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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 192220 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती

बनती है दुनिया बनाने वाला चाहिये, गैरसैंण के सन्दर्भ में.............

गैरसैंण का जिन्न यो ही बोतल से बाहार नहीं निकाला गया, जहाँ काँग्रेसनीत केन्द्र सरकार आम आदमी के सरोकारों पर खरी नहीं उतरी है, वहीं पर दिन प्रतिदिन उजागर होते घोटालों ने कोढ़ में खाज का काम किया है, वहीं हर चुनाव में अपना दखल रखने वाले मध्यम वर्ग के लोकपाल आन्दोलन ने केंद्र सरकार की साख पर और बट्टा लगाया ! उस महँगाई पेट्रोल-डी
जल के दाम में वृद्धि और हाल ही में कंट्रोल किये गये गैस सिलेंडरों की संख्या ने आग में घी का का काम किया l

इन्ही सब सरकार विरोधी मुद्दों के बीच राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सितारगंज से विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया और वहाँ पर बंगाली मूल के लोगों को भूमिधारी अधिकार देने के नाम पर उक्त विधानसभा उपचुनाव भारी बहुमत से जीता, बस यहीं से बहुगुणा सरकार यह मानने लगी कि राज्य में लोगों के बीच भावनात्मक मुद्दे उछालो और चुनाव जीतो ! गैरसैंण मुद्दा भी चर्चा में आना भी इसी रणनीति का परिणाम है, और इसके परीक्षण भी टिहरी लोकसभा उपचुनाव में कर लिया गया, टिहरी उप चुनाव में काँग्रेस विरोधी हवा होने के बावजूद भी पहाड़ी क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर हार का मार्जिन कम रहना काँग्रेस के इस मुद्दों को और हवा दे गया l

काँग्रेसनीत राज्य सरकार या पौड़ी सांसद आज भले ही गैरसैण के नाम पर कितना ही ढोल पीट ले, लेकिन वे गैरसैंण में राज्य की राजधानी बने इसके लिये कभी भी ईमानदार न थे, ना हैं और ना भविष्य में रहेंगे l आज सरकार और पौड़ी सांसद साहब में इस बात की होड़ मची है कि इस कार्य का व्यक्तिगत श्रेय कौन ले ? जिससे कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को भुनाकर अधिक से अधिक फायदा लिया जा सके और इसके लिये विभिन्न न्यूज चेनलों को एवं अखबारों में छपे सतपाल महाराज और सरकार के मुखिया विजय बहुगुणा के बयान सरकार की एवं काँग्रेस संगठन की मंशा को साफ़ करने को पर्याप्त है l

काँग्रेस व भाजपा कभी भी राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के विकास की पक्षधर नहीं रही है राज्य का बारह सालों का इतिहास यह समझाने को पर्याप्त है, और गैरसैंण का मुद्दा पार्टी का एजेंडा ना होकर परिस्थिति जन्य है, और यह तभी तक सरकार की चर्चा में रहेगा जब तक राज्य में सरकार अनुकूल माहोल नहीं बन जाता है, अगर काँग्रेस या भाजपा गैरसैंण पर ईमानदार होते तों राज्य विधानसभा के वक्त अपने घोषणा पत्र में गैरसैण को प्रमुखता से छापते, लेकिन वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है, जिन घोषणाओं को लेकर काँग्रेस चुनाव में जनता के बीच गयी थी वे आज हासिये पर आज वे मुद्दे चर्चा में है जो काँग्रेस को अधिक से अधिक लोकसभा सीट पर विजयी बना सके, और गैरसैंण राज्य का एक ऐसा मुद्दा है जो चुनाव में किसी भी पार्टी की नैया पार लगा सकता है, क्योंकि गैरसैण राजधानी मुद्दा राज्य के बहुसंख्य लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है और यही भ्रम सरकार और सतपाल महाराज पाले हुए हैं l

गैरसैंण पर काँग्रेस की नीयत को इस बात से भी परखा जा सकता है कि राज्य विधानसभा भवन के लिये केंद्र से स्वीकृत ८८ करोड़ रुपयों में से केवल २५ करोड़ रूपये ही गैरसैण में खर्च होगा बाकी का ६३ करोड़ रूपये का क्या होगा, राज्य सरकार या काँग्रेस का कोई नुमाईंदा इस पर कोई बयान नहीं दे रही है, क्यों ? गैरसैण में केवल ग्रीष्मकालीन ही सत्र क्यों ? शीतकालीन सत्र क्यों नहीं ? गैरसैण में विधानसभा का एक सत्र ही क्यों हमेशा के लिये क्यों नहीं ?

गैरसैण में काँग्रेस राज्य सरकार ने अनुमानत: ५ करोड़ रूपये लागत की केबिनेट बैठक कर विधानभवन बनाने की घोषणा कर किसका भला किया ? अपना स्वयं का या राज्य की जनता ? क्या गैरसैंण में विधानभवन बनाने की घोषणा देहरादून से ही नहीं हो सकती थी ? क्या इसके लिये राज्य की जनता के गाढ़ी कमाई के ५ करोड़ रुपयों की आहुति जरूरी थी ?

उपरोक्त कई प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर न तों काँग्रेस के नेताओं के पास और ना ही राज्य सरकार के पास l ताज्जुब की बात यह है कि इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़ा करने की स्थिति में राज्य का विपक्षी दल हैं ही नहीं अन्य दलों की बात करना तों बेमानी होगा, और ना ही वे काँग्रेस से सवाल जवाब करने की स्थिति में है !

