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Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 195926 times)

Ajay Pandey

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गैरसैण में कल होगा विधान भवन का शिलान्यास
देहरादून  गैरसैण में कल विधान भवन का शिलान्यास किया जाएगा मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा यह जानकारी मिली कार्यालय के मुताबिक देहरादून से विधान सभा स्पीकर शनिवार को गैरसैण दौरा करने पहुंचे उन्होंने वहां विधानभवन का निरिक्षण किया उन्होंने कहा की मकर संक्रांति के दिन इस विधान भवन का शिलान्यास होगा उन्होंने कहा की विधानभवन बनने के बाद दो सत्र विधानसभा के होंगे एक सत्र देहरादून और एक सत्र गैरसैण में जानकारी के मुताबिक़ सतपाल महाराज और विधानसभा स्पीकर और मुख्यमंत्री समारोह में मौजूद होंगे कड़ी सुरक्षा वहां की गयी है और कल शिलान्यास विधिवत तरीके से होगा ऐसी जानकारी मिली है और उन्होंने कहा की देहरादून में भी विधानभवन बनने हेतु जमीन ढूंढी जा रही है जब मुख्यमंत्री से पूछा की देहरादून में जमीन क्यों देखी जा रही है इस पर उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया वहीँ कही लोगों का कहना है की यह सब पहाड़ियों को गुमराह करने का तरीका है राजधानी देहरादून ही रहेगी यह सब पहाड़ियों के साथ चाल चली जा रही है और सवाल यह भी है की गैरसैण ग्रीष्मकालीन राजधानी क्यों उसे दोनों मौसम की राजधानी बनाया जाए अब सवाल यह भी हैं की गैरसैण राजधानी बनने से कुमाउन का विकास ठीक से होगा या नहीं यह बड़ा सवाल है बहरहाल शिलान्यास और गैरसैण के राजधानी बनने से लोगों में ख़ासा उत्साह है
धन्यवाद

Devbhoomi,Uttarakhand

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गैरसैंण में विस भवन शिलान्यास आज
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गोपेश्वर: मकर संक्रांति के अवसर पर गैरसैंण में आज होने वाले विधानसभा भवन के शिलान्यास को लेकर प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां पुख्ता कर ली गई हैं। वीआइपी मूवमेंट को देखते जिले में सुरक्षा कड़ी कर दी है।
शिलान्यास कार्यक्रम में मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्यों के अलावा विपक्ष के नेताओं और विधायक भी शिरकत करेंगे। शहर में कार्यक्रम को देखते हुए प्रशासन ने गैरसैंण में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी है। रविवार 13 जनवरी की शाम से सोमवार शाम तक भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक रहेगी। सुबह छह बजे से यात्री वाहनों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध रहेगा। प्राइवेट वाहन भी सघन चेकिंग के बाद ही गैरसैंण में प्रवेश कर पाएंगे। सुरक्षा के लिए चमोली जिले से ही पुलिस के 280 के अलावा बाहरी जिलों से भी दो एसपी, तीन डीएसपी तथा पांच इंस्पेक्टर भी तैनात कर दिए गए हैं। सुरक्षा के लिए चमोली जिले से ही 280 पुलिस जवान तैनात होंगे। इसके अलावा बाहरी जिलों से भी दो एसपी, तीन डीएसपी के अलावा महिला व पुरुष कांस्टेबल तैनात कर दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त बम डिस्पोजल स्कवॉयड की टीम अलर्ट रहेगी। सुरक्षा को देखते हुए गैरसैंण क्षेत्र को कई सेक्टरों में बांटा गया है। प्रशासन ने वाहनों की पार्किंग के लिए फरकंडे मोटर मार्ग को चिन्हित किया है। पुलिस अधीक्षक पी रेणुका देवी ने बताया कि गैरसैंण में सुरक्षा के पूरे इंतजाम कर दिए गए हैं। वहीं गैरसैंण प्रतिनिधि के मुताबिक यातायात में आमजनों को परेशानी न हो इसके लिए रूट चार्ट तैयार किया गया है। चेकिंग के लिए सलियाण बैंड व लंकाधार में बैरियर लगाए गए हैं। प्रमुख सचिव विधानसभा डीपी गैरोला ने रविवार को शिलान्यास कार्यक्रम की तैयारियों को जायजा लिया। उन्होंने बताया कि 13वें वित्त आयोग से 22 करोड़ रुपये की स्वीकृति के साथ ही नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रकशन कॉर्पोरेशन को निर्माण कार्य के लिए नामित किया गया है जिस पर शीघ्र ही कार्य प्रारंभ किया जाना है।


jagran news

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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GAIRSAIN: Gairsain in Uttarakhand's Chamoli district bustled with activity on Monday as chief minister Vijay Bahuguna laid the foundation stone of proposed Uttarakhand assembly building.

The assembly building will be built in an area of 20 acres on Ramnagar-Karanpryag national highway.

