चन्द्रशेखर करगेती
बनती है दुनिया बनाने वाला चाहिये, गैरसैंण के सन्दर्भ में.............
गैरसैंण का जिन्न यो ही बोतल से बाहार नहीं निकाला गया, जहाँ काँग्रेसनीत केन्द्र सरकार आम आदमी के सरोकारों पर खरी नहीं उतरी है, वहीं पर दिन प्रतिदिन उजागर होते घोटालों ने कोढ़ में खाज का काम किया है, वहीं हर चुनाव में अपना दखल रखने वाले मध्यम वर्ग के लोकपाल आन्दोलन ने केंद्र सरकार की साख पर और बट्टा लगाया ! उस महँगाई पेट्रोल-डी
जल के दाम में वृद्धि और हाल ही में कंट्रोल किये गये गैस सिलेंडरों की संख्या ने आग में घी का का काम किया l
इन्ही सब सरकार विरोधी मुद्दों के बीच राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सितारगंज से विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया और वहाँ पर बंगाली मूल के लोगों को भूमिधारी अधिकार देने के नाम पर उक्त विधानसभा उपचुनाव भारी बहुमत से जीता, बस यहीं से बहुगुणा सरकार यह मानने लगी कि राज्य में लोगों के बीच भावनात्मक मुद्दे उछालो और चुनाव जीतो ! गैरसैंण मुद्दा भी चर्चा में आना भी इसी रणनीति का परिणाम है, और इसके परीक्षण भी टिहरी लोकसभा उपचुनाव में कर लिया गया, टिहरी उप चुनाव में काँग्रेस विरोधी हवा होने के बावजूद भी पहाड़ी क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर हार का मार्जिन कम रहना काँग्रेस के इस मुद्दों को और हवा दे गया l
काँग्रेसनीत राज्य सरकार या पौड़ी सांसद आज भले ही गैरसैण के नाम पर कितना ही ढोल पीट ले, लेकिन वे गैरसैंण में राज्य की राजधानी बने इसके लिये कभी भी ईमानदार न थे, ना हैं और ना भविष्य में रहेंगे l आज सरकार और पौड़ी सांसद साहब में इस बात की होड़ मची है कि इस कार्य का व्यक्तिगत श्रेय कौन ले ? जिससे कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को भुनाकर अधिक से अधिक फायदा लिया जा सके और इसके लिये विभिन्न न्यूज चेनलों को एवं अखबारों में छपे सतपाल महाराज और सरकार के मुखिया विजय बहुगुणा के बयान सरकार की एवं काँग्रेस संगठन की मंशा को साफ़ करने को पर्याप्त है l
काँग्रेस व भाजपा कभी भी राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के विकास की पक्षधर नहीं रही है राज्य का बारह सालों का इतिहास यह समझाने को पर्याप्त है, और गैरसैंण का मुद्दा पार्टी का एजेंडा ना होकर परिस्थिति जन्य है, और यह तभी तक सरकार की चर्चा में रहेगा जब तक राज्य में सरकार अनुकूल माहोल नहीं बन जाता है, अगर काँग्रेस या भाजपा गैरसैंण पर ईमानदार होते तों राज्य विधानसभा के वक्त अपने घोषणा पत्र में गैरसैण को प्रमुखता से छापते, लेकिन वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है, जिन घोषणाओं को लेकर काँग्रेस चुनाव में जनता के बीच गयी थी वे आज हासिये पर आज वे मुद्दे चर्चा में है जो काँग्रेस को अधिक से अधिक लोकसभा सीट पर विजयी बना सके, और गैरसैंण राज्य का एक ऐसा मुद्दा है जो चुनाव में किसी भी पार्टी की नैया पार लगा सकता है, क्योंकि गैरसैण राजधानी मुद्दा राज्य के बहुसंख्य लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है और यही भ्रम सरकार और सतपाल महाराज पाले हुए हैं l
गैरसैंण पर काँग्रेस की नीयत को इस बात से भी परखा जा सकता है कि राज्य विधानसभा भवन के लिये केंद्र से स्वीकृत ८८ करोड़ रुपयों में से केवल २५ करोड़ रूपये ही गैरसैण में खर्च होगा बाकी का ६३ करोड़ रूपये का क्या होगा, राज्य सरकार या काँग्रेस का कोई नुमाईंदा इस पर कोई बयान नहीं दे रही है, क्यों ? गैरसैण में केवल ग्रीष्मकालीन ही सत्र क्यों ? शीतकालीन सत्र क्यों नहीं ? गैरसैण में विधानसभा का एक सत्र ही क्यों हमेशा के लिये क्यों नहीं ?
गैरसैण में काँग्रेस राज्य सरकार ने अनुमानत: ५ करोड़ रूपये लागत की केबिनेट बैठक कर विधानभवन बनाने की घोषणा कर किसका भला किया ? अपना स्वयं का या राज्य की जनता ? क्या गैरसैंण में विधानभवन बनाने की घोषणा देहरादून से ही नहीं हो सकती थी ? क्या इसके लिये राज्य की जनता के गाढ़ी कमाई के ५ करोड़ रुपयों की आहुति जरूरी थी ?
उपरोक्त कई प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर न तों काँग्रेस के नेताओं के पास और ना ही राज्य सरकार के पास l ताज्जुब की बात यह है कि इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़ा करने की स्थिति में राज्य का विपक्षी दल हैं ही नहीं अन्य दलों की बात करना तों बेमानी होगा, और ना ही वे काँग्रेस से सवाल जवाब करने की स्थिति में है !