आज भले ही गैरसैण के नाम के पीछे काँग्रेस की जो रट है, उसके अपने राजनैतिक निहितार्थ हैं, काँग्रेस के गैरसैंण राग के पीछे की नियत में वो इमानदारी और साफगोई तों कतई नहीं है, जो किसी जनभावना से जुड़े मुद्दों पर होनी चाहिये ? लोकसभा चुनाव की आहटों के बीच काँग्रेस और सतपाल महाराज का अतिवादी हो गैरसैंण का राग अलापना राज्य आंदोलनकारियों की भावना का सम्मान कम अपने राजनैतिक भविष्य से जुड़े नफे नुकसान की कवायद ज्यादा है l

राज्य में काँग्रेस या अन्य कोई राजनैतिक दल राज्य आंदोलनकारियों के सपनो के प्रति इतने ही खैरख्वाह होते तों राज्य गठन की वर्षगाँठ पर मसूरी के शहीद स्मारक पर आंदोलनकारी संगठन धरना नहीं दे रहें होते, जहाँ राज्य सरकार के नुमाईंदे तों तों दूर क्षेत्र के विधायक ने भी श्रद्धा का एक फूल चढाने को समय निकालाना उचित नहीं समझा l यह तों एक बानगी भर है वास्तव में उत्तराखण्ड की राजनीति छोटी मानसिकता की तंग गलियारों में कैद है, इसकी बानगी 9 नवम्बर राज्य स्थापना दिवस पर राजनेताओं द्वारा घोषित राज्य की राजधानी देहरादून में भी देखने की मिली l शहर में इस दिन तमाम सरकारी, गैर सरकारी कार्यक्रम हुए, लेकिन स्व. इन्द्रमणि बडोनी की घंटाघर स्थित प्रतिमा पर किसी सरकारी या गैर सरकारी प्रतिनिधी ने माल्यापर्ण तक नहीं किया ?

यह ठीक है कि स्व. बडोनी उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेता थे, लेकिन उनके जैसे लोगों के संघर्षो से हासिल हुए इस राज्य की सत्ता का आनन्द काँग्रेस-भाजपा सहित उनके अपने दल के वे तमाम लोग उठा रहें है जो उत्तर प्रदेश में रहकर ब्लॉक प्रमुख तक नहीं बन पाते ! वैसे भी बडोनी या शहीद आंदोलनकारियों का मान रख देने से उन्हें कुछ नहीं मिलता ! पर इस देश की जनता में एक सन्देश जरुर जाता कि उत्तराखण्ड के लोग अपने जननायको को सम्मान देने में राजनीति नहीं करते ! लेकिन हमारे राज्य के नेताओं ने यह मौक़ा भी खो दिया l

वर्तमान काँग्रेस सरकार की गैरसैंण में विधानभवन बनाने की घोषणा भी अपनी पुर्ववर्ती 2002 की काँग्रेस सरकार द्वारा राज्य आंदोलनकारी को चिन्हित करने जैसा ही काम है, जिस तरह राज्य आंदोलनकारियों को काँग्रेस सरकार ने कई धडो में बाँट दिया है, वैसा ही हाल गैरसैण पर भी राज्य की जनता का होगा, कुछ लोग भले ही काँग्रेस की घोषणा का समर्थन करेंगे और हमारे जैसे कुछ लोग विरोध भी करेगें और शायद काँग्रेस की मंशा भी यही है, और इस बीच २०१४ के लोकसभा चुनाव भी निपट ही जायेंगे ....

काँग्रेस का काम हैं बनता फिर भाड़ में जाये जनता, जनता तों बनती रहती है, उसकी नियति भी यही है, बस बनाने वाला चाहिये और उसमें हमारे राज्य के राजनेताओं का कोई सानी नहीं है......
— with Dhirender Adhikari, Bhupal Bisht, Narendra Singh Neggi, Aranya Ranjan, Lmohan Kothiyal, Mujib Naithani, Shiv Charan Mundepi, शैलेन्द्र ध्यानी, Tanishka Pant, Mahendra Farswan, Dinesh Belwal, Vinod Singh Gariya, Gaurav Nauriyal, Atul Sati, Lieut Sushma Bisht Mathur, Dayal Pandey, Vimal Bisht, Devender Bisht, Sameer Raturi, Indresh Maikhuri, Raj Tarang, Umesh Chandra Pant, Naresh Chamoli, Brijesh Khanna, Gajendra Rawat, Devendra Pathik, Trepan Singh Chauhan, पंकज सिंह महर, Shailendra Singh, Hansa Amola, Hem Pant, Anil Kukreti, Shamshad Elahee Shams, Mahi Singh Mehta, Ganesh Garib, Raja Bahuguna, Arun Karnatak, Akhilesh Dimri, Sanjay Rawat, Aazad Shweta Bhagat, Rajiv Lochan Sah, विनोद भगत, Sanjay Bhatt, Mohan Bisht, नवीन चन्द्र जोशी, नव चेतना सोसाइटी पिथौरागढ़, Rajneesh Agnihotri, Ganesh Joshi, Alok Sati, Rahul Kotiyal, Raju Bangwal, Rajiv Nayan Bahuguna, Samajsevi Bhargava Chandola, Bharat Rawat, Pushpesh Tripathi, Bhuwan Chandra Joshi, Basant Joshi, O.p. Pandey, घुघूती बासुती, Prem Sundriyal, Prady Thalwal, Ram Prasad and Shiv Prasad Semwal.
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    घुघूती बासुती इतनी बड़ी आपदा आई मुंह तक नहीं खुला इनका क्योंकि संसाधनों के लुटेरों की जी हजुरी जो करनी है ....याद रखना रे पहाड़ वासियों
    121 डाक्टर 36.6cr की फ़ीस का चुना लगाकर निकल गए ...सबके सामने मुद्दा रहा किसी का मुंह नहीं खुला पहाड़ सदियों से जुकाम में भी जIगर...See More
 

