Poll

Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 192252 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गैरसैंण ही स्थाई राजधानी के लिए उपयुक्त : उक्रांदनैनीताल: उत्तराखंड क्रांति दल ने कौशिक समिति की सिफारिश के अनुसार राज्य की राजधानी गैरसैंण घोषित करने की मांग की है। दल की बैठक में राज्य की स्थाई राजधानी के लिए गैरसैंण को उपयुक्त करार दिया गया। पार्टी कार्यालय में नगर अध्यक्ष नवीन लाल साह की अध्यक्षता में हुई बैठक में कहा गया कि राज्य आंदोलन के दौरान प्रदेश की जनता गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्ष में थी। उक्रांद ने जनभावनाओं के अनुरुप गैरसैंण को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर नाम दिया था। इस दौरान वरिष्ठ नेता जमन सिंह बोहरा की धर्मपत्नी के निधन पर शोक जताया गया। बैठक में केंद्रीय अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल, जिला प्रवक्ता बीएस मेहता, कुलदीप सिंह, नगर महामंत्री वीरेंद्र जोशी आदि ने विचार रखे। इस अवसर पर मोहन सिंह देव, धीरेंद्र बिष्ट, हरीश बिष्ट समेत अन्य कार्यकर्ता आदि मौजूद थे।

As per our poll, most of the people wish the same..

पंकज सिंह महर

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UKD members tonsure heads in support of Gairsen
« Reply #81 on: August 25, 2008, 12:02:42 PM »


DEHRADUN, 22 Aug: Scores of Uttarakhand Kranti Dal workers tonsured their head in support of Gairsen as permanent capital.
The UKD workers staged a day long dharna at the Gandhi Park where many of them shaved off their heads. The protesters said that it was only the first step of the agitation. If government would not decide on Gairsen as the state’s permanent capital, the party would launch a statewide agitation in line with the 1994 movement by involving the entire public.
They said the formation of a separate state was conceived for the development of the hill areas. Gairsen being in the centre of the Garhwal and Kumaon region was appropriate for the permanent capital. They also called on all the MLAs of hill areas to come together in support of the demand. They maintained that despite having a separate state, the condition of people in hill areas had not improved much and their development was possible only when the capital was shifted to Gairsen. They warned the government nto to declare any other place as permanent capital.
The protesters who tonsured their heads and sat on dharna included DN Todaria, AP Juyal, Shailesh Guleri, Sunil Dhyani, Jai Prakash Upadhyaya, Jagdish Chauhan, Mansingh, Narain Singh Rawat, Wahid Khan, Yogesh Joshi, Latafat Hussain and Rajendra Pradhan.

