत में इनमें से चुनिंदा झीलों की दशा ही सुधारी जाएगी लेकिन इतना तय है कि झीलों की दशा सुधरने से राज्य का पर्यटन बढ़ेगा। सैलानियों की संख्या बढ़ी तो जाहिर है कि राज्य की आय में भी इजाफा होगा। इतना ही नहीं, सैलानियों की संख्या में बढ़ोत्तरी से राज्य के बेरोजगारों का एक बड़ा वर्ग बारोजगार भी हो सकेगा। ये झीलें इस दृष्टिकोण से भी राज्य के लिए फायदेमंद होंगी कि इनके माध्यम से नागरिकों को जलापूर्ति भी की जा सकेगी। इंतजार सिर्फ आईआईटी रुड़की से डीपीआर मिलने का है। यह ठीक है कि सरकार रिपोर्ट मिलने के बाद झीलों की दशा संवारेगी, लेकिन इनका सुंदरीकरण कुछ इस तरह किया जाना चाहिए कि ये दीर्घकाल तक सुंदर रहें। सिर्फ तात्कालिक या अस्थायी सुंदरीकरण से कार्य नहीं चलने वाला। सुंदरीकरण के साथ ही इस तरह के प्रबंध भी किये जाने चाहिए कि लंबे समय तक कोई इन्हें प्रदूषित न कर सके। तभी यह योजना कारगर सिद्ध हो सकेगी।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

Despite of having several natural resources. Uttarakhand state is still lagging behind on several fronts. It has a lot hydro project / tourism potentiality etc. After having been spent over 7 hrs after its existence, our state have not been able to utilize the resources.

अच्छी पहल उत्तराखंड की आय के जो साधन हैं, उनमें पर्यटन प्रमुख है। पर्यटन भी यहां दो तरह का है। एक वर्ग वह है जो यहां सिर्फ भ्रमण के मकसद से आता है और दूसरा वर्ग वह है जो यहां धार्मिक स्थलों के भ्रमण के उद्देश्य से आता है। अक्सर होता यह है कि जो धार्मिक स्थान घूमने का उद्देश्य लेकर आते हैं, वे देवभूमि के रमणीक स्थलों के भ्रमण करने का मोह संवरण करने से बच नहीं पाते। दोनों में कुछ ऐसा तारतम्य है कि इनके बीच किसी स्थायी सीमा रेखा से विभाजन नहीं किया जा सकता। अगर राज्य की आय बढ़ानी है तो यहां के पर्यटन स्थलों को मजबूत करना ही होगा। यूं तो यहां बड़ी संख्या में मनोरम स्थल हैं, झीलें भी उनमें एक हैं लेकिन पर्वतों के बीच मनमोहक झीलें होते हुए भी अभी तक अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर मात्र नैनी झील (नैनीताल) का ही उल्लेख आता है। राज्य सरकार अब इस ओर ध्यान दे रही है। आईआईटी रुड़की झीलों की दशा सुधारने के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर रही है। राज्य सरकार रिपोर्ट मिलते ही इसी वित्तीय वर्ष में इस रिपोर्ट को क्रियान्वित करने का काम शुरू कर देगी। यह सही है कि किसी बड़े प्रोजेक्ट को पूरा होने में समय लगता है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के बीच बड़ी संख्या में रमणीक झीलें हैं। शुरुआत में इनमें से चुनिंदा झीलों की दशा ही सुधारी जाएगी लेकिन इतना तय है कि झीलों की दशा सुधरने से राज्य का पर्यटन बढ़ेगा। सैलानियों की संख्या बढ़ी तो जाहिर है कि राज्य की आय में भी इजाफा होगा। इतना ही नहीं, सैलानियों की संख्या में बढ़ोत्तरी से राज्य के बेरोजगारों का एक बड़ा वर्ग बारोजगार भी हो सकेगा। ये झीलें इस दृष्टिकोण से भी राज्य के लिए फायदेमंद होंगी कि इनके माध्यम से नागरिकों को जलापूर्ति भी की जा सकेगी। इंतजार सिर्फ आईआईटी रुड़की से डीपीआर मिलने का है। यह ठीक है कि सरकार रिपोर्ट मिलने के बाद झीलों की दशा संवारेगी, लेकिन इनका सुंदरीकरण कुछ इस तरह किया जाना चाहिए कि ये दीर्घकाल तक सुंदर रहें। सिर्फ तात्कालिक या अस्थायी सुंदरीकरण से कार्य नहीं चलने वाला। सुंदरीकरण के साथ ही इस तरह के प्रबंध भी किये जाने चाहिए कि लंबे समय तक कोई इन्हें प्रदूषित न कर सके। तभी यह योजना कारगर सिद्ध हो सकेगी।
 


