Poll

Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

Total Members Voted: 136

Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 193129 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
विस सत्र के बहाने पिकनिक मनाने चली रावत सरकार -गैरसैंण में तीन दिन की राजनैतिक पिकनिक

गैरसैंण में तीन दिन की राजनैतिक पिकनिक मनाने की तैयारी है। करीब डेढ़ साल पहले गैरसैंण में कैबिनेट की बैठक हुई थी।

गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने की दिशा में अभी तक कोई प्रगति नहीं है, लेकिन सरकार वहां सदन चलाने के लिए प्रतिबद्ध दिखती है।

लिहाजा आठ से दस जून तक विधानसभा का तीन दिवसीय सत्र गैरसैंण में बुलाया गया है।

विधानसभा सत्र के निकाले जा रहे राजनैतिक मायने
अब इस सत्र के राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं। सरकार और विधानसभा अध्यक्ष इस सत्र को महत्वपूर्ण बता रहे हैं।

जबकि विपक्ष इसे पंचायत चुनाव से जोड़कर लोगों की भावनाओं को भुनाने का उद्देश्य बता रहा है। सरकार ने आठ से दस जून तक विधानसभा का तीन दिवसीय सत्र बुलाया है।

विजय बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण में 3 नवंबर 2012 को पहली कैबिनेट की थी।

http://www.dehradun.amarujala.com/feature/politics-dun/assembly-session-in-garsaindh/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Gairsain . Gairsain..

Uttarakhand Capital should be Gairsain...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Assembly Session in Gairsain by Uttarakhand Govt- but we need permanent Capital of Uttarakhand at Gairsain

DEHRADUN: Three days after Uttarakhand assembly speaker Govind Singh
Kunjwal announced that a four-day assembly session commencing June 9 will be held at Gairsain in Chamoli district, chief minister Harish Rawat said all top government functionaries will reach there by road and not by choppers.

The decision to this effect was taken on Tuesday at a high-level meeting of functionaries chaired by Speaker Kunjwal and CM Rawat at the state assembly. "Instead of flying to Gairsain, efforts will be made to ensure that every one reaches there by road to participate in the proposed monsoon session," said Rawat.

A senior IAS officer who participated in the meeting, said preparations are underway to put up tents at the site of the proposed Vidhan Sabha building at Bhararisain near Gairsain.

"As this monsoon session will be held to connect socially and economically backward regions like Gairsain with Dehradun and to send across a message that government takes care of all, attempts will be made to cut down on the expenses of the entire exercise," said cabinet minister Indira Hirdesh.

Kunjwal told TOI that he decided to conduct assembly session at Gairsain minutes after chief minister Harish Rawat gave him a green signal in this connection. "The sole objective of the exercise will be to connect Dehradun with far-flung and socially and economically backward towns like Gairsain and to boost development activities in the region," he said.

The decision to hold assembly session at Gairsain came over a year after Congress-led state government laid the foundation stone of a proposed Vidhan Sabha building on January 13, 2013 at Bharisain near Gairsain. Prior to this, the state government had also held a cabinet meeting for the first time at Gairsain town on November 3, 2012.

A senior government functionary said this cabinet meeting was also held to make the message loud and clear. Kunjwal clarified that outgoing UPA II had already released an amount of Rs88 crores for the construction of proposed state assembly building and other fully-equipped staff quarters within the premises in a stipulated time frame.

Deputy speaker Ansuya Prasad Maikhuri said that the assembly will table certain significant bills relating to boost development and other infrastructural development activities including construction of 20 more connecting roads, commissioning of 12 more drinking water and power sub-stations in Chamoli and Pithoragarh districts. "It is necessary to strike a balance while carrying out development work in Garhwal and Kumaon divisions so as to ensure that people no longer feel neglected from either side," he said. (source times of India)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
चन्द्रशेखर करगेती
1 hr ·

बल हर दा,

बताओ तो तुम गैरसैंण में विधानसभा भवन क्यों बनाना चाहते हो ?
बताओ तो लोकसभा चुनाव में करारी हार खाने के बाद तुम गैरसैंण को बरबस क्यों याद कर रहे हो ?
बताओ तो तुम तम्बुओं में ही गैरसैंण में विधनसभा सत्र चलाना चाहते हो ?
बताओ गैरसैंण में ऐसा है क्या जो आजकल तुम्हारी जुबान से गैरसैंण का रट्टा छूट ही नहीं रहा है ?