Bahuguna laid foundation stone at 11 AM in the presence of Uttarakhand assembly Speaker Govind Singh Kunjwal, Deputy Speaker Ansuya Prasad Maikhuri local Congress MP Satpal Maharaj and members of his cabinet.

Addressing a public meeting, CM Bahuguna said the construction of building will be completed in over two years. Bahuguna said after the completion the assembly building will host one assembly session every year to send across a message that government is committed to develop the places like Gairsain and take care of problems of people living in extremely backward, remote and far-flung areas.

He said his government decided to build the Vidhan Sabha bhawan with a view to connect Uttarakhand's extremely socio-economically backward region like Gairsain with Dehradun. It is also aimed at honoring the martyrs who made the supreme sacrifice during agitation for separate state from UP before 2000, he added.

Bahuguna said apart from Assembly, transit hostels for legislators and officers will also be constructed at Gairsain. He said this will help boost overall development and construction activities in the region.

Kunjwal said he will urge government to declare Gairsain as summer capital of state.

Leader of opposition Ajay Bhatt who attended the ceremony welcomed the government's decision to build an assembly building at Gairsain.

http://timesofindia.indiatimes.com/

Hisalu

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An article by Charu Tiwari

किसका गैरसैंण ?

आज से लगभग तीस वर्ष पहले 24-25 जुलाई 1992 को उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों से लोग गैरसेंण में इकटृठा हुये थे । देश के कई राज्यों में रहने वाले प्रवासियों के अलावा देश में पृथक राज्य की मांग करने वाले क्षेत्रों के लोग भी यहां आये थे । मुख्य रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सूरज मंडल ने इस कार्यक्रम में शिरकत की थी । आयोजक उत्तराखंड क्रांति दल ने इस दिन राज्य के बारे में अपनी जैसी सोच के संगठनों को भी इस कार्यक्रम में बुलाया था । कहने को तो यह उक्रांद का द्विवार्षिक सम्मेलन था लेकिन इसमें इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा गया । इसके साक्षी पार्टी के बाहर के लोग भी रहे । इस दिन गैरसैंण का नया नामकरण हुआ थी । पेशावर विद्रोह के नायक, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर इस जगह का नाम चन्द्रनगर रखा गया और उक्रांद ने अपनी पूर्व घोषित राजधनी का शिलान्यास किया । इसी दिन तय किया गया कि राज्य बनने पर चंद्रनगर उत्तराखण्ड की राजधनी होगी । वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की मूर्ति के लिये सभी कार्यकत्ताओं से मदद करने को कहा गया । इसी वर्ष सब लोगों के सहयोग और चंदे से 28 दिसंबर 1992 को स्थानीय रामलीला मैदान के बगल में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की मूर्ति की स्थापना एक भव्य आयोजन के बीच हुयी । इस प्रकार वर्षो पहले उपजे एक विचार ने विकास के विकेन्द्रीकरण और जनता की आकांक्षाओं के लिये बनने वाली राजधानी के लिये मील का पत्थर रखा था ।

इस पूरे कालखंड में राजधानी के लिये ही बात होती रही । राज्य आंदोलन के दौरान गैरसेंण राजधनी का मुद्दा भी उठता रहा । भाजपा-कांग्रेस के अलावा उक्रांद से सहमति न रखने वाले दलों और संगठनों ने भी गैरसेंण का समर्थन किया । अपने तरह से आंदोलन भी चलाये । इस बीच राज्य भी बन गया । राज्य बनने के बाद अपनी सरकारें आयी । पहले भाजपा की अंतरिम सरकार और बाद में कांग्रेस की चुनी हुयी सरकार । इन बारह वर्षों में हम इन दो पार्टियों के साथ-साथ उस पार्टी को भी सरकार में देख चुके हैं जिसने राजधनी के रूप में चंद्रनगर में वीर चंद्र सिंह गढवाली की मिर्ती स्थापित कर राजधानी का कभी शिलान्यास किया था । भाजपा की अंतरिम सरकार ने गैरसेंण को राजधनी मानने से इंकार किया । उसने जनता के विचार को आयोग की कसौटी में कसने के लिये एक आयोग का गठन किया । बाद में कांग्रेस-भाजपा ने उस आयोग का कार्यकाल लगातार बढ़ाया । इस बीच राजधानी गैरसेंण के लिये बाबा मोहन उत्तराखंड़ ने अपनी शहादत दी । भाजपा-कांग्रेस किसी को जनता की आकांक्षायें समझ में नहीं आयीं । एक बड़ी साजिश के तहत देहरादून को स्थायी राजधनी बनाने षडयंत्र अनवरत रूप से आज भी जारी है ।