dsbhandari

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Namaskar,
YES, GAIRSAIN SHOULD BE MADE THE PERMANENT CAPITAL OF UTTARAKHAND FOR SURE!!! 3 November was a wonderful day in  the history of Uttarakhand as at least for one day, the cabinet held its meeting at Gairsain. It was historic in the sense that no previous governments had made any attempt to give Gairsain its due credit. Let's hope its not a mere drama or publicity stunt for the upcoming elections, but a sincere effort on the part of the government. Gairsain has an emotional attachment with the ‘andolankaris’ and the common people of the hill state.
If at all the government is honest in its pursuit to taking development to the people in the hills and overall development of Uttarakhand par say, not only a vidhan bhavan for one session but making Gairsain the permanent capital of the state can be a major step forward in that direction. It will serve twin purpose-firstly it will directly take developmental psychology and activities in the so far neglected hill region and will not only set an example of devlopment in the hill but will also serve as centre of developmental activities  in the hills(through direct and indirect employment opportunities as a result of investment by the government in the region), secondly it will prevent the deteriorating conditions of cities in the terai region like Dehradun, Haridwar, Rishikesh, Kotdwara, Haldwani etc which are becoming hugely overpopulated due to migration  in search of jobs and better facilities from the hills. These cities are going to bear the  brunt of unplanned expansions. In the next few decades I believe if the trend continues, these major cities of Uttarakhand are going to become a nightmare for its residents.

I have visited places like Chandigarh and Salt lake city near Kolkata.They are standing examples that if governments have determination vision and courage, they can provide  their citizens with better conditions for living. A vision in this respect is needed for Gairsain as well. It is comparatively easier for the government to develop it. The land is comparatively cheaper and population is scattered over a large area, which makes it easy to acquire or exchange land for development purposes there. It is also a fact that all the major hill stations except New Tehri  were established by the Britishers. Our governments have never made any attempt in this regard to establish any well planned city in the hills, which could be in harmony with the mother nature with all the modern facilities. Now, Garisain gives them that opportunity to  prove a point.

I Have gone  through a report on  the internet, regarding capital issue of Uttarakhand by a French town planner Emmanuelle pedeutour and Ashok Bhairi, town planner CEPT Ahemdabad. They have expressed that it will be most suitable to plan a decentralized capital around Gairsain in a phased manner.  If switerzerland being a hill nation can become a top tourist destination by way of planned developments, why can’t we do it in Uttarakhand. The only thing we need is a long term vision and determined efforts. For this I believe Bahuguna ji (with the inspiration of Shri Satpalji Maharaj and Shri Pradeep Tamta) has made a humble beginning. But it is to be seen if their name will go down in the history as just another politician or a visionary. Only time will tell.

regards.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Namaskar,
YES, GAIRSAIN SHOULD BE MADE THE PERMANENT CAPITAL OF UTTARAKHAND FOR SURE!!! 3 November was a wonderful day in  the history of Uttarakhand as at least for one day, the cabinet held its meeting at Gairsain. It was historic in the sense that no previous governments had made any attempt to give Gairsain its due credit. Let's hope its not a mere drama or publicity stunt for the upcoming elections, but a sincere effort on the part of the government. Gairsain has an emotional attachment with the ‘andolankaris’ and the common people of the hill state.
If at all the government is honest in its pursuit to taking development to the people in the hills and overall development of Uttarakhand par say, not only a vidhan bhavan for one session but making Gairsain the permanent capital of the state can be a major step forward in that direction. It will serve twin purpose-firstly it will directly take developmental psychology and activities in the so far neglected hill region and will not only set an example of devlopment in the hill but will also serve as centre of developmental activities  in the hills(through direct and indirect employment opportunities as a result of investment by the government in the region), secondly it will prevent the deteriorating conditions of cities in the terai region like Dehradun, Haridwar, Rishikesh, Kotdwara, Haldwani etc which are becoming hugely overpopulated due to migration  in search of jobs and better facilities from the hills. These cities are going to bear the  brunt of unplanned expansions. In the next few decades I believe if the trend continues, these major cities of Uttarakhand are going to become a nightmare for its residents.

I have visited places like Chandigarh and Salt lake city near Kolkata.They are standing examples that if governments have determination vision and courage, they can provide  their citizens with better conditions for living. A vision in this respect is needed for Gairsain as well. It is comparatively easier for the government to develop it. The land is comparatively cheaper and population is scattered over a large area, which makes it easy to acquire or exchange land for development purposes there. It is also a fact that all the major hill stations except New Tehri  were established by the Britishers. Our governments have never made any attempt in this regard to establish any well planned city in the hills, which could be in harmony with the mother nature with all the modern facilities. Now, Garisain gives them that opportunity to  prove a point.

I Have gone  through a report on  the internet, regarding capital issue of Uttarakhand by a French town planner Emmanuelle pedeutour and Ashok Bhairi, town planner CEPT Ahemdabad. They have expressed that it will be most suitable to plan a decentralized capital around Gairsain in a phased manner.  If switerzerland being a hill nation can become a top tourist destination by way of planned developments, why can’t we do it in Uttarakhand. The only thing we need is a long term vision and determined efforts. For this I believe Bahuguna ji (with the inspiration of Shri Satpalji Maharaj and Shri Pradeep Tamta) has made a humble beginning. But it is to be seen if their name will go down in the history as just another politician or a visionary. Only time will tell.

regards.



This is in fact a welcome Step of Uttarakhand Govt under the leadership of Bahuguna ji and whosoever people behind.. ..

However, so far this is announcement only. We want Gairsain should be made permanent capital of Uttarkhand.