बल हर दा, सुना है तुम वहाँ जो विधानसभा का सत्र आयोजित करवाने जा रहे हो उसकी लागत 20 करोड़ रूपये आ रही है, क्या इस कंगाली में अपने हित साधने को 20 करोड़ की रकम इस कंगाल प्रदेश के लिए छोटी है हो ?

बल हर दा, तुम बताओं तो आखिर गैरसैंण में विधानसभा सत्र जैसा सब कुछ क्यों करने को उतारू हो ? अगर गैरसैंण तुम्हारी अपनी कल्पना से राजनीति की चर्चा में आया है तों बात अलग हैं, और अगर यह राज्य भावना से उपजा विषय है तो बताओ ना तुम कब तक इसे राजधानी घोषित कर दोगे ?

मत आयोजित करो कोई विधानसभा सत्र, मत करो कोई केबिनेट, बस इतना बता दो कि गैरसैंण को राजधानी कब घोषित करोगे ? एक साल बाद, दो साल बाद, तीन साल बाद !

क्यों अटक गया ना थूक गले में, झाँक रहें हो ना बगलें ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
स्थायी राजधानी को कब तक तरसेगा उत्तराखंड

 उत्तराखंड को अपनी स्थायी राजधानी कब तक नसीब होगी, जन भावनाओं से खिलवाड़ का सिलसिला थमेगा या यूं ही चलता रहेगा, इन तमाम सवालों के जवाब सियासी नफा-नुकसान के फेर में अब तक ढेर होते रहे हैं। राज्य बने हुए 13 साल से ज्यादा वक्त गुजरने पर भी सरकारों ने इस मुद्दे से मुंह चुराने की कोशिश की है। गैरसैंण के बहाने एक बार फिर सब्जबाग दिखाए जाने से सूबाई सियासत गरमा तो गई है, लेकिन सरकार इस अहम मुद्दे पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच नहीं पा रही है।

राज्य बनने के बाद से एक अदद राजधानी की तलाश जारी है। पर्यावरण के प्रति अति संवेदनशील इस हिमालयी राज्य में इस फैसले तक पहुंचने में लंबा वक्त जाया हो चुका है। आश्चर्यजनक यह है कि स्थायी राजधानी के मुद्दे पर सरकारें अंतिम फैसले पर पहुंचने से गुरेज करती रहीं, लेकिन इसे आधार बनाकर अनाप-शनाप खर्च में कोताही नहीं की जा रही है। अंतरिम राजधानी देहरादून में राजधानी को लेकर स्थायी प्रकृति के कई ढांचें खड़े कर अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। वहीं गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण पर करोड़ों की धनराशि खर्च की जानी है। महत्वपूर्ण यह है कि उक्त दोनों ही स्थानों में किसे स्थायी राजधानी बनाया जाएगा, इस पर अब तक किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ दलों ने रुख साफ करने की जहमत नहीं उठाई।

जाहिर है भावनाओं से जुड़ा यह मुद्दा हकीकत और सियासत के बीच उलझकर रह गया है। पृथक उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारी गैरसैंण को राजधानी बनाने की पैरवी करते रहे। जब राज्य अस्तित्व में आया तो सियासी दलों के ढुलमुल रवैये ने इस मुद्दे को लटका कर रख दिया। राजधानी चयन को लेकर बाकायदा आयोग का गठन भी हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सौंपी। इसके बावजूद राजधानी का चयन नहीं किया जा सका। आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद पिछली भाजपा सरकार ने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए इस मामले में गेंद कांग्रेस सरकार के पाले में सरका दी। मौजूदा कांग्रेस सरकार ने राजधानी पर चुप्पी साधे रखी, लेकिन गैरसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास कर ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने का मुद्दा उछाल दिया। अब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण में तीन दिनी विधानसभा सत्र के बहाने इस चर्चा को गरमा दिया है। यह दीगर बात है कि मुख्यमंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट नहीं किया। अलबत्ता, गैरसैंण को राज्य आंदोलन का मुख्य केंद्र बताकर उन्होंने इन कयासों को हवा दे दी कि जन भावनाओं से जुड़े मुद्दे पर सियासत तारी है।