अब अचानक सभी दलों को गैरसैंण याद आ गया । बताया जा रहा है कि वहां विधानसभा के एक सत्र चलाया जायेगा । सरकार या मुख्यमंत्री ने अभी तक नहीं कहा कि इसे कभी राजधानी बनाया जायेगा । उनसे जब भी सवाल किया जाता है, उनका जबाव होता है कि यहां विधानभवन बनाया जा रहा है । विधायकों और अफसरों के लिये हॉस्टल बनाये जायेंगे । रेस्ट हाउस बनाये जायेंगे । जब कांग्रेस के एक धड़े को लगा कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा गैरसैंण में ‘ड्रामा’ कर राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करो । विधानसभा अध्यक्ष गोबिन्द सिंह कुंजवाल जिनका कभी न तो राज्य आंदोलन से और न सरोकारों से कोई लेना देना नहीं रहा वे हरीश रावत के प्रवक्ता बनकर नया राग अलापने लगे हैं । गैरसेंण में जब विजय बहुगुणा का ‘रेस्ट हाउस’ बनाने का कार्यक्रम चल रहा था तो उसके एक हिस्सेदार विपक्ष के नेता अजय भट्ट एक टीवी चैनल में बड़ी बेशर्मी से इस बात को कहते सुने गये कि हम सबको अटल बिहारी का धन्यवाद करना चाहिये जिन्होंने यह राज्य बनाया । अजय भट्ट को हमारे 42 शहादतों और बाबा उत्तराखंड़ी का बलिदान याद नहीं आता । उन्हें अपने उस नेता को अभी भी महिमांडित करने में अपना भविष्य दिखाई देता है जो कभी इस मांग को राष्ट्रद्रोही कह चुके थे । पहाड़ की जनता के बड़े आंदोलन को देखते हुये वे जनता की भावनाओं के खिलाफ उत्तरांचल के नाम से आंदोलन में घुसे । इसलिये उत्तराखंड राज्य किसी ने खैरात में नहीं दिया है । यह शहादतों से मिला है । अजय भट्ट सहित उनके तमाम नेता कभी भी गैरसेंण के समर्थक नहीं रहे । उनके तराई के नेता तो हमेशा पहाड़ की ओर बंदूक ताने रहे हैं ।

अब जो नई बात है वह यह कि कांग्रेस-भाजपा दोनों गैरसेंण पर कुछ दिन राजनीति करना चाहते हैं । कांग्रेस में विजय बहुगुणा का धड़ा इसे सिर्फ वर्ष में विधानसभा का एक सत्र का एक पिकनिक स्पॉट बनाना चाहता है तो दूसरा धड़ा अंग्रेजों की तरह ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर अयासी का अड्डा । असल में ये सब लोग देहरादून को ही स्थायी राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं । यही वजह है कि वहां पहले छोटे-छोटे निर्माण कार्य कराये, बाद में मुख्यमंत्री आवास बनाया । सचिवालय से लेकर कई बड़े भवनों का निर्माण या तो हो रहा है या प्रस्तावित है । जिस समय विजय बहुगुणा गैरसैंण में अपने मंत्रिमंडल के बैठक के लिये हेलीकाप्टरों को पोंछ कर पांच करोड़ खर्च अपने मंत्रिमंडल की बैठक के लिये खर्च करा रहे थे उसी समय वे देहरादून में विधानसभा भवन और विधायकों के लिये और अच्छे आवास बनें उसके लिये उच्च अधिकारी जमीन और धन की व्यवस्था करवाने में जुटे हुए थे ।

इसलिये राजधनी के सवाल को लोगों की आकांक्षाओं के साथ देखा जाना चाहिये । सरकार यदि गैरसेंण में विधानभवन नहीं भी बनाती तो किसी को कोई शिकायत नहीं होती । वे गैरसेंण में कैबिनेट की बैठक नहीं भी करते तो लोगों को काई नाराजगी नहीं रहती । वे गैरसैंण नहीं भी आते तो भी काम चल जाता । वे सिपर्फ इतना कह देते कि आने वाले दस, बीस, तीस, चालीस या पचास वर्षो में गैरसेंण को स्थायी राजधानी बनाना है । वे यह नहीं कह रहे हैं । वे अभी भी कह रहे हैं कि राजधानी बनाना आसान नहीं है । तो fफर इस तरह की धेखाधड़ी क्यों कर रहे हैं इसके खिलाफ सबको सोचना होगा ? इस बात को भी सोचना होगा कि गैरसेंण पर राजनीति करने वाले ये लोग जनता के साथ खड़े नहीं हैं । वे गैरसेंण को कभी चन्द्रनगर नहीं कहते । इनका मौका लगे तो ये इसका नाम इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी या किसी ऐरे-गैरे के नाम पर भी रख सकते हैं ।

