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Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Song written by Virendra Panwar about capital issue of Uttarakhand, sung by famous Folk Singer Narenrda Singh Negi . Must listen


https://www.youtube.com/watch?v=udXE3JIZK3k&list=RDSMEyfryY0wI&index=10

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Darsansingh Rawat
 
गैरसैण ब्वल्दा रौ तुम,हम यख नि रूकि सकदा।
देहरादूण डेरा बसयूं भै,तै थै इनि छोड़ि नि सकदा।
व्रत समाज सेवा कु लियु,जडु असुविधा सै नि सकदा।
बड़ि मुश्किल सी नेता बण्या,वादा जल्दी निभै नि सकदा।
राजधानी गैरसैण मुद्दा,बिन ऐ कु चुनाव जीति नि सकदा।
आणु जाणु हि ठिक,पहाड़ी हम पहाड़ों म रै नि सकदा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Anand Mehra 
 
एगो टेम , ठाड़ है जाओ
उत्तराखंड कू अब खुद बचाओ।

करो नान - नान शुरुवात ,
नेताओ बोआट मी नि आओ ,
आपुण घर भर ऊ तलहुँ लेजानि ,
हमौर गौ -गाड़ उसकये रै जानी।

आपुण उत्तराखंड कू बचणु ,
हमैर जिम्मेदारी छू ,
जन्मभूमि क़र्ज़ चुकाओ ,
एक एक जुड़ बेर सौ है जाओ।

जय देवभूमि , जय उत्तराखण्ड।

पढ़ते रैया - कारवाँ जारी है -

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


उत्तराखंड राज्य आंदोलन से समय से ही गैरसैण उत्तराखंड की प्रस्तावित स्थाई राजधानी थी लेकिन राज्य बनने 17 वर्षो के बाद भी अभी तक गैरसैण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी नहीं घोषित नहीं किया गया है।  पहाड़ी जिलों का विकास अभी भी उपेक्षित है।  भारत वर्ष में जितने भी हिमालयी राज्य में उनसे से सिर्फ उत्तराखंड की राजधानी अभी तराई क्षेत्र में है केवल जम्मू कश्मीर को छोड़ के जहाँ छह महीने के जम्मू और श्रीनगर स्थान्तरित होती रहती है।  त्रिवेंद्र सिंह रावत जी सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी राजधानी गैरसैण बनाये जानी की बात कही थी लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर कोई काम नहीं किया है।  जन जन जाग रहा है एक बडा आंदोलन की जरुरत है और आंदोलन होगा।  इस बार राजधानी पर स्थाई समाधान होगा। 


उत्तराखंड राज्य आंदोलन से समय से ही गैरसैण उत्तराखंड के प्रस्तावित स्थाई राजधानी थी लेकिन 17 के बाद भी अभी तक गैरसैण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी नहीं घोषित नहीं हुयी।  भारत वर्ष में जितने भी हिमालयी राज्य में उनसे से सिर्फ उत्तराखंड की राजधानी अभी तराई क्षेत्र में है सिर्फ जम्मू कश्मीर को छोड़ के जहाँ छह महीने के जम्मू और श्रीनगर स्थान्तरित होती रहती है।  त्रिवेंद्र सिंह रावत जी सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी राजधानी गैरसैण बनाये जानी की बात कही थी लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर कोई काम नहीं किया है।  जन जन जाग रहा है एक बडा आंदोलन की जरुरत है और आंदोलन होगा।  इस बार राजधानी पर स्थाई समाधान होगा। 
http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/should-gairsain-be-capital/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Charu Tiwari
 
