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Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 191190 times)

पंकज सिंह महर

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 राजधानी स्थल चयन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सुपुर्द कर दी गई है। इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा राजधानी स्थल के पक्ष में लोगों की राय जानना है। इसके लिए आयोग ने नोटिफिकेशन जारी कर लोगों से राजधानी स्थल के पक्ष में व्यक्तिगत, पार्टीगत, एनजीओ तथा गु्रप के रूप में सुझाव मांगे गए थे। इस पर आयोग को कुल 268 सुझाव मिले। इनमें 192 व्यक्तिगत, 49 संस्थागत/एनजीओ, 15 संगठनात्मक/पार्टीगत और 12 गु्रपों के सुझाव थे। इनमें से गैरसैंण के पक्ष में 126, देहरादून के पत्र में 42, रामनगर के पक्ष में चार, आईडीपीएल के पक्ष 10 में थे। कुछ सुझाव अंतिम तारीख के बाद मिले थे। आयोग ने इन्हें भी शामिल कर लिया था। इसके अलावा 11 सुझावों में किसी अन्य के साथ विकल्प के रूप में गैरसैंण का नाम भी शामिल है। पांच में कुमाऊं गढ़वाल के केंद्र स्थल के नाम से आए हैं, इन्हें भी यदि गैरसैंण के पक्ष में मान लें संख्या 142 तक जा रही है। रामनगर के पक्ष में सिर्फ 4 सुझाव हैं पर अन्य स्थलों के साथ एक विकल्प रामनगर को भी मानने वाले सुझावों की संख्या 21 है। इस तरह रामनगर के पक्ष में 25 सुझाव कहे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कालागढ़ के पक्ष में 23 सुझाव आयोग को मिले हैं। साथ ही कालाढुंगी, हेमपुर, काशीपुर, भीमताल, श्रीनगर, श्यामपुर, कोटद्वार, रानीखेत, लैंसडौन, गोचर, नैनीडंाडा, नागचूलाखाल, सतपुली, जौलीग्रांट, जिम कार्बेट, सिमली आदि के पक्ष में कुछ सुझाव मिले हैं। राजनीतिक दलों की तरफ से आए कुल 15 में छह गैरसैंण के पक्ष में हैं। दो गढ़वाल कुमाऊं के केंद्रीय स्थल पर राजधानी बनाने को लेकर हैं। देहरादून के पक्ष में दो तथा कालागढ़ के पक्ष में तीन सुझाव हैं। दो सुझावों में किसी स्थल का नाम नहीं सुझाया गया है।




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देहरादून से प्रकाशित हिन्दुस्तान के मुख्य पृष्ठ पर सामयिक मुद्दों पर एक कालम आता है दो टूक। यह अंश उसी से साभार मुद्रित


दीक्षित आयोग का कार्यकाल नहीं बढ़ सका। रिपोर्ट अब ठंडे बस्ते में पड़ी है। चुनाव के वक्त जनता का मूड क्यों खराब करें! यूकेडी के कार्यकर्ता गैरसैंण के लिए सिर मुंडा रहे हैं। कह रहे हैं कि राज्मांगा तो था पिछड़े पहाड़ के लिये, लेकिन यहां राज करने वाले लखनऊ वालों की तर्ज पर जताने लगे हैं कि अच्छे भले राज पर ये पहाड़ कहां से लद गया! राजनीति के खेलों के लायक गैरसैंण में कोई मैदान नहीं है। शिमला बसाने वाले अंग्रेज गैरसैंण नहीं गये तो हम क्या करें! नेताओं, अफसरों के बने-बसे बंगले, धंधे, वहां कौन ले जायेगा? लोग सिर मुंडायें या फोड़ें, वे ठसक से राज करने के मूड में हैं, राज्य बसाने-बनाने का पंगा क्यों लें!