भाजपा-कांग्रेस और सरकार को यदि कोई दुविधा है तो वह देहरादून को ही स्थायी राजधनी बता दे । फिर जनता अपनी राजधानी का लड़ाई लड़ लेगी । राज्य आंदोलन के दौरान कभी ‘हिल कोंसिल’ तो कभी ‘केन्द्र शासित’ की मांग कर इन लोगों ने राज्य की जनता को भ्रमित किया था । जनता खड़ी हुयी तो अपना राज्य ले लिया। जिस दिन उठ खड़ी होगी तो अपनी राजधानी भी ले लेगी । अब जनता को ग्रीश्मकालीन राजधानी की बात कहकर छलना बंद करें राजनीतिक दल । चन्द्रनगर गैरसेंण में राज्य की राजधानी की बात उस दिन से शुरू होगी जिस दिन देहरादून में राजधानी के अनुरूप नित होने वाले निर्माण कार्य बंद होंगे ।

(लेखक: चारु तिवारी)

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Some news -

गैरसैंण विधान भवन बनेगा पहाड़ के विकास की नींव
गरण संवाददाता, ऋषिकेश :  मकर संक्रांति पर गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन के शिलान्यास को पहाड़ के विकास में मील का पत्थर  बताते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने आतिशबाजी कर खुशियां मनाई।
 सोमवार को नगर कांग्रेस कमेटी ने कांग्रेस भवन में एकत्र होकर आतिशबाजी की। इस अवसर पर नगर अध्यक्ष महंत विनय सारस्वत ने कहा कि कांग्रेस सरकार का यह कदम पहाड़ के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि राज्य वासियों का सपना था कि पहाड़ के प्रदेश की राजधानी पहाड़ में ही बने। कांग्रेस सरकार ने तमाम लोगों, आंदोलनकारियों और शहीदों की भावनाओं को सम्मान देने का काम किया है। इस अवसर पर वरिष्ठ उपाध्यक्ष योगेश शर्मा, मंडी समिति के सभापति राकेश अग्रवाल, हर्षवर्धन शर्मा आदि ने कहा कि कांग्रेस ने लोगों से जो वायदे किए वे उसको पूरा कर रही है। गैरसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के द्वार खोलता है। इस अवसर पर बलवीर प्रजापति, वीरेंद्र सजवाण, अनिल रावत, विशाल कक्कड़, अनिल गुप्ता आदि उपस्थित थे।(Dainik Jagran)



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बहुगुणा ने किया विधानसभा भवन का शिलान्यास

आज जरुरत है कि हर छल-प्रपंच से सजग होकर उत्तराखण्ड हिमालयी राज्य की अवधारणा के अनुरुप स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए एकजुटता के साथ संघर्ष किया जाये और जनता को जनवादी उत्तराखण्ड के निर्माण की दिशा आन्दोलनरत किया जाये...

जीवन चन्द्र

मकर संक्रान्ति के दिन 14 जनवरी को कांग्रेस की बहुगुणा सरकार ने विधानसभा भवन के लिए चयनित स्थल भराणीसैंण से 11 किमी दूर जीजीआईसी गैरसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास कर यह जताने का प्रयास किया कि वह उत्तराखण्ड की जनता के जनभावना को समझती और सम्मान करती है. मुख्यमंत्री बहुगुणा तो यहां तक कह गये कि ‘‘गैरसैंण को तो जनता भूल ही गयी थी’’ हमने गैरसैण में विधानसभा भवन बनाने का निर्णय लेकर जनभावनाओं का ख्याल रखा.

gairsainबहुगुणा जी, उत्तराखण्ड की जनता गैरसैण को न तो कभी भूली है और न कभी भूलेगी. अनेकों शहादतों, बलिदानों के बाद मिले राज्य के अवधारणा के केन्द्र बिन्दु में है गैरसैंण एक हिमालयी (पहाड़ी) राज्य की अवधारणा है गैरसैंण. इसलिए जनता गैरसैंण को कैसे भूल सकती है. राज्य गठन के 12 वर्षों तक भाजपा व कांग्र्रेस की दो-दो सरकारों ने गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग को हमेशा नजर अंदाज किया है.

एक तरफ अस्थाई राजधानी देहरादून में जनता का करोड़ों-करोड़ रुपया बहाकर राजधानी के बावत निर्माण कार्य आज भी जारी है. दूसरी तरफ जनता को छलने-भरमाने के लिए गैरसैंण में विधानसभा के भवन का शिलान्यास किया जा रहा है. गैरसैंण में कैबिनेट की बैठक और विधानसभा भवन का शिलान्यास सिर्फ 2014 में होने वाले संसदीय चुनाव में फायदा उठाने भर की कोशिश तो नहीं है कांग्रेस की, जनता जरुर इस बात से संकित है.

बहुगुणा सरकार यदि जनभावनाओं का इतनी ही कद्रदान है तो गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने में क्या दिक्कत आ रही है. जबकि सन् 1994 में गठित रमाशंकर कौशिक समिति व राज्य गठन के बाद गठित राजधानी स्थल चयन आयोग (दीक्षित आयोग) के अनुसार बहुमत की राय गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की है. उत्तराखण्ड के जनता की भावना तो इस हिमालयी (पहाड़ी) राज्य की अवधारणा के अनुरुप गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की है.