Ajay Pandey

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good to know that uttarakhand government should be make gairsain a capital but uttarakhand is surplus state in trade and development sector uttarakhand has various natural resources uttarakhand is land of gods it is a welcome step of uttarakhand government after making this capital gairsain we will easy to conserve the natural resources of uttarakhand and this is  a very good step of uttarakhand government towards development of uttarakhand we will want gairsain a capital of uttarakhand gairsain is very nearest from all parts of the capital so gairsain will made capital of uttarakhand i will thanks to mera pahad forum head member mr ms mehta ji and all members to raise opinion of gairsain will make capital and we will raise our voice after all we will win and the government will make gairsain a capital and i will very happy to know that mera pahad community will making its newsletter weekly and subscriptions are starting for this newsletter so i want some information about this newsletter i want to request ms mehta ji that please give me information about this newsletter its rupees and what will placed in this newsletter please give me information about this newsletter i will very happy that mera pahad community will be a good community of uttarakhand lovers and it is very helpful and very loving community for all uttarakhandi peoples
jai bharat jai uttarakhand

Charu Tiwari

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सिर्फ एक पहाडी स्थल ही नहीं है गैरसैंण

उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ने, अपने ही दल की पिछली सरकार की नीतियों के विपरीत गैरसैंण को राज्य की स्थार्इ राजधानी बनाने और कमसे कम एक सत्र वहाँ चलाने का जो निर्णय लिया है, उससे राज्य गठन विरोधी होने के पार्टी पर लगे दाग को धोने की षुरूआत तो हुर्इ है पर यह निर्णय सिर्फ स्थानीय सन्तुलन बनाये रखने के लिये वर्तमान मुख्यमंत्री का है या केन्द्र में बैठे कांग्रेस के नीतिकारों की भी उससे सहमति है, यह तो निर्णय के अमल में आने के बाद ही पता चल सकेगा पर इस बार पहाड के लोगों आषा है कि गैंरसैंण पर मुख्यमंत्री के निर्णय से कांग्रेस हार्इकमान भी सहमत होगी। दरअसल उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का सबसे कमजोर पक्ष यह रहा है कि जिन लोगों ने पृथक राज्य के लिये आन्दोलन किया और जो लोग पहाडी स्वाभिमान से ओतपोत होकर पृथक राज्य के लिये सडकों पर आये, उन्हें पृथक राज्य की सरकारों के संचालन में इस स्तर तक भागीदारी नहीं मिली कि वे अपनी कल्पना के राज्य की नीतियाँ लागू कर सकते। मुख्यधारा की राजनीति ने उसके सपनों को पृश्ठभूमि में ढकेल दिया। गैरसैंण जो कि राज्य आन्दोलन का प्रेरक तत्व रहा, राज्य बनने के बाद पृश्ठभूमि में चला गया। गैरसैंण को पृश्ठभूमि में धकेलने में, राज्य में बारी-बारी से षासन कर रहे दोनों राश्ट्रीय दलों का समान स्वार्थ रहा है। राजनीतिक विरोधी होने के बाबजूद इन दोनों राश्ट्रीय नीतिकार इस बात पर तो एक हैं कि यदि उत्तराखण्ड स्थानीय सषक्तीकरण की हवा बही तो राश्ट्रीय आर्थिक मुददे, उदारवाद, स्थानीय संषाध् ानों का राश्ट्रहित में प्रयोग जैसे निर्णय लागू नहीं हो सकते। गैरसैंण के साथ जुडे स्थानीय सषक्तीकरण, के मुददे, स्थानीय संषाधनों के स्थानीय उपयोग के विचार, राश्ट्रीय दलों की अन्र्तराश्ट्रीय प्रतिवध्ताओं के विपरीत है। इन सब कारणों से गैरसैंण, विचार को ही इन राश्ट्रीय दलों ने पिछले 12 वर्शों में लगातार पृश्टभूमि में डाला है। कभी निर्णय न लेकर कभी साफ इन्कार करके तो कभी आयोग बनाकर। स्थार्इ राजधानी पर बने दीक्षित आयोग का कार्यकाल 7 बार बढाये जाने में दोनों मुख्य राश्ट्रीय दलों की सहमति
रही है। संसद में अपनी ताकत के कारण भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस पृथक राज्य बनाने का श्रेय लेती रही हैं। लेकिन इन दलों ने जो राज्य बनाया वह उत्तराखण्डी स्वाभिमान वाला पृथक राज्य न होकर सिर्फ एक अतिरिक्त राजनीतिक इकार्इ बन गया, जो कि कभी - कभी अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षाओं को सत्तासुखभोग के लिये इन दलों को देषभर में करना पडता है। उत्तर प्रदेष की इसमें सहमति थी क्योंकि उनकी नीतियों ने पहाड को आत्मनिर्भर नहीं होने दिया और पहाड पर प्रषासन का उनका खर्चा बढा दिया था। हिमांचल प्रदेष ने पिछले 40 वर्शों में यह सिद्व किया है कि पहाडी राज्य आत्मनिर्भर कैसे होते हैं। इसका कारण यह रहा है कि वहाँ भले ही राश्ट्रीय दल ही सत्ता में रहे हों पर मुददे हमेषा स्थानीय रहे हैं जैसे बागवानों की सुविधा, समर्थन मूल्य, नकदी फसलों एवं फलों का विस्तार और दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की आत्म निर्भरता के मुददे। उत्तराखण्ड में राज्य की षुरूआत सदियों पुरानी संस्कृति को उजाडने, पहाड के ग्रामीण क्षेत्रों को वेवष व पलायन को मजबूर करने की नीतियों हुर्इ। टिहरी की बर्बादी और उसी हो-हल्ले में अन्य बषे बसाये ग्रामों, षहरों को बरबाद करने के लिये सैकडों विधुत परियोजनाओं का खाका जिस गति से पिछले 12 वर्शों से बनाया गया है, पहाडी गाँवों को आत्म निर्भर बनाने का खाका भी उसी गति व इच्छा से बनाया गया होता तो आज गैरसैंण पर राज्य में संवेदनायें इतनी मजबूत नहीं होती। गैरसैंण राजधानी बनने का अर्थ सिर्फ पहाडी क्षेत्र में विध् ाानसभा होना नहीं है, इसका अर्थ है सदियों से पृथक सांस्कृतिक पहचान रखने वाले पहाडी समाज को सषक्त आर्थिक आधार देना कि यह टिकाउ हो सके संगठित रह सके, विघटित न हो, गैरसैंण स्थानीय संषाध् ानों के स्थानीय हित में उपयोग का प्रतीक है। संषाधनों का स्थानीय आत्मनिर्भरता के लिये उपयोग न कर पाना उन्हें बडे व्यवसायिक व बहुराश्ट्रीय कम्पनियों के कब्जे में डाल देता है। भविश्य में वही समाज जिन्दा रहेेगें जो मजबूती से स्थानीय संषाधनों का आधुनिक जीवन के लिये उपयोग कर पायेगें। गैरसैंण का विचार इस गुलामी से पहाडियों का बचाकर उन्हें वह स्वाभिमान देगा जो सदियों से उनके पास है पर इसके प्रति वे चेतना षून्य हैं। साथ ही गैरसैंण राजधानी वाला उत्तराखण्ड राज्य भारतीय संघ में एक पिछडे समाज के लोकतंत्रीय अधिकार का प्रतीक भी होगा।

बी0 डी0 कसनियाल
(पिथौरागढ़)

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Definitely a welcome step. I fully agree with Kasniyal ji views .