Shocking... 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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स्थाई राजधानी: गैरसैंण की जोरदार पैरवीAug 30, 01:28 am

देहरादून। राजधानी स्थल चयन आयोग को सुझाव देने के लिए बहुत कम जन प्रतिनिधि आगे आए हैं। सन् 2003 में आयोग ने सुझाव मांगे थे। उस समय तीन विधायकों ने गैरसैंण के पक्ष में सुझाव दिए। दो विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने विकल्प के तौर पर गैरसैंण और रामनगर को चुना है। एक विधायक देहरादून तथा एक अन्य हेमपुर के पक्ष में हैं। एक सांसद आईडीपीएल को राजधानी बनाना चाहते हैं।

स्थायी राजधानी स्थल चयन आयोग को भेजे गए सुझावों में 42 लोगों ने देहरादून को राजधानी के लिए उपयुक्त स्थल बताया है। गाजियाबाद निवासी एक व्यक्ति ने भी देहरादून को स्थाई राजधानी बनाने का सुझाव दिया है। विधायकों में सिर्फ तत्कालीन विधायक सुंदर लाल मंद्रवाल ने दून का समर्थन किया है।

इसी तरह आईडीपीएल को स्थाई राजधानी बनाने के पक्ष में सुझाव भेजने वाले दस लोगों में आईडीपीएल और टिहरी तथा पौड़ी जिलों के निकटवर्ती क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। तत्कालीन सांसद मानवेंद्र शाह आईडीपीएल को राजधानी बनाना चाहते थे। रामनगर के पक्ष में जिन चार लोगों ने सुझाव भेजे हैं, उनमें नैनीताल और रामनगर के रहने वाले लोग ही शामिल हैं। इन चार के अतिरिक्त विधायक हरभजन सिंह चीमा ने काशीपुर और रामनगर के मध्य स्थित हेमपुर को राजधानी बनाने का सुझाव दिया है। गैरसैंण को राजधानी चाहने वाले पूरे राज्य में ही नहीं बड़ी संख्या में राज्य के बाहर के लोग भी हैं। तत्कालीन तीन विधायकों विपिन चंद्र त्रिपाठी, गणेश गोदियाल और अनुसूया प्रसाद मैखुरी गैरसैंण को राजधानी बनाना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त भगत सिंह कोश्यारी और गोविंद सिंह कुंजवाल केंद्रीय स्थल में राजधानी बनाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने गैरसैंण तथा रामनगर का विकल्प दिया है। गैरसैंण के पक्ष में बीस सुझाव देहरादून से, छह सुझाव नई दिल्ली से एक महाराष्ट्र और एक गोरखपुर से भी आया है। उत्तारकाशी के लोगों को गैरसैंण राजधानी का विरोधी बताया जाता है, उत्तारकाशी से भी तीन सुझाव गैरसैंण स्थाई राजधानी बनाने के पक्ष में आए हैं। देहरादून का समर्थन करने वाले अधिकांश लोग तर्क देते हैं कि देहरादून में रेल, सड़क और हवाई अड्डे की उपलब्धता है, साथ ही यहां आफिसों एवं आवास के लिए पर्याप्त भवन उपलब्ध हैं। इसके विपरीत गैरसैंण के पक्ष में आए सुझावों में राज्य के केंद्र बिंदु पर स्थित होना, पर्वतीय क्षेत्र में राजधानी बनने पर पिछड़े क्षेत्रों का विकास और पलायन पर रोक लगने, कौशिक समिति और राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा गठित तकनीकी समिति की सिफरिशों को आधार बनाया गया है। 94 पेज की रिपोर्ट के इस हिस्से को आयोग ने पब्लिक ओपीनियन नाम दिया है।