कांग्रेस भाजपा सहित अन्य राजनैतिक पार्टियों के कुछ नेताओं के बयान आ रहे हैं कि गैरसैंण को ग्री’म कालीन राजधानी बनायी जानी चाहिए. क्या इस छोटे से राज्य में दो-दो राजधानियों की जरुरत है ? क्या ये सब जनता की जरुरतों के लिए जरुरी है ? या पूंजीपतियों, नौकरशाहों व राजनेताओं के एशोआराम व सुख सुविधाओं के लिए पिछले 12 वर्षों से देहरादून को अस्थायी राजधानी बनाये रखा है उन्हीं कारणों से गैरसैंण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाये जाने की मांग की जा रही है? यदि पूंजीपतियों, नौकरशाहों व राजनेताओं को गर्मी में हवा पानी बदलनी हो तो वे गैरसैंण आ जाये और जनता का पैसा बरबाद करें. जनता ग्रीष्म कालीन राजधानी नहीं गैरसैंण को स्थायी राजधानी चाहती है.

आज जरुरत है हर छल-प्रपंच से सजग होकर उत्तराखण्ड हिमालयी राज्य की अवधारणा के अनुरुप स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए एकजुटता के साथ संघर्ष को जनता का उत्तराखण्ड (जनवादी उत्तराखण्ड) के निर्माण की दिशा में तेज किया जाय.

http://www.janjwar.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गैरसैंण में विधान भवन बनाना सकारात्मक पहल
14 Jan 2013 06:01,
निर्माण होने तक वहां अस्थाई रूप से कामकाज शुरू हो। राज्य आंदोलनकारी पूरन चंद्र जोशी, हेम चंद्र जोशी कहते हैं कि गैरसैंण मात्र स्थान नहीं बल्कि पृथक राज्य निर्माण की मूल आत्मा है। विधानभवन बनाना सराहनीय पहल है। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं कि गैरसैंण में विधान भवन नहीं बल्कि स्थाई राजधानी बनाना जरुरी है। सरकार देहरादून तथा गैरसैंण दो स्थानों पर विधान भवन बनाकर भ्रम फैला रही है। गैरसैंण राजधानी बनी तो पहाड़ के प्रति अफसरशाही तथा जनप्रतिनिधियों के रवैये में अंतर आएगा और यह विकास के लिए सकारात्मक पहल होगी। भाजपा जिलाध्यक्ष गोविंद सिंह पिलख्वाल का कहना है कि सरकार देहरादून और गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास कर जनता को गुमराह कर रही है। सरकार के मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष एकमत नहीं हैं। गैरसैंण को राजधानी बनाने से पहले से वहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ उसे जिला तथा कमिश्नरी का दर्जा दिया जाए। अल्मोड़ा। गैरसैंण में विधान भवन के शिलान्यास को राजनैतिक दलों तथा राज्य आंदोलनकारियों ने सकारात्मक पहल बताया है। उनका कहना है कि गैरसैंण में विधानभवन बनने से भविष्य में क्षेत्र में विकास के द्वार खुलेंगे। सरकार को चाहिए कि वह गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित करे। ताकि पर्वतीय राज्य की मूल अवधारणा, जनमानस और शहीदों के सपने साकार हो सकें। जबकि भाजपा और उपपा ने राज्य में दो स्थानों पर विधानभवन बनाने को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।उत्तराखंड लोक वाहिनी के केंद्रीय अध्यक्ष डा. शमशेर सिंह बिष्ट का कहना है कि गैरसैंण में विधानभवन बनाना स्वागत योग्य कदम है। गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी बनाकर शहीदों तथा जनता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य का 80 फीसदी हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र है। गैरसैंण में राजधानी बनने से विकास के द्वार खुलेंगे। बसपा कै लोकसभा प्रभारी शेखर लखचौरा कहते हैं कि सरकार गैरसैंण में विधान भवन नहीं बल्कि ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करे तथा वहां नियमित रूप से सत्र चलाएं। गैरसैंण में भवन निर्माण होने तक वहां अस्थाई रूप से कामकाज शुरू हो।राज्य आंदोलनकारी पूरन चंद्र जोशी, हेम चंद्र जोशी कहते हैं कि गैरसैंण मात्र स्थान नहीं बल्कि पृथक राज्य निर्माण की मूल आत्मा है। विधानभवन बनाना सराहनीय पहल है। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं कि गैरसैंण में विधान भवन नहीं बल्कि स्थाई राजधानी बनाना जरुरी है। सरकार देहरादून तथा गैरसैंण दो स्थानों पर विधान भवन बनाकर भ्रम फैला रही है। गैरसैंण राजधानी बनी तो पहाड़ के प्रति अफसरशाही तथा जनप्रतिनिधियों के रवैये में अंतर आएगा और यह विकास के लिए सकारात्मक पहल होगी। भाजपा जिलाध्यक्ष गोविंद सिंह पिलख्वाल का कहना है कि सरकार देहरादून और गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास कर जनता को गुमराह कर रही है। सरकार के मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष एकमत नहीं हैं। गैरसैंण को राजधानी बनाने से पहले से वहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ उसे जिला तथा कमिश्नरी का दर्जा दिया जाए।

http://m.newshunt.com/Amar+Ujala/Almora/19025640/999

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हिलोरे भरती उम्मीदों के बीच आशंकाएं भी कम नहीं

