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Reason For Forest Fire - उत्तराखंड में आग ज्यादा, पानी कम: कारणों कि खोज

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सत्यदेव सिंह नेगी:
सूखे प्रभावित क्षेत्रों का लिया जायजा
May 20, 02:34 am

गढ़वाल। भारत सरकार की टीम ने गढ़वाल क्षेत्र के विभिन्न स्थानों का दौरा कर सूखे की स्थिति का जायजा लिया।

गोपेश्वर । जिलाधिकारी अरूण कुमार ढौंडियाल ने केन्द्रीय सूखा राहत दल को जिले के सूखा प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण करवाया। जिलाधिकारी ने केंद्रीय सूखा राहत दल के अधिकारियों को बताया कि जिले में रबी की फसल 60 से 90 फीसदी तक प्रभावित हुई है। इससे जनपद के 1027 गांवों का 11848.447 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा है कि इससे करीब 8 करोड़ 50 लाख की कृषि फसल की क्षति हुई है।

कर्णप्रयाग। ब्लाक के अंतर्गत सूखे की स्थिति का जायजा लेने आये केन्द्रीय पर्यवेक्षक दल सदस्यों ने जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक कर गांवों का स्थलीय निरीक्षण किया। केन्द्रीय दल के वाईसी शर्मा, डिप्टी डारेक्टर वित्त विभाग भारत सरकार, मानस रंजन मेहंती डारेक्टर बाल पोषण और डा. बीबी दास ने स्थानीय ग्राम पंचायत प्रधानों, जनप्रतिनिधियों व विभिन्न विभागों के अधिकारियों की बैठक में सूखे की स्थिति पर चर्चा करते हुए लोगों से सुझाव भी मांगें। बैठक में ग्राम सभा डिम्मर, सिमली, सैनू, चमोला, बणगांव, चूलाकोट, धारकोट, रतूड़ा, बसक्वाली, बणसोली आदि ग्राम सभाओं के प्रधानों व काश्तकारों ने बताया कि उनकी फसल सूखे की चपेट में आने से बर्बाद हो गयी है। प्रभावितों को तुरंत फसलों का मुआवजा दिया जाए।

नई टिहरी। केन्द्र के सूखा राहत सर्वे दल ने जनपद के सूखा प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण कर सूखे का जायजा लिया। संयुक्त सचिव कृषि मंत्रालय भारत सरकार राजेन्द्र कुमार के नेतृत्व में आठ सदस्यीय दल ने थौलधार प्रखण्ड के छाम, कमांद, जाखणीधार के टिपरी, गडोलिया आदि क्षेत्रों का भ्रमण कर सूखे का जायजा लिया। भ्रमण के बाद दल ने नई टिहरी पहुंचकर अधिकारियों की साथ बैठक की। बैठक में सूखे से निपटने के लिए आवश्यक धन प्राक्कलन पर विचार किया गया। बैठक में सर्वे दल के संयुक्त सचिव कृषि मंत्रालय भारत सरकार राजेन्द्र कुमार, टीम के सदस्य निदेशक वीके यादव, वाईपी वर्मा, जिलाधिकारी सौजन्या, मुख्य विकास अधिकारी एसए मुरुगेशन सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी मौजूद थे।

पंकज सिंह महर:
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बढ़ते चीड़ के जंगल, सूखते भूजल स्रोत

सूबे में तेजी से फैल रहे चीड़ के वनों को यदि समय रहते ही नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश प्राकृतिक जलस्रोत विहीन हो जाएगा। इतना ही नहीं चीड़ के इन वनों में प्रति वर्ष लगने वाली आग से जल संरक्षण करने वाले वनों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा और प्रदेश को पेयजल के लिए सरकारी पंपिंग योजनाओं के भरोसे ही रहना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार को आने वाली इस विपदा के बारे में चेताया न गया हो परंतु सरकार वर्षों बीतने के बाद भी इस आने वाले संकट से मुंह मोड़े हुए हैं। सूबे के गढ़वाल मंडल में 12 हजार वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र है इसमें से 4.2 हजार वर्ग कि.मी.चीड़ वन क्षेत्र है। इस चीड़ वन क्षेत्र में प्रति वर्ष गर्मियों में लगने वाली दावाग्नि से लगभग 8 हजार वर्ग कि.मी. मिश्रित वन क्षेत्र लगातार प्रभावित होकर घटता जा रहा है।