Risky Pathak

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जागरण कार्यालय, नैनीताल: उत्तराखंड क्रांति दल के थिंक टैंक रहे पूर्व विधायक स्व.विपिन त्रिपाठी की पुण्य तिथि पर उक्रांद नगर इकाई द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर बेहतर उत्तराखंड के लिए एक और संघर्ष की जरूरत बताई गई। शनिवार को दल के वरिष्ठ सदस्य मौलाना मोहम्मद हाफिज की अध्यक्षता में हुई गोष्ठी में कहा गया कि स्व.त्रिपाठी ने राज्य में तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मेडिकल एवं तकनीकी संस्थानों की स्थापना कराई। वरिष्ठ नेता अंबादत्त बवाड़ी व शिक्षक केसी उपाध्याय ने कहा कि श्री त्रिपाठी के पास राज्य के विकास का स्पष्ट माडल था। सामाजिक कार्यकर्ता माधवानंद मैनाली ने कहा कि गैरसैंण राज्य की आत्मा है और गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए संघर्ष तेज करना होगा। इस दौरान पहाड़ से पलायन रोकने के लिए वहां उद्योगों की स्थापना करने पर जोर दिया गया। इस अवसर पर दल के केंद्रीय महामंत्री एनएस रजवार, विवि कर्मचारी नेता कुलदीप सिंह व विरेंद्र जोशी, शिक्षक कमलेश पाण्डे, केएन जोशी,आरसी पंत आदि ने विचार रखे। बैठक के अंत में दल के सदस्य गोधन सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया गया। इस मौके पर धीरेंद्र सिंह,नासिर अली, मोहन सिंह देव,असगर हुसैन,पान सिंह बोरा, रविंद्र सिंह रावत, अनुपम उपाध्याय,संजय साह आदि उपस्थित थे। संचालन नगर महामंत्री श्याम नारायण ने किया।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। दीक्षित आयोग ने उत्तराखंड की स्थायी राजधानी चयन को गैरसैंण, काशीपुर-रामनगर, कालागढ़, देहरादून और आईडीपीएल-ऋषिकेश का भ्रमण किया और अपनी रिपोर्ट में सभी स्थलों विस्तृत ब्योरा दिया है।

शासन को सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने इस भाग को 'सब्सटेंस आफ नोट्स इन रिस्पेक्ट आफ विजिट' कहा है। इस हिस्से के मुताबिक आयोग ने सबसे पहले गैरसैंण क्षेत्र का दौरा 15 से 18 अक्टूबर-03 को किया। इस दौरे में कई लोग सामूहिक रूप से मिले। आयोग ने विदेशी पशु प्रजनन केंद्र भराड़ीसैंण और पांडुवाखाल, नागचूलाखाल आदि क्षेत्रों का भी भ्रमण किया। उन्होंने पेयजल निगम के अधीक्षण अभियंता को क्षेत्र में पानी की उपलब्धता संबंधी रिपोर्ट देने को कहा। यहां दौरान उत्तराखंड महिला मंच और यूपीसीएल का एक प्रतिनिधिमंडल भी दीक्षित आयोग से मिला और गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के पक्ष में तथ्य प्रस्तुत किए।