पंकज सिंह महर

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दूरदर्शी सोच खाद्यान्न संकट के स्थायी समाधान का इरादा जाहिर करके उत्तराखंड सरकार ने सकारात्मक सोच का परिचय दिया है। सरकार इसके लिए प्रभावी नीति बनाने की तैयारी कर रही है। इस पर काम भी शुरू हो गया है। वर्तमान हालात में सरकार को इस प्रकार के कदम उठाने ही होंगे। वैसे भी केंद्र सरकार से ज्यादा उम्मीद पालना ठीक नहीं है। उत्तराखंड में लंबे अरसे से खाद्यान्न का टोटा बना हुआ है। खासकर, एपीएल श्रेणी के उपभोक्ताओं की जरूरत पूरी करना सरकार के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। यहां करीब अट्ठारह लाख राशनकार्ड धारक हैं, लेकिन इनमंें से बामुश्किल दस प्रतिशत को ही खाद्यान्न मिल पा रहा है। दरअसल, केंद्र सरकार राज्यों के खाद्यान्न कोटे में लगातार कटौती कर रही है। पिछले कुछ सालों में तो उत्तराखंड का कोटा नब्बे फीसदी तक कम कर दिया है। गेहूं और चावल की स्थिति तो ज्यादा खराब है। हालिया दिनों केंद्र ने चावल का कोटा पूरी तरह खत्म कर दिया था, जबकि गेहूं के कोटे में बंपर कटौती करने से सरकार की परेशानी और बढ़ा दी थी। कई बाद दिल्ली दरबार में दस्तक देने के बाद केंद्र का दिल कुछ पसीजा। उसने खाद्यान्न का कुछ कोटा बढ़ाया भी, मगर इससे भी काम नहीं चल रहा है। यही वजह से सरकार की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। ऊपर से त्योहारों पर पड़ोसी राज्यों के लोगों की आमद बढ़ने से समस्या और गहरा रही है। खाद्य मंत्रालय की परेशानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह खाद्यान्न के लिए सांसदों की चौखट पर भी कई मर्तबा गिड़गिड़ा चुकी है। केंद्र सरकार जिस तरीके से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राज्यों के दिए जाने वाले खाद्यान्न कोटे में कटौती कर रही है, उसमें राज्य सरकार को वैकल्पिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना जरूरी हो गया है। इस दिशा में सरकार के ताजा कदम को दूरदर्शी सोच के रूप में लेना उचित होगा। सरकार खुले बाजार से खाद्यान्न खरीद कर सब्सिडी पर उपलब्ध कराने पर भी विचार कर रही है। चूंकि यहां पर कृषि उत्पादन और खपत के बीच बड़ा अंतर है, ऐसे में पहाड़ के सभी जिलों की पीडीएस पर काफी हद तक निर्भरता है। अगर सरकार कोई स्थानीय नीति बनाती है तो उपभोक्ताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए हमेशा केंद्र का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा।
 