सिर्फ एक पहाडी स्थल ही नहीं है गैरसैंण

उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ने, अपने ही दल की पिछली सरकार की नीतियों के विपरीत गैरसैंण को राज्य की स्थार्इ राजधानी बनाने और कमसे कम एक सत्र वहाँ चलाने का जो निर्णय लिया है, उससे राज्य गठन विरोधी होने के पार्टी पर लगे दाग को धोने की षुरूआत तो हुर्इ है पर यह निर्णय सिर्फ स्थानीय सन्तुलन बनाये रखने के लिये वर्तमान मुख्यमंत्री का है या केन्द्र में बैठे कांग्रेस के नीतिकारों की भी उससे सहमति है, यह तो निर्णय के अमल में आने के बाद ही पता चल सकेगा पर इस बार पहाड के लोगों आषा है कि गैंरसैंण पर मुख्यमंत्री के निर्णय से कांग्रेस हार्इकमान भी सहमत होगी। दरअसल उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का सबसे कमजोर पक्ष यह रहा है कि जिन लोगों ने पृथक राज्य के लिये आन्दोलन किया और जो लोग पहाडी स्वाभिमान से ओतपोत होकर पृथक राज्य के लिये सडकों पर आये, उन्हें पृथक राज्य की सरकारों के संचालन में इस स्तर तक भागीदारी नहीं मिली कि वे अपनी कल्पना के राज्य की नीतियाँ लागू कर सकते। मुख्यधारा की राजनीति ने उसके सपनों को पृश्ठभूमि में ढकेल दिया। गैरसैंण जो कि राज्य आन्दोलन का प्रेरक तत्व रहा, राज्य बनने के बाद पृश्ठभूमि में चला गया। गैरसैंण को पृश्ठभूमि में धकेलने में, राज्य में बारी-बारी से षासन कर रहे दोनों राश्ट्रीय दलों का समान स्वार्थ रहा है। राजनीतिक विरोधी होने के बाबजूद इन दोनों राश्ट्रीय नीतिकार इस बात पर तो एक हैं कि यदि उत्तराखण्ड स्थानीय सषक्तीकरण की हवा बही तो राश्ट्रीय आर्थिक मुददे, उदारवाद, स्थानीय संषाध् ानों का राश्ट्रहित में प्रयोग जैसे निर्णय लागू नहीं हो सकते। गैरसैंण के साथ जुडे स्थानीय सषक्तीकरण, के मुददे, स्थानीय संषाधनों के स्थानीय उपयोग के विचार, राश्ट्रीय दलों की अन्र्तराश्ट्रीय प्रतिवध्ताओं के विपरीत है। इन सब कारणों से गैरसैंण, विचार को ही इन राश्ट्रीय दलों ने पिछले 12 वर्शों में लगातार पृश्टभूमि में डाला है। कभी निर्णय न लेकर कभी साफ इन्कार करके तो कभी आयोग बनाकर। स्थार्इ राजधानी पर बने दीक्षित आयोग का कार्यकाल 7 बार बढाये जाने में दोनों मुख्य राश्ट्रीय दलों की सहमति
रही है। संसद में अपनी ताकत के कारण भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस पृथक राज्य बनाने का श्रेय लेती रही हैं। लेकिन इन दलों ने जो राज्य बनाया वह उत्तराखण्डी स्वाभिमान वाला पृथक राज्य न होकर सिर्फ एक अतिरिक्त राजनीतिक इकार्इ बन गया, जो कि कभी - कभी अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षाओं को सत्तासुखभोग के लिये इन दलों को देषभर में करना पडता है। उत्तर प्रदेष की इसमें सहमति थी क्योंकि उनकी नीतियों ने पहाड को आत्मनिर्भर नहीं होने दिया और पहाड पर प्रषासन का उनका खर्चा बढा दिया था। हिमांचल प्रदेष ने पिछले 40 वर्शों में यह सिद्व किया है कि पहाडी राज्य आत्मनिर्भर कैसे होते हैं। इसका कारण यह रहा है कि वहाँ भले ही राश्ट्रीय दल ही सत्ता में रहे हों पर मुददे हमेषा स्थानीय रहे हैं जैसे बागवानों की सुविधा, समर्थन मूल्य, नकदी फसलों एवं फलों का विस्तार और दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की आत्म निर्भरता के मुददे। उत्तराखण्ड में राज्य की षुरूआत सदियों पुरानी संस्कृति को उजाडने, पहाड के ग्रामीण क्षेत्रों को वेवष व पलायन को मजबूर करने की नीतियों हुर्इ। टिहरी की बर्बादी और उसी हो-हल्ले में अन्य बषे बसाये ग्रामों, षहरों को बरबाद करने के लिये सैकडों विधुत परियोजनाओं का खाका जिस गति से पिछले 12 वर्शों से बनाया गया है, पहाडी गाँवों को आत्म निर्भर बनाने का खाका भी उसी गति व इच्छा से बनाया गया होता तो आज गैरसैंण पर राज्य में संवेदनायें इतनी मजबूत नहीं होती। गैरसैंण राजधानी बनने का अर्थ सिर्फ पहाडी क्षेत्र में विध् ाानसभा होना नहीं है, इसका अर्थ है सदियों से पृथक सांस्कृतिक पहचान रखने वाले पहाडी समाज को सषक्त आर्थिक आधार देना कि यह टिकाउ हो सके संगठित रह सके, विघटित न हो, गैरसैंण स्थानीय संषाध् ानों के स्थानीय हित में उपयोग का प्रतीक है। संषाधनों का स्थानीय आत्मनिर्भरता के लिये उपयोग न कर पाना उन्हें बडे व्यवसायिक व बहुराश्ट्रीय कम्पनियों के कब्जे में डाल देता है। भविश्य में वही समाज जिन्दा रहेेगें जो मजबूती से स्थानीय संषाधनों का आधुनिक जीवन के लिये उपयोग कर पायेगें। गैरसैंण का विचार इस गुलामी से पहाडियों का बचाकर उन्हें वह स्वाभिमान देगा जो सदियों से उनके पास है पर इसके प्रति वे चेतना षून्य हैं। साथ ही गैरसैंण राजधानी वाला उत्तराखण्ड राज्य भारतीय संघ में एक पिछडे समाज के लोकतंत्रीय अधिकार का प्रतीक भी होगा।