लगातार घटते इन वन क्षेत्र में चीड़ के वन प्राकृतिक रूप से पनप रहे हैं। जिसके कारण गढ़वाल मंडल के चीड़ वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हो रही है जोकि आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी है। वन विभाग व्दारा कई दशकों तक सूबे में चीड़ के वनों को विकसित किया गया क्योंकि चीड़ के वन एक बार विकसित होने के बाद प्राकृतिक रूप से दूर-दूर तक फैलने की क्षमता रखते हैं। जोकि वन विभाग के लिए बिना काम-दाम से फायदे का सौदा था। इस फायदे को देखते हुए वन विभाग तीन दशक तक उत्तराखंड में वन विकसित करने के नाम पर चीड़ के वनों का विकास करता रहा। अब यही चीड़ का वन प्रदेश के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। तेजी से फैल रहे इन चीड़ के वनों के कारण जहां एक ओर पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं दूसरी ओर चीड़ वनों के कारण प्राकृतिक जलस्रोत समाप्त हो रहे हैं। इतना ही नहीं चीड़ की सुईनुमा पत्तियों जिनको पिरूल कहा जाता है,दावाग्नि के लिए पेट्रोल का काम करती है।

चीड़ के वनों से आच्छादित वनभूमि में किसी अन्य प्रजाति की वनस्पति पनपने का प्रश्न ही नहीं होता है क्योंकि चीड़ की पत्तियाँ आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह ढक देती है जिसके कारण वनभूमि की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। चीड़ के आक्रामक परिणामों को देखते हुए भारत सरकार के कृषि व सहकारिता मंत्रालय ने कई बार सूबे की सरकार को यह निर्देशित किया था कि प्रदेश में वन विभाग चीड़ उन्मूलन के कार्यों को भी अपने हाथों में ले जिसके तहत ग्रामीणों को उनके हकहुकूक की लकड़ी को देने में चीड़ के पेड़ों को प्राथमिकाता से आबंटित करे तथा जल संसाधन बढ़ाने के लिए नीला संवर्ध्दन कार्यक्रम पर भी विशेष ध्यान दें। लेकिन प्रदेश सरकार ने चीड़ उन्मूलन के दिशा-निर्देशों को ताक पर रख नौला संवर्ध्दन कार्यक्रम में बजट का प्रावधान किया गया था। लेकिन बिना चीड़ उन्मूलन के नौला संवर्ध्दन कार्यक्रम को चलाया जाना सरकारी धन का दुरुपयोग सिध्द हुआ। प्रदेश में जलस्रोतों से समाप्ति के कगार पर पहुंच जाने के बाद भी प्रदेश सरकार चेती नहीं है। गढ़वाल मंडल के लगभग 8 हजार वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र जिसमें कि चौड़ी पत्ती वाले वन हैं, को विस्तारित करने दिशा में सरकार का ध्यान नहीं है। ऐसी परिस्थियों में वे दिन दूर नहीं जबकि प्रदेश से सभी प्राकृतिक जलस्रोत समाप्त हो जाएंगे। ऐसे में पहाड़ी प्रदेश में पेयजल के लिए चलाई जा रही हैंडपम्प योजना भी फ्लाप साबित हो जाएगी,क्योंकि पहाड़ों में हैंडपंप भी जमीन के पाए जाने वाले प्राकृतिक जलस्रोत से ही पानी खींचते हैं।


source-हिन्दुस्तान टाइम्स (नई दिल्ली), 24 Jun. 2005

Rajen:
राज्य का 300 हेक्टेयर वनक्षेत्र आग से प्रभावित   (Jagran News)

 देहरादून। राज्य के वनों में आग के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दो महीने में वन क्षेत्र में लगी आग से करीब 295 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हो चुका है। वनाग्नि के लगभग 74 मामले भी रिपोर्ट हुए हैं। वनों में लगी आग से कितना नुकसान हुआ है, इसका आंकलन होना बाकी है।