पंकज सिंह महर

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पहाड़ी जिलों से उद्यमियों के कन्नी काटने को लेकर उत्तराखंड सरकार का चिंतित होना लाजिमी है। यहां औद्योगिकीकरण का सीधा ताल्लुक पलायन से जुड़ा हुआ है। पर्वतीय क्षेत्र में पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा था, वजह रोजी के अवसरों का न के बराबर होना है। ऐसे में पहाड़ों में उद्योगों को ले जाने के लिए सरकार का एक और कदम बढ़ाना निश्चित तौर पर अच्छी पहल है। अवस्थापना सुविधाएं जोड़ने के लिए बगैर किसी देरी के कार्यवाही शुरू कर सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि पहाड़ में औद्योगिकीकरण उसकी प्राथमिकता में शुमार है। ऐसा नहीं कि अभी तक सरकार बेफिक्र दिखी, लेकिन अपेक्षित प्रगति सामने नहीं आई। इस सच्चाई को स्वीकारने में सरकार को कतई संकोच नहीं होना चाहिए। तेरह जिलों वाले छोटे से उत्तराखंड में हरिद्वार और देहरादून को छोड़ दें तो बाकी जिलों में उद्योग धंधे लगभग चौपट हैं। केंद्रीय औद्योगिक पैकेज का भी यहां के पहाड़ी इलाकों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला। इसको देखते हुए गुजरे साल सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए अलग से प्रोत्साहन नीति घोषित की, लेकिन इसका भी बहुत अधिक फायदा अभी तक नहीं दिखा। कुछेक जिलों में पूंजी निवेश के प्रस्ताव सरकार के पास जरूर आए, पर उद्यमियों की बेरुखी के कारण यह कागजों से आगे नहीं सरके। असल में अवस्थापना सुविधाओं की कमी और मजबूत विपणन व्यवस्था न होना इसका बड़ा कारण रहा है। ऐसे में राज्य सरकार की इंडस्टि्रयल लैंड बैंक बनाने की पहल को सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र तथा पूंंजी निवेश के मानकों का शिथिलीकरण करने का इरादा जाहिर किया है। ऐसे में दो हेक्टेयर भूमि भी इस श्रेणी में आ सकेगी और पहाड़ों पर पांच करोड़ के प्रोजेक्ट भी मेगा प्रोजेक्ट के दायरे में आ जाएंगे। इन बैरियर के हटने से औद्योगिकीकरण की राह काफी हद तक आसान होगी। सरकार को सिर्फ नीति बनाकर पल्ला नहीं झाड़ना होगा, बल्कि निवेशकों को पहाड़ों में उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उद्योग स्थापना की औपचारिकताओं के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाने से निवेशक राहत महसूस करेंगे।
 

पंकज सिंह महर

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फल-सब्जी उत्पादन में प्रदेश की छलांग

अनुपम सिंह, हल्द्वानी किसी समय दूसरे राज्यों पर निर्भर रहने वाला उत्तराखंड फल व सब्जी उत्पादन में खूब उछाल मार रहा है। फलों का उत्पादन सात लाख मैट्रिक टन से ऊपर पहुंच गया है। वहीं सब्जियों के मामले में भी यह आंकड़ा छह लाख मीट्रिक टन को भी पार कर गया है। उद्यान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को फल व सब्जी उत्पादन की दिशा में प्रेरित करने का प्रयास तेजी के साथ किया जा रहा है, जिससे भविष्य में प्रदेश पूर्णतया आत्मनिर्भर बन जाए। डेढ़-दो दशक पहले तक राज्य को फल-सब्जी के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था। फल-सब्जी बढ़ती मांग को देखते हुए यहां के किसानों ने भी इसमें हाथ आजमाना शुरू किया, जिसके बेहतर परिणाम सामने आए। अलग राज्य बनने के बाद उद्यान विभाग ने फल और सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्यान तकनीकी मिशन के तहत किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देना शुरू किया। नतीजतन विभाग व किसानों की मेहनत रंग लाई और फल व सब्जी भी प्रमुख नकदी फसलों में शामिल हो गई। वर्तमान में राज्य में फलों का वार्षिक उत्पादन सात लाख मीट्रिक टन से ज्यादा जा पहंुचा है। उद्यान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक फलों के उत्पादन में माल्टा सबसे आगे है। राज्य में इसकी पैदावार 136740 मीट्रिक टन तक पहंुच गई है। 118971 मीट्रिक टन के साथ सेब दूसरे और 118558 मीट्रिक टन के साथ आम तीसरे स्थान पर है। प्रमुख नकदी फसलों में लीची की पैदावार कम है, जो 16627 मीट्रिक टन तक ही पहंुच पाई है। नाशपाती, आड़ू, पुलम, खुबानी, अखरोट आदि फलों का भी अच्छा खासा उत्पादन हो रहा है। इसी तरह सब्जियों का उत्पादन भी छह लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष पहंुच गया है। आलू का उत्पादन तो साढ़े चार लाख मीट्रिक टन के आसपास पहंुच गया है। जिला उद्यान अधिकारी वाईपी सिंह का कहना है कि गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष करीब 9 लाख टन फलोत्पादन की संभावना है।उद्यान निदेशक डा.डीआर गौतम का कहना है कि सब्जी व फल उत्पादन की खेती के लिए किसानों को अनुदान पर तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Women carve path of self-reliance in Uttarakhand
« Reply #18 on: December 13, 2011, 05:09:37 AM »