गैरसैंण आंदोलन-1
गैरसैंण विरोधी नेताओं से मुकाबला करने का समय

अजय भट्ट। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार। पिछले दिनों उन्होंने बयान दिया था कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनायेंगे। इससे पहले उन्होंने बयान दिया था कि गैरसैंण राजधानी बनाने का कोई विचार नहीं है। चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि सत्ता में आने के बाद गैरसैंण को राजधानी बनायेंगे। करीब एक साल के अंदर उनके ये तीन बयान हैं। इसमें चैंकने की कोई बात नहीं है। जो लोग अजय भट्ट और भाजपा को जानते हैं वे उनके झूठ-फरेब को भी उतना ही जानते हैं। ये बयान अजय भट्ट के नहीं होते तो किसी और के होते। भगत सिंह कोश्यारी के भी हो सकते थे, रमेश पोखरियाल निशंक के भी। कांग्रेस नेता हरीश रावत के भी हो सकते थे। दरअसल चेहरे, सुर, आवाज तो बदल सकती है, लेकिन इनकी फितरत नहीं। ये सभी एक तरह के ही राग अलापते हैं। अंतर साज और मंच का हो सकता है। एक ही राग है जनविरोध। गैरसैंण को राजधानी बनाने पर जिस तरह भाजपा-कांग्रेस का स्टेंड रहा है वह वैसा ही है जैसा कभी राज्य आंदोलन के समय हुआ करता था। जब हम पृथक राज्य की बात कर रहे थे तो भाजपा के शीर्ष नेता अटलबिहारी वाजपेयी इसे राष्ट्रद्रोही मांग बता रहे थे। भाजपा ने इस आंदोलन को तोड़ने के लिये ‘उत्तरांचल’ नाम भी गढ़ दिया। एक समय ऐसा आया कि इन्होनंे ‘वृहत उत्तरांचल’ के नाम से इसमें बहेड़ी, बिजनौर और मुरादाबाद जिलों को मिलाने का नारा भी साजिशन दिया। कांग्रेस भी पींछे नहीं रही। इसके दो बड़े नेता नारायणदत्त तिवारी और हरीश रावत ने राज्य आंदोलन के दौरान जिस तरह इस आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की वह इतिहास के काले पृष्ठों में दर्ज है। तिवारी ने कहा कि मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा। हरीश रावत ने कभी केन्द्र शासित तो कभी ‘हिल कोंसिल’ के नाम से इस आंदोलन को भटकाने की साजिश की। दुर्भाग्य से ये सभी बारी-बारी से राज्य बनने के बाद सत्ता में आये। गैरसैंण के बारे में भी इनका रुख लगभग एक जैसा है। भाजपा ने स्थायी राजधानी की जनाकंाक्षाओं को कुचलते हुये उसके ऊपर अलोकतांत्रिक ‘दीक्षित आयोग’ बैठाया। भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर इसका नौ बार कार्यकाल बढ़ाया। ग्यारह साल जनता की गाढ़ी कमायी पर यह आयोग भाजपा-कांग्रेस के लिये जनता के खिलाफ दलाली करता रहा। हरीश रावत ही पहले नेता थे जिन्होंने गैरसैंण की जगह कालागढ़, रामनगर जैसे नाम सुझाये। इसलिये पिछली बातों से सबक लेकर हमें सबसे पहले गैरसैंण के दुश्मनों को पहचानना होगा जो हमेशा खाल ओढ़कर हमारे बीच में आते रहे हैं।

दरअसल अजय भट्ट जैसे नेताओं को गैरसैंण का मतलब पता नहीं है। होता तो वे ऐसे ओछे बयान नहीं देते। गैरसैंण उत्तराखंड के लोगों के लिये देहरादून से गैरसैंण शिफ्ट होने का मामला नहीं है। गैरसैंण हमारे लिये ऐशगाह भी नहीं है जिसमें गर्मियों में आकर नेता विचरण करें। गैरसैंण हमारी जिद भी नहीं है। गैरसैंण पहाड़ की आत्मा है। गैरसैंण विकास के विकेन्द्रीकरण का दर्शन है। अगर थोड़ा इतिहास के आइने में गैरसैंण को राजधानी बनाने के आलोक में देखें तो हमें राजधानी और शहरों से आम आदमी की बेहतरी का रास्ता मिल जाता है। कत्यूरों ने जोशीमठ और बैजनाथ को अपनी राजधानी बनाकर नये शहरों का निर्माण किया। चंदों के समय में चंपावत, अल्मोड़ा, रुद्रपुर, काशीपुर जैसे शहर बने। पंवारवंशीय शासकों ने श्रीनगर जैसे शहरों का निर्माण किया टिहरी रियासत के समय टिहरी, कीर्तिनगर, प्रतापनगर, नरेन्द्रनगर जैसे शहरों का निर्माण हुआ। अंग्रेजों ने नैनीताल, मसूरी, लैंसडाउन, रानीखेत, देहरादून जैसे शहरों को बनाया या विकसित किया। इसके अलावा बहुत सारे छोटे-बड़े शहर और कस्बे हैं जो लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करते रहे हैं। ये सारे शहर उन शासकों ने बसाये जिन्हें हम सामंती व्यवस्था का रूप मानते हैं। यह ठीक है कि उन्होंने अपनी प्रशासकीय जरूरत के मुताबिक इन्हें विकसित किया हो, लेकिन इन शहरों के निर्माण से यहां सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीति, शैक्षिक चेतना का विकास हुआ। एक बड़ी आबादी का आपस में संवाद हुआ। ये सारे शहर हमारी चेतना के केन्द्र के रूप में जाने-पहचाने गये। अंग्रेजों के जाने के बाद न तो हमारे यहां कोई नया शहर बना और न पुराने शहरों को विकसित करने का कोई जनपक्षीय माॅडल व्यवस्था के पास रहा। हां, एक नया शहर उत्तराखंड में जरूर बना जिसे हम नई टिहरी के नाम से जानते हैं। यह शहर हमारी सभ्यता, संस्कृति, थाती, धरोहरों को डुबाकर बनाया गया। असल में यह हमारे अस्तित्व के ऊपर मौत का स्मारक है। जिसे राजनेता हमेशा हमारे विकास के साथ जोड़ते रहे हैं। जब हमने अपनी आकाक्षाओं के अनुरूप गैरसैंण को राजधानी बनाकर एक नये शहर की बात की तो व्यवस्था को उसमें कई सारी कमियां नजर आती हैं।