इसके बाद 25 मार्च-04 को गैरसैंण दौरे पर पत्रकार पुरसोत्तम असनोड़ा, डा.नारायण सिंह बिष्ट, बाबा मोहन उत्तराखंडी, गीता बिष्ट, डा.प्रेम सिंह अटवाल, यूकेडी के विधायक विपिन त्रिपाठी, डा.शमशेर बिष्ट, जेसी त्रिपाठी, देवी प्रसाद काला, सीपी डिमरी, यशवंत साह समेत कई लोग आयोग से मिले और गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्ष में दलील दी। उन्होंने कहा कि असम, मेघालय और हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड की राजधानी भी केंद्रीय स्थल पर होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री राम शंकर कौशिक कमेटी द्वारा गैरसैंण को राजधानी के लिए सबसे उपयुक्त स्थल घोषित करने और राज्यपाल द्वारा गठित तकनीकी कमेटी की रिपोर्ट पर भी आयोग से विचार करने का आग्रह किया गया। आयोग ने 12 जून-06 को गैरसैंण दौरे के वक्त भराड़ीसैंण, सरकोट, परवारीगांव व नागचूलाखाल का भी दौरा किया। इस दौरान उन्हें बताया गया कि यह क्षेत्र तीन जिलों चमोली, पौड़ी और अल्मोड़ा को जोड़ता है।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। राज्य की स्थायी राजधानी को लेकर जन प्रतिनिधियों ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई है। स्थायी राजधानी स्थल चयन आयोग की रिपोर्ट इसका प्रमाण है। रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ सात विधायकों, एक सांसद और कुछ अन्य जन प्रतिनिधियों ने ही स्थायी राजधानी को लेकर आयोग को अपना सुझाव भेजा है।
      स्थायी राजधानी स्थल चयन आयोग ने सन् 2003 में बकायदा नोटिफिकेशन जारी कर उत्तराखंड वासियों से सुझाव मांगे थे। आयोग को इसके प्रत्युत्तर में 268 सुझाव मिले। इन सुझावों में यदि जनता द्वारा चुने हुए जन प्रतिनिधियों के सुझावों पर गौर करें तो काफी निराशाजनक माहौल दिखाई देता है। उत्तराखंड राज्य की पहली चुनी हुई विधानसभा में कुल 70 सदस्य थे। राज्य सरकार द्वारा नामित एंग्लो इंडियन सदस्य भी विधान सभा में थे। इसके अतिरिक्त राज्य पांच लोक सभा सदस्य और उत्तराखंड कोटे के तीन राज्य सभा सदस्य भी राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। यदि मामले को नगर निकायों और पंचायतों तक भी ले जाएं तो चुने हुए जन प्रतिनिधियों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है, लेकिन स्थायी राजधानी जैसे संवेदनशील मामले में सिर्फ कुछ गिने चुने सदस्यों ने ही अपना मुंह खोला। जिस क्षेत्र में उत्तराखंड राज्य के लिए 1994 का विशाल जन आंदोलन हुआ हो, वहां के जन प्रतिनिधि स्थाई राजधानी जैसे मुद्दे पर इस कदर निर्लिप्त हो जाएं, समझ से परे है। स्थायी राजधानी के मुद्दे पर अपना मुंह खोलने में वालों में सात विधायक, एक सांसद, एक पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष, एक ब्लाक प्रमुख तथा एक जिला पंचायत सदस्य शामिल हैं। कांग्रेस के चार विधायकों जिनमें एक मंत्री भी शामिल हैं, भाजपा के दो विधायकों एक संासद और उक्रांद के एक विधायक ने अपना सुझाव आयोग को दिया है। बसपा के किसी विधायक का सुझाव आयोग को नहीं मिला है।
जन प्रतिनिधियों के मुकाबले सामाजिक तथा अन्य संगठनों ने स्थायी राजधानी के मामले में खुलकर अपने विचार रखे हैं। सामाजिक संगठनों में महिला मंच तथा राजनीतिक दलों उत्तराखंड क्रांति दल ने सबसे अधिक सक्रियता दिखाई है। इन संगठनों के अलग-अलग जिलों तथा शहरों की इकाइयों ने गैरसैंण के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया है।

हेम पन्त

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देहरादून। दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि कालागढ़ में सूबे की राजधानी नहीं बन सकती है। इसकी वजह वहां जमीन की पर्याप्त उपलब्धता न होना बताया गया है।