बी0 डी0 कसनियाल
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देवसिंह रावत विधानसभा भवन के लिए गैरसेंण में स्थानों का चयन
 
 देहरादून(प्याउ)। आगामी मकरसंक्रांति 2013 के दिन गैरसेंण में जिस स्थान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया जायेगा, उसके लिए छह स्थानों का चयन जिला प्रशासन चमोली व स्थानीय विधायक डा अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने चिन्हित कर ली हे। यहां पर विधानसभा भवन, विधायक हॉस्टल, अधिकारी आवास के निर्माण होने है। इनके लिए उपयुक्त स्थान की जिम्मेदारी सरकार ने जिला प्रशासन व स्थानीय विधायक डा मैखुरी को दी थी। हाल में विधानसभा उपाध्यक्ष बनाये गये डा मैखुरी ने यह रिपोर्ट 12 दिसम्बर मंगलवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री व विधानसभा  अध्यक्ष को सोंपी। जो विधानसभा आदि निर्माण के लिए जगहों का चयन किया गया है उसमें ग्राम सारकोट एवं परवाड़ी (भराड़ीसैंण क्षेत्र), ग्राम मरोड़ा (कालीमाठी क्षेत्र), ग्राम सलियाणा, ग्राम रीठिया, सिंटोली (रीठिया क्षेत्र), ग्राम सिलंगा (नागाजरुन क्षेत्र) व ग्राम हरगढ़ (कुनीगाढ़ क्षेत्र) शामिल हैं। सुत्रों के अनुसार विधानसभा के शीतकाल सत्र के बाद मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष इन स्थलों में से विधानसभा भवन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करेगें। प्रदेश सरकार गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाने के लिए कमर कस चूकी है इसके तहत मुख्यमंत्री ने सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी से इस शिलान्यास करने के लिए आमंत्रित किया है।  सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से गैरसेंण ही नहीं आप पास की जनता में भारी उत्साह है।
विधानसभा भवन के लिए गैरसेंण में स्थानों का चयन देहरादून(प्याउ)। आगामी मकरसंक्रांति 2013 के दिन गैरसेंण में जिस स्थान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया जायेगा, उसके लिए छह स्थानों का चयन  जिला प्रशासन चमोली व स्थानीय विधायक डा अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने चिन्हित कर ली हे। यहां पर विधानसभा भवन, विधायक हॉस्टल, अधिकारी आवास के निर्माण होने है। इनके लिए उपयुक्त स्थान की जिम्मेदारी सरकार ने जिला प्रशासन व स्थानीय विधायक डा मैखुरी को दी थी। हाल में विधानसभा उपाध्यक्ष बनाये गये डा मैखुरी ने यह रिपोर्ट 12 दिसम्बर मंगलवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री व विधानसभा  अध्यक्ष को सोंपी। जो विधानसभा आदि निर्माण के लिए जगहों का चयन किया गया है उसमें ग्राम सारकोट एवं परवाड़ी (भराड़ीसैंण क्षेत्र), ग्राम मरोड़ा (कालीमाठी क्षेत्र), ग्राम सलियाणा, ग्राम रीठिया, सिंटोली (रीठिया क्षेत्र), ग्राम सिलंगा (नागाजरुन क्षेत्र) व ग्राम हरगढ़ (कुनीगाढ़ क्षेत्र) शामिल हैं। सुत्रों के अनुसार विधानसभा के शीतकाल सत्र के बाद मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष इन स्थलों में से विधानसभा भवन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करेगें। प्रदेश सरकार गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाने के लिए कमर कस चूकी है इसके तहत मुख्यमंत्री ने सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी से इस शिलान्यास करने के लिए आमंत्रित किया है।  सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से गैरसेंण ही नहीं आप पास की जनता में भारी उत्साह है। height=298

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देवसिंह रावत(facebook) गैरसैंण के भराड़ीसैण में बनेगा भारत के सबसे उत्कृष्ठ दर्शनीय विधानसभा भवन  ?
 