उत्तराखंड के साथ दो और राज्य बने झारखंड और छत्तीसगढ़। दोनों ने राज्य बनने के साथ ही अपनी राजधानी भी तय कर दी। छत्तीसगढ़ की राजधानी नया रायपुर इस समय देश के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है। पुराने रायपुर को भी उन्होंने गौरवपूर्ण तरीके से सजाया। अभी हाल में बने राज्य तेलंगाना ने अमरावती को बहुत सुन्दर तरीके से अपनी कल्पनाओं के अनुरूप सजाना शुरू किया है। हमारे यहां नासमझ और संवेदहीन भाजपा-कांगेस ने जिस तरह से जनता की भावनाओं को कुचलने के दुष्चक्र रचे उसका गैरसैंण सबसे बड़ा उदाहरण है। देहरादून को राजधानी बनाये रखने के लिये जो दुष्चक्र उत्तराखंड के सत्तासीनों ने किये हैं उनके खिलाफ एक बड़ा संघर्ष करने की जरूरत है। गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के लिए जनता में एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। यह कोई अचानक आई प्रतिक्रिया नहीं है सत्रह साल, आठ मुख्यमंत्री और ग्यारह बार बढाये गये राजधानी चयन आयोग के कार्यकाल के बाद भी स्थाई राजधानी न बनाना यहां की जनता को चिढाने वाला था। गैरसैंण को लेकर लंबे समय से चले जनता के आंदोलन को किसी न किसी रूप से कुचलने या दमन करने या लोगों का ध्यान बंटाने की साजिशें होती रही हैं। जब भी इसके पक्ष में जनगोलाबंदी शुरू हुई राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने इसके खिलाफ अपनी साजिशें शुरू कर दी। गैरसैंण को राजधानी बनाना इसिलए जरूरी है क्योंकि विकास के विकेन्द्रीकरण की शुरुआत राजधानी से ही होनी चाहिए। गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए आंदोलित जनता का राजधानी के लिए न तो राजनीतिक पूर्वाग्रह है और न ही प्रदेश के बीच राजधानी बनाने की जिद। सही अर्थों में यह आंदोलन यहां के अस्तित्व, अस्मिता और विकास के विकेन्द्रीकरण की मांग है। पहाड की 80 प्रतिशत जनता गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्ष में है। 1994 में बनी कौशिक ने अपनी सिफारिश में कहा कि राज्य की 68 प्रतिशत जनता गैरसैंण को राजधानी चाहती है। इसमें मैदानी क्षेत्र की जनता भी शामिल रही। वर्ष 2000 में जब राज्य बना तो भाजपा की अंतिरम सरकार ने जनभावनाओं को रौंदते हुये उस पर एक आयोग बैठा दिया जिसका नाम ‘दीक्षित आयोग’ था जो राज्य बनने के बाद राजधानी के सवाल को उलझाता रहा। यह आयोग भाजपा एवं कांग्रेस के एजेण्ट के रूप में काम करता रहा। भाजपा जो सुविधाभोगी राजनीति की उपज है और जिसका पहाड के हितों से कभी कोई लेना देना नही रहा उसने जनमत के परीक्षण के लिए आयोग बनाकर अलोकतांत्रिक काम किया। कांग्रेस ने अपने शासन में इस आयोग को पुनर्जीवित कर देहरादून को राजधानी बनाने की अपनी मंशा साफ कर दी।

असल में ये राजनीतिक दल देहरादून या मैदानी क्षेत्र में राजधानी बनाने का माहौल इसिलए तैयार कर रहे हैं क्योंकि जनता के पैसे पर ऐश करने की राजनेताओं और नौकरशाहों की मनमानी चलती रहे। जो लोग राजधानी के सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण विकास के सवाल को मानते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि राजधानी और विकास एक दूसरे के पूरक हैं। राजधानी का सवाल इसिलए भी हल होना चाहिए कि देहरादून से संचालित होने वाले राजनेता, नौकरशाही और माफिया के गठजोड ने जनिवरोधी जो रवैया अपनाया है उससे राज्य की जनता आहत है।
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116 You, Hem Pant, Chandra Shekhar Kargeti and 113 others
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Atal Behari Sharma
Atal Behari Sharma चारु तिवारी जी, एक विनम्र सुझाव।
हर विधानसभा से जन विधायक का चुनाव करें। ये वे लोग हो सकते हैं जो चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहे और गैरसैंण में उत्तराखंड की राजधानी बनाने के लिये प्रतिबद्ध हों। या सचेत नागरिक हो और राजधानी के लिये प्रतिबद्ध हों।
गैरसैंण को वास्तविक राजधानी घोषित करके, वर्ष प्रतिपदा पर गैरसैंण में जन विधायिका लगाए। सहमति बने तो सत्याग्रह कर गैरसैंण विधानसभा में घुसकर सदन चलाये। प्रस्ताव पारित करें। जन हित के प्रस्ताव पहले ही तैयार कर के जनता में प्रचारित करें। और जन विधायिका में पास करें।

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