उक्रांद के कार्यकर्ताओं ने मुंडाए सिर, प्रदर्शन

देहरादून : सूबे की स्थायी राजधानी के सवाल पर उत्तराखंड क्रांति दल मुखर हो गया है। दल ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर धरना दिया। साथ ही एक दर्जन कार्यकर्ताओं ने सरकार की बेरूखी को लेकर सिर भी मुंडवाए। दल ने आगाह किया है कि यदि मांग को अनसुना किया गया तो वह किसी भी हद तक जा सकता है। उक्रांद कार्यकर्ता शुक्रवार को गांधी पार्क के मुख्य गेट पर पहंुचे और प्रदर्शन कर धरना दिया। साथ ही एक दर्जन कार्यकर्ताओं ने सिर मुंडाकर स्थायी राजधानी के मामले में सरकारों के रवैये का विरोध किया। इस अवसर पर आयोतिज सभा में उक्रांद नेताओं ने कहा कि उत्तराखंड आंदोलन की आवाज गैरसैंण थी, लेकिन इस मामले में अब तक की सरकारों ने जनभावनाओं की अनदेखी ही की है। उन्होंने कहा कि यदि आयोग की सिफारिश की आड़ में गैरसंैण के प्रति नकारात्मक रूख अपनाया गया तो उक्रांद प्रदेशव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होगा। एक स्वर में सरकार से मांग की गई कि वह विस का विशेष सत्र बुलाकर गैरसंैण को बहुमत के साथ राजधानी घोषित करे। सभा में दल के केंद्रीय उपाध्यक्ष डीएन टोडरिया, पीडी कोठियाल, महामंत्री एपी जुयाल, महांनगर अध्यक्ष शैलेश गुलेरी, सुनील ध्यानी, जय प्रकाश उपाध्याय, पुष्पा सकलानी, शांति भट्ट, जगदीश चौहान, दिनेश बडोला, पीडी डंडरियाल, नारायण सिंह रावत आदि ने विचार रखे। संचालन यशपाल रावत ने किया। धरने पर काफी संख्या में कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण ब्यूरो: सूबे की स्थायी राजधानी का मुद्दा आज लगभग आठ साल बाद भी जस का तस है। पहले भाजपा की अंतरिम सरकार ने इसे टाला, फिर सत्ता में आई कांग्रेस ने तो पांच साल का कार्यकाल केवल आयोग का कार्यकाल बढ़ाकर काट दिए। आयोग ने रिपोर्ट सरकार के हवाले कर दी है। अब कोई भी फैसला भाजपा सरकार को ही लेना है। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक में देहरादून को अस्थायी राजधानी की संज्ञा दी गई है। राज्य गठन के तत्काल बाद भाजपा की अंतरिम सरकार ने स्थायी राजधानी की दिशा में कदम उठाया और एक सदस्यीय दीक्षित आयोग का गठन कर दिया। आयोग को अपनी रिपोर्ट के लिए तीन माह का वक्त दिया गया था। इस मुद्दे की गंभीरता समझ में आते ही भाजपा ने इससे हाथ खींच लिए और आयोग को स्थगित कर दिया। चुनाव के बाद सत्ता कांग्रेस के हाथ आई। अनुभवी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने आयोग को जीवित तो कर दिया पर रिपोर्ट लेने को बारे में कोई समय सीमा तय नहीं की। मंशा इस मुद्दे पर पहाड़ और मैदान दोनों ही स्थानों के लोगों को खुश रखने की थी। कांग्रेस ने पांच साल तक शासन किया और इस आयोग का कार्यकाल बार-बार बढ़ाया। एक बार भी रिपोर्ट जल्द देने की बात नहीं की। पिछले साल सत्ता एक बार फिर से भाजपा के हाथ आ गई। नए मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि आयोग का कार्यकाल ज्यादा नहीं बढ़ाया जाएगा। वक्त गुजरता रहा और कार्यकाल बढ़ता रहा। जनहित याचिका के जरिए मामला उच्च न्यायालय के संज्ञान में आया। मौके की नजाकत को भांपते हुए सरकार ने कार्यकाल विस्तार को विराम दिया तो आयोग ने भी आनन-फानन में अपनी रिपोर्ट सरकार के हवाले कर दी। अब सरकार पसोपेश की स्थिति में है। रिपोर्ट पर अमल करना या न करना सरकार की मर्जी पर है पर जन दबाव को देखते हुए इस सार्वजनिक करना होगा। फिर अमल न करने की दशा में किसी न किसी पक्ष का विरोध भी सरकार को ही झेलना होगा। यही कारण है कि सरकार इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। पहले रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा। फिर कैबिनेट के सामने लाया जाएगा। मुख्यमंत्री अभी से ही कह रहे हैं कि जरूरत हुई तो यह रिपोर्ट समिति के हवाले की जाएगी। सीएम ने समिति के बारे में तो खुलासा नहीं किया पर माना यही जा रहा है कि राजनीतिक कारणों से इसे सर्वदलीय बनाने की बात की जाएगी। ऐसे में कांग्रेस और बसपा शायद ही इसमें शामिल हों और उनकी कोशिश होगी कि सरकार को अपने स्तर से ही कोई भी फैसला लेने को मजबूर किया जाए। अगर सरकार इस रिपोर्ट को दबाती है तो भी विपक्ष को विरोध का पूरी मौका मिलने जा रहा है।
 

पंकज सिंह महर

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जागरण कार्यालय, नैनीताल: उत्तराखंड जनाधिकार संघर्ष मोर्चा की सोमवार को हुई बैठक में राजधानी चयन के लिए गठित दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को कागजों का पुलिंदा बताया गया। बैठक में कहा गया कि आयोग ने धन की बर्बादी कर जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। इस दौरान राज्य की स्थाई राजधानी कुमाऊं व गढ़वाल मंडल के मध्य में बनाने की मांग की गई। मोर्चा अध्यक्ष प्रदीप दुम्का की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य की राजधानी के मुद्दे पर सरकार से कोई निर्णय लेने से पूर्व वहां की यातायात व्यवस्था व भौगोलिक परिस्थितियों पर ध्यान रखने का आग्रह किया गया। वक्ताओं ने कहा कि राज्य निर्माण आंदोलन में राजधानी का कोई मुद्दा नहीं था। कुछ राजनीतिक दल क्षेत्र विशेष को राजधानी बनाने की मांग कर जनता के साथ विश्र्वासघात कर रहे हैं। बैठक में कहा गया कि दीक्षित आयोग द्वारा सुझाए गए नगरों में सुविधाओं का अभाव है और इसके विकास में सालों लग जाएंगे। मोर्चा ने विकास के लिए संसाधनों का उचित दोहन जरूरी बताते हुए कहा कि दो माह में पूरे क्षेत्र का भ्रमण कर शासन को समाज के हर वर्ग की भावनाओं से अवगत कराया जाएगा। बैठक में राजधानी के संवेदनशील मामले को राजनीति के भंवर में न फंसने देने का संकल्प लिया गया। इस मौके पर शाकिर अली, देव सिंह शाही, घनश्याम, महेंद्र सिंह, खीम सिंह, चंदन सिंह कार्की, कमला साह, भरत मेहरा, महेंद्र आर्या, दुर्गादत्त आदि ने विचार रखे। संचालन मोर्चा के महामंत्री पीएस रौतेला ने किया।