 देहरादून(प्याउ)। गैरसेंण का भराड़ीसेंण क्षेत्र में उत्तराखण्ड की विधानसभा भवन का निर्माण हो सकता है। हालांकि इसका निर्णय 22 दिसम्बर को देहरादून में होगा परन्तु रूझानों से यह अटकले लगायी जा रही है कि गैरसैंण के भराड़ीसैण क्षेत्र में ही 14 जनवरी को विधानसभा भवन का शिलान्यास रखा जायेगा।
 ‘गैरसैंण में बन रहा उत्तराखण्ड की विधानसभा का भवन देश के सभी विधानसभा भवनों में अपनी तरह का विशिष्ट भवन होगा और इसमें पहाड़ी शिल्प का बेहतरीन नमुना होगा।’ यह उदगार विधानसभाध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल ने गैरसेंण में बनने जा रहे विधानसभा भवन के लिए जिला प्रशासन द्वारा सुझाये गये 6 स्थानों में से उपयुक्त स्थान के चयन के लिए विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल के नेतृत्व में सांसद सतपाल महाराज व विधानसभा उपाध्यक्ष डा अनुसूया प्रसाद मैखूरी गैरसेंण का 15 दिसम्बर को दौरा करने के बाद कहा कि विधानसभा भवन का निर्णय 22 दिसम्बर को कर दिया जायेगा। गैरसेंण पंहुचने पर इस दल का भव्य स्वागत किया गया। इस दल ने भराड़ीसेण, कालीमाटी, नागाजसन व हरगढ़  का हवाई सर्वेक्षण किया तथा सलियाणा व रीठिया का मोटरमार्ग  से सर्वेक्षण किया। अनौपचारिक रूप से विधानसभाध्यक्ष को भी भराड़ीसैण भा गया।  परन्तु उन्होने कहा कि सरकार ही निश्चित करेगी कि विधानसभा भवन कहां बनेगा। विधानसभाध्यक्ष ने कहा कि हमें राज्य गठन के समय राजधानी के मामले की गयी भूल को नहीं दोहरानी चाहिए। अगर उसी समय राजधानी पर जनभावनाओं के अनरूप निर्णय ले लिया जाता तो आज इतना विवाद नहीं होता। वहीं सतपाल महाराज ने कहा कि यह क्षेत्र प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण रहा है। गैरसेंण से सटे चांदपुर गढ़ी में गढ़वाल के राजाओं की राजधानी रही और चमोली जनपद में ही कत्यूरी शासकों की भी जोशीमठ में भी राजधानी रही थी। गौरतलब है कि आगामी मकरसंक्रांति यानी 14 जनवरी, 2013 के दिन गैरसेंण में जिस स्थान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया जायेगा, उसके लिए छह स्थानों का चयन  जिला प्रशासन चमोली व स्थानीय विधायक डा अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने चिन्हित कर ली हे। यहां पर विधानसभा भवन, विधायक हॉस्टल, अधिकारी आवास के निर्माण होने है। इनके लिए उपयुक्त स्थान की जिम्मेदारी सरकार ने जिला प्रशासन व स्थानीय विधायक डा मैखुरी को दी थी। उन्हीं स्थानों का निरीक्षण करने के लिए विधानसभाध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सांसद सतपाल महाराज ने गैरसेंण का दौरा किया था। जो विधानसभा आदि निर्माण के लिए जगहों का चयन किया गया है उसमें ग्राम सारकोट एवं परवाड़ी (भराड़ीसैंण क्षेत्र) में पांच हेक्टेयर भूमि, ग्राम मरोड़ा (कालीमाठी क्षेत्र) में 2.409 हेक्टेयर भूमि, ग्राम सलियाणा में 1.979 हेक्टेयर, ग्राम रीठिया, सिंटोली (रीठिया क्षेत्र) में 8.947 हेक्टेयर, ग्राम सिलंगा (नागाजरुन क्षेत्र) में 2.56 हेक्टेयर व ग्राम हरगढ़ (कुनीगाढ़ क्षेत्र) में 9.400 हेक्टेयर सरकारी भूमि उपलब्ध है और यह भूमि पर्याप्त है। । सुत्रों के अनुसार विधानसभा के शीतकाल सत्र के बाद मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष इन स्थलों में से विधानसभा भवन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करेगें। प्रदेश सरकार गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाने के लिए कमर कस चूकी है इसके तहत मुख्यमंत्री ने सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी से इस शिलान्यास करने के लिए आमंत्रित किया है।  सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से गैरसेंण ही नहीं आप पास की जनता में भारी उत्साह है।
गैरसैंण के भराड़ीसैण में बनेगा भारत के सबसे उत्कृष्ठ दर्शनीय विधानसभा भवन  ? देहरादून(प्याउ)। गैरसेंण का भराड़ीसेंण क्षेत्र में उत्तराखण्ड की विधानसभा भवन का निर्माण हो सकता है। हालांकि इसका निर्णय 22 दिसम्बर को देहरादून में होगा परन्तु रूझानों से यह अटकले लगायी जा रही है कि गैरसैंण के भराड़ीसैण क्षेत्र में ही 14 जनवरी को विधानसभा भवन का शिलान्यास रखा जायेगा। ‘गैरसैंण में बन रहा उत्तराखण्ड की विधानसभा का भवन देश के सभी विधानसभा भवनों में अपनी तरह का विशिष्ट भवन होगा और इसमें पहाड़ी शिल्प का बेहतरीन नमुना होगा।’ यह उदगार विधानसभाध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल ने गैरसेंण में बनने जा रहे विधानसभा भवन के लिए जिला प्रशासन द्वारा सुझाये गये 6 स्थानों में से उपयुक्त स्थान के चयन के लिए विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल के नेतृत्व में सांसद सतपाल महाराज व विधानसभा उपाध्यक्ष डा अनुसूया प्रसाद मैखूरी गैरसेंण का 15 दिसम्बर को दौरा करने के बाद कहा कि विधानसभा भवन का निर्णय 22 दिसम्बर को कर दिया जायेगा। गैरसेंण पंहुचने पर इस दल का भव्य स्वागत किया गया। इस दल ने भराड़ीसेण, कालीमाटी, नागाजसन व हरगढ़  का हवाई सर्वेक्षण किया तथा सलियाणा व रीठिया का मोटरमार्ग  से सर्वेक्षण किया। अनौपचारिक रूप से विधानसभाध्यक्ष को भी भराड़ीसैण भा गया।  परन्तु उन्होने कहा कि सरकार ही निश्चित करेगी कि विधानसभा भवन कहां बनेगा। विधानसभाध्यक्ष ने कहा कि हमें राज्य गठन के समय राजधानी के मामले की गयी भूल को नहीं  दोहरानी चाहिए। अगर उसी समय राजधानी पर जनभावनाओं के अनरूप निर्णय ले लिया जाता तो आज इतना विवाद नहीं होता। वहीं सतपाल महाराज ने कहा कि यह क्षेत्र प्राचीन समय से ही महत्वपूर्ण रहा है। गैरसेंण से सटे चांदपुर गढ़ी में गढ़वाल के राजाओं की राजधानी रही और चमोली जनपद में ही कत्यूरी शासकों की भी जोशीमठ में भी राजधानी रही थी। गौरतलब है कि आगामी मकरसंक्रांति यानी 14 जनवरी, 2013 के दिन गैरसेंण में जिस स्थान में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया जायेगा, उसके लिए छह स्थानों का चयन  जिला प्रशासन चमोली व स्थानीय विधायक डा अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने चिन्हित कर ली हे। यहां पर विधानसभा भवन, विधायक हॉस्टल, अधिकारी आवास के निर्माण होने है। इनके लिए उपयुक्त स्थान की जिम्मेदारी सरकार ने जिला प्रशासन व स्थानीय विधायक डा मैखुरी को दी थी। उन्हीं स्थानों का निरीक्षण करने के लिए विधानसभाध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सांसद सतपाल महाराज ने गैरसेंण का दौरा किया था। जो विधानसभा आदि निर्माण के लिए जगहों का चयन किया गया है उसमें ग्राम सारकोट एवं परवाड़ी (भराड़ीसैंण क्षेत्र) में पांच हेक्टेयर भूमि, ग्राम मरोड़ा (कालीमाठी क्षेत्र) में 2.409 हेक्टेयर भूमि, ग्राम सलियाणा में 1.979 हेक्टेयर, ग्राम रीठिया, सिंटोली (रीठिया क्षेत्र) में 8.947 हेक्टेयर, ग्राम सिलंगा (नागाजरुन क्षेत्र) में 2.56 हेक्टेयर व ग्राम हरगढ़ (कुनीगाढ़ क्षेत्र) में 9.400 हेक्टेयर सरकारी भूमि उपलब्ध है और यह भूमि पर्याप्त है। । सुत्रों के अनुसार विधानसभा के शीतकाल सत्र के बाद मुख्यमंत्री व विधानसभा अध्यक्ष इन स्थलों में से विधानसभा भवन के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करेगें। प्रदेश सरकार गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाने के लिए कमर कस चूकी है इसके तहत मुख्यमंत्री ने सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी से इस शिलान्यास करने के लिए आमंत्रित किया है।  सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से गैरसेंण ही नहीं आप पास की जनता में भारी उत्साह है। height=298Unlike ·  · Follow Post · 27 minutes ago