दीक्षित आयोग ने फरवरी-04 में कालागढ़ का दौरा किया। इस दौरान सिंचाई विभाग के अभियंता समेत कई अन्य लोग उनसे मिले। आयोग को बताया गया कि रामगंगा प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग से 904 एकड़ भूमि लीज पर ली गई। निर्माण पूरा होने पर 580 एकड़ भूमि लौटा दी गई। इस मामले में एक एनजीओ ने कोर्ट की शरण ली तो कोर्ट ने एक केंद्रीय कमेटी का गठन किया। यह कमेटी वन विभाग को जमीन लौटाने के प्रकरण की जांच कर रही है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क के किनारे-किनारे एक बाउंड्री वाल का निर्माण किया है। इसे ही उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड की सीमा बनाया गया है। आयोग के अनुसार इस दौरान कई दलों के नेता और पत्रकार उनसे मिले और कालागढ़ को राज्य की राजधानी घोषित करने की मांग की। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस क्षेत्र में राजधानी घोषित करने की बात की जा रही है, वह महज 500 मीटर चौड़ा और चार किमी लंबा भूमि का हिस्सा है। यहां कई भवन पहले से ही बने हुए हैं। वन विभाग के रेंज अधिकारी ने आयोग को बताया कि कालागढ़ क्षेत्र की समस्त भूमि कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आती है। हाईकोर्ट के निर्देश पर यह भूमि वन विभाग द्वारा वापस ली जा रही है। कई राजनीतिक दलों के नेता और सामान्य नागरिक आयोग के समक्ष प्रस्तुत हुए। इस पर आयोग अध्यक्ष ने सभी लोगों के सामने साफ कह दिया कि कालागढ़ को स्थायी राजधानी बनाने पर विचार नहीं किया जा सकता है। जमीन की अनुपलब्धता इसकी मुख्य वजह है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देहरादून। दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि कालागढ़ में सूबे की राजधानी नहीं बन सकती है। इसकी वजह वहां जमीन की पर्याप्त उपलब्धता न होना बताया गया है।

दीक्षित आयोग ने फरवरी-04 में कालागढ़ का दौरा किया। इस दौरान सिंचाई विभाग के अभियंता समेत कई अन्य लोग उनसे मिले। आयोग को बताया गया कि रामगंगा प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग से 904 एकड़ भूमि लीज पर ली गई। निर्माण पूरा होने पर 580 एकड़ भूमि लौटा दी गई। इस मामले में एक एनजीओ ने कोर्ट की शरण ली तो कोर्ट ने एक केंद्रीय कमेटी का गठन किया। यह कमेटी वन विभाग को जमीन लौटाने के प्रकरण की जांच कर रही है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क के किनारे-किनारे एक बाउंड्री वाल का निर्माण किया है। इसे ही उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड की सीमा बनाया गया है। आयोग के अनुसार इस दौरान कई दलों के नेता और पत्रकार उनसे मिले और कालागढ़ को राज्य की राजधानी घोषित करने की मांग की। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस क्षेत्र में राजधानी घोषित करने की बात की जा रही है, वह महज 500 मीटर चौड़ा और चार किमी लंबा भूमि का हिस्सा है। यहां कई भवन पहले से ही बने हुए हैं। वन विभाग के रेंज अधिकारी ने आयोग को बताया कि कालागढ़ क्षेत्र की समस्त भूमि कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आती है। हाईकोर्ट के निर्देश पर यह भूमि वन विभाग द्वारा वापस ली जा रही है। कई राजनीतिक दलों के नेता और सामान्य नागरिक आयोग के समक्ष प्रस्तुत हुए। इस पर आयोग अध्यक्ष ने सभी लोगों के सामने साफ कह दिया कि कालागढ़ को स्थायी राजधानी बनाने पर विचार नहीं किया जा सकता है। जमीन की अनुपलब्धता इसकी मुख्य वजह है।


kya hoga... god knows.