चौखुटिया। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आज गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास करने पहुंच रहे हैं। वर्षों पुरानी मांग पर पहला कदम उठने के बाद यहां के लोग बाबा मोहन उत्तराखंड की शहादत को याद कर रहे हैं। कार्यक्रम को लेकर यहां के निवासियों में हिलोरे भरती उम्मीदों के बीच आशंकाएं भी कम नहीं हैं। उत्तराखंड की स्थायी राजधानी गैरसैंण में बनाने की मांग को लेकर बेनीताल में 39 दिन तक आमरण अनशन करने के बाद बाबा मोहन उत्तराखंडी शहीद हो गए थे। उन्होंने अपने जीवन में 13 बार आमरण अनशन किया। बाबा ने पहले अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर लैंसडौन और सतपुली सहित कुल चार स्थानों पर आंदोलन किया था। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद बाबा को राज्य की स्थायी राजधानी और जनता के लाभों से जुडे़ सवाल सताने लगे थे।

 गैरसैंण में राजधानी बनाने की मांग को लेकर उन्होंने

नौ फरवरी 2001 और दो जुलाई 2001 में नंदाढ़ौंग (गैरसैंण), 13 दिसंबर 2002 में चांदकोटगढ़ी में 34 दिन तक, दो अगस्त 2003 से 23 अगस्त तक कनकपुरगढ़ी(थराली), 2 फरवरी 2004 से 21 फरवरी तक कोदियाबगड़ (दूधातोली)में आमरण अनशन किया। दो जुलाई 2004 से जंगलचट्टी के निकट बेनीताल में आमरण अनशन उनके जीवन का अंतिम साबित हुआ। उनकी शहादत के बाद चारों तरफ जनाक्रोश का लावा फूट पड़ा था। स्वाभाविक है जिस गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए उन्होंने अंतिम सांस तक संघर्ष किया आज उसी धरती पर उनके सपनों के भवन का पहला पत्थर लोगों की आशंकाओं से भरा हुआ। राजधानी बनाने का उद्देश्य पहाड़ों के विकास से जुड़ा हुआ था। लोगों को आशंका है कि कहीं उनको दोबारा न ठगा जाए। सीएम के इस कदम से क्षेत्र का कितना विकास होगा यह समय ही बताएगा। मुद्दे को गरमाने का श्रेय तो ले ही गए चौखुटिया। पहले कैबिनेट की बैठक और अब विधान सभा भवन के शिलान्यास ने गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को एक बार फिर गरमा दिया है। राजधानी बनाने का श्रेय अथवा न बनने का ठीकरा चाहे जिसके सिर भी फूटे परंतु ठंडे बस्ते में जा चुके इस अहम मुद्दे को गरमाने का श्रेय तो सीएम विजय बहुगुणा ले ही गए हैं। चौखुटिया। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आज गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास करने पहुंच रहे हैं। वर्षों पुरानी मांग पर पहला कदम उठने के बाद यहां के लोग बाबा मोहन उत्तराखंड की शहादत को याद कर रहे हैं। कार्यक्रम को लेकर यहां के निवासियों में हिलोरे भरती उम्मीदों के बीच आशंकाएं भी कम नहीं हैं। उत्तराखंड की स्थायी राजधानी गैरसैंण में बनाने की मांग को लेकर बेनीताल में 39 दिन तक आमरण अनशन करने के बाद बाबा मोहन उत्तराखंडी शहीद हो गए थे। उन्होंने अपने जीवन में 13 बार आमरण अनशन किया। बाबा ने पहले अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर लैंसडौन और सतपुली सहित कुल चार स्थानों पर आंदोलन किया था। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद बाबा को राज्य की स्थायी राजधानी और जनता के लाभों से जुडे़ सवाल सताने लगे थे। गैरसैंण में राजधानी बनाने की मांग को लेकर उन्होंने नौ फरवरी 2001 और दो जुलाई 2001 में नंदाढ़ौंग (गैरसैंण), 13 दिसंबर 2002 में चांदकोटगढ़ी में 34 दिन तक, दो अगस्त 2003 से 23 अगस्त तक कनकपुरगढ़ी(थराली), 2 फरवरी 2004 से 21 फरवरी तक कोदियाबगड़ (दूधातोली) में आमरण अनशन किया। दो जुलाई 2004 से जंगलचट्टी के निकट बेनीताल में आमरण अनशन उनके जीवन का अंतिम साबित हुआ। उनकी शहादत के बाद चारों तरफ जनाक्रोश का लावा फूट पड़ा था। स्वाभाविक है जिस गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए उन्होंने अंतिम सांस तक संघर्ष किया आज उसी धरती पर उनके सपनों के भवन का पहला पत्थर लोगों की आशंकाओं से भरा हुआ। राजधानी बनाने का उद्देश्य पहाड़ों के विकास से जुड़ा हुआ था। लोगों को आशंका है कि कहीं उनको दोबारा न ठगा जाए। सीएम के इस कदम से क्षेत्र का कितना विकास होगा यह समय ही बताएगा। मुद्दे को गरमाने का श्रेय तो ले ही गएचौखुटिया। पहले कैबिनेट की बैठक और अब विधान सभा भवन के शिलान्यास ने गैरसैंण राजधानी के मुद्दे को एक बार फिर गरमा दिया है। राजधानी बनाने का श्रेय अथवा न बनने का ठीकरा चाहे जिसके सिर भी फूटे परंतु ठंडे बस्ते में जा चुके इस अहम मुद्दे को गरमाने का श्रेय तो सीएम विजय बहुगुणा ले ही गए हैं।

