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Reason For Forest Fire - उत्तराखंड में आग ज्यादा, पानी कम: कारणों कि खोज

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पंकज सिंह महर:
पहले तो जंगलों में आग नहीं लगती थी

उत्तराखण्ड में वनों में आग लगने का सीजन शुरु हो चुका है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि उत्तराखण्ड के इन्हीं जंगलों में ८० के दशक से पहले आग नहीं लगा करती थी और यदि आग लगती भी थी को स्थानीय लोग उसे बिना किसी सरकारी मदद के खुद ही बुझा देते थे, लेकिन अब ऐसा क्यों नहीं होता? यह विषय सोचनीय है।

वन अधिनियम ने जंगल में आम आदमी को दूर कर दिया और वह अब धीरे-धीरे उससे विमुख होता चला जा रहा है। पहले जंगल आम आदमी को अपनी संपत्ति लगता था, इसलिये उसकी रक्षा करना वह अपना दायित्व समझता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है, "तू मेरा नहीं, तो मैं तेरा क्यों" वाली बात आ गई है। मैने स्वयं जब इस बारे में लोगों से बात की तो लोगों ने कहा कि जंगल तो सरकार का है, आग लगती है तो सरकार बुझाये, हमसे क्या मतलब? इसकी तह में सरकार और वन विभाग को जाना होगा, जंगलों को अपना मैत बताकर, पेड़ो को कटने से बचाने के लिये उनसे लिपट जाने वाली महिलाओं के इस राज्य में आज आम आदमी इतना उदासीन और विमुख क्यों होता चला जा रहा है?
क्या अब समय नहीं आ गया है कि जंगलों को बचाने के लिये उसमें आम आदमी की सहभागिता सुनिश्चित की जाय? जंगलों से विमुख हो गये आदमी को जंगलों से फिर से जोड़ा जाय?

पंकज सिंह महर:
चीड़ के अनियंत्रित जंगलों का नियोजित दोहन तो हमें आज नहीं तो कल करना ही पड़ेगा। चीड़ के जंगलों के निरन्तर फैलाव ने आज पहाड़ में आग से ज्यादा समस्या पानी की खड़ी कर दी है, नौले, गाड़-गधेरों, धारों के आस-पास चीड़ लगने से पानी के स्रोत सूख रहे हैं। चीड़ का पिरुल लगातार जमीन की उर्वरा शक्ति और जल संग्रहण की शक्ति को कमजोर करता जा रहा है। प्राचीन पातल (घने मिश्रित वन) आज चीड़ के जंगल में बदलते जा रहे हैं। आखिर कब चेतेंगे हम?

Devbhoomi,Uttarakhand:
                             कल्पवृक्ष बांज के अस्तित्व पर छाया संकट
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वनागिन् की घटनाएं लगातार बढ़ते जा रही है। जिसके चलते वन्यजीवों के अस्तित्व पर जहां संकट के बादल छा रहे है, वहीं पहाड़ का कल्पवृक्ष कहे जाने वाले बांज के जंगल भी अब दावागिन् की चपेट में आ रहे है।

 मंगलवार को सल्ली और सायली क्षेत्र के बांज के जंगलों में भड़की आग के कारण खासा नुकसान हुआ है। अधिकांश स्थानों पर विभागीय कर्मी ग्रामीणों के सहयोग से आग पर काबू पाने की कोशिशों में जुटे हुए है, बावजूद इसके अभी तक दो सौ हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की चपेट में आ चुका है। जनपद के चम्पावत, लोहाघाट, पाटी और बाराकोट क्षेत्र के जंगलों का धू-धू कर जलने से वातावरण में अजीब सी धुंध छाई हुई है। चीड़ के जंगलों में आग धधकने के बाद अब कल्पवृक्ष बांज भी महफूज नहीं है।

अधिकांश चीड़ के जंगल वनागिन् के चलते सूख चुके है। पाटी के लधियाघाटी क्षेत्र में इस समय सबसे ज्यादा वन क्षेत्र आग की लपेट में है। वन विभाग द्वारा वन पंचायतों और ग्रामीणों के सहयोग से आग बुझाने का प्रयास तो किया जा रहा है, लेकिन संसाधनों का अभाव इस राह में रोड़ा बना हुआ है।

Devbhoomi,Uttarakhand:
                 नहीं थम रही है जंगलों की आग
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सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। क्षेत्र के जंगलों में आग लगने का क्रम जारी है। क्षेत्र के शैल-बैगनियां बीट, जीतब गूंठ तथा शैल बूंगा की पहाड़ी जैंठा, सुन्वोड़ी तथा बनौड़ा से लगी पहाड़ी पिछले 2-3 दिनों से दावाग्नि की चपेट में हैं। बैगनियां तथा जीतबगूंठ की महिला मंगल दल सदस्यों ने अपने-अपने क्षेत्रों के जंगलों में लगी भयंकर आग को बुझाने के प्रयास के साथ ही वन पंचायत क्षेत्रों को आग से बचाया। ग्रामीण आग लाइन काटकर शेष जंगलों को बचाने की मुहिम चलाए हुए हैं। महिलाओं ने दावाग्नि रोकने व बुझाने के प्रति विभागीय हीलाहवाली पर रोष प्रकट करते हुए ग्रामीणों को फायर किट तथा टार्च आदि आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने की मांग की है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6334106.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Kahi Aag kee problem so kahi Paani.

Even in Dhoni's paternal village there is problem of water.
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  धौनी के ग्रामवासी पी रहे हैं दूषित जल       Apr 09, 10:06 pm    बताएं           जैंती (अल्मोड़ा): भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र धौनी का पैतृक गांव ल्वाली के ग्रामीण जल महकमे की लापरवाही के कारण दूषित जल पीने को मजबूर हैं। विगत दिनों जब शासन के निर्देश पर एसडीएम एनएस डांगी ने गांव का दौरा किया तो ल्वाली के ग्रामीणों ने एसडीएम से शिकायत की कि वर्ष 2007 में बनी इस पेयजल योजना में जल निगम द्वारा न तो स्रोत से बीएफजी निर्मित की न ही इंटेक। यहां तक गधेरे के पानी को स्वच्छ करने के लिए फिल्टर तक का निर्माण नहीं किया गया। सीधे-सीधे खाल से नलों को जोड़ दिया गया। जिससे बिना छने गंदा गधेरे का पानी लोगों के घरों में पहुंच रहा है। ताज्जुब इस बात का भी है कि इस दो किमी लंबी आधी अधूरी पेयजल योजना को ग्राम पंचायत को हस्तांतरित कर दिया गया। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा महेंद्र धौनी के पैतृक गांव ल्वाली को सड़क, पनी, बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से लैस करने की घोषणा की गयी। जबकि वर्षो से यहां के पेयजल टैंकों पर क्लोरिनेशन तक नहीं किया गया है। शासन द्वारा प्रतिवर्ष दस हजार रुपया स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में ग्राम पंचायतों को दिया इस बाबत दिया जाता है।
इधर महेंद्र सिंह धौनी के चचेरे भाई दिनेश धौनी का कहना है कि दूषित पनी पीने से गांव में जल जनित रोगों का प्रकोप जारी है। महेंद्र धौनी के चाचा धनपत सिंह धौनी का आरोप था कि उनके गांव में आज तक एएनएम के दर्शन तक नहीं हुए। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से गर्भवती महिलाओं व बच्चों में टीकाकरण का कार्य नहीं हो पा रहा है।
   

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7560699.html

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