इस बार तापमान चढ़ने से राज्य के वन जल्द ही आग की चपेट में आ गए हैं। हालांकि शासन स्तर पर वनाग्नि के नियंत्रण के लिए एक्शन प्लान बनाया गया है, लेकिन वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती आग लगने के कारणों को तलाशने की है। इस मामले में विभाग कोई प्रभावी रणनीति नहीं तैयार कर पाया है। फरवरी के दूसरे पखवाड़े से राज्य के वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थी। अब तो राजाजी व कार्बेट पार्क तक आग से प्रभावित हो चुके हैं।

राज्य में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले एक हफ्ते में छह से अधिक क्षेत्र आग की चपेट में आए हैं। इस समय तक गढ़वाल मंडल में 36, कुमाऊं मंडल में 14 तथा वन्य जंतु क्षेत्र में 24 आग के मामले रिपोर्ट हो चुके हैं। आग से करीब 295 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। वनाग्नि को लेकर दो हफ्ते पहले मुख्यमंत्री ने आला अफसरों की बैठक ली। बैठक में वनाग्नि पर अंकुश लगाने के संबंध में विचार विमर्श किया गया। इसके लिए जनसहभागिता सुनिश्चित करने के लिए ग्राम सभाओं तथा महिला व युवक मंगल दलों की भूमिका तय करने की जरूरत पर बल दिया गया। इतना ही नहीं, बल्कि आग की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अलग कार्ययोजना बनाने पर सहमति जताई गई। सूचना तंत्र को भी मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Every year..... we lose cr of rupees due to fire in forest..

This is also contributing in global warming also. Govt should explore some method to tacke this problem with the help villagers and non Govt orgnizations.


--- Quote from: Rajen on April 12, 2010, 11:33:32 AM ---राज्य का 300 हेक्टेयर वनक्षेत्र आग से प्रभावित   (Jagran News)

 देहरादून। राज्य के वनों में आग के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दो महीने में वन क्षेत्र में लगी आग से करीब 295 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हो चुका है। वनाग्नि के लगभग 74 मामले भी रिपोर्ट हुए हैं। वनों में लगी आग से कितना नुकसान हुआ है, इसका आंकलन होना बाकी है।

इस बार तापमान चढ़ने से राज्य के वन जल्द ही आग की चपेट में आ गए हैं। हालांकि शासन स्तर पर वनाग्नि के नियंत्रण के लिए एक्शन प्लान बनाया गया है, लेकिन वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती आग लगने के कारणों को तलाशने की है। इस मामले में विभाग कोई प्रभावी रणनीति नहीं तैयार कर पाया है। फरवरी के दूसरे पखवाड़े से राज्य के वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थी। अब तो राजाजी व कार्बेट पार्क तक आग से प्रभावित हो चुके हैं।

राज्य में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले एक हफ्ते में छह से अधिक क्षेत्र आग की चपेट में आए हैं। इस समय तक गढ़वाल मंडल में 36, कुमाऊं मंडल में 14 तथा वन्य जंतु क्षेत्र में 24 आग के मामले रिपोर्ट हो चुके हैं। आग से करीब 295 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। वनाग्नि को लेकर दो हफ्ते पहले मुख्यमंत्री ने आला अफसरों की बैठक ली। बैठक में वनाग्नि पर अंकुश लगाने के संबंध में विचार विमर्श किया गया। इसके लिए जनसहभागिता सुनिश्चित करने के लिए ग्राम सभाओं तथा महिला व युवक मंगल दलों की भूमिका तय करने की जरूरत पर बल दिया गया। इतना ही नहीं, बल्कि आग की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अलग कार्ययोजना बनाने पर सहमति जताई गई। सूचना तंत्र को भी मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

--- End quote ---

dayal pandey/ दयाल पाण्डे:
दरशल वनों आग अपनेआप लगती नहीं लगाई जाती है एसे सरफिरे जो आग लगते हैं उनके लिए कठोर सजा होना अनिवार्य है, वन सम्पदा एक बड़ी पूंजी है इसे सुरक्षित रखना हम सबकी जम्मेदारी है   

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