http://m.newshunt.com/Amar+Ujala/Almora/19025637/997

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From - Chandra Shekhar Kargeti.

गैरसैंण के निहितार्थ  !

इस राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष मीडिया में कुछ और बयान देते हैं, और विधानसभा की कार्यवाही में कुछ और करते है, गैरसैंण राजधानी बने इस पर शायद ही चर्चा हुई हो, न उन्होंने अपने अध्यक्षीय अधिकार के तहत ऐसा कुछ करने का संकेत ही दिया है, पर देहरादून को स्थायी राजधानी बनाया जाय इस पर वह विधानसभा में चर्चा जारी रखवाते हैं l
 
 वर्तमान कांग्रेस नीत सरकार मन ही मन यह तय कर चुकी है कि देहरादून को राज्य की स्थायी राजधानी बनाना है, और यह उसकी संवैधानिक मजबूरी भी है कि राज्य की स्थायी राजधानी घोषित किये बिना राजधानी के नाम पर केन्द्र से मिलने वाली आर्थिक मदद अब बार-बार नहीं मिलनी है, और वो अब तभी मिलेगी जब राज्य की अपनी कोई संवैधानिक दर्जा प्राप्त राजधानी होगी l
 
 देहरादून को स्थायी राजधानी घोषित करने में कोई हो हल्ला ना मचे, गैरसैंण को राजधानी के रूप में समर्थन देने वाले जनसंगठन इस पर कोई बवाल न काटे इस बात का पुख्ता इंतजाम करने के लिए ही सरकार ने गैरसैंण में विधान भवन बनाने की घोषणा की थी, और शायद मकर संक्रांति के दिन न उसका शिलान्यास भी कर दिया है l
 
 अब गैरसैंण में विधान भवन का शिलान्यास करने के साथ ही कांग्रेस नीत राज्य सरकार के लिए देहरादून को स्थायी राजधानी घोषित करने का मार्ग भी प्रसस्त हो गया है और विरोध करने वालो को गैरसैंण में विधान भवन होने का हवाला देकर चुप भी करा दिया जायेगा l लेकिन ये तुरुप के पत्ते 2014 के चुनाव तक शो नहीं किये जायेंगे !
 
 गैरसैंण में हुई केबिनेट की बैठक एक सियासी पिकनिक से ज्यादा और कुछ नहीं थी, और यह उन लोगो में दो फाड़ करने के लिए भी की गयी थी, जो किसी न किसी रूप में गैरसैंण राजधानी के कट्टर समर्थक रहें हैं, और सरकार की उक्त योजना पर उसके मन माफिक परिणाम भी आये , राज्य के लोगो की, प्रवासियों की,  राजनैतिक दलों की समर्थक प्रतिक्रयायें भी आयी, किसी ने भी सरकार के कदम का विरोध नहीं किया, ज्यादातर लोगो ने सरकार के कदम का स्वागत ही किया पर, जो कि सरकार के देहरादून को स्थायी राजधानी घोषित करने की मंशा के सफलता की और पहला कदम था l कोमोबेश राज्य निवासियों और राजनीति से जुड़े लोगो की यही प्रतिक्रया शिलान्यास के बाद भी आ रही है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि सरकार ने या स्वयं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने खुले तौर पर अपने किसी भी आधिकारिक बयान में यह नहीं कहा है कि वह गैरसैंण में विधान भवन बना कर उसे क्या दर्जा देना चाहते है, आखिर गैरसैंण की संवैधानिक स्थिति क्या होगी ? यह प्रश्न अभी यक्ष प्रश्न ही है और राज्य की पिछली १२ सालों के इतिहास को देखते हुए यह भविष्य में भी रहेगा ! हाँ बीच-बीच में शिगूफे जरुर उड़े है ग्रीष्मकालीन राजधानी के, जिनके निहितार्थ भी अलग ही है ?
 