पंकज सिंह महर

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स्थायी राजधानी स्थल चयन आयोग ने कालागढ़ की तरह आईडीपीएल को पूरी तरह खारिज तो नहीं किया है, लेकिन जो स्थितियां बन रही हैं, वह आईडीपीएल के दावे को कमजोर करने वाली हैं। केंद्र सरकार आईडीपीएल फैक्ट्री को रिवाइव करने को हरी झंडी दे चुकी है। ऐसी स्थिति में यह भूमि स्थायी राजधानी के लिए उपलब्ध होनी आसान नहीं होगी। दीक्षित आयोग ने 13 फरवरी 2004 को आईडीपीएल का दौरा किया। एसडीएम ऋषिकेश द्वारा आयोग को बताया गया कि आईडीपीएल के लिए 899.5 एकड़ भूमि वन विभाग से 99 साल की लीज पर ली गई थी, जिसमें 833 एकड़ भूमि पर फैक्ट्री तथा बाकी भूमि पोस्ट आफिस तथा पावर स्टेशन के लिए थी। फैक्ट्री के जनरल मैनेजर कलराज मल्होत्रा ने बताया कि इस केंद्रीय फैक्ट्री का मामला बीआईएफआर में विचाराधीन है। आयोग के चेयरमैन ने अन्य अधिकारियों के साथ फैक्ट्री की भूमि का निरीक्षण किया। वहां उपलब्ध जल स्रोतों के अतिरिक्त, चिकित्सालयों, स्कूल तथा अन्य सुविधाओं की स्थिति के बारे में भी जानकारी ली। आयोग के अध्यक्ष ने दोबारा फरवरी 04 में फिर से आईडीपीएल का दौरा किया। उनके साथ राजस्व अधिकारियों की टीम भी मौजूद थी। आयोग के पिछले दौरे पर भी विस्तार से चर्चा हुई। जिसमें कई अधिकारियों को सूचित किए जाने के बाद भी उपस्थित न होने पर चेयरमैन ने नाराजगी जताई। आईडीपीएल मैनेजमेंट ने बताया कि आईडीपीएल के रिवाइवल की योजना पूर्ववत है। आईडीपीएल के तत्कालीन सीएमडी पी दास गुप्ता ने आयोग चेयरमैन को बताया कि ऋषिकेश फैक्ट्री के रिवाइवल की योजना है। ऋषिकेश में दो नए प्लांट भी लगाने की योजना केंद्र सरकार के विचाराधीन है।
 

पंकज सिंह महर

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देहरादून: राजधानी आयोग ने स्थायी राजधानी को देहरादून में तीन स्थानों का निरीक्षण किया। दो स्थानों पर विभिन्न कारणों से राजधानी बनने की संभावनाएं नहीं के बराबर ही हैं। सौंग नदी का किनारा आयोग की नजर में राजधानी के लिए सबसे उपयुक्त स्थल है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चार नवंबर 04 को सौंग नदी के किनारे सहस्त्रधारा की तरफ भूमि का निरीक्षण किया गया। मुख्य नगर नियोजक बीबी रतन भी आयोग के साथ थे। देहरादून जिला प्रशासन ने इस स्थल को स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त स्थल के रूप में चयनित कर आयोग को रिपोर्ट भेजी थी। इस दौरान गोल्डन फारेस्ट की भूमि का भी रास्ते में निरीक्षण किया गया। यह क्षेत्र छोटी-छोटी पहाडि़यों से घिरा है। हालांकि यहां पेड़ पौधे बड़ी संख्या में नहीं हंै पर आयोग की नजर में यह भूमि राजधानी स्थापित करने योग्य नहीं है। आयोग के अनुसार इस भूमि से संबंधित कई वाद कोर्ट में विचाराधीन हैं। यहां यदि राजधानी स्थापित करने का प्रस्ताव किया जाता है तो सरकार को लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। इसके बाद जिला प्रशासन द्वारा स्थायी राजधानी के लिए प्रस्तावित की गई भूमि का निरीक्षण किया गया। आयोग को बताया गया कि यहां से जौलीग्रांट हवाई पट्टी को सीधे जोड़ने वाली सड़क जाती है। रायपुर रोड से यह स्थल तीन-चार किमी दूर स्थित है।  

 

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