Yes.. uttarakhand can be self reliant State provided people start self employment like these women.
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    Women carve path of self-reliance in Uttarakhand    [ Date : Dec 12th, 2011 ]  Pauri Garhwal: Laying the foundation stone of self dependence, the Uttarakhand women are no more reliant on their husband’s earnings but are well equipped to carve a niche for themselves.
Setting an excellent example for others to follow, the women hailing from Uttarakhand villages, supply biscuits, namkeen and other snacks to lend their contribution in the family income.
In the time of need, they also get an easy loan at just 4 percent interest rate from the savings account of the village. As a result of their consistent efforts, Rs 29 lakh have been deposited in savings accounts of three districts: Pauri, Tehri and Uttarkashi.
In 2004, Mahila Samakhya, a self-help group initiated efforts in encouraging economic upliftment of the village women. They established a women savings account in three districts of Garhwal region: Pauri, Tehri and Uttarkashi.
Small industries like bakery, sewing-knitting, wool centre, pickles, candles, decorative flowers were set up in the villages for the purpose.
Women like Laxmi Devi, Basanti Gusaai, Radhika in Thalisen Koti block of Pauri district started supplying biscuits and namkeen from the bakery in 2004. With their hard work and perseveration, they were able to acquire a savings of Rs 95,000 in their women savings account.
At present, the women’s savings account has provided loans worth Rs 38,000 to 16 women in the village at 4 percent interest rate. The women are required to payback loan within a year by working at the bakery.
On the whole, 4,118 women in Tehri are operating 231 savings accounts in which they have collectively deposited Rs 3,35,410. On the other hand, 6013 women members in Uttarkashi are operating 378 women savings accounts and have collected a sum total of Rs 22,23,915.
The women opt for loans to buy seeds, farming equipments, livestock or for affording the education of their children and other household needs. The savings accounts operate on the lines of a bank and are managed by the women associated with it.
Preeti Thapliyal, Coordniator, Pauri said, “Having a look at the women savings account, until 2012, the women had collected Rs 19 lakh, which has now grown to an appreciable Rs 29 lakh. If they keep on working on the lines of a bank, the women in the village will soon be self reliant.”
According to Mahila Samakhya State Coordinator, Geeta Gairola, the women of the village need direction and they put in their best efforts to achieve their goal. As an example, they are not only becoming economically self-reliant and prosperous but also help other women in the hour of need.(Source-http://flashnewstoday.com/index.php/women-carve-path-of-self-reliance-in-uttarakhand/)

 

d_kandwal

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Jab tak Garhwal mai Neta log or Higher government official sudher nahi jate or apne se pehle UK ke  bare mai nahi sochte tab tak yeh possible nahi hai.
UP CM from UK before separation
ND Tiwari - 5 time
HN Bahuguna - 2 time

   Total time 35 year from 65 year of independent.

Now the politics of uttarakhand divided us between Brahmin & Rajput   

All the facts how we can say we became Self reliance state in future.


Dosto,

It has always said that Uttarakhand has a lot natual resources etc. Do you think that Uttarakhand become a self reliance state in coming future.

Kindly give you views on the subject.

M S Mehta


 

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