गैरसैंण में केबिनेट आयोजन के समय भी हम जैसे ही कुछ लोग थे, जो सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे थे और तब भी कह रहे थे कि गैरसैंण में केवल ग्रीष्मकालीन विधान सभा सत्र ही क्यों, पूरा सत्र क्यों नहीं ?  केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी ही क्यों पूरी स्थायी राजधानी क्यों नहीं ? यह प्रश्न आज भी अनुतरित्त है और मैं समझता हूँ कि राज्य का वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व इमानदारी से इस प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम है लेकिन वह देना नहीं चाहता l
 
 राज्य की जनता को गैरसैंण के मुद्दे पर सरकार के चंगुल में आना था सो वो आ ही चुकी है, अब इन्तजार करें, उस दिन का जब मकर सक्रांति को शिलान्यास के बाद देर सबेर ही सही देहरादून को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित कर देगी, अब राज्य की स्थायी राजधानी की घोषणा करना राज्य सरकार की संवैधानिक मजबूरी है,  उसे यह काम अब जल्द से जल्द पूरा करना पडेगा, क्योंकि केंद्र एवं वित्त आयोग से अब राज्य की राजधानी डेवलेपमेंट के नाम पर तभी पैसा मिलेगा जब इस राज्य की सवैधानिक राजधानी का दर्जा प्राप्त कोई एक स्थान होगा ?
 
 शायद यही कारण है कि कांग्रेस सरकार ने अपने इन मंसूबो को पूरा करने के लिए यह सारा ढोंग रचा हो, लेकिन यह तो स्पष्ट अहै कि गैरसैंण नाम की जगह उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के रूप में कांग्रेस और भाजपा के एजेंडे में तो कतई नहीं है !


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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There should not be any compromise on this vital issue. Gairsain was the proposed Capital since the demand of Uttarakhand separate state.

The demand of people that Gairsain should be made permanent capital of Uttarakhand.

The news below is rubbish that a Vidhan Sabha bhawan is also being made at Dehradun..

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Uttarakhand to build new Houses in Dehradun and Gairsain'
State to utilise Rs 88-crore Finance Commission funds for the purpose

The Uttarakhand government will utilise funds of the 13th Finance Commission to build two new Vidhan Sabha buildings at Dehradun and Gairsain. The state had received Rs 88 crore from the 13 th Finance Commission to build a new Vidhan Sabha after the current building on the banks of the Rispana river in Dehradun was declared unsafe. But the funds could not be utilized during the past few years due to political indecisiveness.

The state government has now roped in the National Building Construction Corporation (NBCC), a PSU, to prepare the Detailed Project Reports (DPRs) of the two complexes.

the NBCC will prepare the DPRs of both the Vidhan Sabha buildings. In case, we need more funds, we will approach the centre to release more money,” said Vidhan Sabha Speaker, Govind Singh Kunjwal.

Kunjwal said for the new Vidhan Sabha building at Dehradun, a house committee is being set up to take a final decision. “We have already seen a site in the Raipur area of Dehradun. But a Vidhan Sabha committee which will be set up shortly, will take a final call on the building at Dehradun,” said Kunjwal.

In what is being seen as a new beginning for settling the vexed capital issue in Uttarakhand, Chief Minister Vijay Bahuguna on Monday laid the foundation stone of a new Vidhan Sabha building at Gairsain, a central but remote area in Uttarakhand.

Bahuguna laid the foundation stone of the new Vidhan Sabha building and other offices and residential complexes at a function at Gairsain which would be completed in two-three years.

Speaking on the occasion, Bahuguna described the ceremony as historic and said the decision to build a new Vidhan Sabha at Gairsain was to honour the aspirations of the people of Uttarkahand.

However, Bahuguna did not make any commitment of making Gairsain the new capital of the hill state despite a scramble in this regard in certain political quarters. The chief minister has already stated that the issue of the capital of the hill state would be settled only after the completion of infrastructure facilities at Gairsain.

Significantly, a feasibility study report prepared by the Virendra Dixit Commission in 2009 had found Dehradun as the most suitable place for the permanent capital and rejected Gairsain on the basis of its tough geographical conditions and other factors that were taken into consideration for the final selection of the capital of Uttarakhand. The Dixit commission had taken nearly 8 years to prepare the report.

Dehradun, which became an interim capital after Uttarakhand was formed on Nov 9, 2000, edged out other four towns — Kashipur, Ramnagar, Gairsain and Rishikesh in the final 80 page report of the Dixit Commission.

http://www.business-standard.com/india/news/uttarakhand-to-build-new-houses-in-dehradungairsain/498891/

 

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