इनसेट

'गैरसैंण विधानसभा सत्र को राजनीतिक चश्मे से न देखकर जन कल्याण व जन भावना की दृष्टि से देखा जाए। राज्य आंदोलन का गैरसैंण मुख्य केंद्र रहा है।'

-हरीश रावत, मुख्यमंत्री।

'गैरसैंण पर राजनीति विपक्ष ने नहीं, कांग्रेस सरकार ने की है। जब सरकार ही एकजुट नहीं तो गैरसैंण में बार-बार सियासी नौटंकी नहीं की जानी चाहिए।'

-अजय भट्ट, नेता प्रतिपक्ष।

http://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-11378699.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
चन्द्रशेखर करगेती
 

बल हर दा,

गैरसैंण में तुमने विधानसभा सत्र के नाम पर टेंट तो तनवा दिये, अपने हित साधने को ही सही तुम्हे गैरसैंण अपनी बीमारी को दूर करने की रामबाण औषधि तो लगी ही !

खैर गैरसैंण में देखने वाली बात यह होगी, कि क्या इस सत्र के दौरान विधानसभा में ध्वनिमत यह प्रस्ताव पास हो पायेगा कि हम पक्ष-विपक्ष में बैठे राजनैतिक दल आपस में मिलकर एक साल में, दो साल में, तीन साल में गैरसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित करवा ही देंगे ?

अगर ऐसा कुछ नहीं होता तो क्या फर्क पडता है इस सत्र के आयोजन से, ना भी होता तो भी गैरसैंण कौनसा तुम्हारे इस सत्र के बगैर मरा जा रहा था ?

इन सबके बीच देखते हैं कि इस बड़े टेंट में 71 विधायकों में से कौन उत्तराखण्ड का सच्चा सपूत पैदा होता हैं, जो गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं तों सत्र नहीं का नारा देते हुए अपनी बात पर पुरे सत्र खड़ा रहता है !

बल दीदा, करने को एक ही कारण बहुत होता है, ना करने के सो बहाने होते हैं, वो आपके पास भी हैं और भाजपा के पास भी !

तब दोनों में फर्क क्या ? गैरसैंण तब भी था, और आगे भी बना रहेगा ! तुम रहोगे तब भी और ना रहोगे तब भी !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
देवसिंह रावत
23 hours ago · Edited
ग्रीष्म कालीन नहीं, अविलम्ब स्थाई राजधानी गैरसैंण घोषित करके हरीश रावत

गैरसैंण राजधानी भारत की प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त सर्वश्रेष्ठ राजधानी होगी


गैरसैंण राजधानी बनाने के मार्ग में अवरोध खड़ा करने वालों को माफ नहीं करेगा महाकाल