Ajay Pandey

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mehta ji
bahut badhiya khabar di aapne aakhirkaar yeh hamari ladai ki jeet hai hamare uttarakhand ke gairsain ka vidhan bhavan bahut badhiya ban raha hai mera maanna hai ki yeh hamare uttarakhand ka badhiya sanjog hoga sach mein gairsain mein vidhan bhawan banne jaa raha hai iss baat ki to mujhe khushi hai ki hamare aandolan ki jeet hai par iss baat ka dukh bhi hai ki sarkaar kyon dehradoon ko rajdhaani ke roop mein hatane ko taiyaar nahi hai hamari sarkaar ko gairsain ko hi rajdhaani iss shilanyaas samaroh mein ghoshit kar dena chahiye aur gairsain mein hi vidhansabha ka satra karna chahiye do do jagah vidhansabha ke satra karna thik nahi yeh to hamare uttarakhand ki rajdhaniyon ka vibhajan karne jaisa hua mera pahad ke sabhi sadasyon ko netaon se ek meeting kar unhe iss baat se avgat karana chahiye ki vidhansabha ka satra ek jagah ho iski maang ham sab sadasyon ki hai agar neta hamari iss maang ko maanein to hamara aandolan aur jeet ki kagaar par hoga

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महाराज सहित स्पीकर व डिप्टीस्पीकर पहुंचे गैरसैंण
Updated on: Sat, 15 Dec 2012 11:39 PM (IST)
 
जागरण प्रतिनिधि, गैरसैंण: गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज, विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिहं कुंजवाल व डिप्टी स्पीकर डॉ.अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने शनिवार को विधानसभा भवन के लिए चिह्नित स्थलों का निरीक्षण किया।

14 जनवरी मकरसंक्रांति को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के गैरसैंण दौरे को लेकर चल रही तैयारियां अंतिम दौर में हैं। इसी क्रम में शनिवार पूर्वाह्न 11.20 पर स्थानीय जीआइसी मैदान में प्रदेश सरकार के हेलीकॉप्टर से पहुंचे माननीयों ने गढ़वाल मंडल विकास निगम गेस्ट हाऊस में पार्टी पदाधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों से विधानसभा भवन के लिए चिह्नित सलियाणा, मरोड़ा, भराड़ीसैंण, नागचुलाखाल, रिठिया व धारापाणी की भौगोलिक परिस्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि गैरसैंण विधानसभा के लिए शुरूआती दौर के लिए शासन स्तर से तीन करोड़ की राशि अवमुक्त की गई है। सलियाणा बैंड स्थित हेलीपैड के निकट शिक्षा विभाग की भूमि का भी अवलोकन किया, साथ ही दो अन्य ओर हेलीपैड बनाये जाने के निर्देश उपजिलाधिकारी गैरसैंण केएस नेगी व लोनिवि अभियंता को दिये गये। इस दौरान खुलासा किया गया कि 14 जनवरी को सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां सलियाणाबैंड में विधानसभा भवन का शिलान्यास करेंगी।

सलियाबैंड के स्थानीय निरीक्षण के बाद अपराह्न बाद यहां पहुंचे सांसद सहित स्पीकर व डिप्टीस्पीकर भराडीसैंण, रीठिया व नागचुलाखाल का हवाई सर्वेक्षण कर वापस राजधानी लौट गये।

 

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