पंकज सिंह महर

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देहरादून से प्रकाशित हिन्दुस्तान के मुख्य पृष्ठ पर सामयिक मुद्दों पर एक कालम आता है दो टूक। यह अंश उसी से साभार मुद्रित


दीक्षित आयोग का कार्यकाल नहीं बढ़ सका। रिपोर्ट अब ठंडे बस्ते में पड़ी है। चुनाव के वक्त जनता का मूड क्यों खराब करें! यूकेडी के कार्यकर्ता गैरसैंण के लिए सिर मुंडा रहे हैं। कह रहे हैं कि राज्मांगा तो था पिछड़े पहाड़ के लिये, लेकिन यहां राज करने वाले लखनऊ वालों की तर्ज पर जताने लगे हैं कि अच्छे भले राज पर ये पहाड़ कहां से लद गया! राजनीति के खेलों के लायक गैरसैंण में कोई मैदान नहीं है। शिमला बसाने वाले अंग्रेज गैरसैंण नहीं गये तो हम क्या करें! नेताओं, अफसरों के बने-बसे बंगले, धंधे, वहां कौन ले जायेगा? लोग सिर मुंडायें या फोड़ें, वे ठसक से राज करने के मूड में हैं, राज्य बसाने-बनाने का पंगा क्यों लें!

हेम पन्त

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रामनगर या आइ.डी.पी.एल. रिषिकेश का नाम उछाल कर गैरसैंण की बात को उलझाने का प्रयास किया जा रहा है. उत्तराखण्ड की जनता सिर्फ और सिर्फ गैरसैंण को ही राजधानी बनाने को राजी है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रामनगर या आइ.डी.पी.एल. रिषिकेश का नाम उछाल कर गैरसैंण की बात को उलझाने का प्रयास किया जा रहा है. उत्तराखण्ड की जनता सिर्फ और सिर्फ गैरसैंण को ही राजधानी बनाने को राजी है.

Only politics is beig done Capital issue nothing else.


हुक्का बू

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अरेऽऽऽऽऽ! इतनी आसानी से हम करने देंगे, इनको गज-बज हमारी भावनाओं के साथ, गैरसैंण तो हमारे आन्दोलनकारियों और शहीदों का सपना ठेरा। राजधानी वहीं जायेगी और इस पर अब राजनीति बंद करो भल इन पोलिटिकल लोगों से।
     मेरे बहुत नाती हैं, वे राजधानी गैरसैंण ले जाकर ही छोड़ेगे रे,,,,,,,! चिन्ता नी करो...

हलिया

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बिल्कुल ठीक कह रहे ठैरे बुबू | 
मेरे साथ सारे हालिया लोग भी आपके साथ ठैरे. 
गैरसैण तो गैरसैण और कुछ नहीं|


अरेऽऽऽऽऽ! इतनी आसानी से हम करने देंगे, इनको गज-बज हमारी भावनाओं के साथ, गैरसैंण तो हमारे आन्दोलनकारियों और शहीदों का सपना ठेरा। राजधानी वहीं जायेगी और इस पर अब राजनीति बंद करो भल इन पोलिटिकल लोगों से।
     मेरे बहुत नाती हैं, वे राजधानी गैरसैंण ले जाकर ही छोड़ेगे रे,,,,,,,! चिन्ता नी करो...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Do Uttarakhand needs more agitation for Capital. If so, it would be very bad.

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी यदि गैरसैण में स्थापित नहीं हुई तो उक्रांद आरपार की लड़ाई लड़ेगा। इसी क्रम में दल ने 22 अगस्त को गांधी पार्क में धरना देने का निर्णय लिया है। उक्रांद की बुधवार को केंद्रीय कार्यालय में हुई बैठक में कहा गया कि देहरादून को राजधानी बनाकर भाजपा ने दोहरी मानसिकता का परिचय दिया है। उसने हमेशा ही राजधानी गैरसैण और उत्तराखंड आंदोलनकारियों की उपेक्षा की है। वक्ताओं ने कहा कि दीक्षित आयोग की रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे, लेकिन उक्रांद गैरसैण को छोड़ किसी भी नाम पर सहमत नहीं होगा। यदि राजधानी के लिए गैरसैण के नाम की घोषणा नहीं होती है तो दल के कार्यकर्ता आत्मदाह कदम उठाने से भी नहीं कतराएंगे। निर्णय लिया गया कि भविष्य में राज्य निर्माण दिवस समेत सभी राष्ट्रीय कार्यक्रम गैरसैण में ही मनाए जाएंगे। यह भी तय हुआ कि 22 अगस्त को दल गांधी पार्क में धरना देगा और कार्यकर्ता सर मुंडवाकर राजधानी गैरसैण घोषित करने हेतु सरकार पर दबाव बनाएंगे। दल के केंद्रीय उपाध्यक्ष डीएन टोडरिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में शैलेश गुलेरी, जयप्रकाश उपाध्याय, सुनील ध्यानी, बिजेंद्र रावत, पीडी डंडरियाल, नारायण सिंह रावत, लताफत हुसैन, सुधीर बहुगुणा आदि ने विचार रखे।

 

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