गैरसैंण में तीन दिवसीय विधानसभा सत्र का सफल आयोजन करके उत्तराखण्डी जनता का दिल जीतने वाले उत्तराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत से उत्तराखण्ड की जनता को एक ही आशा है कि वे प्रदेश के भविष्य व जनांदोलन की मूल भावनाओं का सम्मान करते हुए अविलम्ब गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने का ऐतिहासिक निर्णय करे। राज्य गठन आंदोलन का एक सिपाई होने के कारण मैं जानता हूूॅ उत्तराखण्ड की जनता व प्रदेश के आंदोलनकारी गैरसैंण को स्थाई राजधानी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाना भी राज्य गठन आंदोलन की मूल अवधारणा, शहीदों के सपनों व प्रदेश के हितों पर कुठाराघात ही होगा। हरीश रावत को चाहिए कि वे जनभावनाओं का सम्मान करें न की निहित स्वार्थी तत्वों के बेहकावे में आ कर इसको ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने के षडयंत्र को अंजाम न दे। जिस प्रकार हिल कांउसिल या केन्द्र शाशित प्रदेश जनता को मंजूर नहीं था उसी प्रकार किसी प्रकार से प्रदेश की स्थाई राजधानी से कम जनता को मंजूर नहीं है। देर सबेर इसे स्थाई राजधानी बननी है इसलिए तमाम किन्तु परन्तु छोड़ कर मुख्यमंत्री हरीश रावत को चाहिए कि इस शौभाग्यशाली अवसर को अपने हाथ से छोड कर स्वामी, भगतदा, तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा की तरह अभागे न बने। ऐसा अवसर फिर लोट कर नहीं आयेगा। वक्त प्रायश्चित के लिए भी समय नहीं देगा। महाकाल जिस प्रकार राज्य का गठन हर हाल में करा गया उसी प्रकार दुनिया की कोई ताकत गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनने से नहीं रोक सकती। इसलिए इस शौभाग्य का सदप्रयोग करें।
गैरसैंण में बन रहे विधानसभा भवन के रमणीक स्थल ‘भराड़ीसैंण’ की छटा का अवलोकन करने के बाद मुझे भी इसका अहसास हुआ कि उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण देश में प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से देश के तमाम राज्यों की राजधानियों में सर्वश्रेष्ठ होगी। मैं उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के अग्रणी संगठन ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा (जिसने संसद की चैखट जंतर मंतर पर 1994 से राज्य गठन 2000 तक ऐतिहासिक धरना दिया) के संयोजक अवतार सिंह रावत व उपाध्यक्ष विनोद नेगी के साथ विजय बहुगुणा सरकार के कार्यकाल में गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में उठाये गये महत्वपूर्ण कदम ‘ विधानसभा भवन के शिलान्यास’ की पूर्व संध्या पर अपने आंदोलन के साथियों के साथ भराड़ीसैंण उस पावन भूमि को नमन् करने गया था। भराड़ीसैण से विहंगम दृश्य को देख कर मेरे दिल से आवाज आयी कि यह भारत की सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्पन्न राजधानी होगी जहां पर पूरे विश्व के लोग इसकी अनुपम छटा को देखने के लिए आयेंगे। यही नहीं यह पहला शहर होगा, जो आजादी के बाद उत्तराखण्ड में अपनी सरकार द्वारा बसाया गया होगा। नहीं तो उत्तराखण्ड में मसूरी हो या रानीखेत, नैनीताल हो या लैंन्सीडाॅन आदि शहर अंग्रेजों ने विकसित किये। आजादी के बाद उत्तराखण्ड की देवभूमि में दो ही काम हुआ एक भ्रष्टाचार व दूसरा शराब का गटर में पतन के गर्त में गिर कर अपनी सदियों पुरानी ईमानदार व वीरों की देवभूमि की ख्याति जमीदोज कर गया। आज राजनीति के में प्रधान से लेकर विधानसभा में अधिकांश ठेकेदार व बटमारों का बर्चस्व निरंतर बढ़ता जा रहा है और ईमानदार व जनहितों के लिए संघर्ष करने वाले समाजसेवी निरंतर हाशिये में अपमानित हो रहे है। आज जरूरत है उत्तराखण्ड में जनहितों व उत्तराखण्ड की संस्कृति के लिए समर्पित नेतृत्व की। आज सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि जिस राज्य गठन व राजधानी गैरसेंण के लिए लाखों लोगों ने सड़क पर उतर कर देश के हुक्मरानों को मजबूर कर दिया था, उस प्रदेश में जनप्रतिनिधि ऐसे विधायक , मंत्री बन गये हैं जिन्हें गैरसैंण राजधानी बनाना भी फिजूलखर्ची लग रहा है। ऐसे बयान देने वालों को बाबा मोहन उत्तराखण्डी सहित राज्य गठन के शहीदों की शहादत करने