वन कानून छीन रहे काश्तकारों का निवाला
कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। प्रदेश में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की जटिलता विकास योजनाओं में तो बाधक बनी ही हुई थी, आम जनमानस भी इससे प्रभावित होने लगा है। जंगली जानवर काश्तकारों की खून-पसीने की कमाई को पलक झपकते ही चट रहे हैं, लेकिन काश्तकारों के समक्ष सिवाय तमाशाई बनने के कोई चारा नहीं। प्रखंड जयहरीखाल के अंतर्गत ग्रामसभा डाबरी के विभिन्न राजस्व ग्रामों के वाशिंदों ने जंगली जानवरों से त्रस्त होकर खेती करना ही छोड़ दिया है।
पहाड़ों में कृषि न सिर्फ मुख्य व्यवसाय बल्कि काश्तकार की आर्थिकी का भी जरिया है, लेकिन आज हालात बदल रहे हैं। अपनी पैतृक भूमि को खून-पसीने से हरा-भरा करने वाले ये काश्तकार अब खेती से विमुख होने लगे हैं और इसका मुख्य कारण वन्य जीव संरक्षण अधिनियम है। काश्तकार कड़ी मेहनत कर अपने खेतों में फसल उगा रहे हैं, लेकिन वन्य जीव उनकी फसलों को चौपट कर रहे हैं। नतीजतन काश्तकारों के समक्ष दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। प्रखंड जयहरीखाल का ग्रामसभा डाबरी इसका जीता-जागता उदाहरण है। इस ग्रामसभा के भगडयूं,भरत गांव, डाबरी ग्रामों के 90 फीसदी काश्तकार खेती छोड़ अन्यत्र पलायन कर चुके हैं, जबकि ग्वाड़ी के ग्रामीण खेती छोड़ने की तैयारी में हैं। ग्रामीणों की मानें तो ग्रामसभा में जंगली सुअरों का भयंकर आतंक है। जंगली सुअर गेहूं, धान के साथ ही नकदी फसल हल्दी, मिर्च, अरबी, अदरक, मकई आदि को भी नुकसान पहुंचाने लगे हैं, जिससे काश्तकारों के समक्ष रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। ग्राम प्रधान प्रकाश गवाड़ी ने बताया कि सुअरों के काश्तकारों की नगदी फसलों को नुकसाने से काश्तकारों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है। उन्होंने शासन-प्रशासन से वन कानूनों में बदलाव व काश्तकारों को उनकी फसल की भरपाई करने की मांग उठाई है।