आज भले ही गैरसैण के नाम के पीछे काँग्रेस की जो रट है, उसके अपने राजनैतिक निहितार्थ हैं, काँग्रेस के गैरसैंण राग के पीछे की नियत में वो इमानदारी और साफगोई तों कतई नहीं है, जो किसी जनभावना से जुड़े मुद्दों पर होनी चाहिये ? लोकसभा चुनाव की आहटों के बीच काँग्रेस और सतपाल महाराज का अतिवादी हो गैरसैंण का राग अलापना राज्य आंदोलनकारियों की भावना का सम्मान कम अपने राजनैतिक भविष्य से जुड़े नफे नुकसान की कवायद ज्यादा है l
राज्य में काँग्रेस या अन्य कोई राजनैतिक दल राज्य आंदोलनकारियों के सपनो के प्रति इतने ही खैरख्वाह होते तों राज्य गठन की वर्षगाँठ पर मसूरी के शहीद स्मारक पर आंदोलनकारी संगठन धरना नहीं दे रहें होते, जहाँ राज्य सरकार के नुमाईंदे तों तों दूर क्षेत्र के विधायक ने भी श्रद्धा का एक फूल चढाने को समय निकालाना उचित नहीं समझा l यह तों एक बानगी भर है वास्तव में उत्तराखण्ड की राजनीति छोटी मानसिकता की तंग गलियारों में कैद है, इसकी बानगी 9 नवम्बर राज्य स्थापना दिवस पर राजनेताओं द्वारा घोषित राज्य की राजधानी देहरादून में भी देखने की मिली l शहर में इस दिन तमाम सरकारी, गैर सरकारी कार्यक्रम हुए, लेकिन स्व. इन्द्रमणि बडोनी की घंटाघर स्थित प्रतिमा पर किसी सरकारी या गैर सरकारी प्रतिनिधी ने माल्यापर्ण तक नहीं किया ?
यह ठीक है कि स्व. बडोनी उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेता थे, लेकिन उनके जैसे लोगों के संघर्षो से हासिल हुए इस राज्य की सत्ता का आनन्द काँग्रेस-भाजपा सहित उनके अपने दल के वे तमाम लोग उठा रहें है जो उत्तर प्रदेश में रहकर ब्लॉक प्रमुख तक नहीं बन पाते ! वैसे भी बडोनी या शहीद आंदोलनकारियों का मान रख देने से उन्हें कुछ नहीं मिलता ! पर इस देश की जनता में एक सन्देश जरुर जाता कि उत्तराखण्ड के लोग अपने जननायको को सम्मान देने में राजनीति नहीं करते ! लेकिन हमारे राज्य के नेताओं ने यह मौक़ा भी खो दिया l
वर्तमान काँग्रेस सरकार की गैरसैंण में विधानभवन बनाने की घोषणा भी अपनी पुर्ववर्ती 2002 की काँग्रेस सरकार द्वारा राज्य आंदोलनकारी को चिन्हित करने जैसा ही काम है, जिस तरह राज्य आंदोलनकारियों को काँग्रेस सरकार ने कई धडो में बाँट दिया है, वैसा ही हाल गैरसैण पर भी राज्य की जनता का होगा, कुछ लोग भले ही काँग्रेस की घोषणा का समर्थन करेंगे और हमारे जैसे कुछ लोग विरोध भी करेगें और शायद काँग्रेस की मंशा भी यही है, और इस बीच २०१४ के लोकसभा चुनाव भी निपट ही जायेंगे ....
काँग्रेस का काम हैं बनता फिर भाड़ में जाये जनता, जनता तों बनती रहती है, उसकी नियति भी यही है, बस बनाने वाला चाहिये और उसमें हमारे राज्य के राजनेताओं का कोई सानी नहीं है......
— with Dhirender Adhikari, Bhupal Bisht, Narendra Singh Neggi, Aranya Ranjan, Lmohan Kothiyal, Mujib Naithani, Shiv Charan Mundepi, शैलेन्द्र ध्यानी, Tanishka Pant, Mahendra Farswan, Dinesh Belwal, Vinod Singh Gariya, Gaurav Nauriyal, Atul Sati, Lieut Sushma Bisht Mathur, Dayal Pandey, Vimal Bisht, Devender Bisht, Sameer Raturi, Indresh Maikhuri, Raj Tarang, Umesh Chandra Pant, Naresh Chamoli, Brijesh Khanna, Gajendra Rawat, Devendra Pathik, Trepan Singh Chauhan, पंकज सिंह महर, Shailendra Singh, Hansa Amola, Hem Pant, Anil Kukreti, Shamshad Elahee Shams, Mahi Singh Mehta, Ganesh Garib, Raja Bahuguna, Arun Karnatak, Akhilesh Dimri, Sanjay Rawat, Aazad Shweta Bhagat, Rajiv Lochan Sah, विनोद भगत, Sanjay Bhatt, Mohan Bisht, नवीन चन्द्र जोशी, नव चेतना सोसाइटी पिथौरागढ़, Rajneesh Agnihotri, Ganesh Joshi, Alok Sati, Rahul Kotiyal, Raju Bangwal, Rajiv Nayan Bahuguna, Samajsevi Bhargava Chandola, Bharat Rawat, Pushpesh Tripathi, Bhuwan Chandra Joshi, Basant Joshi, O.p. Pandey, घुघूती बासुती, Prem Sundriyal, Prady Thalwal, Ram Prasad and Shiv Prasad Semwal.
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घुघूती बासुती इतनी बड़ी आपदा आई मुंह तक नहीं खुला इनका क्योंकि संसाधनों के लुटेरों की जी हजुरी जो करनी है ....याद रखना रे पहाड़ वासियों
121 डाक्टर 36.6cr की फ़ीस का चुना लगाकर निकल गए ...सबके सामने मुद्दा रहा किसी का मुंह नहीं खुला पहाड़ सदियों से जुकाम में भी जIगर...See More