का दुशाहस कैसे हुआ। इन बेशर्मो को जितना भी धिक्कारा जाय व जितनी भी लानत दी जाय उतना कम है। ऐसे नक्कारे व उत्तराखण्ड द्रोही भ्रष्टाचारी जनप्रतिनिधियों में अगर जरा सा भी जमीर होता तो तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। गैरसैंण राजधानी तो बनेगी हर हाल में, भगवान बदरीनाथ व केदारनाथ के आशीर्वाद से जनता बना कर रहेगी। परन्तु जिन अभागों ने इस मार्ग में अवरोध खडा करने की कोशिश करेंगे उनको जनता ही नहीं महाकाल भी कभी माफ नहीं करेंगा। राज्य गठन के 14 सालों में पहली बार विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री होते हुए गैरसैंण की सुध लेने का सराहनीय कार्य किया। परन्तु उन्होंने बाद में इसको अधूरे में छोड़ दिया। अब वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने न केवल विधानसभा भवन को युद्धस्तर पर बनाने का निर्णय लिया अपितु उन्होंने 9 जून से चार दिवसीय विधानसभा का सत्र जनभावनाओं को नमन् करने के लिए आयोजित करने का ऐतिहासिक कार्य किया। भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य राजनेता व तथाकथित समाजसेवियों से मेरा करबद्ध निवेदन है कम से कम 14 साल बाद गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल के मार्ग में अवरोध खडा करने की कुचैष्ठा न करें। जो काम पहली निर्वाचित या मनोनित सरकार ने करना चाहिए था वह काम आज 14 साल बाद भी शुरू हो रहा है। राज्य में भाजपा, कांग्रेस, उक्रांद, बसपा ही नहीं अपितु निर्दलीय भी सरकार में भागीदारी निभा चूके हैं अपने अपने कार्यकाल में ये नेता गैरसैंण को राजधानी बनाने की दिशा में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत जैसी ठोस पहल करना तो रहा दूर ये गैरसैंण के नाम लेने से इनकी सरकारों को मानों सांप सूंघ जाता रहा। इसलिए अब जब इस दिशा में जो सकारात्मक पहल हो रही है उसका स्वागत करना ही एक सच्चे उत्तराखण्डी का प्रथम कर्तव्य है। दुर्भाग्य यह है कि उत्तराखण्ड के अब तक के जितने भी निर्वाचित मुख्यमंत्री हुए(तिवारी, खण्डूडी व निशंक) उन्होंने गैरसैंण पर कदम उठाया होता तो आज उत्तराखण्ड की ऐसी दुर्दशा नहीं होती। बहुगुणा के पास समय था अच्छे कार्य करने का परन्तु वे अपने पथभ्रष्ट सलाहकारों व अनुभवनहीनता के कारण गैरसैंण पर सही कदम उठाने के बाद उसको मुकाम पर नहीं पंहुचा पाये। अब मुख्यमंत्री हरीश रावत के पास शौभाग्य से प्रदेश की सत्ता है। उन्होंने गैरसैंण में विधानसभा का 4 दिवसीय सत्र आयोजित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। मैं राज्य गठन के बाद हरीश रावत सहित तमाम मुख्यमंत्रियों को गैरसैंण राजधानी बना कर उत्तराखण्ड का परमार बनने के लिए प्रेरित करता रहा परन्तु दुर्भाग्य इन अभागों का रहा जो अपनी मातृभूमि की निर्णायक सेवा करने से चूक गये। इन सत्तांधों को इतिहास ही नहीं इनकी आत्मा भी धिक्कारेगी। हाॅं गैरसैंण पर ऐतिहासिक कदम उठाने के लिए , राज्य गठन जनांदोलनों के समर्पित संगठनों, उक्रांद, उपपा, माले व भाकपा आदि दलों के प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग कर दवाब बनाया। वहीं कांग्रेस की बहुगुणा नेतृत्व वाली सरकार को गैरसैंण पर नयी पहल करने के लिए पूर्व सांसद सतपाल महाराज व प्रदीप टम्टा, विधानसभा अध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल व उपाध्यक्ष अनुसूया प्रसाद मैखूरी जेसे सत्ता पक्ष के नेताओं ने जनांदोलन की भावनाओं को सम्मान करने के लिए विशेष दवाब बनाया। अब गैंद हरीश रावत के पाले में है, उनको बिना बिलम्ब किये गैरसैंण प्रदेश की राजधानी घोषित कर देनी चाहिए। चाहे वह देवगोड़ा की तरह का ऐतिहासिक कदम क्यों न हो। बिना कुर्सी छूटने का भय से एक पल के लिए भी विचलित नहीं होना चाहिए। सत्ता सदैव न रावण की रही व नहीं किसी चक्रवर्ती सम्राट की। इसने एक दिन इसको विछुडना ही है। परन्तु जो लोग परमार की तरह अपनी मातृभूमि की सेवा कर जाते हैं उनको इतिहास व उनकी सहृदय जनता सदैव याद रखती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
चन्द्रशेखर करगेती feeling hopeful : ये लाल रंग कब हर दा को छोडेगा ?
7 hrs · Edited ·

बल हर दा,

गैरसैंण को बेच खाना बाकी रह गया हो तो वो भी कर लो !

गैरसैंण में विधानसभा सत्र के नाम पर क्या हुआ ये तो खुद गैरसैंण वाले ही बता देंगे, बाकी जिन भांड पत्रकारों को तुम साथ ले गये थे, उनकी आँखों की सूजन अभी उतरी नहीं है, मुर्गे की टांग अभी भी गले में ही फंसी हुई है, सो चन्द्रबरदाई लगातार टीवी पर आ ही रही है !

खैर तुम्हे बहुत बहुत बधाई कि तुमने गैरसैंण से देहरादून ना जा पाने वालों को गैरसैंण में ही देहरादून के दर्शन करा दिये, बता दिया कि राजधानी में रहने वाले माननीय उपर से टपके होते होते हैं, चुनाव जीतने के बाद वो विशेष हो जाते हैं, जनता से घुलने मिलने में उनकी जान जाने का खतरा होता है !

कुछ बिफरे गदराये ग्याडूओं को भी अब समझ में आ ही गया कि तुम्हारा द्वाराहाट वाला शराब प्रेम अभी मरा नही है, बुढापे के साथ साथ वह भी पुरानी शराब की तरह नशीला होता जा रहा है ! शराब की बात, देहरादून हो या गैरसैंण सबसे पहले होगी, पुराना साथ जो ठहरा, बाकी राज काज तों यूँ ही चलता रहेगा !

हाँ तुम्हारी जनभावना का रट्टे का मन्तव्य लोगों ने गैरसैंण के एक छोर पर बसे दिवालीखाल और मेहलचौरी में लगाई गयी बेरीकेडिंग और गैरसैंण में खदेड़े जा रहें टेक्सी चालको की बातों से ही ताड़ लिया है ! तुम्हे धारचुला-मुनश्यारी मुबारक जहाँ इंतजाम पहले से ही चाक चौबंद हो चुके हैं सों डोंट वरी, जीत आपकी ही होगी ?

मुझ जैसे ग्याडू तो बहुत पहले से ही बुक्का फाड़ कर कहते आ रहें हैं कि तुम्हे और तुम्हारी सोनिया टीम के साथियों को और इस बार नमो नमों का जाप करने वाले तुम्हारे बगलगीर भाजपा के नेताओं को गैरसैंण राज्य की राजधानी घोषित करने के लिए कई बार केंचुली बदलनी पड़ेगी ?

ये ग्याडू भी तुम्हारे ही घर के सामने का पंडित है, कुंडली हमने उसी दिन बांच ली थी जब तुम मुख्यमंत्री बने थे ! अब आगे क्या करोगे वह भी पता है, हाँ पहले शराब और धारचुला-मुस्यारी का हिसाब निपटा लो, फिर तुम्हे फुर्सत हुई तो देहरादून में बात होगी !

अब ज्यादा क्या कहना, कम लिखे को ज्यादा समझना !

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22